Wednesday, July 30

राष्ट्रीय कवि संगम के बैनर तले काव्यपाठ का मौका

राष्ट्रीय कवि संगम के बैनर तले कवियों का पंचम अखिल भारतीय कवि सम्मेलन 26-27 जुलाई, 2014 को हरिद्वार के पतंजलि योगपीठ फेस दो में आयोजित किया गया। दो दिन चलने वाले इस अधिवेशन 456 कवियों ने भाग लिया। देश के 21 प्रांतों व नेपाल सहित तीन देशों से आए कवि प्रतिनिधि शामिल हुए। इस सम्मेलन का शुभारंभ योगऋषि बाबा रामदेव व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकारिणी सदस्य इंद्रेश कुमार के हाथों हुआ आैर समापन हास्यकवि सुरेंद्र शर्मा के उद्बोधन के साथ हुआ। पूरे दो दिन चले इस अधिवेशन में ऋषिकेश भ्रमण व गंगा आरती दर्शन का भी मौका मिला। इस दौरान ओजस्वी कवि डॉ. हरिओम पंवार, बाबा सत्यनारायण मौर्य, राजेश चेतन, करुणेश जी, कृष्ण गोपाल विद्यार्थी, अनिल राजवंशी जैसे कवियों का सानिध्य मिला। इस अवसर पर मुझे भी एक कविता का पाठ करने का मौका मिला। यहां आने वाले सभी कवि बंधुओं को राष्ट्रीय कवि संगम की ओर से एक स्मृति चिह्न भेंट की गई।

बदलेगी, जरूर बदलेगी

जीवन में आयी नहीं, गांधी की तकरीर
दिल में बस पायी नहीं, वीरों की तसवीर
दीवारों पर ही टंगी रहे, शहीदों की तसवीर
बदलेगी फिर कैसे, देश की तकदीर।

नयनों में पानी भरा है, लपटें नहीं है आग की
सर पे चढ़ा सलीब है, भय किसी दाग की
करते हैं घृणा पापी से, खाते हैं रोटी पाप की
बदल नहीं सकता समय, फिर जीवन का पीर।

पीर बदले या न बदले, समय बदलता जाता है
ये सच्चाई आदमी नहीं, इतिहास बताता है
दूसरों की, क्या बात करें, आदमी स्वयं सताता है
हो व्यभचार कब तलक, देखे कब आता है वीर।

करते रहें चुनाव,  कीच कोउवों को बार-बार
बनती रहे सरकार, वही एक बार-बार
स्थिरता करती है, आजादी को तार-तार
तोड़ो कपाट, आओ समर में, बनो रक्तवीर।

कहने को स्वराज, देखें, कौन रोक रहा है
किसमें कितना है दम, जो आगे आ टोक रहा है
मांद में छिपकर, तकदीर लिखने वाले
सामने आ, दौड़ रहा सिंह गर्जन से, रोम-रोम बनकर तीर।

दीवारों से उठकर, मनमंदिर में वास करो
गांधी, सुभाष, गौतम, गुप्त, फिर से रास करो
जीवन में फिर मेरे, एक नया संचार भरो
मस्त कलन्दर बन सिकन्दर, जीतेंगे हर गीर।

बहुत हो चुका, बहुत ढो चुका, ढ़ोगियो की तकरीर
सुनकर जोगियों की, बहुत खो चुका स्वातंत्र्य वीर
अब ना रूकेंगे, अब ना झुकेंगे, आजमायेंगे हर तीर
देखें फिर रोकेगा कौन, बदलने को तकदीर

दिल में जब बस जायेगी, शहीदों की तसवीर 
बदलेगी, जरूर बदलेगी, माटी की तकदीर

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