विकास का रोड़ा जातीय दुराग्रह
आजादी के साथ ही अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ा वर्ग के लिए आर्थिक और सामाजिक न्याय दिलाने की संकल्पना समय के साथ अपने उद्देश्य से भटकते हुए धूमिल होती चली गई। आज यह वोट बैंक की संकीर्ण राजनीति करने का सबसे बड़ा हथियार है, जिसने जातिवाद को न केवल बढ़ावा दिया बल्कि जातिगत वैमनस्य की खाई को और अधिक चौड़ा किया है। आजादी के 65 सालों बाद भी दलित उत्पीड़न में कोई खास बदलाव नहीं आ पाया है और जो आया है वह सियासत, अवसरवाद और वोट बैंक की राजनीति ने विस्मृत कर दिया। हाल के दलित उत्पीड़न के परिप्रेक्ष्य में उन दलितों को निशाना बनाया जा रहा है, जो आर्थिक रूप से मजबूत होने की प्रक्रिया में हैं।
सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण देश का विकसित राज्य हरियाणा है, जहां समय-समय पर इस तरह की शर्मनाक घटनाएं घटती रही हैं। पिछले दिनों दबंगों द्वारा हिसार के डाबड़ा में 12वीं कक्षा की दलित किशोरी के साथ गैंग रेप और जींद में घर में घुस विवाहिता से गैंग रेप कर उसका एमएमएस बना गांव में बांट देना जातीय क्रूरता की कहानी है।
दरअसल, एक वर्ग जो वर्षो से सामंतों और जमींदारों के शोषण का शिकार रहा, अब सर उठाकर जीने की कोशिश कर रहा है तो कथित उच्च तबके के लोगों को वह बर्दाश्त नहीं हो रहा है, इसीलिए दलित समाज के लोगों को कभी हत्या तो कभी रेप की शक्ल में इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है। हरियाणा में दलित उत्पीड़न नया नहीं है। यह वह प्रदेश है, जिसने विकास कीर्तिमान बनाये हैं, इसके बाद भी दलित समाज के प्रति लोगों के व्यवहार में खास बदलाव नहीं आया है। दलितों के सामूहिक उत्पीड़न के मामलों में हरियाणा सबसे आगे खड़ा दिखाई देता है।
गौरतलब है कि ऐसी घटनाएं 21वीं सदी के उस राज्य में हो रही है, जिसने विकास के कथित पैमाने को छुआ है। वह राज्य, जिसने हरित क्रांति के जरिये देश की उत्पादकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आर्थिक विकास के पैमाने पर हरियाणा अग्रणी राज्यों में से एक है। इसके बावजूद हरियाणा जैसे संपन्न और खुशहाल प्रदेश में ऐसी गिरी हरकतें हाल के दिनों में क्यों इतनी तेजी से बढ़ी हैं। क्यों हम अभी तक हम मनुवादी युग में जीने को अभिशप्त हैं। क्यों सामाजिक अपराध के मामले में कोई सकारात्मक बदलाव नजर नहीं आता? चाहे खाप पंचायत के जरिये गैर तार्किक और मध्य युगीन फरमान सुनाने का मामला हो या दलितों के साथ जातीय दुराग्रह का, हरियाणा की स्थिति बेहद चिंताजनक है।
आजादी के साथ ही अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ा वर्ग के लिए आर्थिक और सामाजिक न्याय दिलाने की संकल्पना समय के साथ अपने उद्देश्य से भटकते हुए धूमिल होती चली गई। आज यह वोट बैंक की संकीर्ण राजनीति करने का सबसे बड़ा हथियार है, जिसने जातिवाद को न केवल बढ़ावा दिया बल्कि जातिगत वैमनस्य की खाई को और अधिक चौड़ा किया है। आजादी के 65 सालों बाद भी दलित उत्पीड़न में कोई खास बदलाव नहीं आ पाया है और जो आया है वह सियासत, अवसरवाद और वोट बैंक की राजनीति ने विस्मृत कर दिया। हाल के दलित उत्पीड़न के परिप्रेक्ष्य में उन दलितों को निशाना बनाया जा रहा है, जो आर्थिक रूप से मजबूत होने की प्रक्रिया में हैं।
सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण देश का विकसित राज्य हरियाणा है, जहां समय-समय पर इस तरह की शर्मनाक घटनाएं घटती रही हैं। पिछले दिनों दबंगों द्वारा हिसार के डाबड़ा में 12वीं कक्षा की दलित किशोरी के साथ गैंग रेप और जींद में घर में घुस विवाहिता से गैंग रेप कर उसका एमएमएस बना गांव में बांट देना जातीय क्रूरता की कहानी है।
दरअसल, एक वर्ग जो वर्षो से सामंतों और जमींदारों के शोषण का शिकार रहा, अब सर उठाकर जीने की कोशिश कर रहा है तो कथित उच्च तबके के लोगों को वह बर्दाश्त नहीं हो रहा है, इसीलिए दलित समाज के लोगों को कभी हत्या तो कभी रेप की शक्ल में इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है। हरियाणा में दलित उत्पीड़न नया नहीं है। यह वह प्रदेश है, जिसने विकास कीर्तिमान बनाये हैं, इसके बाद भी दलित समाज के प्रति लोगों के व्यवहार में खास बदलाव नहीं आया है। दलितों के सामूहिक उत्पीड़न के मामलों में हरियाणा सबसे आगे खड़ा दिखाई देता है।
गौरतलब है कि ऐसी घटनाएं 21वीं सदी के उस राज्य में हो रही है, जिसने विकास के कथित पैमाने को छुआ है। वह राज्य, जिसने हरित क्रांति के जरिये देश की उत्पादकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आर्थिक विकास के पैमाने पर हरियाणा अग्रणी राज्यों में से एक है। इसके बावजूद हरियाणा जैसे संपन्न और खुशहाल प्रदेश में ऐसी गिरी हरकतें हाल के दिनों में क्यों इतनी तेजी से बढ़ी हैं। क्यों हम अभी तक हम मनुवादी युग में जीने को अभिशप्त हैं। क्यों सामाजिक अपराध के मामले में कोई सकारात्मक बदलाव नजर नहीं आता? चाहे खाप पंचायत के जरिये गैर तार्किक और मध्य युगीन फरमान सुनाने का मामला हो या दलितों के साथ जातीय दुराग्रह का, हरियाणा की स्थिति बेहद चिंताजनक है।
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