Thursday, June 26

व्यक्तित्व नहीं समग्र विकास को समझने की जरूरत है मोदी मंत्र


पुस्तक कोई भी हो, उससे अगर बड़े स्तर पर लोगों को जानकारी मिले, वैसी जानकारी जिससे कि लोगों की सोच में साकारात्मक बदलाव आए। फिर लेखक का काम सार्थक हो जाता है। एसबी क्रिएटिव मीडिया द्वारा प्रकाशित आैर वरिष्ठ टीवी पत्रकार हरीश चंद्र बरनवाल द्वारा लिखित पुस्तक मोदी मंत्र इसी श्रेणी की पुस्तक है। यह पुस्तक नरेंद्र मोदी के उन पक्षों को उजागर करता है जो नरेंद्र मोदी को नमो बनाता है।

16वें लोकसभा के सिरमौर नरेंद्र मोदी हैं। इससे असहमत शायद ही कोई हो। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की ओर से तीन बार से लगातार गुजरात सरकार का नेतृत्व करने वाले भाजपा नेता नरेंद्र मोदी अब देश के प्रधानमंत्री हैं। वह एक ऐसा व्यक्ति जिसे सुप्रीम कोर्ट तक में घसीटा गया लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें गोधरा कांड के लिए दोषी घोषित नहीं किया गया। यह आैर बात है कि उनकेे विरोधी आज भी उसी गोधराकांड पर अटके हुए हैं जबकि वह मीलों आगे बढ़ चुके हैं। ऐसे व्यक्ति आैर उसके व्यक्ति, उसकी सोच आैर उसके कार्यशैली को समझने की बड़ी जरूरत है। इस जरूरत को पूरा करने के लिए 'मोदी मंत्र" पुस्तक काफी हद तक सहायक हो सकता है। अपने भाषणों आैर कार्यशैली से मोदी ने जो विकास का मॉडल प्रस्तुत किया। उसे एक पत्रकार ने अपने लेखन के माध्यम से न केवल विश्लेषण किया बल्कि उसे दुनिया के सामने रखने का प्रयास किया।

आलोच्य पुस्तक के माध्यम से पाठकों को एक ऐसे नेता का परिचय मिलेगा जो न केवल तकनीक की बात करता है बल्कि मिट्टी से जुड़कर आसमान की खाक छानने की बात भी करता है। अगर गुजरात वाइब्रौंट के नाम पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन होता है तो किसानों की जिंदगी बेहतर करने के लिए सब्सिडी के बजाए बेहतर सुविधा की बात होती है। मिट्टी के लिए भी मेडिकल रिपोर्ट कार्ड बनता है। शिक्षा की बात हो, तो रोजगारपरक विशेष संस्थान की बात होती है चाहे सैनिक व  सिपाही के लिए रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय हो या साइबर क्राइम पर नियंत्रण करने के लिए कौशल तैयार करने के लिए फारेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी की स्थापना। लोग भले मोदी को हिदुत्व नेता के रूप में देखता हो लेकिन मोदी किसी एक समुदाय की नहीं राष्ट्रीय एकता की बात करते हैं। उनके राजनीतिक आैर सामाजिक जीवन का एक ही मंत्र है, बड़े कारखाने हो लेकिन कुटीर आैर लघु उद्योग भी फले फूले। वकायदा इसके लिए भी वह सुविधा मुहैया कराते हैं आैर अवसर निकालते हैं। तभी वह 'कुछ दिन तो गुजारो गुजरात में" का नारा देकर कभी गिर अभ्यारण्य की बात करते हैं तो कभी कच्छ के रण की बात करते हैं तो कभी सोमनाथ आैर लोथल की बात करते हैं।

आलोच्य पुस्तक के माध्यम से लेखक ने मोदी को देश की जनता के सामने उन अनजाने पहलूओं को सामने लाने का प्रयास किया है जिसे वर्तमान मीडिया काटछांट कर या यूं कहें कि उसे प्रकाशित आैर प्रसारित करने से बचती रही है। देश का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही क्यों? इसके पीछे भी लेखक ने एक सौ एक तर्क दिए। कुछ तर्कों पर पाठक असहमत भी हो सकते हैं लेकिन तर्कों में अंतरविरोध नहीं है। लेखनी का विषय तत्कालिक होने पर भी दूरगामी परिणाम होगा।

अंत में दीपक राजा की एक कविता

हां मैं हूं वही

मैैं पागल हूं
लोगों ने घोषित किया मुझे

जब हंसता हूं, ठहाके लगा
खिल उठता है बगिया
रोता हूं अंधियारे भी में भी
तो धरती हो जाती है नम

शंखनाद हो जाता है जब
चिल्लाता हूं वेग से
फड़क उठती है भुजाएं
दिखता है जहां भी गम

हर वाजी पाने को
रेस लगाता हूं जीवन की
कुछ देर ठहरकर
छांव तले पलकों को दिया विराम

गर सपना देखना-दिखाना
पाने की आस जगाना
गलत को गलत, सही को सही बताने में
कन्नी काट रहे के कानों में
भोंपू बजाना गर पागलपन...
तो फिर इनकार कैसा
हां, मैं हूं वही
जो लोगों ने पहले से कर दिया है घोषित।

दीपक राजा

† आप पागल के स्थान पर सांप्रदायिक शब्द रखकर पढ़ सकते हैं।

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