Saturday, November 20

उम्र एक संख्या के अलावा कुछ भी नहीं

 जीवन का एक और बेहतरीन वर्ष जी लिया मैंने. यह पड़ाव गणित की गिनती से ज्यादा कुछ नहीं है. गणित की दृष्टि से जीवन का यह वसंत वर्ष एक अभाज्य संख्या है और ये अभाज्य संख्या जिस स्थान पर मौजूद है, उस क्रम का क्रमांक भी अभाज्य ही है. यह मेरे जीवन का दुर्लभ संयोग ही है. इस क्रम संख्या पर एक मान्यता बनी हुई है. उस मान्यता की महिमा इतनी है कि आधुनिक और विकसित उपनगरीय शहर चंडीगढ़ और नोएडा में इस संख्या का सेक्टर बसाया ही नहीं गया. 


मेरे जीवन का ये वसंतोत्सव की उम्र के स्थान पर रसायन विज्ञान की दुनिया में, एक ऐसे दुर्लभ तत्व मौजूद है, जिसका नाम है नायोबियम. यह दुर्लभ, मुलायम और भूरे रंग का तत्व है, जो कि पाइरोक्लोर और कोलम्बाइट नामक खनिजों में ही पाया जाता है. इसका उपयोग तीव्र गति से बिजली पहुंचाने वाली तार बनाने में किया जाता है. इस्पात और मिश्रित धातु बनाने में भी नायोबियम का इस्तेमाल होता है. ईश्वर से मेरी प्रार्थना है कि द्रुत गति से चपल चंचला की तरह मैं भी उस मंजिल तक पहुंच सकूं, मैं जिस राह पर चलने की कोशिश में हूं, उसे जयशंकर प्रसाद ने वर्षों पहले शब्दों में पिरो चुके हैं. उन्होंने लिखा है - इस पथ का उद्देश्य नहीं है/ श्रान्त भवन में टिक जाना/ किन्तु पहुंचना उस सीमा तक/ जिसके आगे राह नहीं है.


दुनिया क्या कहती है, इस पर कभी गौर नहीं किया मैंने. मुझे इस पर कभी गौर करना भी नहीं है. दुनिया की बातों के लिए मैंने अपने कान बंद कर लिए हैं लेकिन कुछ जिम्मेदारी है मेरे कंधों पर, जिसे मुझे ही पूरा करना है. बस ये जिम्मेदारी ही है जो अनुशासन में रहने के लिए मुझे प्रेरित करता है. एक सुंदर मुस्कान लिए इंतजार की आंखें हैं तो एक अल्हड़ खिलखिलाहट लिए नन्हें हाथ हैं, जो हमेशा यह अहसास दिलाता है कि दुनिया चाहे जितनी बड़ी हो, उनकी दुनिया मेरी सांसों से है. हे महादेव, मुझे बस साहस, ताकत, उत्साह दीजिए, झंझावतों के बोझ से मुक्ति का मार्ग दिखलाइए. हे त्रिकालदर्शी, आपकी अनुकंपा से हर दूरी और हर धूरी नापने के लिए तैयार हूं. आपकी कृपा रहे तो ये जन्म वसंत और उम्र संख्या के अलावा कुछ भी नहीं है.

Monday, November 15

हिन्दुत्व के बहाने इस्लामिक कट्टरता को परिभाषित कर गए सलमान खुर्शीद

 

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने एक किताब लिखी, जिसका नाम है सनराइज ओवर अयोध्या: नेशनहुड इन आवर टाइम. इसे सलमान खुर्शीद ने अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक आदेश का रेफेरेंस बुक बताया. इसमें उन्होंने हिन्दुत्व की तुलना इस्लामिक आतंकी संगठन आईएसआईएस और बोकोहरम से की है. इस पर विवाद होना तय था और हुआ भी. विवाद से संवाद जन्म होता है, लेकिन अब वो दौर नहीं है जहां विचार से विवाद और फिर विवाद से संवाद हो. अब तो वो दौर है, जहां विचार सीढ़ियों की तरह चुनावी गुणा-गणित के अनुसार बदलते हैं और आपके विचार जैसे भी हों, बवाल ही होना है. और बवाल की आग में सब कूदने को तैयार मिलेंगे, और मीडिया टीआरपी के लिए बवाल को हवा देने का काम करेगा.

इस्लामिक चश्मे से देखते हैं सलमान खुर्शीद

सनराइज ओवर अयोध्या: नेशनहुड इन आवर टाइम पुस्तक के लेखक सलमान खुर्शीद सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में देश के विदेश मंत्री रह चुके हैं. इतना कुछ होने के बाद भी, एक बात सत्य ये भी है कि लेखक इस्लाम को मानने वाले हैं. उन्होंने अपने इस्लामिक अनुभव से प्राप्त हुए अनुभूति के चश्मे से ही हिन्दू और हिन्दुत्व को देखा और समझा है. तभी उनके पास उदाहरण भी इस्लामिक संगठन का ही है.

इस्लामिक संगठन के विरोध का सॉफ्ट तरीका है पेज नंबर 113

मुझे व्यक्तिगत तौर सलमान खुर्शीद के विचार से कोई आपत्ति नहीं है. ये पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी सलमान खुर्शीद का तरीका है इस्लामिक संगठन के विरोध का. बोकोहरम और आईएसआईएस को सीधे तौर पर इस्लाम को मानने वाले सलमान खुर्शीद खराब बताने से घबरा रहे हैं. उन्हें पता है, इस्लामिक सत्ता की चाह रखने वाले का विरोध करने का मतलब क्या होता है, कमलेश तिवारी की तरह उदाहरण की अगली कड़ी न बनें, इसलिए उन्होंने विरोध करने के दूसरा तरीका अपनाया है. सलमान खुर्शीद ने किताब के पेज नंबर 113 का चैप्टर है 'सैफरन स्काई' यानी भगवा आसमान लिखकर हरे चादर का विरोध किया है. इसे देखने के लिए सलमान खुर्शीद के इस्लामिक सुधार वाले चश्मे से देखना चाहिए. इसमें सलमान खुर्शीद लिखते हैं -

हिंदुत्व साधु-सन्तों के सनातन और प्राचीन हिंदू धर्म को किनारे लगा रहा है, जो कि हर तरीके से ISIS और बोको हरम जैसे जिहादी इस्लामी संगठनों जैसा है.

दूसरे फ्रेम से पारिभाषित करते हैं राहुल

कांग्रेस नेता राहुल गांधी कहते हैं कि कांग्रेस जोड़ने की राजनीति करती है. यही कहते हुए कांग्रेस कार्यकर्ताओं से संवाद करते हुए हिन्दू और हिन्दुत्व को अलग-अलग परिभाषित करने की कोशिश की. महादेव भक्त मार्कडेय के बाद देश में कोई चीर स्थायी युवा है तो वो राहुल गांधी है. उन्होंने चीर स्थायी युवा अवस्था में विवाद पर संवाद करने की कोशिश की. उन्होंने हिन्दू और हिन्दूत्व को गांधी चश्मे के फ्रेम से देखने की कोशिश की. उन्होंने ये फ्रेम स्वच्छ भारत अभियान के प्रचार पोस्टर से उठाया. हास्य कवि सुरेंद्र दूबे के शब्दों में कहें तो जिस शीशे पर स्वच्छ है, वहां भारत नहीं और जिस पर भारत लिखा है, वहां स्वच्छ नहीं. ठीक वैसे ही चीर स्थायी युवा को एक तरफ हिन्दू दिख रहा है तो दूसरी तरफ हिन्दुत्व. नंगी आंख से देखते समय दोनों आंखें एक साथ देखती है. आंखें इसके लिए जन्म से अभयस्त है, लेकिन फ्रेम वो भी दूसरे के चश्मे का, उसमें दिक्कत आती है. इससे शुरुआत में अलग-अलग ही दिखता है. राहुल गांधी कहते एक साथ देखने के लिए युवा से बुजुर्ग होना पड़ता है, जिसके लिए चिर स्थायी युवा अभी मानसिक रूप से तैयार नहीं हैं.

हिंदुत्व शब्द का इतिहास और विवाद

हिंदुत्व पर टीवी-डिबेट पर अभी जंग छिड़ी हुई है. अगले टॉपिक मिलने तक यह जारी रहेगा, लेकिन माना जाता है कि हिन्दुत्व शब्द का पहली बार साल 1892 में बंगाली साहित्यकार चंद्रनाथ बसु ने प्रयोग किया. उन्होंने 'हिंदुत्व' शीर्षक देकर एक किताब लिखी. ये पुस्तक हिंदुओं को जागृत करने के उद्देश्य से लिखी गई थी. किताब के द्वारा ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ हिंदुओं को लामबंद करने की कोशिश की गई थी.

हिंदुत्व नाम से ही वीर सावरकर ने वर्ष 1923 में एक पुस्तक लिखी थी. उसके बाद हिन्दुत्व शब्द को असल पहचान मिली. माना जाता है कि इसी पुस्तक के विचार ने हिंदू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का जन्म दिया था. इसमें सावरकर ने हिन्दू हिंदू कौन है, इसकी व्याख्या की थी. सावरकर के विचारों के मुताबिक, जो धर्म हिंदुस्तान के बाहर पैदा हुए, वो गैर हिंदू यानी ईसाई, इस्लाम, पारसी, यहूदी आदि हैं! जो धर्म भारत में पैदा हुए, वे हिंदू यानी वैदिक, पौराणिक, वैष्णव, शैव, शाक्त, जैन, बौद्ध, सिख, आर्यसमाजी, ब्रह्म समाजी आदि है. सावरकर के इसी विचार से कई लोग तब भी सहमत नहीं थे और आज भी नहीं हैं.

जवाहर लाल नेहरू की आत्मकथा 'मेरी कहानी' में हिंदू धर्म की व्याख्या की. उन्होंने लिखा -

मैं समझता हूं कि हिंदू जाति में तरह-तरह के और अक्सर परस्पर विरोधी प्रमाण और रिवाज पाए जाते हैं. इस संबंध में यहां तक कहा जाता है कि हिंदू धर्म साधारण अर्थ में मजहब नहीं कह सकते. फिर भी कितनी गजब की दृढ़ता उसमें है. अपने आप को जिंदा रखने की कितनी जबरदस्त ताकत.

हिंदुत्व पर पीएम मोदी ने एक रैली में कहा था,

'हजारों साल पुरानी ये संस्कृति और परंपरा है. मुनियों की तपस्या से निकला ज्ञान का भंडार है. हिंदुत्व हर युग की हर कसौटी पर खरा उतरा है. हिंदुत्व का ज्ञान हिमाचल से भी ऊंचा, समुद्र से भी गहरा है. ऋषि-मुनियों ने भी कभी दावा नहीं किया कि उनको हिंदू और हिंदुत्व का पूरा ज्ञान है.'

Friday, December 2

नोटबंदी आपातकाल है तो 1975-77 में क्या था माननीयों

नोटबंदी की आपातकाल से तुलना ठीक नहीं

प्रधानमंत्री ने 8 नवंबर, 2016 को विमुद्रीकरण की घोषणा करके काला धन, भ्रष्टाचार पर कड़ा प्रहार किया है। इससे देश की जनता को नकदी की किल्लत से रोजाना दो-चार होना पड़ रहा है। गांव, गरीब, किसान, दिहाड़ी मजदूर और छोटे-छोटे कारोबारियों के नाम पर विमुद्रीकरण को पूरा विपक्ष गलत बता रहा है। इसके लिए रोज नए-नए कुतर्क लाए जा रहे हैं।
कालाधन और भ्रष्टाचार ही नहीं नशीला पदार्थ, अवैध हथियार और जाली नोटों के कालाबाजार में डूबे लोगों पर विमुद्रीकरण कड़ा प्रहार है। इसे देश की जनता समझ रही है। किल्लत को झेल रहे लोग प्रधानमंत्री के फैसले के साथ हैं। किसी को शक सुबहा है तो राजनीतिक पार्टियों और उसके नेताओं को। वे नोट बंदी के फैसले पर तत्काल रोक लगाने के लिए तरह-तरह के कुतर्क दे रहे हैं। धुरविरोधी पार्टियां और उसके नेता नोट बंदी के बाद उत्पन्न स्थिति की तुलना आपातकाल से कर रहे हैं।
हद हो गई… इस बात को कांग्रेस और वामपंथी भी दोहरा रहे हैं। कांग्रेस ने देश को आपातकाल से परिचय कराया तो वामपंथी ने आपातकाल के इन 21 महीने को इंज्वाय किया।
कांग्रेस के वर्तमान नेतृत्व में ‘पप्पू’ का बोलवाला है। उन्हें याद दिलाना पड़ेगा कि आपातकाल का दंश एक व्यक्ति के स्वार्थ की वजह से देशवासियों को 21 महीने तक झेलना पड़ा है। आज से 41 साल पहले देश में आपातकाल लगी थी 25 जून, 1975 को। क्यों लगी, क्योंकि इंदिरा गांधी के रायबरेली संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीतने को इलाहाबाद हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट ने न केवल अवैध करार दिया बल्कि छह साल के लिए चुनाव लड़ने पर रोक भी लगा दिया। इंदिरा गांधी ने पद से इस्तीफा देने के बजाय देश में अध्यादेश के जरिए आपातकाल लगा दिया।
इंदिरा ने चुन-चुनकर विरोध करने वाले नेताओं को मीसा एक्ट 1971 के तहत जेल में भेजा। इस एक्ट के तहत गिरफ्तार लोगों को न अपील का अधिकार था, न किसी तरह की दलील को कोई सुनने को तैयार था। गिरफ्तार लोगों को वकील करने का अधिकार नहीं था। और पुलिस प्रशासन चाहे तो अनिश्चितकालीन समय तक जेल में रखे। जेल का भय दिखा-दिखाकर देशभर में भ्रष्टाचार की गंगा बहाई गई। जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा द्वारा घोषित आपातकाल को भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि कहा था। वर्तमान में देश में ना तो इस तरह का कोई कानून लागू है और न ही विमुद्रीकरण के पीछे नरेंद्र मोदी का कोई व्यक्तिगत स्वार्थ दिखता है।
आपातकाल की आड़ में गांव-गांव, शहर-शहर शिविर लगाकर जबरन नसबंदी अभियान चलाया। जबकि नरेंद्र मोदी ने गांव-गांव, शहर-शहर शिविर लगाकर बैंक परिचालन से हर व्यक्ति को जोड़ने का काम किया है। उसी गांव, गरीब, किसान, दिहाड़ी मजदूर और छोटे कारोबारियों को बैंक कर्मचारी घर-घर जाकर बैंकों से लेन-देन सीखा रहे हैं।
आपातकाल वह दौर था जब गिरफ्तारी से बचने के लिए आज के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी तक को सिख वेश धारण करना पड़ा था। वर्तमान में तो किसी नेता को सरकार के डर से हुलिया बदलते नहीं देखा। विरोधी नेता तो न जाने क्या-क्या लानत-मनालत प्रधानमंत्री को भेज रहे हैं। इसे आपातकाल नहीं कहा जा सकता है।
आपातकाल में पुलिस एक तरह से खलनायक की भूमिका निभा रही थी। जो जहां, जिस हालत में मिला उसे जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया गया। चप्पे-चप्पे पर पुलिस के सीआईडी विभाग वालों की नजर थी। देश के नामीगिरामी राजनेताओं को रातोंरात गिरफ्तार कर लिया गया, आम व्यक्ति की तो हैसियत ही क्या थी। पुलिस की दबिश के डर से घर के घर खाली हो गए और लगभग प्रत्येक परिवार के पुरुष सदस्यों को भूमिगत होना पड़ा। वे लोग हर दिन अपना ठिकाना बदलने को विवश थे। मीडिया पर पाबंदी लगाकर सरकार ने खूब मनमानी की। शरद यादव, लालू यादव, मुलायम सिंह यादव कैसे भूल गए।
आज के समय में राजनीतिक दलों के ज्यादातर बुजुर्ग और वरिष्ठ नेता आपातकाल के दौर के हैं। वे कैसे भूल गए आपातकाल की भयावहता को।

Thursday, December 1

आनंद शर्मा जी आपके राज में अच्छा क्या था!

कालाधन, भ्रष्टाचार, अपराध और जाली नोट पर प्रहार करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नोटबंदी का फैसला लिया। इससे देशभर में उत्साह का माहौल है। हालांकि देश की जनता को थोड़ी दिक्कत हो रही है। फिर भी कठिनाइयों के बीच लोग एक-दूसरे की सहायता से सामंजस्य बना रहे हैं। इसके बीच राजनीतिक पार्टियां इस मुद्दे को लेकर संसद की शीतकालीन सत्र को चलने नहीं दे रहे हैं। 
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने राज्यसभा में बयान दिया कि विमुद्रीकरण से पूरे विश्व में भारत के प्रति एक गलत संदेश गया कि हिन्दुस्तान की इकोनॉमी कालेधन पर टिकी हुई है। कालाबाजारी और अपराध करने वाले लोग हिन्दुस्तान की इकोनॉमी चलाते हैं। अब आनंद शर्मा को कैसे समझाया जाए कि दुनिया राजनेताओं के बयान से नहीं विश्व की विभिन्न एजेंसियों की रैकिंग और अपने अनुभव के आधार पर देश की अर्थव्यवस्था को आंकती है। 
आनंद शर्मा शायद भूल गए कि अभी हाल में ही वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने एक रिपोर्ट जारी की है। उसके मुताबिक वैश्विक प्रतिस्पर्धा सूचकांक में भारत की रैंकिंग में जबरदस्त इजाफा हुआ है। ग्रेजी अखबार इकोनॉमिक टाइम्स ने इस रिपोर्ट को छापा है। पूरी रिपोर्ट में कुल 139 देश हैं जिसमें भारत 16 पायदान चढ़कर 39वें स्थान पर पहुंच गया है।
वैश्विक लैंगिक असमानता सूचकांक में भारत की रैंकिंग में 21 पायदान सुधार होकर 87वें स्थान पर पहुंच गया है। इसके साथ ही महिला और पुरूष के बीच असमानता में दो फीसदी की कमी कमी आई है। बिजली कनेक्शन मुहैया कराने वाले देशों की रैंकिंग में 70वें से बढ़कर 26वें स्थान पर है।
आनंद शर्मा जी आप तो विदेश राज्यमंत्री रह चुके हैं। इसके बाद भी संसद में इस तरह का बयान देना आपको शोभा नहीं देता है। कभी-कभी लगता है इसमें अकेले दोष आपका नहीं है। दरअसल कुछ लोहा का दोष होता है तो कुछ लोहार का भी होता है। आप तो उस नेतृत्व में काम कर रहे हैं जो यूपी में आलू की फैक्टरी लगाने की बात करते हैं। 

Wednesday, November 9

काले धन पर मोदी का मास्टर स्ट्रोक

काले धन पर मोदी का मास्टर स्ट्रोक 
500 और 1000 के सभी पुराने नोट को चलन से बाहर करने का प्रधानमंत्री ने ऐतिहासिक फैसला लिय़ा। पीएम का मास्टर स्ट्रोक वाले इस फैसले ने एक साथ काले धन रखने वालोंभ्रष्ट्र आचरण करने वालोंरिश्वत लेने और देने वालोंजाली नोट का संचालन करने वालों को पंगु बना दिया। इसके अलावा कैश में कारोबार करने वाले बड़े व्यापारी वर्ग जिनके अघोषित आय हैं, उन्हें अफसोस करने को छोड़ दिया है। चुनाव में जिस तरह से पैसे का काला खेल चलता रहा है। अब उसमें सुधार आएगा और लोकतंत्र मजबूत होगा।

अकेले दिल्ली के छोटे से क्षेत्र चांदनी चौक में अलग-अलग चीजों को लेकर अलग बाजार है जहां अरबों का कारोबार नकदी में होता है। इसका शायद ही कहीं कोई रिकार्ड नहीं होता है। चाहे सोने-चांदी का बाजार कूचा महाजनी हो या बिजली और दवा का बाजार भागीरथ पैलेससूखे मेवे और मसाले का बाजार खारी वाबली हो या घड़ी और साईकिल का बाजार लाजपत राय मार्केटकार्डों और कागजों का बाजार चावड़ी बाजार या नई सड़ककिताबों का बाजार दरियागंज हो या सदर बाजार। इसके अलावा भी करोलबागसरोजनी नगरतिलक नगरनेहरू प्लेसलक्ष्मी नगरशहादरा का तैलीवाड़ागांधी नगर आदि। तमाम बाजारों में नकदी में ही कारोबार होता है। जिसका कोई रिकार्ड नहीं होता है।

दिल्ली के अलावा लुधियाना, सूरत हो, गया हो, पटना, बैंगलुरू जैसे तमाम शहरों में भी नकदी का कारोबार होता है। सब्जी मंडियों से लेकर अनाज मंडियों तक में कारोबार ज्यादातर नकदी में होता है। गली मोहल्ले में दुकानों से लेकर फेरी लगाने वाले तमाम छोटे-मंझोले दुकानदारों का कारोबार भी नकदी होता रहा है। जो अब रिकार्डेड माध्यमों से कारोबार करेंगे। सभी लोग आनलाइन कारोबार करेंगे। लेन-देन बैंकों के माध्यम से होगा। इसका सीधा लाभ सरकार को कर वृद्धि के रूप में होगी जो लौटकर जनता के पास ही आना है। आमदनी बढ़ने पर सरकार और एकाउंटेबल होकर देश की जनता के लिए विभिन्न योजनाओं के माध्यम से कल्याणकारी काम कर सकेगी। किसानों को उपज का वाजिब रकम मिलेगा। किचन तक सब्जी, फल, दूध और अनाज सही दाम में पहुंचेगा।

कुछ लोगों को लगता है कि अचानक लिए इस फैसले से आम लोगों को दिक्क्त होगी। निश्चित रूप से आम लोगों को एक-दो दिन की दिक्क्त होगी। उन्हें बैंक खुलने और एटीएम के संचालन होने तक का इंतजार करना पड़ सकता है। लेकिन हाय तौबा जैसी स्थिति नहीं होने वाली है। प्रधानमंत्री मोदी के इस फैसले पर जो लोग हाय तौबा मचा रहे हैं। ऐसे लोगों में ज्यादातर के पास अघोषित रकम होगी। वो जनसामान्य के बहाने ऐसे लोग अपने लिए सरकार से मोहलत मांगने की कोशिश में हैं ताकि अपने काले धन को ठिकाने लगा सकें।

अंत में, एक बात जो लोग घर में, अपने जीवन में, आर्थिक फैसले में महिलाओं को शामिल करते रहे हैं। उन्हें आय की रकम नियमित रूप से अपने महिला परिजन बोले तो पत्नी, बहन और मां को देते रहे हैं। 500 और 1000 के नोट के चलन में बाहर करने के दौर में उनका सहयोग बहुत ही सार्थक रहने वाला है। एक तो अप्रत्याशित रूप से, आपको पता लगता है कि अरे घर में इतना पैसा मुझसे छिपा कर, बचाकर रखा गया, आड़े वक्त के लिए। हो सकता है उन महिलाओं के पास ज्यादातर रकम छोटे नोटों का हो। 

Sunday, November 6

अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला नहीं है टीवी चैनल पर एक दिन का बैन

अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला नहीं है टीवी चैनल पर एक दिन का बैन
NDTV पर सरकार ने एक दिन का बैन लगाया, उसको लेकर हो-हल्ला मचाया जा रहा है। तथाकथित बुद्धजीवियों को लग रहा है कि यह आपातकाल के दौर की आहट है। उन्हें या तो स्टंट करने में मजा आता है या किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं। या फिर जिस बौद्धिकता को लेकर अपने आन पर गुस्ताखी मान रहे हैं, वह उसके लायक हैं ही नहीं। पूरे देश को पता है कि आपातकाल में पूरी मीडिया ही नहीं देश के एक-एक लोगों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को निलंबित कर दिया गया था। NDTV पर एक दिन के ऑफ एयर करना, वह भी उनकी गलत रिपोर्टिंग के कारण, आपातकाल की आहट कैसे हो सकता है। 
केंद्र सरकार ने NDTV पर सिर्फ एक दिन के लिए ऑफ एयर होने का नोटिस दिया। इतने में ही तथाकथित बुद्धजीवी बिलविला उठे। विशेषकर जो वामपंथी विचारधारा से हैं या उससे प्रभावित हैं। वामपंथी विचार को मानने वालों या उनकी ओर झुकाव रखने वालों को देश हित से कभी कोई मतलब नहीं रहा। उन्हें स्वहित सबसे प्रिय है। चाहे इसके लिए देश की सुरक्षा, अस्मिता, सामाजिक ताना-बाना जाए चूल्हे में।
एक अंतर-मंत्रालय समिति ने सरकार को NDTV पर 30 दिन के ऑफ एयर करने की सिफारिश की थी। केंद्र सरकार सिर्फ मीडिया चैनल और उससे जुड़े पत्रकारों को अहसास कराना चाहती थी। इसलिए चैनल के आर्थिक पक्ष को ध्यान रखते हुए सिर्फ एक दिन का बैन लगाया। सरकार चाहती तो हूबहू शब्दश NDTV पर 30 दिनों के लिए बैन कर सकती थी लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया। यह केंद्र सरकार की भलमानसी है।
इस तरह का चैनल पर बैन पहली बार नहीं लगी। पहले भी सरकारें मीडिया चैनल के प्रसारण पर रोक लगाती रही है। उसके कुछ उदाहरण -
  • 2005 में सिने वर्ल्ड में रात में एडल्ट मूवी दिखाने के कारण पूरे एक महीने के लिए बैन किया गया था।
  • 2007 में एक महीने के लिए जनमत चैनल पर एक महीने का बैन लगाया गया। उसे गलत स्टिंग चलाने का दोषी पाया था।
  • 2007 में एफटीवी और एएक्सएन को दो माह के लिए प्रतिबंधित किया गया।
  • 2015 में भारत का नक्शा गलत दिखाने पर अलजजीरा पर 5 दिन का बैन लगाया गया था।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार है जिसकी व्याख्या अनुच्छेद 19 में विस्तार से की गई है। इसी के तहत पत्रकारिता यानि मीडिया से जुड़े संस्थानों और पत्रकारों को भी अधिकार प्राप्त है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर किसी को भी, कुछ भी बोलने, प्रदर्शन करने या फिर प्रसारण करने का अधिकार नहीं है। संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है स्वच्छंदता का नहीं। अनुच्छेद 19 के अनुसार, राज्य के पास संविधान और कानूनों के तहत इस स्वतंत्रता को नियंत्रित करने का अधिकार है। कुछ विशेष परिस्थितियों में, जैसे- बाह्य या आंतरिक आपातकाल, राष्ट्रीय सुरक्षा आदि।

एनडीटीवी पर एक दिन के लिए बैन को लेकर जिस तरह से हायतौबा मचा है, विधवा विलाप हो रहा है। इसको राजनीतिक रंग देने में जुटा एक खास गुट है, जो कभी जेएनयू में भारत तेरे टुकड़े होंगे के नारे को भी अभिव्यक्ति की आजादी मान रहे थे। स्वतंत्रता के नाम पर कभी देवी-देवताओं की नग्न पेटिंग्स बनाई जाती है। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर, लोकतंत्र के नाम पर भौड़े प्रदर्शन को जनता समझ रही है। 
-© दीपक कुमार