पुस्तक ‘मेरा मोबाइल तथा अन्य कहानियां’ में 18 कहानियां शामिल हैं।
पेशे से स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अनुसूया त्यागी का यह पांचवां कहानी
संग्रह है। उनके पेशे का अनुभव लगभग सभी कहानियों में ध्वनित होता है। कहीं
वह अनजाने तो कहीं जानबूझकर शामिल हुआ है। इसके बावजूद कथानक के माध्यम से
दी गई डॉक्टरी सलाह कहीं भी थोपी हुई नहीं लगती है।
पति-पत्नी के संबंध विच्छेद का बच्चों के जीवन पर क्या असर पड़ता है, इसकी एक बानगी ‘शुभ्रा’ जैसी कहानी में देखने को मिलती है। नायिका विवाह जैसी सामाजिक व्यवस्था से दूर रहना चाहती है, मगर अपने पालनहार नाना-नानी की इच्छा का मान रखते हुए बेमन से शादी के लिए राजी हो जाती है। ‘कहां भूल हो गई’ जैसी कहानी का संदेश है कि आमदनी कम हो तो इच्छाओं पर लगाम रखनी चाहिए, ताकि भविष्य पर आंच न आए। जहां छोटे फ्लैट से काम चल सकता है, वहां कर्ज लेकर कोठी खरीदना बुद्धिमता नहीं है। कारण बाद में, कर्ज चुकाने के खातिर कमाऊ मशीन बनना पड़ता है और फिर परिवार के लिए समय ही नहीं होता। दोस्ती और शादी का रिश्ता हमेशा बराबर वालों के साथ होनी चाहिए ताकि रिश्ता जीवनभर निभाया जा सके। ‘अच्छा हुआ पीछा छूट गया’ जैसी कहानी इसी सच को रेखांतिक करती है।
डॉक्टरी पेशे से ताल्लुक रखने वाली लेखिका की कहानियों में अस्पताल और अस्पताल के आस-पास की र्चचा स्वाभाविक है। ‘हाय बेचारा’ में स्कूटर चलाना सीखने से लेकर कार की मालकिन बनने तक की कहानी चुटीले अंदाज में कही गई है। वहीं ‘अतीत के श्राद्ध’ के माध्यम से सरकारी अस्पतालों में छोटे से लेकर बड़े स्तर तक फैले भ्रष्टाचार पर चोट है। ‘देर आए दुरुस्त आए’ में मरीज की तरफ से होने वाली लापरवाही उजागर हुई है, जिसे आम तौर पर नजरअंदाज कर दिया जाता है। ‘भारती! तुम क्यों चली गई?’ में दो सहेलियों की बचपन की दोस्ती समय के साथ कब होमो सेक्सुअलिटी में बदल गई और इसे बनाए रखने के लिए साथी युवती की शह पर भारती कैसा शर्मनाक और आत्मघाती कदम उठा गई इसका विवेचन है। कहानी का अंत दुखांत है। हो भी क्यों न, होमोसेक्सुअलिटी के रिश्ते को भले ही पश्चिम के कुछ देशों ने मान्यता दे दी हो, लेकिन अपने देश में इसे यह रिश्ता समाजिक विकृति और प्रकृति के खिलाफ ही माना जाता है।
‘जैसा करोगे वैसा ही भरोगे’ में बोये बीज बबूल तो आम कहां से होय वाली कहावत चरितार्थ होती है तो ‘नीलम की अंगूठी’ और ‘भविष्यवाणी’ के माध्यम से ऊहोपोह की स्थिति बताई गई है। कुछ किताबें और डिग्रियां हासिल कर लेने के बाद खुद को शिक्षित मानने वाले लोगों पर इसके माध्यम से कटाक्ष है। ऐसे लोग ज्योतिषी, ग्रह, नक्षत्र पर विश्वास करने वालों को पिछड़ा, दकियानूसी और पता नहीं क्या-क्या कह जाते हैं, लेकिन जब कोई बात अपने ऊपर आती है तो न ग्रह, नक्षत्र आदि की बातों को पूरी तरह नकार पाते हैं और न हृदय से स्वीकार पाते हैं।
आज लोग मोबाइल पर इतने निर्भर हो गए हैं कि कुछ देर के लिए मोबाइल साथ न हो, तो उन्हें कुछ नहीं होने का आभास होता है। मोबाइल खरीदने, उसके गायब होने से लेकर मोबाइल मिलने तक की कहानी है ‘मेरा मोबाइल’। यह कहानी सबक है उन लोगों के लिए जो अपना सारा संपर्क सूत्र मोबाइल के भरोसे छोड़ देते हैं। कुल मिलाकर ‘मेरा मोबाइल और अन्य कहानियां’ में लेखिका ने जीवन के विविध अनुभवों को साझा किया है। कहानियों में कहीं आम आदमी के जीवन तरंग हैं तो कहीं अवसाद। इतना जरूर है कि लेखिका के ‘मैं औरत हूं’ जैसा उपन्यास पढ़ चुके सुधी पाठकों को कुछ कहानियां निराश करती है। फिर भी ‘शुभ्रा’, ‘कहां, भूल हो गई’, ‘मेरा मोबाइल’ स्तरीय कही जा सकती हैं तो ‘भगवान’, ‘मुझे माफ कर देना’, ‘देर आए दुरुस्त आए’, ‘भविष्यवाणी’, ‘जैसा करोगे वैसा भरोगे’ संदेशपरक है।
पति-पत्नी के संबंध विच्छेद का बच्चों के जीवन पर क्या असर पड़ता है, इसकी एक बानगी ‘शुभ्रा’ जैसी कहानी में देखने को मिलती है। नायिका विवाह जैसी सामाजिक व्यवस्था से दूर रहना चाहती है, मगर अपने पालनहार नाना-नानी की इच्छा का मान रखते हुए बेमन से शादी के लिए राजी हो जाती है। ‘कहां भूल हो गई’ जैसी कहानी का संदेश है कि आमदनी कम हो तो इच्छाओं पर लगाम रखनी चाहिए, ताकि भविष्य पर आंच न आए। जहां छोटे फ्लैट से काम चल सकता है, वहां कर्ज लेकर कोठी खरीदना बुद्धिमता नहीं है। कारण बाद में, कर्ज चुकाने के खातिर कमाऊ मशीन बनना पड़ता है और फिर परिवार के लिए समय ही नहीं होता। दोस्ती और शादी का रिश्ता हमेशा बराबर वालों के साथ होनी चाहिए ताकि रिश्ता जीवनभर निभाया जा सके। ‘अच्छा हुआ पीछा छूट गया’ जैसी कहानी इसी सच को रेखांतिक करती है।
डॉक्टरी पेशे से ताल्लुक रखने वाली लेखिका की कहानियों में अस्पताल और अस्पताल के आस-पास की र्चचा स्वाभाविक है। ‘हाय बेचारा’ में स्कूटर चलाना सीखने से लेकर कार की मालकिन बनने तक की कहानी चुटीले अंदाज में कही गई है। वहीं ‘अतीत के श्राद्ध’ के माध्यम से सरकारी अस्पतालों में छोटे से लेकर बड़े स्तर तक फैले भ्रष्टाचार पर चोट है। ‘देर आए दुरुस्त आए’ में मरीज की तरफ से होने वाली लापरवाही उजागर हुई है, जिसे आम तौर पर नजरअंदाज कर दिया जाता है। ‘भारती! तुम क्यों चली गई?’ में दो सहेलियों की बचपन की दोस्ती समय के साथ कब होमो सेक्सुअलिटी में बदल गई और इसे बनाए रखने के लिए साथी युवती की शह पर भारती कैसा शर्मनाक और आत्मघाती कदम उठा गई इसका विवेचन है। कहानी का अंत दुखांत है। हो भी क्यों न, होमोसेक्सुअलिटी के रिश्ते को भले ही पश्चिम के कुछ देशों ने मान्यता दे दी हो, लेकिन अपने देश में इसे यह रिश्ता समाजिक विकृति और प्रकृति के खिलाफ ही माना जाता है।
‘जैसा करोगे वैसा ही भरोगे’ में बोये बीज बबूल तो आम कहां से होय वाली कहावत चरितार्थ होती है तो ‘नीलम की अंगूठी’ और ‘भविष्यवाणी’ के माध्यम से ऊहोपोह की स्थिति बताई गई है। कुछ किताबें और डिग्रियां हासिल कर लेने के बाद खुद को शिक्षित मानने वाले लोगों पर इसके माध्यम से कटाक्ष है। ऐसे लोग ज्योतिषी, ग्रह, नक्षत्र पर विश्वास करने वालों को पिछड़ा, दकियानूसी और पता नहीं क्या-क्या कह जाते हैं, लेकिन जब कोई बात अपने ऊपर आती है तो न ग्रह, नक्षत्र आदि की बातों को पूरी तरह नकार पाते हैं और न हृदय से स्वीकार पाते हैं।
आज लोग मोबाइल पर इतने निर्भर हो गए हैं कि कुछ देर के लिए मोबाइल साथ न हो, तो उन्हें कुछ नहीं होने का आभास होता है। मोबाइल खरीदने, उसके गायब होने से लेकर मोबाइल मिलने तक की कहानी है ‘मेरा मोबाइल’। यह कहानी सबक है उन लोगों के लिए जो अपना सारा संपर्क सूत्र मोबाइल के भरोसे छोड़ देते हैं। कुल मिलाकर ‘मेरा मोबाइल और अन्य कहानियां’ में लेखिका ने जीवन के विविध अनुभवों को साझा किया है। कहानियों में कहीं आम आदमी के जीवन तरंग हैं तो कहीं अवसाद। इतना जरूर है कि लेखिका के ‘मैं औरत हूं’ जैसा उपन्यास पढ़ चुके सुधी पाठकों को कुछ कहानियां निराश करती है। फिर भी ‘शुभ्रा’, ‘कहां, भूल हो गई’, ‘मेरा मोबाइल’ स्तरीय कही जा सकती हैं तो ‘भगवान’, ‘मुझे माफ कर देना’, ‘देर आए दुरुस्त आए’, ‘भविष्यवाणी’, ‘जैसा करोगे वैसा भरोगे’ संदेशपरक है।
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