Friday, June 27

नए मीडिया को समझने का प्लेटफार्म

जब से जीवन शुरू हुआ है तब से संचार के माध्यमों में निरंतर बदलाव हो रहा है। आज जो मीडिया का स्वरूप है, उसमें भी बदलाव हो रहे हैं। मीडिया के तमाम बदलाव के बाद भी जो नहीं बदला, वह है उसका प्रभाव। मीडिया किसी मुद्दे पर सोचने के तरीके पर निर्णायक असर न डाल पाए, लेकिन किन मुद्दों पर सोचना है, यह मीडिया काफी हद तक तय कर देता है। ऐसे में जब जनसंचार के कई रूप हमारे सामने हों तो यह एजेंडा सेटिंग थ्योरी कितनी कारगर है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

पिछले कुछ दशकों में संचार के कई रूप सामने आए हैं। इंटरनेट और सोशल मीडिया ने तो इसे प्रारूप को ही पूरी तरह बदल कर रख दिया है। आज के समय में खबर और विज्ञापन में अंतर करना आसान नहीं है। यही कारण है कि पेड न्यूज किसी न किसी रूप में मौजूद है। 'जो दिखता है, वहीं बिकता है' के बाजारवादी ट्रेंड के बीच पत्रकार विनीत उत्पल द्वारा संपादित पुस्तक 'नए समय में मीडिया' में संकलित तमाम सारगर्भित लेख मीडिया की दिशा और दशा को समझने में काफी मददगार हैं।

आलोच्य पुस्तक में वरिष्ठ साहित्यकार उदय प्रकाश ने अपने लेख में वैकल्पिक पत्रकारिता की ताकत की बात ठसक के साथ कही है। उनका मानना है कि फेसबुक, ट्‍विटर जैसी सोशल साइट्स की विश्वसनीयता बढ़ी है। वेब जर्नलिज्म ने मुख्य जर्नलिज्म को काफी हद तक रिप्लेस कर दिया है। अफरोज आलम साहिल ने अपने लेख में सूचना का अधिकार और पत्रकारिता को लेकर बारीक मामलों को चिह्नित किया है। संजय स्वदेश के आलेख में ग्रामीण पत्रकारिता और वहां की समस्याओं को उजागर किया गया है।

वर्तमान समय में हिंदी भाषा को लेकर तमाम विचार-विमर्श चल रहे हैं। ऐसे में संजय द्विवेदी का लेख 'बाजार और मीडिया के बीच हिंदी' आंखें खोलने वाला है कि किस तरह सक्रिय पत्रकारिता से लेकर विज्ञापन का कारोबार हिदी पट्टी को दृष्टि में रखकर किया जाता है, लेकिन कामकाज देवनागरी के बजाय रोमन में होता है। स्वतंत्र मिश्र ने मीडिया में लोकतंत्र और उसके बिजनेस मॉडल को सामने रखा है। आर. अनुराधा ने मीडिया की महिलाकर्मियों के काम को छोड़ने पर प्रकाश डाला है और पूरी दुनिया के तमाम अध्ययनों को सामने रखा है।

डॉ. वर्तिका नंदा ने महिला और विमर्श की जमीन के बीच की बात को सामने रखा है। उनके लेख में महिला से जुड़े अपराध को लेकर किस तरह की रिपोर्टिंग की जाती है, किस तरह के कानून बनाए गए हैं और किस तरह की सिफारिशें की गई हैं, इन मामलों पर व्यापक प्रकाश डाला है। वह लिखती हैं कि मीडिया के विमर्शकारी धरातल में स्त्री बतौर मुद्दे तो खड़ी होती है लेकिन वास्तविक धरातल पर उसकी नियति को देखने वाला शायद ही कोई है। अनीता भारती ने अपने लेख में मीडिया द्वारा दलित स्त्री को लेकर गढ़ी छवि को सामने रखा है। रश्मि गौतम ने दूरदर्शन में आधी आबादी को लेकर बनाए गए धारावाहिकों की समीक्षा को ध्यान में रखकर अपना लेख लिखा है। सरकार, सेंसरशिप और सोशल मीडिया को लेकर विनीत उत्पल ने सेंसरशिप को लेकर दुनिया के तमाम देशों में चली रही गतिविधियों और सरकारी कार्यकलापों को सामने रखा है।

आलोच्य पुस्तक में ब्लॉगिंग को लेकर आकांक्षा यादव, संचार और मीडिया अध्ययन को लेकर निर्मलमणि अधिकारी, रेडियो पत्रकारिता को लेकर संजय कुमार, इंटरटेनमेंट चैनलों के धारावाहिकों को लेकर स्पर्धा, फिल्म और फिल्मी पत्रकारिता को लेकर अजय ब्राह्मात्मज, मोबाइल शिष्टाचार को लेकर डॉ. देवव्रत सिंह, विज्ञापनों में सेक्स अपील को लेकर संजयसिंह बघेल, ऑनलाइन समाचार पत्र, बच्चे और सेक्स ज्ञान को लेकर कीर्ति सिंह के अलावा उमानाथ सिंह, सुमन कुमार सिंह, जयप्रकाश मानस, अविनाश वाचस्पति आदि के मीडिया के विभिन्न आयामों पर बेहतरीन लेख हैं। इस पुस्तक में देवेंद्र राज अंकुर और एनके सिंह के साक्षात्कार भी हैं, जिसके जरिए संचार के माध्यम थियेटर और ब्रॉडकास्टिंग चैनलों के संगठन बीईए के कामकाजों, टैम मशीन जैसे मुद्दों पर गहन बातचीत की गई है।

बहरहाल, संपादित पुस्तक 'नए समय में मीडिया' में संचार माध्यमों के साथ-साथ पत्रकारिता के विभिन्न आयामों पर महत्वपूर्ण लेखों को शामिल किया गया है। सभी लेखक अपने-अपने क्षेत्र में काफी अनुभव रखते हैं और उनकी सोच, उनका लेख गहरे तौर पर मीडिया की बारीकियों को सामने रखने में सक्षम है। मीडिया से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े लोगों के लिए इन आयामों को समझने के लिए यह पुस्तक प्लेटफार्म जैसा है, चाहे वे मीडिया छात्र हों, मीडियाकर्मी हों या मीडिया अध्यापक।

विनीत उत्पल : राष्ट्रीय सहारा से संबद्ध पत्रकार विनीत उत्पल मीडिया पर काफी अरसे से लिखते रहे हैं। इनके लिखे लेख तमाम पत्र-पत्रिकाओं के अलावा अंतरराष्ट्रीय जर्नल 'जर्नल ऑफ मीडिया एंड कम्युनिकेशन स्टडीज' सहित 'मीडिया विमर्श', 'जन मीडिया', 'मास मीडिया' में प्रकाशित हुए हैं। गणित विषय से बीएससी ऑनर्स की डिग्री हासिल करने वाले विनीत ने जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली और भारतीय विद्या भवन, नई दिल्ली से पत्रकारिता की शुरुआती तालीम हासिल करने के बाद गुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालय, हिसार से मॉस कम्युनिकेशन में मास्टर डिग्री हासिल की है।

पुस्तक : नए समय में मीडिया
संपादक : विनीत उत्पल
प्रकाशक : यस पब्लिकेशंस, नई दिल्ली
मूल्य : 495/- रुपए

Thursday, June 26

व्यक्तित्व नहीं समग्र विकास को समझने की जरूरत है मोदी मंत्र


पुस्तक कोई भी हो, उससे अगर बड़े स्तर पर लोगों को जानकारी मिले, वैसी जानकारी जिससे कि लोगों की सोच में साकारात्मक बदलाव आए। फिर लेखक का काम सार्थक हो जाता है। एसबी क्रिएटिव मीडिया द्वारा प्रकाशित आैर वरिष्ठ टीवी पत्रकार हरीश चंद्र बरनवाल द्वारा लिखित पुस्तक मोदी मंत्र इसी श्रेणी की पुस्तक है। यह पुस्तक नरेंद्र मोदी के उन पक्षों को उजागर करता है जो नरेंद्र मोदी को नमो बनाता है।

16वें लोकसभा के सिरमौर नरेंद्र मोदी हैं। इससे असहमत शायद ही कोई हो। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की ओर से तीन बार से लगातार गुजरात सरकार का नेतृत्व करने वाले भाजपा नेता नरेंद्र मोदी अब देश के प्रधानमंत्री हैं। वह एक ऐसा व्यक्ति जिसे सुप्रीम कोर्ट तक में घसीटा गया लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें गोधरा कांड के लिए दोषी घोषित नहीं किया गया। यह आैर बात है कि उनकेे विरोधी आज भी उसी गोधराकांड पर अटके हुए हैं जबकि वह मीलों आगे बढ़ चुके हैं। ऐसे व्यक्ति आैर उसके व्यक्ति, उसकी सोच आैर उसके कार्यशैली को समझने की बड़ी जरूरत है। इस जरूरत को पूरा करने के लिए 'मोदी मंत्र" पुस्तक काफी हद तक सहायक हो सकता है। अपने भाषणों आैर कार्यशैली से मोदी ने जो विकास का मॉडल प्रस्तुत किया। उसे एक पत्रकार ने अपने लेखन के माध्यम से न केवल विश्लेषण किया बल्कि उसे दुनिया के सामने रखने का प्रयास किया।

आलोच्य पुस्तक के माध्यम से पाठकों को एक ऐसे नेता का परिचय मिलेगा जो न केवल तकनीक की बात करता है बल्कि मिट्टी से जुड़कर आसमान की खाक छानने की बात भी करता है। अगर गुजरात वाइब्रौंट के नाम पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन होता है तो किसानों की जिंदगी बेहतर करने के लिए सब्सिडी के बजाए बेहतर सुविधा की बात होती है। मिट्टी के लिए भी मेडिकल रिपोर्ट कार्ड बनता है। शिक्षा की बात हो, तो रोजगारपरक विशेष संस्थान की बात होती है चाहे सैनिक व  सिपाही के लिए रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय हो या साइबर क्राइम पर नियंत्रण करने के लिए कौशल तैयार करने के लिए फारेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी की स्थापना। लोग भले मोदी को हिदुत्व नेता के रूप में देखता हो लेकिन मोदी किसी एक समुदाय की नहीं राष्ट्रीय एकता की बात करते हैं। उनके राजनीतिक आैर सामाजिक जीवन का एक ही मंत्र है, बड़े कारखाने हो लेकिन कुटीर आैर लघु उद्योग भी फले फूले। वकायदा इसके लिए भी वह सुविधा मुहैया कराते हैं आैर अवसर निकालते हैं। तभी वह 'कुछ दिन तो गुजारो गुजरात में" का नारा देकर कभी गिर अभ्यारण्य की बात करते हैं तो कभी कच्छ के रण की बात करते हैं तो कभी सोमनाथ आैर लोथल की बात करते हैं।

आलोच्य पुस्तक के माध्यम से लेखक ने मोदी को देश की जनता के सामने उन अनजाने पहलूओं को सामने लाने का प्रयास किया है जिसे वर्तमान मीडिया काटछांट कर या यूं कहें कि उसे प्रकाशित आैर प्रसारित करने से बचती रही है। देश का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही क्यों? इसके पीछे भी लेखक ने एक सौ एक तर्क दिए। कुछ तर्कों पर पाठक असहमत भी हो सकते हैं लेकिन तर्कों में अंतरविरोध नहीं है। लेखनी का विषय तत्कालिक होने पर भी दूरगामी परिणाम होगा।

अंत में दीपक राजा की एक कविता

हां मैं हूं वही

मैैं पागल हूं
लोगों ने घोषित किया मुझे

जब हंसता हूं, ठहाके लगा
खिल उठता है बगिया
रोता हूं अंधियारे भी में भी
तो धरती हो जाती है नम

शंखनाद हो जाता है जब
चिल्लाता हूं वेग से
फड़क उठती है भुजाएं
दिखता है जहां भी गम

हर वाजी पाने को
रेस लगाता हूं जीवन की
कुछ देर ठहरकर
छांव तले पलकों को दिया विराम

गर सपना देखना-दिखाना
पाने की आस जगाना
गलत को गलत, सही को सही बताने में
कन्नी काट रहे के कानों में
भोंपू बजाना गर पागलपन...
तो फिर इनकार कैसा
हां, मैं हूं वही
जो लोगों ने पहले से कर दिया है घोषित।

दीपक राजा

† आप पागल के स्थान पर सांप्रदायिक शब्द रखकर पढ़ सकते हैं।