इस राज्य के बारे में हमेशा से नकारात्मक रिपोर्टिंग होती रही है. विकास नहीं हुआ है उद्योग धंधे बंद हो गए हैं. जातिवाद है, गुंडागर्दी है. और पता नहीं क्या क्या.
ऐसी रिपोर्टिंग मैंने भी की है लेकिन इस बार जब बीबीसी की चुनावी ट्रेन से बिहार पहुंचा तो मैंने सोचा कि क्यों न इस बार बिहार के बारे में पाँच अच्छी बातें भी देखी जाएँ.
तो पहली बात-
ऐतिहासिक धरोहर और पर्यटन- पूरे भारतीय महाद्वीप में या फिर कह सकते हैं कि पूरी दुनिया में पहले लोकतांत्रिक सरकार की अवधारणा बिहार के लिच्छवी शासनकाल में शुरु हुई थी. बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति बोधगया में ही हुई थी. जैन धर्म के 24वें गुरु महावीर स्वामी का कार्यक्षेत्र भी बिहार रहा. इतना ही नहीं सिक्खों के दसवें गुरु गुरु गोविन्द सिंह पटना में पैदा हुए थे. दुनिया का पहला विश्वविद्यालय नालंदा बिहार में ही था. ये और बात है इतना सबकुछ होने के बावजूद बिहार को पर्यटन उद्योग से उतना मुनाफ़ा नहीं होता जितना होना चाहिए.
पानी की अधिकता- भारत में विरला ही कोई राज्य होगा जिसमें उतनी नदियाँ बहती होंगी जितनी बिहार में है. कोसी, गंडक, बूढ़ी गंडक,कमला-बलान,गंगा,बागमती लेकिन इसका बिहार को नुकसान ही होता है फ़ायदा नहीं. हर साल बाढ़ आती है इन नदियों में. बाढ़ इसलिए नहीं कि अधिक बारिश होती है बल्कि इसलिए कि नेपाल के साथ इस जल के प्रबंधन के लिए समझौता नहीं हो सका है. अगर इन नदियों के पानी का ढंग से प्रबंधन हो तो बिहार की कई समस्याएँ सुलझ जाएंगी.
जनसंख्या- मानव संसाधन हर देश की निधि होती है लेकिन बिहार का मानव संसाधन ज़बर्दस्त इस मायने में है कि यहां के लोग मज़दूरी भी कर सकते हैं, खेती भी कर सकते हैं और साथ ही सॉफ़्टवेयर इंजीनियर से लेकर हर उस क्षेत्र में सफल हो सकते हैं जहाँ मेहनत से आगे बढ़ा जा सकता है. राज्य से हो रहे पलायन की बात सभी करते हैं लेकिन बिहार के जो लोग पंजाब, हरियाणा और अन्य राज्यों में काम करने जाते हैं उससे अंततः देश को ही फ़ायदा होता है.
कला शिल्प और विचारधारा- बिहार की कला शिल्प की शायद ही कहीं बात होती हो लेकिन ऐसा नहीं है कि कला के क्षेत्र में बिहार किसी से पीछे है. राज्य के दरभंगा क्षेत्र की मधुबनी पेंटिंग जापान तक में बेहद पसंद की जाती है. टिकुली पेंटिंग हो या फिर भागलपुर का तसर सिल्क पूरे देश में पसंद किया जाता है. थिएटर, प्रगतिवादी विचारधारा में अग्रणी यह वही राज्य है जहाँ गांधीजी ने पहला आंदोलन शुरु किया था. चंपारण से नील की खेती से जुड़ा आंदोलन. पिछले पचास साल की बात करें तो इंदिरा गांधी के शासनकाल में जब आपातकाल लगा तो जेपी आंदोलन की शुरुआत भी बिहार से हुई थी.
सुधा डेयरी- ये नाम बिहार के बाहर भले ही लोगों को नहीं पता हो लेकिन बिहार के घर घर में ये जाना पहचाना नाम है. पिछले एक दशक में राज्य सरकार का यह दुग्ध डेयरी का उपक्रम फ़ायदे में चल रहा है जो एक उपलब्धि है. इसकी तुलना मदर डेयरी से की जा सकती है.
हाँ ये बात और है कि इतनी विविधताओं के बावजूद बिहार पिछड़ा है, जिसके कई कारण हैं लेकिन इतना ज़रुर है कि बिहार में गुंडागर्दी, अपहरण, ग़रीबी और अशिक्षा के अलावा भी बहुत कुछ है जिसके बारे में बात कम की जाती है।
साभार बीबीसी