Tuesday, October 30

बेहतर विकल्प बन रहा वन प्रबंधन

पृथ्वी की कु ल भूमि क्षेत्र का 30 फीसद हिस्सा वनों से आच्छादित है लेकिन शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण पेड़ों की लगातार कटाई जारी है। ऐसे में, पर्यावरण की रक्षा के लिए वनों के प्रबंधन पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ध्यान दिया जाने लगा है। यही कारण है कि वन प्रबंधन करियर के विकल्प के तौर पर सामने आ रहा है

पर्यावरण को बचाने की होड़, कॉरपोरेट क्षेत्र में पर्यावरण के प्रति बढ़ता रुझान और फॉरेस्ट मैनेजमेंट के क्षेत्र में रुचि रखने वाले छात्रों के लिए फॉरेस्ट मैनेजमेंट कोर्स मददगार साबित हो सकता है। वनों की देखभाल के साथ-साथ उनका प्रबंधन काफी मायने भी रखता है। फॉरेस्ट मैनेजमेंट के लिए भोपाल स्थित देश का एकमात्र भारतीय वन प्रबंधन संस्थान (आईआईएफएम) बेहतर विकल्प हो सकता है। चूंकि आज के दौर में सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर वन प्रबंधन की ओर काफी ध्यान दिया जाने लगा है , इस कारण वर्तमान में यहां के छात्रों की मांग देश की बड़ी-बड़ी कंपनियों, बैंक, क्लाइमेट चेंज के लिए काम करने वाले संस्थान और एनजीओ हैं। भारतीय वन प्रबंधन संस्थान में तीन कोर्स संचालित किये जाते हैं- पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन फॉरेस्ट्री मैनेजमेंट (पीजीडीएफएम), फेलो प्रोग्राम इन मैनेजमेंट (एफपीएम) और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन में एमफिल। वर्तमान समय में पीजीडीएफएम में नामांकन के लिए आवेदन मांगे गए हैं। इस कोर्स में कुल 93 सीटें हैं।

योग्यता
पीजीडीएफएम पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स है। इसके लिए कम से कम स्नातक या मान्यता प्राप्त संस्थानों से इसके समकक्ष पाठ्यक्रम में उत्तीर्ण होना जरूरी है, वह भी 50 फीसद अंक के साथ। स्नातक के अंतिम वर्ष के छात्र भी इस पाठय़क्रम के लिए आवेदन कर सकते हैं लेकिन उन्हें 30 जून 2013 से पहले स्नातक उत्तीर्ण होने का प्रमाणपत्र आईआईएफएम के समक्ष प्रस्तुत करना होगा।

शर्त
इस संस्थान में एडमिशन भारतीय प्रबंधन संस्थानों द्वारा आयोजित कॉमन एप्टीटय़ूट टेस्ट (कैट) में प्राप्त अंकों के आधार पर होगा। इसलिए छात्रों को आवेदन करते समय सीएटी के स्कोर को बताना होगा।

प्लेसमेंट
यहां के विद्यार्थियों के लिए कैम्पस प्लेसमेंट की व्यवस्था है। छात्रों के प्लेसमेंट की प्रतिशतता सौ फीसद है। बीते वर्ष में इस संस्थान के छात्रों को औसतन सात लाख रुपए सालाना का पैकेज मिला है। यहां कंपनियां, पेपर इंडस्ट्री, बैंक में माइक्रो फाइनेंस के लिए, क्लाइमेट चेंज और ग्रास रूट लेवल काम करने वाले एनजीओ आदि कैंपस के लिए आते हैं।

चयन
नामांकन की पूरी प्रक्रिया दो चरणों में है। पहला चरण आवेदन की प्रक्रिया है जबकि दूसरा चरण ग्रुप डिस्कशन या साक्षात्कार है। पहले चरण में भारतीय प्रबंधन सं स्थानों (आई आईएम) द्वारा आयोजित कॉमन एडमिशन टेस्ट (कैट) की परीक्षा में प्राप्त स्कोर के आधार पर आईआईएफएम शॉर्टिलस्टिंग की जाती है, हालांकि आईआईएफएम के नामांकन प्रक्रिया या पाठय़क्रम के दौरान आई आई एम की कोई भूमिका नहीं है। पीजीडीएफएम करने के इच्छुक उम्मीदवार को आवेदन फार्म के साथ सीएटी का रजिस्ट्रेशन नंबर और स्कोर बताना होता है। इसके लिए सीएटी के वाउचर रसीद की फोटो कॉफी आवेदन पत्र के साथ संलग्न की जाती है। दूसरे चरण में प्राप्त आवेदनों में सीएटी के स्कोर के आधार पर उम्मीदवारों की शॉर्टिलस्टिंग की जाती है। इसके आधार पर उम्मीदवार को ग्रुप डिस्कशन या साक्षात्कार के लिए फरवरी या मार्च 2013 में भोपाल बुलाया जाएगा। अधिक जानकारी आईआईएफएम की वेवबाइट पर जाकर ली जा सकती है या फिर पर संपर्क कर सकते हैं।

Sunday, October 28

साइबर एर्क्‍सपट्स की बढ़ती मांग

अगर विज्ञान वरदान है तो अभिशाप भी है। एक ओर इंटरनेट ने घर बैठे पूरे विश्व को कम्प्यू टर स्क्रीन पर ला दिया है तो वहीं इंटरनेट से पनपे साइबर क्राइम के विभिन्न रूपों से हमें सामना भी करना पड़ रहा है। आजकल अकसर हमें वेबसाइट हैकिंग, ऑनलाइन ब्लैकमेलिंग, साइबर बुलिंग, क्रेडिट कार्ड धोखाधड़ी, पोर्नोग्राफी जैसी समस्याओं से ही नहीं, साइबर आतंकवाद से भी जूझना पड़ रहा है। ऐसे में, साइबर सिक्योरिटी से जुड़े प्रोफेशनल्स की जरूरत काफी बढ़ गई है
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2011 में जहां साइबर हमलों की संख्या 13,500 के करीब थी, वहीं इस साल सितम्बर तक यह संख्या 20,000 है। माना जा रहा है कि साइबर अपराध से निपटने के लिए देश को पांच लाख पेशेवर चाहिए। यही कारण है कि साइबर अपराध के प्रति बढ़ती जागरूकता व सजगता के कारण साइबर सिक्योरिटी बेहतर करियर के साथ-साथ देश और समाज की सुरक्षा की जिम्मेदारी देता है। कार्य कंप्यूटर यूजर्स के लिए हैकिंग सबसे बड़ी परेशानी है। इसके जरिए अपराधी गोपनीय सूचनाओं को हैक कर सकता है, जैसे पार्सवड, क्रेडिट कार्ड नंबर और पिन कोड, इंटरनेट बैंकिंग पार्सवड आदि। हैकिंग से संबंधित समस्याओं को सुलझाने के लिए एथिकल हैकिंग प्रोग्राम की मदद ली जाती है। किसी साइबर क्राइम के बाद यह पता लगाना कि उससे संबंधित ई-मेल कहां से भेजा गया, किस आईपी एड्रेस का उपयोग किया गया आदि कार्य साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट के ही जिम्मे होता है। इंटरनेट से संबंधित विभिन्न अपराधों को हेंडल करने के लिए साइबर लॉ का भी इस्तेमाल किया जाता है।

Sunday, October 21

मोबाइल के बहाने जीवन तरंग

पुस्तक ‘मेरा मोबाइल तथा अन्य कहानियां’ में 18 कहानियां शामिल हैं। पेशे से स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अनुसूया त्यागी का यह पांचवां कहानी संग्रह है। उनके पेशे का अनुभव लगभग सभी कहानियों में ध्वनित होता है। कहीं वह अनजाने तो कहीं जानबूझकर शामिल हुआ है। इसके बावजूद कथानक के माध्यम से दी गई डॉक्टरी सलाह कहीं भी थोपी हुई नहीं लगती है।

पति-पत्नी के संबंध विच्छेद का बच्चों के जीवन पर क्या असर पड़ता है, इसकी एक बानगी ‘शुभ्रा’ जैसी कहानी में देखने को मिलती है। नायिका विवाह जैसी सामाजिक व्यवस्था से दूर रहना चाहती है, मगर अपने पालनहार नाना-नानी की इच्छा का मान रखते हुए बेमन से शादी के लिए राजी हो जाती है। ‘कहां भूल हो गई’ जैसी कहानी का संदेश है कि आमदनी कम हो तो इच्छाओं पर लगाम रखनी चाहिए, ताकि भविष्य पर आंच न आए। जहां छोटे फ्लैट से काम चल सकता है, वहां कर्ज लेकर कोठी खरीदना बुद्धिमता नहीं है। कारण बाद में, कर्ज चुकाने के खातिर कमाऊ मशीन बनना पड़ता है और फिर परिवार के लिए समय ही नहीं होता। दोस्ती और शादी का रिश्ता हमेशा बराबर वालों के साथ होनी चाहिए ताकि रिश्ता जीवनभर निभाया जा सके। ‘अच्छा हुआ पीछा छूट गया’ जैसी कहानी इसी सच को रेखांतिक करती है।

डॉक्टरी पेशे से ताल्लुक रखने वाली लेखिका की कहानियों में अस्पताल और अस्पताल के आस-पास की र्चचा स्वाभाविक है। ‘हाय बेचारा’ में स्कूटर चलाना सीखने से लेकर कार की मालकिन बनने तक की कहानी चुटीले अंदाज में कही गई है। वहीं ‘अतीत के श्राद्ध’ के माध्यम से सरकारी अस्पतालों में छोटे से लेकर बड़े स्तर तक फैले भ्रष्टाचार पर चोट है। ‘देर आए दुरुस्त आए’ में मरीज की तरफ से होने वाली लापरवाही उजागर हुई है, जिसे आम तौर पर नजरअंदाज कर दिया जाता है। ‘भारती! तुम क्यों चली गई?’ में दो सहेलियों की बचपन की दोस्ती समय के साथ कब होमो सेक्सुअलिटी में बदल गई और इसे बनाए रखने के लिए साथी युवती की शह पर भारती कैसा शर्मनाक और आत्मघाती कदम उठा गई इसका विवेचन है। कहानी का अंत दुखांत है। हो भी क्यों न, होमोसेक्सुअलिटी के रिश्ते को भले ही पश्चिम के कुछ देशों ने मान्यता दे दी हो, लेकिन अपने देश में इसे यह रिश्ता समाजिक विकृति और प्रकृति के खिलाफ ही माना जाता है।

‘जैसा करोगे वैसा ही भरोगे’ में बोये बीज बबूल तो आम कहां से होय वाली कहावत चरितार्थ होती है तो ‘नीलम की अंगूठी’ और ‘भविष्यवाणी’ के माध्यम से ऊहोपोह की स्थिति बताई गई है। कुछ किताबें और डिग्रियां हासिल कर लेने के बाद खुद को शिक्षित मानने वाले लोगों पर इसके माध्यम से कटाक्ष है। ऐसे लोग ज्योतिषी, ग्रह, नक्षत्र पर विश्वास करने वालों को पिछड़ा, दकियानूसी और पता नहीं क्या-क्या कह जाते हैं, लेकिन जब कोई बात अपने ऊपर आती है तो न ग्रह, नक्षत्र आदि की बातों को पूरी तरह नकार पाते हैं और न हृदय से स्वीकार पाते हैं।

आज लोग मोबाइल पर इतने निर्भर हो गए हैं कि कुछ देर के लिए मोबाइल साथ न हो, तो उन्हें कुछ नहीं होने का आभास होता है। मोबाइल खरीदने, उसके गायब होने से लेकर मोबाइल मिलने तक की कहानी है ‘मेरा मोबाइल’। यह कहानी सबक है उन लोगों के लिए जो अपना सारा संपर्क सूत्र मोबाइल के भरोसे छोड़ देते हैं। कुल मिलाकर ‘मेरा मोबाइल और अन्य कहानियां’ में लेखिका ने जीवन के विविध अनुभवों को साझा किया है। कहानियों में कहीं आम आदमी के जीवन तरंग हैं तो कहीं अवसाद। इतना जरूर है कि लेखिका के ‘मैं औरत हूं’ जैसा उपन्यास पढ़ चुके सुधी पाठकों को कुछ कहानियां निराश करती है। फिर भी ‘शुभ्रा’, ‘कहां, भूल हो गई’, ‘मेरा मोबाइल’ स्तरीय कही जा सकती हैं तो ‘भगवान’, ‘मुझे माफ कर देना’, ‘देर आए दुरुस्त आए’, ‘भविष्यवाणी’, ‘जैसा करोगे वैसा भरोगे’ संदेशपरक है।

Thursday, October 18

अपार अवसर देता रेलवे


 भारत में सबसे अधिक नौकरियां रेलवे में हैं क्योंकि आवागमन से लेकर माल ढुलाई तक में इसकी उपयोगिता है। रेलवे परिचालन से ले कर खान-पान तक की सेवा मुहैया कराता है और यात्रियों की हर सेवा के लिए दिन-रात काम करता है। यही कारण है कि यहां छोटे लेवल से लेकर बड़े लेवल तक काफी संख्या में भर्तियां होती हैं

आवेदन की अंतिम तिथि : 31 अक्टूबर 2012
 
रेलवे में करियर की संभावनाओं की कोई कमी नहीं है। यहां हमेशा कोई न कोई रिक्तियां निकलती रहती हैं। वै से भी, इस समय रेलवे में ढाई लाख पद रिक्त हैं और तकरीबन हर साल पचास हजार कर्मचारी रिटायर हो रहे हैं। ऐसे में, रेलवे में भविष्य नौकरी के लिहाज से बहुत उत्साहवर्धक है। माना जा रहा है कि केवल इसी वित्त वर्ष में रेलवे डेढ़ लाख कर्मचारियों की बहाली करेगा। अगर आप दुनिया के दूसरे सबसे बड़े रेल तंत्र का हिस्सा बनना चाहते हैं तो अपनी तैयारी को पुख्ता कर लीजिए। इसी क्रम में रेलवे भर्ती सेल, दक्षिण-पूर्वी रेलवे, कोलकाता ने ग्रुप-डी के तहत हेल्पर, ट्रैक मैन, प्वाइंट मैन व चपरासी के करीब ढाई हजार पदों के लिए आवेदन मांगे हैं।

चयन प्रक्रिया
 चयन प्रक्रिया दो चरणों में बंटी हुई है। पहले चरण में लिखित परीक्षा होगी। इस परीक्षा में दसवीं या इससे नीचे की कक्षाओं से संबंधित प्रश्न पूछे जाएंगे। दो सौ अंकों के प्रश्नपत्र में सभी प्रश्न बहुवैकल्पिक होंगे। इसमें गणित, हिन्दी और अंग्रेजी व्याकरण, सामान्य ज्ञान, सामान्य विज्ञान तथा समसामयिक प्रश्नों के अलावा तर्कशक्ति के परीक्षण के लिए रीजनिंग से संबंधी प्रश्न पूछे जाएंगे। लिखित परीक्षा में न्यूनतम अर्हता प्राप्त करने वाले परीक्षार्थियों को दूसरे चरण में शारीरिक दक्षता जांच (फिजिकल इफिशिएंसी टेस्ट यानी पीईटी) के लिए बुलाया जाएगा। लिखित परीक्षा में न्यूनतम अर्हता का निर्धारण रेलवे भर्ती सेल रिक्त पदों और आवेदकों की संख्या के मुताबिक तय करता है। पीईटी में पुरुष उम्मीदवार को छह मिनट में 1500 मीटर की दूरी तय करनी है जबकि महिला उम्मीदवार को 400 मीटर की रेस तीन मिनट में तय करनी है। रेस के लिए अभ्यर्थी को मात्र एक चांस मिलेगा। इसी में अपनी काबिलियत दिखानी है। पीईटी के समय ही परीक्षार्थियों के मूल प्रमाणपत्र की जांच की जाएगी। पीईटी की परीक्षा पास करने के बाद सफल उम्मीदवारों को मेडिकल टेस्ट के लिए बुलाया जाएगा। उसके बाद नौकरी के लिए सफल उम्मीदवार की घोषणा समाचारपत्रों और रेलवे की वेबसाइट पर प्रकाशित की जाएगी। सफल उम्मीदवारों को पत्र के माध्यम से व्यक्तिगत सूचना भी भेजी जाएगी।

तैयारी 
लिखित परीक्षा के सभी प्रश्नों के चार उत्तर दिये जाएंगे। उन्हीं चारों में से एक उत्तर सही होगा। सही उत्तर के सामने गोले को काले या नीले पेन से कलर करना है। ऐसे में उत्तर काफी सोच-समझ कर देना है, क्योंकि एक तो यहां उत्तर बदलने का मौका नहीं मिलेगा। दूसरा, प्रत्येक गलत उत्तर पर प्राप्तांक में से 1/3 अंक काट लिया जाएगा। चूंकि परीक्षा का स्तर दसवीं या दसवीं से नीचे की कक्षाओं का होगा, ऐसे में छठी से दसवीं कक्षा तक के सभी विषयों की किताबों को एक बार फिर से दोहराना चाहिए। इससे स्कूली कक्षा में किए गए अध्ययन को दोबारा पढ़ने का मौका मिलेगा। समसामयिक की तैयारी के लिए नियमित रूप से कम से कम एक राष्ट्रीय समाचारपत्र पढ़ना चाहिए। बाजार में कई तरह के प्रतियोगिता की तैयारी संबंधी पत्रिकाएं उपलब्ध है। कन्साइज रूप में समसामयिक की तैयारी के लिए नियमित पत्रिकाओं को भी पढ़ना चाहिए। निर्धारित समय पर परीक्षा के सारे प्रश्नों को हल करना होता है। ऐसे में पढ़ाई के दौरान खुद से भी परीक्षा हॉल जैसा माहौल क्रिएट करें और तय समय पर 200 प्रश्नों को सही-सही हल करने की कोशिश करें। एक दिन में समय का पाबंद नहीं बना जा सकता। इसके लिए निरंतर कोशिश करते रहें। शारीरिक रूप से फिट रहने के लिए यह बहुत जरूरी है। लिखित परीक्षा के साथ-साथ पीईटी में भी उत्तीर्ण होना अनिवार्य है। ऐसे में, अपनी दिनर्चया सिस्टमेटिक रखनी होगी। पीईटी के दौरान रेस के लिए केवल और केवल एक मौका मिलेगा, इसलिए रोजाना दौड़ने का अभ्यास ऐसे करना चाहिये जैसे कि पीईटी की परीक्षा दे रहे हों। बाजार में रेलवे भर्ती प्रतियोगिता को लेकर पूर्व में आयोजित परीक्षा का प्रश्नपत्र क्वेश्चन बैंक के रूप में उपलब्ध है। उन सेटों को हल करना चाहिए। इससे न केवल आप अपनी तैयारी का मूल्यांकन कर पाएंगे बल्कि निर्धारित समय पर सारे प्रश्नों को हल कर पाने में सक्षम भी हो सकेंगे।

विकास का रोड़ा जातीय दुराग्रह

विकास का रोड़ा जातीय दुराग्रह

आजादी के साथ ही अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ा वर्ग के लिए आर्थिक और सामाजिक न्याय दिलाने की संकल्पना समय के साथ अपने उद्देश्य से भटकते हुए धूमिल होती चली गई। आज यह वोट बैंक की संकीर्ण राजनीति करने का सबसे बड़ा हथियार है, जिसने जातिवाद को न केवल बढ़ावा दिया बल्कि जातिगत वैमनस्य की खाई को और अधिक चौड़ा किया है। आजादी के 65 सालों बाद भी दलित उत्पीड़न में कोई खास बदलाव नहीं आ पाया है और जो आया है वह सियासत, अवसरवाद और वोट बैंक की राजनीति ने विस्मृत कर दिया। हाल के दलित उत्पीड़न के परिप्रेक्ष्य में उन दलितों को निशाना बनाया जा रहा है, जो आर्थिक रूप से मजबूत होने की प्रक्रिया में हैं।

सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण देश का विकसित राज्य हरियाणा है, जहां समय-समय पर इस तरह की शर्मनाक घटनाएं घटती रही हैं। पिछले दिनों दबंगों द्वारा हिसार के डाबड़ा में 12वीं कक्षा की दलित किशोरी के साथ गैंग रेप और जींद में घर में घुस विवाहिता से गैंग रेप कर उसका एमएमएस बना गांव में बांट देना जातीय क्रूरता की कहानी है।

दरअसल, एक वर्ग जो वर्षो से सामंतों और जमींदारों के शोषण का शिकार रहा, अब सर उठाकर जीने की कोशिश कर रहा है तो कथित उच्च तबके के लोगों को वह बर्दाश्त नहीं हो रहा है, इसीलिए दलित समाज के लोगों को कभी हत्या तो कभी रेप की शक्ल में इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है। हरियाणा में दलित उत्पीड़न नया नहीं है। यह वह प्रदेश है, जिसने विकास कीर्तिमान बनाये हैं, इसके बाद भी दलित समाज के प्रति लोगों के व्यवहार में खास बदलाव नहीं आया है। दलितों के सामूहिक उत्पीड़न के मामलों में हरियाणा सबसे आगे खड़ा दिखाई देता है।

गौरतलब है कि ऐसी घटनाएं 21वीं सदी के उस राज्य में हो रही है, जिसने विकास के कथित पैमाने को छुआ है। वह राज्य, जिसने हरित क्रांति के जरिये देश की उत्पादकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आर्थिक विकास के पैमाने पर हरियाणा अग्रणी राज्यों में से एक है। इसके बावजूद हरियाणा जैसे संपन्न और खुशहाल प्रदेश में ऐसी गिरी हरकतें हाल के दिनों में क्यों इतनी तेजी से बढ़ी हैं। क्यों हम अभी तक हम मनुवादी युग में जीने को अभिशप्त हैं। क्यों सामाजिक अपराध के मामले में कोई सकारात्मक बदलाव नजर नहीं आता? चाहे खाप पंचायत के जरिये गैर तार्किक और मध्य युगीन फरमान सुनाने का मामला हो या दलितों के साथ जातीय दुराग्रह का, हरियाणा की स्थिति बेहद चिंताजनक है।

Tuesday, October 9

क्रिएटिव हैं तो आजमाएं फैशन डिजाइनिंग

design फैशन डिजाइनरों की मांग आज सिर्फ पेरिस और लंदन में ही नहीं है बल्कि अब तो इसके एक्सपर्ट छोटे शहरों में भी छाये हुए हैं। इससे संबंधित कोर्स करने के बाद इसकी व्यापकता का पता चलता है और फिर आप जान पाते हैं कि वर्तमान में किस तरह के फैशन का जादू सिर चढ़कर बोल रहा है


आये दिन बाजार में फैशन के नये डिजाइन, नए तरीके का कलर कंबिनेशन देखने को मिलता है। इस कारण फैशन डिजाइन का क्रेज दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। हमेशा कुछ न कुछ नया करने की ख्वाहिश रखने वाले विद्यार्थियों के लिए यह करियर का बेहतर आप्शन है। यहां हमेशा नया करने का मौका भी है और इसके माध्यम से खुद को स्थापित करने का अवसर भी। फैशन डिजाइनिंग में रुचि रखने वालों को राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान (एनआईडी) के कोर्स नई राह दिखाते हैं।

राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान (एनआईडी) डिजाइन शिक्षा, व्यावहारिक शोध, प्रशिक्षण, डिजाइन परामर्शी सेवाएं के अलावा कई क्षेत्रों में अपनी अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाई है। वर्ष 1961 में केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अधीन इस स्वायत्त संस्थान की स्थापना की गई। एनआईडी में ग्रेजुएशन डिप्लोमा प्रोग्राम इन डिजाइन (जीडीपीडी) और पोस्ट ग्रेजुएशन डिप्लोमा प्रोग्राम इन डिजाइन (पीजीडीपीडी) पाठय़क्रमों के लिए वर्ष 2013-14 के लिए आवेदन मांगे हैं। ग्रेजुएट कोर्स के लिए बारहवीं पास और पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स के लिए बैचलर की डिग्री जरूरी है। अनुभवी अभ्यर्थी को प्राथमिकता दी जाती है। अभ्यर्थी के पास विजुअल परसेप्शन एबिलिटी, ड्राइंग स्किल, लॉजिकल रीजनिंग, क्रिएटीविटी और कम्युनिकेशन स्किल्स का होना जरूरी है।

चयन 
एनआईडी द्वारा संचालित पाठय़क्रमों में दाखिला लेने के लिए इच्छुक छात्रों को संस्थान द्वारा आयो जित डिजाइन एप्टीटय़ूड टेस्ट (डीएटी) की परीक्षा पास करनी होगी। यह परीक्षा दो चरणों में होगी। पहले चरण में लिखित परीक्षा है। इसमें 100 अंक के प्रश्न पत्र होंगे। लिखित परीक्षा में एनिमेशन, एबस्ट्रैक्ट सिम्बोलिज्म, कम्पोजिशन, मेमोरी ड्रॉइंग, थीमेटिक कलर अरेंजमेंट, विजुअल डिजाइन के अलावा विजुअल परसेप्शन एबिलिटी, ड्राइंग स्किल, लॉजिकल रीजनिंग, क्रिएटिव एंड कम्युनिकेशन स्किल, फंडामेंटल डिजाइन के अलावा डिजाइन से संबंधित प्रॉब्लम सॉ ल्विंग कैपेसिटी आदि से संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं। इस परीक्षा का मुख्य उद्देश्य उम्मीदवारों की योग्यता, नवीनता और धारणाओं का मूल्यांकन करना है। लिखित परीक्षा के आधार पर परीक्षार्थियों को शॉर्ट लिस्टेड किया जाएगा। इसके आधार पर योग्य अभ्यर्थी को स्टूडियो टेस्ट और साक्षात्कार के लिए बुलाया जाएगा। स्टूडियो टेस्ट के माध्यम से अभ्यर्थी की क्रिएटिविटी और फैशन के प्रति लगाव, डिजाइनिंग के प्रति सोच, नए आइडिया, कल्पनाशक्ति और कुछ अलग हटकर सोचने की क्षमता को परखा जाता है। परीक्षा से संबंधित किसी भी जानकारी के लिए एनआईडी कैम्पस से संपर्क कर सकते हैं या फिर वेबसाइट पर लॉग ऑन कर सकते हैं।

तैयारी 
इसकी तैयारी अन्य परीक्षाओं से काफी अलग है। इसमें विद्यार्थियों को रट्टा लगाने से सफलता नहीं मिल सकती है। इसमें कामयाब होने के लिए मौलिकता की सख्त दरकार होती है। अभ्यर्थियों का डिजाइनिंग के प्रति रुझान, उसके प्रति उनकी समझ, विचारों व समस्या को सुलझाने की क्षमता को परखी जाती है। ऐसे में बेहतर करने के लिए जरूरी है कि आप जो भी बनाएं, उसे इलेस्ट्रेशन एवं शब्दों के माध्यम से समझाने की भी क्षमता रखें। डीएटी और स्टूडियो टेस्ट के जरिये अभ्यर्थी की ऑब्जर्वेशन पावर, डिजाइन करने की काबिलियत और कुछ नया तैयार करने की क्षमताओं को परखा जाता है। ऐसे में आप जो भी डिजाइन और चित्र बनाएं, उसके रंगों के कंबिनेशन पर विशेष ध्यान रखने की जरूरत है। स्टूडियो टेस्ट में अभ्यर्थी को एक सवाल और उससे संबंधित कुछ सामान उपलब्ध कराया जाता है, जिसके जरिये अभ्यर्थी को उस सवाल के आधार पर सामान तैयार करना होता है। टेस्ट के तुरंत बाद एक्सपर्ट पैनल उसे देखता है और मार्किंग करता है। स्टूडियो टेस्ट देते समय घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि दाखिले के लिए जो एबिलिटी चाहिए, वह काफी हद तक लिखित परीक्षा में ही परख कर ली जाती है। कम्युनिकेशन और विजुअलाइजे शन एक-दूसरे के पूरक हैं। कम्युनिकेशन ऐसा होना चाहिए कि जैसे शब्द दृश्य का कार्य करें और दृश्य शब्दों के पूरक हों। इसमें संवाद, स्लोगन और कॉपी राइटिंग महत्वपूर्ण है। आपमें सृजनात्मक सोच, कुछ नया करने का हुनर, ताजातरीन घटनाओं की जानकारी, बेहतर प्लानिंग और लीक से हटकर काम करने का जुनून हो। इस तरह के गुण इसलिए जरूरी हैं क्योंकि ये लोग वस्तुओं व उत्पादों की डिजाइन तय करते हैं। अगर आपके पास मौलिक सोच है और अपनी सोच को डिजाइन के माध्यम से कहने में सफल होते हैं, तो सफलता के चांस बढ़ते हैं। डिजाइन के क्षेत्र में यदि देश-विदेश में कुछ नया हो रहा है, तो आपको इस तरह की खबर पर पैनी निगाह रखनी चाहिए। यह न केवल परीक्षा के लिहाज से जरूरी है बल्कि एक डिजाइनर की हैसियत से भी जरूरी है।

Tuesday, October 2

इंजीनियरिंग का प्रवेश द्वार जेईई

आईआईटी, ट्रिपल आईटी, एनआईटी में दाखिला 2013 से नये प्रारूप में होगा। नये प्रारूप में सीबीएसई ने अखिल भारतीय स्तर पर इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन के लिए ज्वाइंट इंट्रेंस एग्जामिनेशन (जेईई) आयोजित कर रही है। जेईई दो भागों में बंटा है - जेईई मेन और जेईई एडवांस। जेईई मेन में सफल अभ्यर्थी ही जेईई एडवांस परीक्षा में बैठ सकेंगे और फिर इस परीक्षा में सफल अभ्यर्थी का देश के विभिन्न आईआईटी में एडमिशन होगा


परीक्षा प्रारूप
जेईई मेन में तीन घंटे का एक ऑब्जेक्टिव पेपर होगा। बीई, बीटेक में एडमिशन लेने वालों को फिजिक्स, कैमेस्ट्री और मैथमेटिक्स से संबंधित सवाल पूछे जाएंगे जबकि बीआर्क और बी प्लानिंग में एडमिशन लेने वालों को मैथ्स, एप्टीट्यूड टेस्ट और ड्राइंग टेस्ट देना होगा। जेईई मेन ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से होगी। जेईई मेन की ऑफलाइन परीक्षा 7 अप्रैल 2013 को होगी। जेईई मेन देने वाले विद्यार्थियों में से डेढ़ लाख छात्रों का रिजल्ट मई के पहले सप्ताह में घोषित किया जाएगा। सफल विद्यार्थी जेईई एडवांस की परीक्षा के लिए क्वालिफाई होंगे। जेईई एडवांस की परीक्षा देने के लिए फिर रजिस्ट्रेशन कराना होगा। जेईई एडवांस का आयोजन 2 जून 2013 को होना है। इसमें सफल होने वाले विद्यार्थियों की ऑल इंडिया रैंक (एआईआर) की सूची बनाई जाएगी। एडवांस के सफल विद्यार्थियों की काउंसलिंग आईआईटी, दिल्ली की देखरेख होगी जबकि जेईई मेन की काउंसलिंग सीबीएसई कराएगा। जेईई एपेक्स बोर्ड के अनुसार, एनआईटी, आईआईआईटी, डीटीयू औ र अन्य इंस्टीट्यूट में एडमिशन के लिए मेरिट लिस्ट में 12वीं के 40 फीसदी अंकों को वेटेज दिया जाएगा। 60 प्रतिशत जेईई मेन के परफॉर्मेंस पर रहेंगे।

तैयारी के टिप्स
पेपर वन में फिजिक्स, कैमेस्ट्री, मैथ्स को बराबर वेटेज मिलता है, लेकिन मैथ्स में अच्छा प्रदर्शन रैंक को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। डिफ्रेंशियल कैलकुलस, ट्रिग्नोमेट्री, प्रोबेबिलिटी, परम्यूटेशन-कॉम्बिनेशन, कोऑर्डिनेट ज्योमेट्री स्कोरिंग माना जाता है। फिजिक्स के प्रश्नों का बड़ा हिस्सा डायमेंशन, इलेक्ट्रोमैग्नेटिज्म, इलेक्ट्रॉनिक्स, कैलकुलस पर आधारित होता है। प्रश्नों में आने वाले घुमावों के मद्देनजर बेसिक क्लियर होना जरूरी है। इसके प्रश्न सीबीएसई एग्जाम पैटर्न पर आधारित होते हैं। ऐसे में बारहवीं या इंटरमीडिएट की पढ़ाई के दौरान जो छात्र सिलेबस पर पकड़ बना लेते हैं, उन्हें जेईई की चुनौती आसान हो जाती है। इंजीनियरिंग परीक्षाओं में छात्र मैथ्स, फिजिक्स पर ज्यादा फोकस करते हैं, नतीजतन उनकी कैमेस्ट्री की सही तैयारी नहीं हो पाती। कैमेस्ट्री को इग्नोर करने का परिणाम खराब रैंक के तौर पर मिलता है। अच्छे रैंक के लिए कैमेस्ट्री की तैयारी भी जरूरी है। इसमें ऑर्गेनिक रिएक्शन, इलेक्ट्रो रिएक्शन, केमिकल बॉन्डिंग, आइसोमेरिज्म, मोल कॉन्सेप्ट पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। एक सफल इंजीनियर को अपने आपको इस स्तर तक मांझना होता है कि वह स्वतंत्र रूप से कोई भी प्रोजेक्ट या प्लानिंग कर सके। ऐसे हर व्यक्ति को अपना स्टाइल बनाना जरूरी हो श्ा ै िक्ष क योग्यता जेईई मेन के लिए विद्यार्थी को
जाता है। फैसला अपने स्टाइल में लेना होता है। घबराहट और एग्जाम के प्रेशर में निर्णय लेने की क्षमता भी प्रभावित होती है। जाहिर है कि इससे गलतियां भी होती है। ऐसे में अपनी मानसिक शक्ति को बनाए रखने की खासी जरूरत है। स्टडीज में निरंतरता बनाए रखने में ही यहां सफलता मिलती है। कोई भी टॉपिक यूजलेस है, ऐसा पूर्वाग्रह नुकसानदेह होता है। ज्यादा लिमिटेशन और ज्यादा एक्सपोजर दोनों ही सिचुएशन खतरनाक हैं। यहां बैलेंस बनाकर चलना जरूरी है। खुले दिल से पढ़ने की जरूरत है। हमेशा रियलिस्टिक लक्ष्य निर्धारित करें और उस पर खरा उतरने की कोशिश करें। विषय संबंधी कॉन्सेप्ट क्लीयर रखें। बेसिक नॉलेज को पुख्ता करें और उन्हें रिवाइज करें। इसके लिए ब्रॉड लेवल पर डीप और फोकस्ड स्टडी जरूरी है। ऐसे में, सिर्फ कोचिंग के नोट्स पर डिपेंड रहना खतरनाक है। फिजिक्स, मैथ्स, कैमेस्ट्री के फार्मूले बनाकर उन्हें अपने कमरे की दीवार पर लगाएं ताकि चलते-फिरते उस पर नजर पड़े और आप उसे दोहरा सकें। अकसर परीक्षा के पास आते-आते घबराहट में कम छात्र सोते हैं और सही तरीके से पढ़ाई पर फोकस नहीं कर पाते हैं। इस लेबल पर ज्यादा फिनिशिंग की जरूरत होती है। हर हाल में डर और घबराहट पर कंट्रोल करना चाहिए। पेशंस और साउंड स्लीप पर फोकस करें। सभी प्रश्न बहुवैकल्पिक है और परीक्षा में नकारात्मक अंक भी है। प्रत्येक एक गलत उत्तर पर एक-चौथाई अंक प्राप्तांक में से काट लिया जाएगा। ऐसे में प्रश्नों को हल करते समय एहतियात बरतने की जरूरत है।

Monday, October 1

बेबाक बयानी


पुस्तक 'सच कहता हूं’ हरीश चंन्द्र बर्णवाल की छह कहानी और 14 लघु कथाओं का संग्रह है। पेशे से पत्रकार हरीश को इन कहानियों को लिखने में सोलह साल लगे। शब्दों से खेलते हुए उन्होंने समसामयिक विषयों को भावनात्मक रूप से अभिव्यक्त किया है।

वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित आलोच्य पुस्तक की पहली कहानी ‘यही मुंबई है’ अंधे बच्चों पर आधारित है। एक अंधे बच्चे को अपने ही घर में, मां- बाप और भाई से दोयम दज्रे का व्यवहार मिलता है इसके बाद भी उसकी यह सोच कि वह मुम्बई से अपनी मां के लिए दाई ढूंढकर ले आएगा, एक आदर्श समाज की स्थापना का द्योतक है। बाल सुलभ बचकाना तर्क कि गुफाओं और सुरंगों से होकर ट्रेन गुजरते समय आंख वालों को भी कुछ भी दिखाई नहीं देता और यहां अगर उसका भाई होता तो वह उसे भी कुछ समय के लिए अंधा कहकर चिढ़ा सकता था जहां एक ओर उसकी शारीरिक विवशता बयां करती है वहीं दूसरी ओर उसके साथ किए जाने वाले क्रूर बर्ताव की ओर भी इशारा करती है। कहानी रोचकता के साथ मार्मिक कथ्य प्रस्तुत करती है। तभी तो वरिष्ठ लेखक राजेंद्र यादव लिखते हैं कि कहानी की खूबसूरती यह है कि यह अपनी सीमा के पार चली जाती है.. जो कथ्य है, जो कहा गया है, जो कहानी है, उसके पार ले जाती है और इसलिए यह ‘मेटाफर’ है। इस कहानी के लिए लेखक को अखिल भारतीय अमृतलाल नागर पुरस्कार से नवाजा जा चुका है।

‘चौथा कंधा’ कहानी कादम्बिनी पुरस्कार से सम्मानित है। इसमें गांवदे हातों में रहने वाले समाज में चल रही हलचलों को तात्कालिकता में प्रस्तुत किया गया है। कहानी में दिखाया गया है कि कैसे किसी इंसान के मरने पर कोई हलचल पैदा नहीं होती जबकि ट्रेन से गाय कटने पर कोहराम मच जाता है। लेखक ने परम्परावादी कथ्यों और प्रतिबिम्बों को कहानी में बैसाखी नहीं बनाया है फिर भी देहाती समाज में नए के प्रति कौतुहल को जिस शब्दजाल में पिरोया गया है, वह गुलजार का जुलाहा ही कर सकता है।

 ‘तैंतीस करोड़ लुटेरे देवता’ कहानी जम्मू के रघुनाथ मंदिर में घूमने के दौरान के अनुभवों को आधार बनाकर लिखी गयी है। कहानी के माध्यम से मंदिर को सब्जी बाजार बना चुके पंडितों पर कड़ा प्रहार किया गया है। एक व्यक्ति कितनी शिद्दत और श्रद्धा से धार्मिक स्थल पर जाने की योजनाएं बनाता है लेकिन जब वहां पहुंचता है तो इष्टदेव से मिलाने के लिए बिचौलिये बने पंडितों के व्यवहार से उसकी सारी श्रद्धा सिरे से काफूर हो जाती है। जब भी कोई सुधी पाठक इसे पढ़ेंगे, उन्हें अपने आस-पास की घटनाएं जरूर याद आएंगी। कहानी ‘अंग्रेज, ब्राह्मण और दलित’ के जरिये हिंदू समाज में व्याप्त जातिवाद के दंश को दिखाने की कोशिश की गई है।

जैसे चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी ‘उसने कहा था’ में पहली प्रेम कहानी होने के बावजूद रोमांस का, फैंटेसी का बाहरी आवरण नहीं दिखता, वैसे ही बलात्कार जैसे संवेदनशील मुद्दे पर हरीश ने ‘काश मेरे साथ भी बलात्कार होता’ लिखी हैिबना किसी तरह के अश्लील या भड़काऊ शब्द इस्तेमाल किए। आलोच्य संग्रह की यह सबसे संवेदनशील कहानी कही जा सकती है। बलात्कार जैसे संवेदनशील मुद्दे को जिस साफगोई से लेखक ने बाल चरित्रों के माध्यम से उठाया है, संभवत: इससे पहले किसी ने इसे इस तरह नहीं उठाया होगा।

 पुस्तक की आखिरी कहानी ‘अंतर्विरोध’ में भले ही मुंबई के परिवेश और आधुनिक समाज की दिक्कतों को उकेरा गया है, लेकिन सभी मेट्रो कल्चर के शहरों में यह परिवेश मिल जाएगा। इसमें दो पीढ़ी के बीच सोच का अंतर ही नहीं, प्लास्टिक मनी के दौर में भी वस्तु विनियम पण्राली की महत्ता को बरकरार दिखाया गया है। कहानी थोड़ी लम्बी है लेकिन जिन मुद्दों को केंद्र में रखकर लिखी गई है, उसे देखकर छोटी ही महसूस होती है।

लघु कथाओं में ‘बेड नं. छह’, ‘मेडिकल इंश्योरेंस’ के माध्यम से अस्पताल की दिक्कत और ‘प्ले स्कूल’ और ‘बहाना’ में शिक्षकों की संवेदनहीनता को दर्शाया गया है। ‘दो बड़ा या दो लाख’, ‘आखिरी चेहरा’, ‘गरीब तो बच जाएंगे ..’, ‘मायूसी’, ‘सिर्फ 40 मरे’, ‘बड़ी खबर’, ‘तीन गलती’, ‘कब मरेंगे पोप’ लघु कथाओं में मीडिया में व्याप्त परेशानी और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की त्रासदी दिखाई देती है।

आलोच्य कहानियां जहां एक ओर मौजूदा समाज की सच्चाई का बखान हैं वहीं दूसरी ओर पाठक को जीवन संघर्ष के प्रति प्रेरित भी करती हैं। कहानी में दर्शाये गए पात्र पूर्वाचल के होने के बाद भी भाषाई स्तर पर सुगठित दिखते हैं। कहानीकार अपनी कहानियों में ज्यादा से ज्यादा चीजों को समेटना चाहता है और एक हद तक इसमें सफल भी दिखता है। संग्रह का शीर्षक ‘सच कहता हूं’ लेखक के मनोभाव को दर्शाता है जो संजय ग्रोवर की कविता या मैं सच कहता हूं/ या फिर चुप रहता हूं/ ..बहुत नहीं तेरा लेकिन/ खुश हूं, कम बहता हूं से प्रेरित लगता है।