Tuesday, January 12

मलाई का कमाल

न दवात बदली है
न बदला है
स्याही का रंग
उसमें आज भी
बाकी है गीलापन।

कागज में आज भी
ताकत है उकेरे रखने की
हूबहू शब्दशः
रात को रात
दिन को दिन।

टोपी मत पहनाओ
न मढ़ो आरोप
दोष नहीं साधन की
कलम में आज भी
शेष है उसका पैनापन।

तलवार की तरह कलम को
जकड़ने वाले हाथों की पकड़
ढीली हो गई, ये ढीलापन दोष नहीं
हाथों में लगे मलाई का कमाल है
ओहदेदार मठाधीशों के।
दीपक राजा
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बरनपुंज पत्रिका जनवरी-जून 2016-फ्रंट पेज व संपादकीय

संपादकीय

दिल्ली सदियों से देश की राजधानी रही है। इसे बार-बार बाह्य आक्रमणकारियों ने तबाह किया। उसके बाद भी फिर देशवासियों ने इसे आबाद किया और संवारा। इसमें वैश्य समुदाय का बहुत ही अहम भूमिका रही है। वैश्य समुदाय के लोग सदैव रचनात्मक कार्यों और व्यवस्था को सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते रहे हैं- अनादि काल से लेकर आज तक। कालांतर में हम विपरित धाराओं में रहकर अपनी रचनात्मक कार्यों को करना भूलने लगे। अदम्य साहस और संकट को चुनौती के रूप में स्वीकार करने और हर हाल में काम को पूरा करने की क्षमता क्षीण होने लगी। हमें एक बार फिर से अपने पौराणिक इतिहास और ऐतिहासिक भूमिकाओं से सीख लेने की जरूरत है। 
हम सबका सौभाग्य है कि हम सब राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रह रहे हैं। चाहे शिक्षा हो, स्वास्थ्य हो, सामाजिक हो, राजनीनिक हो या फिर आर्थिक, हर मामले में पूरा देश दिल्ली की ओर देखता है। देश को नेतृत्व करने का काम दिल्ली करता है। वर्तमान में अपने समाज की परिस्थिति भी ऐसी बनी है कि हम चाहें तो देशभर में रहने वाले सम्पूर्ण बरनवाल वैश्य समाज का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं। हम सब भलीभांति जानते हैं कि अखिल भारतीय बरनवाल वैश्य सभा का क्रियाकलाप विगत कुछ वर्षों से कानूनी पचड़ों में फंसा है। इस कारण अखिल भारतीय स्तर पर एक खालीपन आ गया है। इस खालीपन को हम सब मिलकर चाहें तो भर सकते हैं। लेकिन इस हालत में ...। 
बरनवाल वैश्य सभा, दिल्ली अब तक दिल्ली/एनसीआर क्षेत्र में रहने वाले समाज का प्रतिनिधित्व कर रहा है। यहां देश के कोने-कोने से आए बरनवाल बंधु रहते हैं। सभा के सदस्य चाहें तो देश की राजधानी से पूरे देश में रहने वाले समाज का प्रतिनिधित्व कर लेंगे। बस, हमें अपनी कार्यशैली में थोड़ा सुधार करना होगा। हमें संगठन के रूप में सशक्त होना होगा। आर्थिक रूप से सबल होना पड़ेगा। एक-दूसरे को मजबूत करना होगा और सबसे बड़ी बात सबको सहयोगी की भूमिका अदा करनी होगी। हम आपस में प्रतियोगिता तो करें लेकिन समाज के विकास के लिए संस्था को अधिक समय देने के लिए, अधिक दान देने में, बेहतर संगठक बनन में न कि एक-दूसरे की कमी निकालने में ऊर्जा व्यय करें। 
बरनवाल वैश्य सभा का गठन 1986 में हुआ। इसका पंजीकरण सातवें वर्ष में हुआ। सभा के दसवें स्थापना वर्ष में एक अहिबरण नगर बसाने की योजना बनी। उसके लिए भूखंड भी खरीदा गया लेकिन देखरेख के अभाव और संगठन में कुछ स्वार्थी तत्वों के कारण योजना फलीभूत नहीं हो पाई। बरनवाल वैश्य सभा के स्थापना का यह तीसवां वर्ष आने वाला है। क्या हम एक बार फिर इस बारे में विचार कर सकते हैं क्या? स्थापना के तीन दशक बीतने के बाद हमारी संस्था को अब अपना कार्यालय मिलने वाला है। कार्यालय के संचालन पर होने वाले खर्च की व्यवस्था के लिए एक दुकान ली गई जिसे किराये पर देकर वहां से आय अर्जित किया जाएगा। यह एक उपलब्धि तो है लेकिन संतोषजनक नहीं है। 
समाज के बेरोजगार व आर्थिक रूप से कमजोर युवाओं को मदद देने के लिए, हम सबको मिलकर एक सामूहिक फंड तैयार करना चाहिए। उसके लिए 'बरनवाल विकास को-ओपरेटिव सोसायटी" की स्थापना की जा सकती है। बरनवाल समाज का कोई भी व्यक्ति जो वयस्क हैं, एक सौ रुपए देकर अपना पंजीयन करा सकते हैं। इसके साथ ही सोसायटी के प्रत्येक सदस्य को सौ-सौ रुपए के 25 शेयर खरीदना अनिवार्य किया जाए। इसके माध्यम से जो भी फंड जमा होगा। उसका उपयोग शेयरधारक से लेकर समाज के लिए किया जा सके। यह एक विचार है। इस पर आप सब सुधी जन अपनी-अपनी राय संगठन के सामने रखें। अहिबरन जयंती व्यवस्थित बनाने के लिए भी अलग से समिति बना सकते हैं। 
अंत में आप सबसे से आग्रह कि दिल्ली/एनसीआर में रहने वाले सभी बरनवाल बंधु बरनवाल वैश्य सभा के सदस्य बनिए। सदस्य बनने के लिए पहली बार ग्यारह सौ रुपए और प्रत्येक वर्ष मात्र एक सौ रुपए देना है। सभा के सदस्यों को यह पत्रिका भविष्य में भी मुफ्त में मिलेगी। दिल्ली/एनसीआर से बाहर रहने वाले बरनवाल बंधु ग्यारह सौ रुपए देकर बरन पुंज के आजीवन पाठक बन सकते हैं। उन्हें भविष्य में डाक के माध्यम से पत्रिका भेजी जाएगी। इसी के साथ महाराजा अहिबरण जयंती की शुभकामनाएं। 

संपादक

धूमधाम से मनी दिल्ली में 25 दिसंबर को अहिबरण जयंती


छह सितम्बर 1986 एक अविस्मरणीय दिन है बरनवाल वैश्य सभा दिल्ली के जीवन का क्योंकि इसी दिन इस संस्थान के वर्तमान अध्यक्ष कैप्टन आरपी बरनवाल के निवास स्थान बी-35, पंचशील एन्क्लेव, नई दिल्ली में संस्था का बीजारोपण हुआ जो 19 अक्टूबर 1986 को एक छोटे पौधे के रूप में विकसित हुआ जब इन्हीं के निवास स्थान पर लगभग 70 बरनवाल बंधु एकत्रित हुए आैर सभी ने एक स्वर से यह दृढ़ निश्चय व्यक्त किया कि दिल्ली में अपने आदिपुरुष महाराज अहिबरन की जयंती प्रत्येक वर्ष दिसम्बर में मनाया करेंगे। तदनुसार, बरनवाल वैश्य सभा, दिल्ली के तत्कालीन अध्यक्ष अवकाश प्राप्त स्क्वैड्रन लीडर स्व. एके सिंह के निवास स्थान सेक्टर-2, नोएडा में महाराजा अहिबरन जयंती समारोह पहली बार 28.12.1986 को आयोजित किया गया। इसके पश्चात प्रत्येक वर्ष यह समारोह आयोजित किया जाता रहा है। इस परम्परा को कायम रखते हुए इस वर्ष भी महाराजा अहिबरन का जयंती समारोह बहुत ही भव्य तरीके से मनाया गया। यह समारोह पूर्वी दिल्ली के लक्ष्मीनगर क्षेत्र में निर्माण विहार मेट्रो स्टेशन के निकट अग्रवाल भवन में बहुत धूमधाम से मनाया गया।
इस समारोह में दिल्ली तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (गाजियाबाद, फरीदाबाद, नोएडा, गुड़गांव आदि) से 1500 की संख्या में बरनवाल बंधुओं ने भाग लिया आैर इस कार्यक्रम को सफल बनाया। महिलाओं आैर बच्चों की रंग-बिरंगी पोशाकों से तो इस समारोह को चार चांद लग गए। बच्चों का कलरव भोर के समय पक्षियों की चहचहाहट जैसा कर्णप्रिय लग रहा था। इस समारोह के मुख्य अतिथि थे श्री अरविंद प्रसाद आईएएस जो फिक्की ने डायरेक्टर जनरल हैं। वह बरनवाल समाज के पहले आईएएस अधिकारी हैं। विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री ज्ञानेश भारती आए। वह केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के निदेशक पद पर हैं। समारोह के सम्मानित अतिथि थे श्री जयशंकर गुप्त जो इस समय हिन्दी दैनिक देशबंधु के कार्यकारी संपादक हैं। सबसे पहले इन सभी अतिथियों का उपस्तित लोगों से परिचय कराया गया। फिर बरनवाल वैश्य सभा, दिल्ली के पदाधिकारियों ने इन सभी को पुष्प गुच्छ एवं स्मृति चिह्न भेंटकर इनका स्वागत एवं सम्मानित किया।
बरनवाल वैश्य सभा दिल्ली के अध्यक्ष कै. आरपी बरनवाल की अध्यक्षता में समारोह का शुभारंभ हुआ। सर्वप्रथम कै. बरनवाल ने महाराजा अहिबरन के चित्र पर माल्यार्पण किया। फिर बारी-बारी से सभी अतिथियों, पदाधिकारियों व उपस्थित सभी बंधुओं आैर महिलाओं आदि ने अपने आदिपुरुष महाराजा अहिबरन के चित्र पर फूल चढ़ाकर उन्हें नमन किया। सभी अतिथियोग तथा माननीय अध्यक्ष ने एक साथ मिलकर दीप प्रज्वलित किया आैर सभी ने महाराजा अहिबरन  का तुमुलनाद के साथ जय-जयकार किया। इससे सारा वातावरण गुंजायमान हो उठा।
समारोह के मुख्य अतिथि श्री अरविंद प्रसाद ने उपस्थित लोगों से कहा कि किसी भी जाति अथवा समाज को अपना अस्तित्व तथा अपनी पहचान को बनाए रखने के लिए उसका संगठित होना आवश्यक होता है। देश के विभिन्न भागों से लोग दिल्ली आते हैं। शिक्षा, व्यवसाय आैर सेवा आदि को लेकर हजारों की संख्या में बरनवाल जाति के लोग दिल्ली आ रहे हैं आैर जहां-तहां फैलते जा रहे हैं। इन सभी लोगों को एक सूत्र में जोड़ना आति आवश्यक है। अब हम सभी एक साथ जुड़ेंगे, तो हमारी एक पहचान बनेगी आैर तभी हम अपना स्थान बना पाएंगे। बरनवाल जाति के लोग दिल्ली के कोने-कोने में तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बिखरे पड़े हैं। एक अनुमान के अनुसार लगभग दस हजार परिवार दिल्ली/एनसीआर क्षेत्रों में निवास कर रहे हैं। इन सभी का पता करना एवं इन्हें आपस में जोड़ना कोई आसान काम नहीं है। फिर भी हमें निरंतर प्रयास करके संस्था से सभी को जोड़ना चाहिए। इससे हमार अनेक समस्याओं का समाधान होगा। इसके पश्चात अन्य अनेक वक्ताओं श्री ज्ञानेश भारती, श्री जयशंकर गुप्त, कैप्टन आरपी बरनवाल, श्री सत्यप्रकाश बरनवाल, डा. एसआर गुप्ता, डा. अजय कुमार, एडवोकेट उमेश बर्णवाल, श्री हरीश चंद्र बरनवाल, दीपक राजा ने अपने विचार व्यक्त किए। सभी वक्ताओं ने एक ही बात पर जोर दिया कि शक्ति प्राप्त करने के लिए हमें संगठित होना जरूरी है।
सभा के महासचिव सत्यप्रकाश बरनवाल ने उपस्थित लोगों से कहा कि बरनवाल वैश्य सभा, दिल्ली को शीघ्र अपना कार्यालय मिलने वाला है। वैशाली मेट्रो स्टेशन के नजदीक वैशाली सेक्टर-1 क्लाउड-9 सोसायटी में एक कार्यालय एवं एक दुकान बुक किया गया था। नए वित्तीय वर्ष में यह संस्था को मिल जाना है। इसके लिए कुछ फंड की जरूरत है। फंड में लगभग नौ लाख रुपए की कमी है। इसके लिए बरनवाल समाज से जुड़े बंधुओं से अनुरोध किया कि इस कमी को पूरा करने के लिए आगे आएं आैर इसमें सहयोग प्रदान करें। ताकि समय रहते बरनवाल वैश्य सभा को कार्यालय प्राप्त हो सके। यह सभा के स्वामीत्व का स्थायी कार्यालय हो जाएगा।
बरनवाल वैश्य सभा दिल्ली द्वारा एक पत्रिका बरन पुंज का प्रकाशन अनियमित रूप से हो रहा था। उसे नियमित करने के उद्देश्य से वर्ष में दो अंक प्रकाशित करने का निर्णय लेते हुए इसकी जिम्मेदारी पत्रकार दीपक राजा को दिया गया। उनके नेतृत्व में पहले अद्र्धवार्षिकांक का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया।
महाराजा अहिबरन जयंती महोत्सव कार्यक्रम के दौरान अनेक प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया। महिलाओं के लिए मेहंदी, रंगोली, एक माचिस की तिल्ली से अधिकाधिक मोमबत्ती जलाने की प्रतियोगिता, युवा वर्ग के लिए सामान्य ज्ञान की प्रतियोगिता, बच्चों के लिए फैशन शो, फैंसी ड्रेस शो का आयोजन किया गया। इसके साथ ही एक कलाकृति निर्माण के लिए प्रतियोगिता रखी गई थी। इन सभी प्रतियोगिता में विजेताओं को प्रथम, द्वितीय आैर तृतीय पुरस्कार के रूप में शिल्ड व प्रशस्ती पत्र बरनवाल वैश्य सभा के पदाधिकारी आैर गण्यमान्य प्रतिनिधियों द्वारा प्रदान किए गए।
इस मौके पर बरनवाल वैश्य सभा दिल्ली की कार्यकारिणी का चुनाव कराया गया। कार्यकारिणी का चुनाव प्रत्येक दो वर्षों पर होता है। पिछला चुनाव दिसम्बर 2013 में हुआ था। नई कार्यकारिणी दिसम्बर 2017 के लिए चुन लिया गया।
बरनवाल वैश्य सभा दिल्ली दिसंबर 2017 तक के लिए नई कार्यकारिणी

संरक्षक/मार्गदर्शक मंडल
डा. एसआर गुप्ता
श्री मुन्नी लाल
श्री अरविंद प्रसाद, आईएएस
श्री ज्ञानेश भारती, आईएएस
श्री जयशंकर गुप्त

अध्यक्ष : कैप्टन आरपी बरनवाल
उपाध्यक्ष : श्री अरुण कुमार, डा. अजय कुमार, डा. नरेंद्र कुमार
महासचिव : श्री सत्यप्रकाश बरनवाल
कोषाध्यक्ष : प्रहलाद बरनवाल सीए
संगठन मंत्री : उमेश बर्णवाल अधिवक्ता
मीडिया व जनसंपर्क प्रभारी : दीपक राजा

कार्यकारिणी सदस्य : उमेश बरनवाल फरीदाबाद, जयप्रकाश बरनवाल मयूर विहार फेज तीन, दीपक बरनवाल द्वारका, डा. दिनेश बरनवाल ओम विहार

समारोह में भाग लेने आए सभी लोगों को बरन पुंज पत्रिका का जनवरी-जून 2016 का अद्र्धवार्षिकांक निशुल्क दिया गया। सभी लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था तथा सायंकाल में चाय-बिस्कुट की व्यवस्था संस्था की ओर की गई। इसकी देखरेख श्री अरुण कुमार कर रहे थे। उनके प्रयास से भोजन की व्यवस्था पूरी तरह से व्यवस्थित रही।
इस सम्पूर्ण समारोह की सफलता का श्रेय श्री अधिवक्ता उमेश बर्णवाल, पत्रकार दीपक राजा, श्री सत्यप्रकाश बरनवाल, श्री अरुण बरनवाल, उमेश बरनवाल आैर श्री जयप्रकाश बरनवाल को विशेष रूप से जाता है। इस समारोह की संकल्पना से लेकर कार्य को मूर्त रूप देने तक में इन्होंने दिन रात एक कर दिया। इस समारोह को इस ऊंचाई तक ले जाने के लिए बरनवाल वैश्य सभा ऊर्जावान कार्यकर्ताओं के प्रति आभार व्यक्त करता है।
कार्यक्रम के अंत में सभा के महासचिव सत्यप्रकाश बरनवाल ने सभी उपस्थित बंधुओं को धन्यवाद ज्ञापित किया आैर शांति पाठ के साथ समारोह के समापन की घोषणा की। इसके पश्चात सभी लोग अपने-अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान हो गए।