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Sunday, June 21

स्वातंत्र्य चेतना का दस्तावेज

स्वातंत्र्य चेतना का दस्तावेज ‘अरावली के मुक्त शिखर’

मुगल बादशाह जलालुउद्दीन अकबर के काल में महाराणा प्रताप के स्वातंत्र्य संघर्ष की गाथा ‘‘अरावली के मुक्त शिखर’ उपन्यास के रूप में पाठकों के बीच प्रस्तुत की है कलमकार डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद ने और प्रकाशक है शिवांक। महाराणा प्रताप जब तक जीवित रहे, अकबर की विस्तारवादी नीतियों का विरोध करते रहे। मुगल बादशाह को महाराणा प्रताप ने चैन से नहीं बैठने दिया। महाराणा प्रताप ने ताउम्र उनकी हुकूमत का न केवल विरोध किया बल्कि अन्य राजाओं से तालमेल कर डटकर मुकाबला भी किया। उनकी इस संघर्ष गाथा को आलोच्य पुस्तक में बखूबी शब्दों से पिरोया गया है। 

इसमें महाराणा प्रताप के अलावा भामाशाह जैसे व्यापारी, भील सरदार राणा पूंजा के त्याग का वर्णन है तो दूसरी ओर चित्ताैड़ के आर्थिक और सामरिक परिवेश का भी चितण्रहै। अकबर की बड़ी बेगम जोधाबाई के जीवन के यथार्थ और अंतद्र्वद्व का अहसास पाठकों को इस ऐतिहासिक उपन्यास से होता है। मुगल तुर्क अकबर ने अपने साम्राज्य को विस्तार देने के लिए सैन्य बल के सहारे कई राजपूत राज्यों को अपने अधीन कर लिया। अपनी शक्ति के विस्तार के लिए उन्होंने अवसरानुकूल राजपूत कन्याओं से विवाह भी किया। इनमें आमेर की राजकुमारी जोधा को बड़ी बेगम का दर्जा मिला। यह दर्जा मिलने के बाद भी मीराबाई से तुलना कर जोधा कुंठाग्रस्त हो जातीं। उन्होंने खुद का स्थान मीराबाई से कमतर पाया क्योंकि मीरा के पदों के का संसार कायल रहा।..और वह राजपूत कन्या होने के बाद भी अपने बच्चे को शिक्षा देने में अक्षम क्योंकि उनका बेटा मुगल परंपरा आत्मसात कर रहा था। जोधा के इस अंतद्र्वद्व को लेखक ने अपने तरीके से प्रस्तुत किया है। यह लेखक क्षमता का ही कमाल है कि पाठक इस कृति को पढ़ते वक्त पन्ने पर अंकित संख्या की ओर ध्यान दिये बगैर पढ़ता चला जाता है। 

ऐतिहासिक उपन्यास लिखना आसान नहीं होता। उसे प्रमाणिकता की कसौटी पर भी कसना होता है। इसके लिए लेखक ने इतिहास के सैकड़ों नहीं हजारों पन्नों को खंगाला। उन्होंने मेवाड़, हल्दीघाटी और चित्ताैड़ की यात्राएं भी कीं। रोजमर्रा के जीवन से लेकर लड़ाई के मैदान में भी राणा प्रताप ने नैतिकता का साथ नहीं छोड़ा। युद्ध में अकबर के सेनापति अब्दुल रहीम खानखाना की बेगम को बंदी बनाने पर महाराणा ने कुंवर अमर को दुश्मन सेनापति से माफी मांगने भेजा। प्रताप की इस नैतिकता और देशभक्ति से प्रभावित रहीम खानखाना उन पर कविता लिखने को विवश होते हैं। यही महाराणा की जीत है। 

महाराणा प्रताप इस बात को बखूबी समझ गए थे कि स्वतंत्रता बनाये रखने के लिए समाज की सभी जातियों के साथ सद्भाव और तालमेल जरूरी है। यह आज भी प्रासंगिक है। भ्रष्ट आचरण और विचार को समाप्त करने के लिए नैतिकता का होना नितांत आवश्यक है। इस उपन्यास में प्रताप की नैतिकता, जातीय तालमेल और सौहार्द के पक्ष, उस समय की लोककथाओं और आर्थिक परिवेश, जोधाबाई की उलझन का चितण्रकहीं कहीं लेखक को आचार्य चतुरसेन और अमृत लाल नागर की श्रेणी में भी खड़ा करता दिखता है।

- दीपक राजा
Published in Rashtriya Sahara 14th June 2015 Page 11

Sunday, November 2

विषयांतर होते लेखों का संग्रह


कृष्णा वीरेंद्र न्यास ने चिट्ठाकार/ब्लॉगर उन्मुक्त की चिट्ठियों, लेखों व निबंधों को ‘मुक्त विचारों का संगम’ नाम से पुस्तक का रूप दिया है। इसे प्रकाशित किया है यूनिवर्सल लॉ पब्लिकेशन ने। इसमें शामिल ज्यादातर लेखों में विषय-विषयांतर होते हुए विज्ञान, गणित, कानून, जीवनी, श्रद्धांजलि, संवेदना, मुलाकात एवं विभिन्न पुस्तकों की समीक्षाओं की र्चचा है।

आलोच्य पुस्तक में शामिल चिट्ठियों में छोटी- छोटी कहानियां, प्रेरक प्रसंगों के माध्यम से खास विषय को भी सरल तरीके से प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। लेखों में वैज्ञानिक विचार, तथ्यों व तकरे के आधार पर जीवन के विभिन्न पक्षों के बहुरंगी आयाम पाठकों के बीच रखने का प्रयास सराहनीय है। अंक विद्या, हस्तरेखा, ज्योतिषी जैसे विषय आज भी अंधविास और वैज्ञानिक मान्यता के बीच खींचतान जारी है। इस पर भी लेखक ने सहज तरीके से समझाने का प्रयास किया है और अपनी बात पाठकों तक पहुंचाने में वह कुछ हद तक सफल भी हैं।

पुस्तक में शामिल लेख, जीवन के विभिन्न छुए-अनछुए पहलुओं को एक बार फिर छूते हुए निकलते हैं। जीवन को प्रभावित करने वाले विषय- कम्प्यूटर, कानून, आध्यात्म, नारी सशक्तिकरण, विज्ञान, गणित की पहेलियां, ऐतिहासिक स्थल, यात्रा वृत्तांत पर लिखे लेखों को भी यहां स्थान दिया गया है। ज्योतिष विज्ञान से लेकर अध्यात्म, इंटरनेट से लेकर साइबर कानून, कॉपी राइट से लेकर पेटेंट, बौद्धिक संपदा संबंधी बातों को भी पुस्तक में समाहित किया गया है। इसके आखिरी खंड में विभिन्न प्रकार की पुस्तकों की समीक्षाएं शामिल हैं। ज्यादातर अंग्रेजी की पुस्तकों की समीक्षा है वह भी विज्ञान और वैज्ञानिकों से जुड़ी पुस्तकें। इन पुस्तकों का सार पाठकों तक आसानी से इस पुस्तक के माध्यम से उपलब्ध हो पायेगा।

उन्मुक्त के ज्यादातर लेख पहले से ही चिट्ठाजगत में उपलब्ध हैं। न्यास ने बस इसे पुस्तक का रूप देने का प्रयास किया है। यह पुस्तक कई लोगों के लिए ज्ञानवर्धक हो सकती है तो कुछ के लिए जीवन के अनछुए विषयों को समझने का अवसर।

'राष्ट्रीय सहारा, दो नवम्बर 2014" अंक के मंथन परिशिष्ट पर प्रकाशित

Sunday, April 20

'मंथन" में तीन पुस्तकों की समीक्षा

राष्ट्रीय सहारा के 23 मार्च 2014 अंक में साहित्य पृष्ठ 'मंथन" में तीन पुस्तकों (चंदन पांडेय की कहानी संग्रह जंक्शन, भारत भूषण आर्य की कविता संग्रह शेष है आैर महिलाओं में जागरूकता लाने के लिए जयती गोयल द्वारा लिखे लेखों का संग्रह) की समीक्षा प्रकाशित

सामाजिक सरोकार से जुड़े अनुभव

मंजिल अब भी दूर मराठी पुस्तक मंजिल अजून दूरच! का हिंदी अनुवाद है। दिलीप जोशी द्वारा अनुवादित और राजकमल द्वारा प्रकाशित इस मूल पुस्तक के लेखक कॉमरेड गंगाधर चिटणीस हैं। उन्होंने जिस विचारधारा को आजीवन जिया और भोगा, उसके यथार्थ को पुस्तक का आकार दिया है। मार्क्‍स के फालोअर की विचारधारा में कैसे बदलाव आता है और फिर अपनी डफली अपना राग लेकर लोग किस तरह आगे बढ़ रहे हैं, इस पर चिटणीस ने अपने अनुभव से बतलाने का प्रयास किया है।

चिटणीस का कार्यक्षेत्र शुरू से अंत तक मुंबई रहा, बीच के एकाध साल को छोड़कर। ऐसे में भारतीय ट्रेड यूनियन आंदोलन में एटक, मुंबई गिरणी कामगार यूनियन, सीटू के गठन और शिवसेना के प्रादुर्भाव की र्चचा होनी भी जरूरी है। 1950-60 के दशक में दुनिया भर में चल रही वाम लहर के दौरान भारतीय वामदलों में भी खासी हलचल थी और इसी दौरान अनेक दिग्गज वामपंथी नेताओं की आवाज राष्ट्रीय स्तर पर सुनाई देती थी। लेखक ने उस समय बंबई ट्रेड कामगार यूनियन और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में आने वाले अनेक उतार-चढ़ाव देखे और उनसे दो-चार हुए। उन्होंने अपने अनुभव, वाम मोर्चे के आंतरिक विरोधाभासों, कुछ मशहूर हड़तालों की सफलता- असफलता, निजी पीड़ाओं और वामधारा के सच को बहुत साफगोई से यहां दर्ज किया है।

आलोच्य पुस्तक में अपने जीवन के छह दशक के अनुभव को लेखक ने कागज पर उतार तो दिया लेकिन अपने जीवनसंगिनी मीरा के आदेश ‘आपके आलेख में दोनों के निजी जीवन का कोई उल्लेख नहीं आना चाहिए’ का शब्दश: पालन भी किया है। उन्होंने इस पुस्तक के माध्यम से देश के वैभवशाली टेक्सटाइल उद्योग व उसके श्रम आंदोलन, सामाजिक सरोकार, राजनैतिक और आर्थिक स्थिति का लेखा-जोखा ईमानदारी से प्रस्तुत किया है। सामाजिक सरोकार से जुड़े हर तबके के लोगों को यह पुस्तक पढ़ना चाहिए, भले ही वह कम्युनिस्ट विचारधारा में विश्वास नहीं रखते हों।

Monday, December 23

छुआछूत, अभाव और असुरक्षा का अभिशाप

रोजगार की असुरक्षा और गरीबी कई तरह के कष्ट और तकलीफें लेकर आती है। गरीब होने के साथ-साथ आदमी अगर दलित समुदाय का भी हो तो जीवन अभिशाप बन जाता है। बाबा नागार्जुन का कवि मन निम्न अछूत जाति की मां के गर्भ से उत्पन्न होने का दर्द क्या होता है, उसे अनुभव करना चाहता था। मराठी साहित्यकार शरणकुमार लिंबाले ने जीवन में ऐसा न केवल अनुभव किया बल्कि कठोर संघर्ष के बाद अपनी मेहनत और रचनाशीलता की बदौलत समाज में सम्मान भी हासिल किया।

 निशिकांत ठकार द्वारा अनुवादित और वाणी प्रकाशन से प्रकाशित आलोच्य कृति ‘छुआछूत’ में उनकी ज्यादातर कहानियां आत्मकथात्मक शैली में हैं। अत्याचार, छूआछूत, अवमानना, अन्याय, अमानवीयता और शोषण के जिन अनुभवों को उन्होंने कहानियों के माध्यम से अभिव्यक्त किया है, वह महात्मा गांधी के ‘सत्य के प्रयोग’ जैसा है। ‘नाग पीछा कर रहे हैं’ में बदले हुए ग्रामीण यथार्थ का चित्र समकालीन न्याय-व्यवस्था का पर्दाफाश करता है, तो ‘समाधि’ और ‘टक्कर’ में आज भी देहातों में धर्म के नाम पर हो रहे पाखंड की पोल खुलती है। सुदूर देहातों से लाए गए बच्चों का होटल मालिक किस प्रकार शोषण करते हैं, मजदूरों का संगठन कैसे चलता है, इसका यथार्थ चितण्र‘मालिक का रिश्तेदार’ कहानी में मिलता है।

कहानियों में लेखक के व्यक्तिगत जीवन का भोगा हुआ यथार्थ दिखता है। ‘संबोधि’ से दलित साहित्य को फैशन के तौर पर और अपने आपको प्रगतिशील दिखने वाले सफेदपोश अध्यापक-समीक्षक की असलियत का पता चलता है, जहां उसकी तथाकथित गंदी पुस्तक को घृणा से देखा जाता है। कहानी ‘शांति’ आत्मानुसंधान और आत्मस्वीकृति की कहानी है। दलित युवती पर हुए बलात्कार को संगठन और उसका नेता कैसे अपने हितार्थ इस्तेमाल करने की कोशिश करता है, यह बेलाग तरीके से दिखाई देता है। साथ ही सभ्रांत बन चुके दलित नायक को नौकरानी से किये रेप की याद आती है और वह अपने को माफ नहीं कर सकता है। इस निर्ममता के बावजूद उसकी खामोशी बहुत-कुछ मध्यवर्गीय बनी रह जाती है। ऐसे ही ‘रोटी का जहर’ में रोटी भिखारी को देने के बजाय वह लात तो मारता है, लेकिन उसे अपनी रोटी में जहर भरा प्रतीत होता है। ‘हम नहीं जाएंगे’ कहानी का नायक अन्य दलितों की तरह भीमराव अंबेडर की तस्वीर नहीं लगाता, क्योंकि उसे वह दलितों के जनेऊ की तरह लगती है। पश्चाताप की अवस्था में साहब बन चुके दलित फिर झोपड़पट्टी में रहने के लिए जाना चाहते हैं लेकिन रामायण के रचयिता वाल्मीकि को मिले जवाब की तरह उनके बच्चे भी उसके निर्णय में शामिल नहीं होते। मध्यवर्गीय मानसिकता के कारण इन कहानियों का नायक उग्र आंदोलनों से दूर हटता है। वह अंतद्र्वद्व में है। उसे लगता है कि सवर्णो की भावनाएं दुखाकर दलितों की समस्याएं सुलझने की अपेक्षा और भी उलझ जाएंगी। तभी विद्रोह के स्थान पर उनके सौम्य भाषा का इस्तेमाल होने लगता है। ऐसा कहानी का नायक समझदारी के कारण नहीं करता बल्कि सुविधाभोग और आत्मसुरक्षा के लालच के कारण करता है।

लेखक ने जीवन की विद्रूपताओं और दरिद्रता के बीच जातीय भेद का अमानवीय कटु सत्य कहानियों के रूप में प्रस्तुत किया है। यह स्थिति उन्हें विद्रोही बनाती है। ‘समाधि’ में अंबादास साबणो के माध्यम से संस्कृति के नाम पर बाह्य आडम्बर पर तीखा प्रहार करते हुए जो प्रतिबिंब दिखाया है, वह काजल से भी काला है। ‘जवाब नहीं है मेरे पास’ के माध्यम से दौलत, सियासत और राजनीतिज्ञों द्वारा दलितों से किये जा रहे विासघात को सरल शब्दों में व्याख्यायित किया गया है। भक्ति आंदोलन का ‘जाति पात पूछे नहीं कोई’ का विचार दक्षिण से आया था। एक बार फिर दलित संचेतना दक्षिण की ओर मराठी से हिंदी में आया। बकौल डॉ. नामवर सिंह ‘हिन्दी में दलित आंदोलन नहीं चला।’ उन्होंने इस तथ्य को भी स्वीकार किया कि दलित लेखन दलित व्यक्ति से ही संभव है।’दलित लेखन के लिए अब हिंदी में जमीन तैयार होने लगी है और उसमें मराठी दलित साहित्य के अनुवाद की भूमिका महत्वपूर्ण है। लेखक की मूल भाषा की आग और धार को बरकरार रखने में निशिकांत ठकार काफी हद तक सफल रहे। कहानी पढ़ने के दौरान सुधी पाठकों को कहीं-कहीं अनूदित सा महसूस हो सकता है।

Tuesday, November 27

बीमा में बेहतर चांस


अगर आपमें समाज सेवा की भावना है और करियर को बेहतर बनाना चाहते हैं तो बीमा सेक्टर बेहतर विकल्प के रूप में आपके सामने हैं। भारतीय जीवन बीमा (एलआईसी) अलग-अलग जोन के लिए अप्रैंटिस डेवलपमेंट ऑफीसर (एडीओ) के पद कर कुल 5,201 लोगों को भर्ती करने जा रहा है 

परीक्षा की तिथि : 2 और 3 फरवरी, 2013
 
योग्यता और उम्र 
उम्मीदवार के पास किसी भी मान्यता प्राप्त संस्थान या विविद्यालय से स्नातक या इसके समकक्ष डिग्री हो। उम्मीदवार की उम्र एक नवम्बर 2012 के हिसाब से 21 से 30 वर्ष के बीच होनी चाहिए। उम्र में छूट और आरक्षण केंद्र सरकार के नियमानुसार मिलेगा।

चयन 
अप्रैंटिस डेवलपमेंट ऑफीसर (एडीओ) की चयन प्रक्रिया दो चरणों में है। पहला चरण है लिखित परीक्षा का है, जो दो और तीन फरवरी 2013 को होगी। इसमें सफल होने के बाद साक्षात्कार होगा। साक्षात्कार में सफल होने वाले उम्मीदवार को मेडिकल परीक्षण से गुजरना होगा।

लिखित परीक्षा ऑनलाइन है। इसमें दो सौ प्रश्न होंगे। प्रत्येक प्रश्न के चार उत्तर होंगे। सही उत्तर का चयन करना है। प्रत्येक प्रश्न के लिए एक अंक तय है यानी लिखित परीक्षा दो सौ अंकों का है। इसके दो हिस्से हैं। पहले में रीजनिंग और न्यूमेरिकल संबंधी प्रश्न होंगे जबकि दूसरे में जनरल नॉलेज, करंट अफेयर, इंग्लिश ग्रामर और इंग्लिश वोकैब्लयेरी संबंधी प्रश्न होंगे। दोनों हिस्सों में अलग-अलग न्यूनतम क्वालीफाइंग मार्क्‍स लाने और फिर दोनों को मिलाकर क्वालीफाइंग मार्क्‍स लाने अनिवार्य हैं। क्वालीफाइंग मार्क्‍स कितना हो, इसे एलआईसी आवेदनों की संख्या के आधार पर तय करेगी।

Thursday, November 15

आईटीबीपी : रक्षा व रोमांच से जुड़ी जीविका




 अभी अक्टूबर में इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस (आईटीबीपी) का 50वां स्थापना दिवस मनाया गया। यह संख्या बल के आधार पर देश की सबसे छोटी फोर्स है। इसका गठन 24 अक्टूबर 1962 को भारत-चीन युद्ध (1962) के बाद किया गया था। इसका गठन मुख्य रूप से भारत- चीन सीमा पर सीमापार से अवांछनीय घु सपैठ, तस्करी को रोकना, सीमा की निगरानी करना, देश की उत्तरी सीमा पर अतिक्रमण का पता लगाकर उसकी रोकथाम करने के अलावा स्थानीय लोगों में सुरक्षा भावना मजबूत करना है। लद्दाख के कराकोरम र्दे से लेकर अरुणाचल प्रदेश के दिफू ला तक की तीन हजार चार सौ अठ्ठासी किमी लंबी सीमा की रक्षा की जिम्मेदारी आईटीबीपी के पास है। भारत-चीन पश्चिमी, मध्य और पूर्वी सेक्टरों में नौ हजार से अट्ठारह हजार पांच सौ फुट की ऊंचाई पर तैनात आईटीबीपी के जवानों को शून्य से चालीस डिग्री सेंटीग्रेट नीचे के तापमान पर भी डय़ूटी निभानी पड़ती है। बाहरी आक्रमणों से देश की सीमाओं की सुरक्षा, सीमाओं पर घुसपैठ रोकने की जिम्मेदारी डिफेंस सर्विसेज की होती है।

यदि आप देश की रक्षा में अपना सहयोग देना चाहते हैं तो आप इंडो -तिब्बतन बॉर्डर पुलिस (आईटीबीपी) से जुड़ सकते हैं। इस पुलिस फोर्स में सहायक पुलिस निरीक्षक (स्टेनोग्राफर) के पद पर कार्य करने की इच्छा रखने वाले अभ्यर्थियों के लिए आवेदन की प्रक्रिया शुरू है जिसकी आखिरी तारीख 14 दिसम्बर 2012 है। अभ्यर्थी की उम्र 18 से 25 वर्ष होनी चाहिए

योग्यता
इच्छुक उम्मीदवार के पास किसी भी मान्यता प्राप्त बोर्ड या विश्वविद्यालय से इंटरमीडिएट का सर्टिफिकेट गहोना चाहिए। इसके अलावा, उम्मीदवार को हिन्दी या अंग्रेजी भाषा में शॉर्टहेंड राइटिंग के साथ- साथ कम्प्यूटर पर टाइपिंग आना जरूरी है। उम्मीदवार से कम्प्यूटर के बेसिक नॉलेज की अपेक्षा की जाती है।

चयन-प्रक्रिया 
 चयन-प्रक्रिया तीन चरणों में है। पहले चरण में उम्मीदवार की शारीरिक दक्षता और प्रमाणपत्रों की जांच होगी। दूसरे चरण में लिखित परीक्षा और तीसरे चरण में स्किल टेस्ट के तहत शॉर्टहेंड और टाइपिंग स्पीड को परखा जाता है। इसके बाद, मेरिट के आधार पर सफल उम्मीदवारों की लिस्ट जारी होती है, जिन्हें एएसआई (स्टेनो) के पद में रखा जाएगा।

Tuesday, November 6

फिक्की से लें बौद्धिक संपदा की डिग्री


वर्तमान दौर में बौद्धिक संपदा का संरक्षण दुनिया के तमाम देशों के लिए चुनौती बना हुआ है। बौद्धिक संपदा कानून के दायरे में मालिकों की विभिन्न अमूर्त संपत्तियों, मसलन संगीत, साहित्य, कला, विचार, खोज व आविष्कार, शब्द, वाक्यांश, प्रतीक और डिजाइन को लेकर विशेष अधिकार हैं। सामान्य तौर पर बौद्धिक संपदा में शामिल हैं, कॉपीराइट, ट्रेडमार्क, पेटेंट, औद्योगिक डिजाइन आदि। यह ऐसा फील्ड है जहां इसके विशेषज्ञों की मांग काफी है और करियर की असीम संभावनाएं हैं

इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स (आईपीआर) प्रोफेशनल बनकर करियर संवारने के इच्छुक लोगों के लिए फिक्की तीन ऑनलाइन और एक ऑफलाइन सर्टिफिकेट कोर्स ऑग्रेनाइज कराता है। बौद्धिक संपदा पर कानून और अभ्यास में सर्टिफिकेट कोर्स में दाखिले के लिए आवेदन करने की आखिरी तारीख 16 नवम्बर 2012 है। आवे दन की तिथि खत्म होने के तीन दिन बाद 19 नवम्बर से 28 दिसम्बर 2012 तक इसकी पढ़ाई होगी। कक्षाएं सोमवार से शुक्रवार शाम साढ़े छह बजे से लेकर शाम साढ़े आठ बजे तक फिक्की मुख्यालय परिसर में लगेगी। फिक्की यह कोर्स ग्लोबल इंस्टीटय़ूट ऑफ इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी (जीआईआईपी) के सहयोग से चला रहा है।

योग्यता
तकनीकी, बायोटेक, इंजीनियरिंग, फाम्रेसी, विज्ञान आदि में कम से कम स्नातक होना अनिवार्य है। यह कोर्स इंजीनियरिंग कॉलेज, प्रबंधन स्कूल के फैकल्टी के अलावा आईपी एटॉर्नी एवं आईपी प्रोफेशनल सहित सीए आदि के छात्रों के करियर के लिए भी उपयोगी है।

चयन प्रक्रिया
नामांकन की प्रक्रिया ‘पहले आओ, पहले पाओ’ की तर्ज पर है। इस कोर्स में सौ सीटें हैं। इसमें आवेदन करने के लिए सबसे पहले ‘फिक्की’ की संबंधित वेबसाइट से फॉर्म डाउनलोड करके भरें। भरे हुए आवेदन प्रपत्र के साथ, बायोडाटा और कोर्स फीस की डिमांड ड्राफ्ट और एक पासपोर्ट साइज की फोटो ‘फिक्की’ के मुख्यालय फिक्की हाउस, तानसेन मार्ग, नई दिल्ली- 110 001 में जमा करें। डिमांड ड्राफ्ट इंडस्ट्री से जुड़े लोगों के लिए अठ्ठाइस हजार नब्बे रुपए और छात्रों के लिए सोलह हजार आठ सौ चौवन रुपए है। भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फेडरेशन ऑफ इंडियन चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री, फिक्की) व्यापारिक संगठनों का संघ है। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है। इसकी स्थापना 1927 में महात्मा गांधी की सलाह पर घनश्याम दास बिड़ला और पुरुषोत्तम ठक्कर द्वारा की गई थी।

कोर्स
  • ऑनलाइन सर्टिफिकेट कोर्स ऑन इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी (आईपी) 
  • ऑनलाइन सर्टिफिकेट कोर्स ऑन कंपीटिशन लॉ एंड आईपीआर 
  • फिक्की-जीआईआईपी सर्टिफिकेट को र्स ऑन इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी (आईपी) लॉज एंड प्रैक्टिस 
  • ऑनलाइन सर्टिफिकेट कोर्स ऑन आईपीआर एंड फार्माच्युटिकल आर एंड डी (सीसीआईपीआर)




Tuesday, October 30

बेहतर विकल्प बन रहा वन प्रबंधन

पृथ्वी की कु ल भूमि क्षेत्र का 30 फीसद हिस्सा वनों से आच्छादित है लेकिन शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण पेड़ों की लगातार कटाई जारी है। ऐसे में, पर्यावरण की रक्षा के लिए वनों के प्रबंधन पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ध्यान दिया जाने लगा है। यही कारण है कि वन प्रबंधन करियर के विकल्प के तौर पर सामने आ रहा है

पर्यावरण को बचाने की होड़, कॉरपोरेट क्षेत्र में पर्यावरण के प्रति बढ़ता रुझान और फॉरेस्ट मैनेजमेंट के क्षेत्र में रुचि रखने वाले छात्रों के लिए फॉरेस्ट मैनेजमेंट कोर्स मददगार साबित हो सकता है। वनों की देखभाल के साथ-साथ उनका प्रबंधन काफी मायने भी रखता है। फॉरेस्ट मैनेजमेंट के लिए भोपाल स्थित देश का एकमात्र भारतीय वन प्रबंधन संस्थान (आईआईएफएम) बेहतर विकल्प हो सकता है। चूंकि आज के दौर में सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर वन प्रबंधन की ओर काफी ध्यान दिया जाने लगा है , इस कारण वर्तमान में यहां के छात्रों की मांग देश की बड़ी-बड़ी कंपनियों, बैंक, क्लाइमेट चेंज के लिए काम करने वाले संस्थान और एनजीओ हैं। भारतीय वन प्रबंधन संस्थान में तीन कोर्स संचालित किये जाते हैं- पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन फॉरेस्ट्री मैनेजमेंट (पीजीडीएफएम), फेलो प्रोग्राम इन मैनेजमेंट (एफपीएम) और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन में एमफिल। वर्तमान समय में पीजीडीएफएम में नामांकन के लिए आवेदन मांगे गए हैं। इस कोर्स में कुल 93 सीटें हैं।

योग्यता
पीजीडीएफएम पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स है। इसके लिए कम से कम स्नातक या मान्यता प्राप्त संस्थानों से इसके समकक्ष पाठ्यक्रम में उत्तीर्ण होना जरूरी है, वह भी 50 फीसद अंक के साथ। स्नातक के अंतिम वर्ष के छात्र भी इस पाठय़क्रम के लिए आवेदन कर सकते हैं लेकिन उन्हें 30 जून 2013 से पहले स्नातक उत्तीर्ण होने का प्रमाणपत्र आईआईएफएम के समक्ष प्रस्तुत करना होगा।

शर्त
इस संस्थान में एडमिशन भारतीय प्रबंधन संस्थानों द्वारा आयोजित कॉमन एप्टीटय़ूट टेस्ट (कैट) में प्राप्त अंकों के आधार पर होगा। इसलिए छात्रों को आवेदन करते समय सीएटी के स्कोर को बताना होगा।

प्लेसमेंट
यहां के विद्यार्थियों के लिए कैम्पस प्लेसमेंट की व्यवस्था है। छात्रों के प्लेसमेंट की प्रतिशतता सौ फीसद है। बीते वर्ष में इस संस्थान के छात्रों को औसतन सात लाख रुपए सालाना का पैकेज मिला है। यहां कंपनियां, पेपर इंडस्ट्री, बैंक में माइक्रो फाइनेंस के लिए, क्लाइमेट चेंज और ग्रास रूट लेवल काम करने वाले एनजीओ आदि कैंपस के लिए आते हैं।

चयन
नामांकन की पूरी प्रक्रिया दो चरणों में है। पहला चरण आवेदन की प्रक्रिया है जबकि दूसरा चरण ग्रुप डिस्कशन या साक्षात्कार है। पहले चरण में भारतीय प्रबंधन सं स्थानों (आई आईएम) द्वारा आयोजित कॉमन एडमिशन टेस्ट (कैट) की परीक्षा में प्राप्त स्कोर के आधार पर आईआईएफएम शॉर्टिलस्टिंग की जाती है, हालांकि आईआईएफएम के नामांकन प्रक्रिया या पाठय़क्रम के दौरान आई आई एम की कोई भूमिका नहीं है। पीजीडीएफएम करने के इच्छुक उम्मीदवार को आवेदन फार्म के साथ सीएटी का रजिस्ट्रेशन नंबर और स्कोर बताना होता है। इसके लिए सीएटी के वाउचर रसीद की फोटो कॉफी आवेदन पत्र के साथ संलग्न की जाती है। दूसरे चरण में प्राप्त आवेदनों में सीएटी के स्कोर के आधार पर उम्मीदवारों की शॉर्टिलस्टिंग की जाती है। इसके आधार पर उम्मीदवार को ग्रुप डिस्कशन या साक्षात्कार के लिए फरवरी या मार्च 2013 में भोपाल बुलाया जाएगा। अधिक जानकारी आईआईएफएम की वेवबाइट पर जाकर ली जा सकती है या फिर पर संपर्क कर सकते हैं।

Sunday, October 28

साइबर एर्क्‍सपट्स की बढ़ती मांग

अगर विज्ञान वरदान है तो अभिशाप भी है। एक ओर इंटरनेट ने घर बैठे पूरे विश्व को कम्प्यू टर स्क्रीन पर ला दिया है तो वहीं इंटरनेट से पनपे साइबर क्राइम के विभिन्न रूपों से हमें सामना भी करना पड़ रहा है। आजकल अकसर हमें वेबसाइट हैकिंग, ऑनलाइन ब्लैकमेलिंग, साइबर बुलिंग, क्रेडिट कार्ड धोखाधड़ी, पोर्नोग्राफी जैसी समस्याओं से ही नहीं, साइबर आतंकवाद से भी जूझना पड़ रहा है। ऐसे में, साइबर सिक्योरिटी से जुड़े प्रोफेशनल्स की जरूरत काफी बढ़ गई है
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2011 में जहां साइबर हमलों की संख्या 13,500 के करीब थी, वहीं इस साल सितम्बर तक यह संख्या 20,000 है। माना जा रहा है कि साइबर अपराध से निपटने के लिए देश को पांच लाख पेशेवर चाहिए। यही कारण है कि साइबर अपराध के प्रति बढ़ती जागरूकता व सजगता के कारण साइबर सिक्योरिटी बेहतर करियर के साथ-साथ देश और समाज की सुरक्षा की जिम्मेदारी देता है। कार्य कंप्यूटर यूजर्स के लिए हैकिंग सबसे बड़ी परेशानी है। इसके जरिए अपराधी गोपनीय सूचनाओं को हैक कर सकता है, जैसे पार्सवड, क्रेडिट कार्ड नंबर और पिन कोड, इंटरनेट बैंकिंग पार्सवड आदि। हैकिंग से संबंधित समस्याओं को सुलझाने के लिए एथिकल हैकिंग प्रोग्राम की मदद ली जाती है। किसी साइबर क्राइम के बाद यह पता लगाना कि उससे संबंधित ई-मेल कहां से भेजा गया, किस आईपी एड्रेस का उपयोग किया गया आदि कार्य साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट के ही जिम्मे होता है। इंटरनेट से संबंधित विभिन्न अपराधों को हेंडल करने के लिए साइबर लॉ का भी इस्तेमाल किया जाता है।

Sunday, October 21

मोबाइल के बहाने जीवन तरंग

पुस्तक ‘मेरा मोबाइल तथा अन्य कहानियां’ में 18 कहानियां शामिल हैं। पेशे से स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अनुसूया त्यागी का यह पांचवां कहानी संग्रह है। उनके पेशे का अनुभव लगभग सभी कहानियों में ध्वनित होता है। कहीं वह अनजाने तो कहीं जानबूझकर शामिल हुआ है। इसके बावजूद कथानक के माध्यम से दी गई डॉक्टरी सलाह कहीं भी थोपी हुई नहीं लगती है।

पति-पत्नी के संबंध विच्छेद का बच्चों के जीवन पर क्या असर पड़ता है, इसकी एक बानगी ‘शुभ्रा’ जैसी कहानी में देखने को मिलती है। नायिका विवाह जैसी सामाजिक व्यवस्था से दूर रहना चाहती है, मगर अपने पालनहार नाना-नानी की इच्छा का मान रखते हुए बेमन से शादी के लिए राजी हो जाती है। ‘कहां भूल हो गई’ जैसी कहानी का संदेश है कि आमदनी कम हो तो इच्छाओं पर लगाम रखनी चाहिए, ताकि भविष्य पर आंच न आए। जहां छोटे फ्लैट से काम चल सकता है, वहां कर्ज लेकर कोठी खरीदना बुद्धिमता नहीं है। कारण बाद में, कर्ज चुकाने के खातिर कमाऊ मशीन बनना पड़ता है और फिर परिवार के लिए समय ही नहीं होता। दोस्ती और शादी का रिश्ता हमेशा बराबर वालों के साथ होनी चाहिए ताकि रिश्ता जीवनभर निभाया जा सके। ‘अच्छा हुआ पीछा छूट गया’ जैसी कहानी इसी सच को रेखांतिक करती है।

डॉक्टरी पेशे से ताल्लुक रखने वाली लेखिका की कहानियों में अस्पताल और अस्पताल के आस-पास की र्चचा स्वाभाविक है। ‘हाय बेचारा’ में स्कूटर चलाना सीखने से लेकर कार की मालकिन बनने तक की कहानी चुटीले अंदाज में कही गई है। वहीं ‘अतीत के श्राद्ध’ के माध्यम से सरकारी अस्पतालों में छोटे से लेकर बड़े स्तर तक फैले भ्रष्टाचार पर चोट है। ‘देर आए दुरुस्त आए’ में मरीज की तरफ से होने वाली लापरवाही उजागर हुई है, जिसे आम तौर पर नजरअंदाज कर दिया जाता है। ‘भारती! तुम क्यों चली गई?’ में दो सहेलियों की बचपन की दोस्ती समय के साथ कब होमो सेक्सुअलिटी में बदल गई और इसे बनाए रखने के लिए साथी युवती की शह पर भारती कैसा शर्मनाक और आत्मघाती कदम उठा गई इसका विवेचन है। कहानी का अंत दुखांत है। हो भी क्यों न, होमोसेक्सुअलिटी के रिश्ते को भले ही पश्चिम के कुछ देशों ने मान्यता दे दी हो, लेकिन अपने देश में इसे यह रिश्ता समाजिक विकृति और प्रकृति के खिलाफ ही माना जाता है।

‘जैसा करोगे वैसा ही भरोगे’ में बोये बीज बबूल तो आम कहां से होय वाली कहावत चरितार्थ होती है तो ‘नीलम की अंगूठी’ और ‘भविष्यवाणी’ के माध्यम से ऊहोपोह की स्थिति बताई गई है। कुछ किताबें और डिग्रियां हासिल कर लेने के बाद खुद को शिक्षित मानने वाले लोगों पर इसके माध्यम से कटाक्ष है। ऐसे लोग ज्योतिषी, ग्रह, नक्षत्र पर विश्वास करने वालों को पिछड़ा, दकियानूसी और पता नहीं क्या-क्या कह जाते हैं, लेकिन जब कोई बात अपने ऊपर आती है तो न ग्रह, नक्षत्र आदि की बातों को पूरी तरह नकार पाते हैं और न हृदय से स्वीकार पाते हैं।

आज लोग मोबाइल पर इतने निर्भर हो गए हैं कि कुछ देर के लिए मोबाइल साथ न हो, तो उन्हें कुछ नहीं होने का आभास होता है। मोबाइल खरीदने, उसके गायब होने से लेकर मोबाइल मिलने तक की कहानी है ‘मेरा मोबाइल’। यह कहानी सबक है उन लोगों के लिए जो अपना सारा संपर्क सूत्र मोबाइल के भरोसे छोड़ देते हैं। कुल मिलाकर ‘मेरा मोबाइल और अन्य कहानियां’ में लेखिका ने जीवन के विविध अनुभवों को साझा किया है। कहानियों में कहीं आम आदमी के जीवन तरंग हैं तो कहीं अवसाद। इतना जरूर है कि लेखिका के ‘मैं औरत हूं’ जैसा उपन्यास पढ़ चुके सुधी पाठकों को कुछ कहानियां निराश करती है। फिर भी ‘शुभ्रा’, ‘कहां, भूल हो गई’, ‘मेरा मोबाइल’ स्तरीय कही जा सकती हैं तो ‘भगवान’, ‘मुझे माफ कर देना’, ‘देर आए दुरुस्त आए’, ‘भविष्यवाणी’, ‘जैसा करोगे वैसा भरोगे’ संदेशपरक है।

Thursday, October 18

अपार अवसर देता रेलवे


 भारत में सबसे अधिक नौकरियां रेलवे में हैं क्योंकि आवागमन से लेकर माल ढुलाई तक में इसकी उपयोगिता है। रेलवे परिचालन से ले कर खान-पान तक की सेवा मुहैया कराता है और यात्रियों की हर सेवा के लिए दिन-रात काम करता है। यही कारण है कि यहां छोटे लेवल से लेकर बड़े लेवल तक काफी संख्या में भर्तियां होती हैं

आवेदन की अंतिम तिथि : 31 अक्टूबर 2012
 
रेलवे में करियर की संभावनाओं की कोई कमी नहीं है। यहां हमेशा कोई न कोई रिक्तियां निकलती रहती हैं। वै से भी, इस समय रेलवे में ढाई लाख पद रिक्त हैं और तकरीबन हर साल पचास हजार कर्मचारी रिटायर हो रहे हैं। ऐसे में, रेलवे में भविष्य नौकरी के लिहाज से बहुत उत्साहवर्धक है। माना जा रहा है कि केवल इसी वित्त वर्ष में रेलवे डेढ़ लाख कर्मचारियों की बहाली करेगा। अगर आप दुनिया के दूसरे सबसे बड़े रेल तंत्र का हिस्सा बनना चाहते हैं तो अपनी तैयारी को पुख्ता कर लीजिए। इसी क्रम में रेलवे भर्ती सेल, दक्षिण-पूर्वी रेलवे, कोलकाता ने ग्रुप-डी के तहत हेल्पर, ट्रैक मैन, प्वाइंट मैन व चपरासी के करीब ढाई हजार पदों के लिए आवेदन मांगे हैं।

चयन प्रक्रिया
 चयन प्रक्रिया दो चरणों में बंटी हुई है। पहले चरण में लिखित परीक्षा होगी। इस परीक्षा में दसवीं या इससे नीचे की कक्षाओं से संबंधित प्रश्न पूछे जाएंगे। दो सौ अंकों के प्रश्नपत्र में सभी प्रश्न बहुवैकल्पिक होंगे। इसमें गणित, हिन्दी और अंग्रेजी व्याकरण, सामान्य ज्ञान, सामान्य विज्ञान तथा समसामयिक प्रश्नों के अलावा तर्कशक्ति के परीक्षण के लिए रीजनिंग से संबंधी प्रश्न पूछे जाएंगे। लिखित परीक्षा में न्यूनतम अर्हता प्राप्त करने वाले परीक्षार्थियों को दूसरे चरण में शारीरिक दक्षता जांच (फिजिकल इफिशिएंसी टेस्ट यानी पीईटी) के लिए बुलाया जाएगा। लिखित परीक्षा में न्यूनतम अर्हता का निर्धारण रेलवे भर्ती सेल रिक्त पदों और आवेदकों की संख्या के मुताबिक तय करता है। पीईटी में पुरुष उम्मीदवार को छह मिनट में 1500 मीटर की दूरी तय करनी है जबकि महिला उम्मीदवार को 400 मीटर की रेस तीन मिनट में तय करनी है। रेस के लिए अभ्यर्थी को मात्र एक चांस मिलेगा। इसी में अपनी काबिलियत दिखानी है। पीईटी के समय ही परीक्षार्थियों के मूल प्रमाणपत्र की जांच की जाएगी। पीईटी की परीक्षा पास करने के बाद सफल उम्मीदवारों को मेडिकल टेस्ट के लिए बुलाया जाएगा। उसके बाद नौकरी के लिए सफल उम्मीदवार की घोषणा समाचारपत्रों और रेलवे की वेबसाइट पर प्रकाशित की जाएगी। सफल उम्मीदवारों को पत्र के माध्यम से व्यक्तिगत सूचना भी भेजी जाएगी।

तैयारी 
लिखित परीक्षा के सभी प्रश्नों के चार उत्तर दिये जाएंगे। उन्हीं चारों में से एक उत्तर सही होगा। सही उत्तर के सामने गोले को काले या नीले पेन से कलर करना है। ऐसे में उत्तर काफी सोच-समझ कर देना है, क्योंकि एक तो यहां उत्तर बदलने का मौका नहीं मिलेगा। दूसरा, प्रत्येक गलत उत्तर पर प्राप्तांक में से 1/3 अंक काट लिया जाएगा। चूंकि परीक्षा का स्तर दसवीं या दसवीं से नीचे की कक्षाओं का होगा, ऐसे में छठी से दसवीं कक्षा तक के सभी विषयों की किताबों को एक बार फिर से दोहराना चाहिए। इससे स्कूली कक्षा में किए गए अध्ययन को दोबारा पढ़ने का मौका मिलेगा। समसामयिक की तैयारी के लिए नियमित रूप से कम से कम एक राष्ट्रीय समाचारपत्र पढ़ना चाहिए। बाजार में कई तरह के प्रतियोगिता की तैयारी संबंधी पत्रिकाएं उपलब्ध है। कन्साइज रूप में समसामयिक की तैयारी के लिए नियमित पत्रिकाओं को भी पढ़ना चाहिए। निर्धारित समय पर परीक्षा के सारे प्रश्नों को हल करना होता है। ऐसे में पढ़ाई के दौरान खुद से भी परीक्षा हॉल जैसा माहौल क्रिएट करें और तय समय पर 200 प्रश्नों को सही-सही हल करने की कोशिश करें। एक दिन में समय का पाबंद नहीं बना जा सकता। इसके लिए निरंतर कोशिश करते रहें। शारीरिक रूप से फिट रहने के लिए यह बहुत जरूरी है। लिखित परीक्षा के साथ-साथ पीईटी में भी उत्तीर्ण होना अनिवार्य है। ऐसे में, अपनी दिनर्चया सिस्टमेटिक रखनी होगी। पीईटी के दौरान रेस के लिए केवल और केवल एक मौका मिलेगा, इसलिए रोजाना दौड़ने का अभ्यास ऐसे करना चाहिये जैसे कि पीईटी की परीक्षा दे रहे हों। बाजार में रेलवे भर्ती प्रतियोगिता को लेकर पूर्व में आयोजित परीक्षा का प्रश्नपत्र क्वेश्चन बैंक के रूप में उपलब्ध है। उन सेटों को हल करना चाहिए। इससे न केवल आप अपनी तैयारी का मूल्यांकन कर पाएंगे बल्कि निर्धारित समय पर सारे प्रश्नों को हल कर पाने में सक्षम भी हो सकेंगे।

विकास का रोड़ा जातीय दुराग्रह

विकास का रोड़ा जातीय दुराग्रह

आजादी के साथ ही अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ा वर्ग के लिए आर्थिक और सामाजिक न्याय दिलाने की संकल्पना समय के साथ अपने उद्देश्य से भटकते हुए धूमिल होती चली गई। आज यह वोट बैंक की संकीर्ण राजनीति करने का सबसे बड़ा हथियार है, जिसने जातिवाद को न केवल बढ़ावा दिया बल्कि जातिगत वैमनस्य की खाई को और अधिक चौड़ा किया है। आजादी के 65 सालों बाद भी दलित उत्पीड़न में कोई खास बदलाव नहीं आ पाया है और जो आया है वह सियासत, अवसरवाद और वोट बैंक की राजनीति ने विस्मृत कर दिया। हाल के दलित उत्पीड़न के परिप्रेक्ष्य में उन दलितों को निशाना बनाया जा रहा है, जो आर्थिक रूप से मजबूत होने की प्रक्रिया में हैं।

सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण देश का विकसित राज्य हरियाणा है, जहां समय-समय पर इस तरह की शर्मनाक घटनाएं घटती रही हैं। पिछले दिनों दबंगों द्वारा हिसार के डाबड़ा में 12वीं कक्षा की दलित किशोरी के साथ गैंग रेप और जींद में घर में घुस विवाहिता से गैंग रेप कर उसका एमएमएस बना गांव में बांट देना जातीय क्रूरता की कहानी है।

दरअसल, एक वर्ग जो वर्षो से सामंतों और जमींदारों के शोषण का शिकार रहा, अब सर उठाकर जीने की कोशिश कर रहा है तो कथित उच्च तबके के लोगों को वह बर्दाश्त नहीं हो रहा है, इसीलिए दलित समाज के लोगों को कभी हत्या तो कभी रेप की शक्ल में इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है। हरियाणा में दलित उत्पीड़न नया नहीं है। यह वह प्रदेश है, जिसने विकास कीर्तिमान बनाये हैं, इसके बाद भी दलित समाज के प्रति लोगों के व्यवहार में खास बदलाव नहीं आया है। दलितों के सामूहिक उत्पीड़न के मामलों में हरियाणा सबसे आगे खड़ा दिखाई देता है।

गौरतलब है कि ऐसी घटनाएं 21वीं सदी के उस राज्य में हो रही है, जिसने विकास के कथित पैमाने को छुआ है। वह राज्य, जिसने हरित क्रांति के जरिये देश की उत्पादकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आर्थिक विकास के पैमाने पर हरियाणा अग्रणी राज्यों में से एक है। इसके बावजूद हरियाणा जैसे संपन्न और खुशहाल प्रदेश में ऐसी गिरी हरकतें हाल के दिनों में क्यों इतनी तेजी से बढ़ी हैं। क्यों हम अभी तक हम मनुवादी युग में जीने को अभिशप्त हैं। क्यों सामाजिक अपराध के मामले में कोई सकारात्मक बदलाव नजर नहीं आता? चाहे खाप पंचायत के जरिये गैर तार्किक और मध्य युगीन फरमान सुनाने का मामला हो या दलितों के साथ जातीय दुराग्रह का, हरियाणा की स्थिति बेहद चिंताजनक है।

Tuesday, October 9

क्रिएटिव हैं तो आजमाएं फैशन डिजाइनिंग

design फैशन डिजाइनरों की मांग आज सिर्फ पेरिस और लंदन में ही नहीं है बल्कि अब तो इसके एक्सपर्ट छोटे शहरों में भी छाये हुए हैं। इससे संबंधित कोर्स करने के बाद इसकी व्यापकता का पता चलता है और फिर आप जान पाते हैं कि वर्तमान में किस तरह के फैशन का जादू सिर चढ़कर बोल रहा है


आये दिन बाजार में फैशन के नये डिजाइन, नए तरीके का कलर कंबिनेशन देखने को मिलता है। इस कारण फैशन डिजाइन का क्रेज दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। हमेशा कुछ न कुछ नया करने की ख्वाहिश रखने वाले विद्यार्थियों के लिए यह करियर का बेहतर आप्शन है। यहां हमेशा नया करने का मौका भी है और इसके माध्यम से खुद को स्थापित करने का अवसर भी। फैशन डिजाइनिंग में रुचि रखने वालों को राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान (एनआईडी) के कोर्स नई राह दिखाते हैं।

राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान (एनआईडी) डिजाइन शिक्षा, व्यावहारिक शोध, प्रशिक्षण, डिजाइन परामर्शी सेवाएं के अलावा कई क्षेत्रों में अपनी अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाई है। वर्ष 1961 में केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अधीन इस स्वायत्त संस्थान की स्थापना की गई। एनआईडी में ग्रेजुएशन डिप्लोमा प्रोग्राम इन डिजाइन (जीडीपीडी) और पोस्ट ग्रेजुएशन डिप्लोमा प्रोग्राम इन डिजाइन (पीजीडीपीडी) पाठय़क्रमों के लिए वर्ष 2013-14 के लिए आवेदन मांगे हैं। ग्रेजुएट कोर्स के लिए बारहवीं पास और पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स के लिए बैचलर की डिग्री जरूरी है। अनुभवी अभ्यर्थी को प्राथमिकता दी जाती है। अभ्यर्थी के पास विजुअल परसेप्शन एबिलिटी, ड्राइंग स्किल, लॉजिकल रीजनिंग, क्रिएटीविटी और कम्युनिकेशन स्किल्स का होना जरूरी है।

चयन 
एनआईडी द्वारा संचालित पाठय़क्रमों में दाखिला लेने के लिए इच्छुक छात्रों को संस्थान द्वारा आयो जित डिजाइन एप्टीटय़ूड टेस्ट (डीएटी) की परीक्षा पास करनी होगी। यह परीक्षा दो चरणों में होगी। पहले चरण में लिखित परीक्षा है। इसमें 100 अंक के प्रश्न पत्र होंगे। लिखित परीक्षा में एनिमेशन, एबस्ट्रैक्ट सिम्बोलिज्म, कम्पोजिशन, मेमोरी ड्रॉइंग, थीमेटिक कलर अरेंजमेंट, विजुअल डिजाइन के अलावा विजुअल परसेप्शन एबिलिटी, ड्राइंग स्किल, लॉजिकल रीजनिंग, क्रिएटिव एंड कम्युनिकेशन स्किल, फंडामेंटल डिजाइन के अलावा डिजाइन से संबंधित प्रॉब्लम सॉ ल्विंग कैपेसिटी आदि से संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं। इस परीक्षा का मुख्य उद्देश्य उम्मीदवारों की योग्यता, नवीनता और धारणाओं का मूल्यांकन करना है। लिखित परीक्षा के आधार पर परीक्षार्थियों को शॉर्ट लिस्टेड किया जाएगा। इसके आधार पर योग्य अभ्यर्थी को स्टूडियो टेस्ट और साक्षात्कार के लिए बुलाया जाएगा। स्टूडियो टेस्ट के माध्यम से अभ्यर्थी की क्रिएटिविटी और फैशन के प्रति लगाव, डिजाइनिंग के प्रति सोच, नए आइडिया, कल्पनाशक्ति और कुछ अलग हटकर सोचने की क्षमता को परखा जाता है। परीक्षा से संबंधित किसी भी जानकारी के लिए एनआईडी कैम्पस से संपर्क कर सकते हैं या फिर वेबसाइट पर लॉग ऑन कर सकते हैं।

तैयारी 
इसकी तैयारी अन्य परीक्षाओं से काफी अलग है। इसमें विद्यार्थियों को रट्टा लगाने से सफलता नहीं मिल सकती है। इसमें कामयाब होने के लिए मौलिकता की सख्त दरकार होती है। अभ्यर्थियों का डिजाइनिंग के प्रति रुझान, उसके प्रति उनकी समझ, विचारों व समस्या को सुलझाने की क्षमता को परखी जाती है। ऐसे में बेहतर करने के लिए जरूरी है कि आप जो भी बनाएं, उसे इलेस्ट्रेशन एवं शब्दों के माध्यम से समझाने की भी क्षमता रखें। डीएटी और स्टूडियो टेस्ट के जरिये अभ्यर्थी की ऑब्जर्वेशन पावर, डिजाइन करने की काबिलियत और कुछ नया तैयार करने की क्षमताओं को परखा जाता है। ऐसे में आप जो भी डिजाइन और चित्र बनाएं, उसके रंगों के कंबिनेशन पर विशेष ध्यान रखने की जरूरत है। स्टूडियो टेस्ट में अभ्यर्थी को एक सवाल और उससे संबंधित कुछ सामान उपलब्ध कराया जाता है, जिसके जरिये अभ्यर्थी को उस सवाल के आधार पर सामान तैयार करना होता है। टेस्ट के तुरंत बाद एक्सपर्ट पैनल उसे देखता है और मार्किंग करता है। स्टूडियो टेस्ट देते समय घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि दाखिले के लिए जो एबिलिटी चाहिए, वह काफी हद तक लिखित परीक्षा में ही परख कर ली जाती है। कम्युनिकेशन और विजुअलाइजे शन एक-दूसरे के पूरक हैं। कम्युनिकेशन ऐसा होना चाहिए कि जैसे शब्द दृश्य का कार्य करें और दृश्य शब्दों के पूरक हों। इसमें संवाद, स्लोगन और कॉपी राइटिंग महत्वपूर्ण है। आपमें सृजनात्मक सोच, कुछ नया करने का हुनर, ताजातरीन घटनाओं की जानकारी, बेहतर प्लानिंग और लीक से हटकर काम करने का जुनून हो। इस तरह के गुण इसलिए जरूरी हैं क्योंकि ये लोग वस्तुओं व उत्पादों की डिजाइन तय करते हैं। अगर आपके पास मौलिक सोच है और अपनी सोच को डिजाइन के माध्यम से कहने में सफल होते हैं, तो सफलता के चांस बढ़ते हैं। डिजाइन के क्षेत्र में यदि देश-विदेश में कुछ नया हो रहा है, तो आपको इस तरह की खबर पर पैनी निगाह रखनी चाहिए। यह न केवल परीक्षा के लिहाज से जरूरी है बल्कि एक डिजाइनर की हैसियत से भी जरूरी है।

Tuesday, October 2

इंजीनियरिंग का प्रवेश द्वार जेईई

आईआईटी, ट्रिपल आईटी, एनआईटी में दाखिला 2013 से नये प्रारूप में होगा। नये प्रारूप में सीबीएसई ने अखिल भारतीय स्तर पर इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन के लिए ज्वाइंट इंट्रेंस एग्जामिनेशन (जेईई) आयोजित कर रही है। जेईई दो भागों में बंटा है - जेईई मेन और जेईई एडवांस। जेईई मेन में सफल अभ्यर्थी ही जेईई एडवांस परीक्षा में बैठ सकेंगे और फिर इस परीक्षा में सफल अभ्यर्थी का देश के विभिन्न आईआईटी में एडमिशन होगा


परीक्षा प्रारूप
जेईई मेन में तीन घंटे का एक ऑब्जेक्टिव पेपर होगा। बीई, बीटेक में एडमिशन लेने वालों को फिजिक्स, कैमेस्ट्री और मैथमेटिक्स से संबंधित सवाल पूछे जाएंगे जबकि बीआर्क और बी प्लानिंग में एडमिशन लेने वालों को मैथ्स, एप्टीट्यूड टेस्ट और ड्राइंग टेस्ट देना होगा। जेईई मेन ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से होगी। जेईई मेन की ऑफलाइन परीक्षा 7 अप्रैल 2013 को होगी। जेईई मेन देने वाले विद्यार्थियों में से डेढ़ लाख छात्रों का रिजल्ट मई के पहले सप्ताह में घोषित किया जाएगा। सफल विद्यार्थी जेईई एडवांस की परीक्षा के लिए क्वालिफाई होंगे। जेईई एडवांस की परीक्षा देने के लिए फिर रजिस्ट्रेशन कराना होगा। जेईई एडवांस का आयोजन 2 जून 2013 को होना है। इसमें सफल होने वाले विद्यार्थियों की ऑल इंडिया रैंक (एआईआर) की सूची बनाई जाएगी। एडवांस के सफल विद्यार्थियों की काउंसलिंग आईआईटी, दिल्ली की देखरेख होगी जबकि जेईई मेन की काउंसलिंग सीबीएसई कराएगा। जेईई एपेक्स बोर्ड के अनुसार, एनआईटी, आईआईआईटी, डीटीयू औ र अन्य इंस्टीट्यूट में एडमिशन के लिए मेरिट लिस्ट में 12वीं के 40 फीसदी अंकों को वेटेज दिया जाएगा। 60 प्रतिशत जेईई मेन के परफॉर्मेंस पर रहेंगे।

तैयारी के टिप्स
पेपर वन में फिजिक्स, कैमेस्ट्री, मैथ्स को बराबर वेटेज मिलता है, लेकिन मैथ्स में अच्छा प्रदर्शन रैंक को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। डिफ्रेंशियल कैलकुलस, ट्रिग्नोमेट्री, प्रोबेबिलिटी, परम्यूटेशन-कॉम्बिनेशन, कोऑर्डिनेट ज्योमेट्री स्कोरिंग माना जाता है। फिजिक्स के प्रश्नों का बड़ा हिस्सा डायमेंशन, इलेक्ट्रोमैग्नेटिज्म, इलेक्ट्रॉनिक्स, कैलकुलस पर आधारित होता है। प्रश्नों में आने वाले घुमावों के मद्देनजर बेसिक क्लियर होना जरूरी है। इसके प्रश्न सीबीएसई एग्जाम पैटर्न पर आधारित होते हैं। ऐसे में बारहवीं या इंटरमीडिएट की पढ़ाई के दौरान जो छात्र सिलेबस पर पकड़ बना लेते हैं, उन्हें जेईई की चुनौती आसान हो जाती है। इंजीनियरिंग परीक्षाओं में छात्र मैथ्स, फिजिक्स पर ज्यादा फोकस करते हैं, नतीजतन उनकी कैमेस्ट्री की सही तैयारी नहीं हो पाती। कैमेस्ट्री को इग्नोर करने का परिणाम खराब रैंक के तौर पर मिलता है। अच्छे रैंक के लिए कैमेस्ट्री की तैयारी भी जरूरी है। इसमें ऑर्गेनिक रिएक्शन, इलेक्ट्रो रिएक्शन, केमिकल बॉन्डिंग, आइसोमेरिज्म, मोल कॉन्सेप्ट पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। एक सफल इंजीनियर को अपने आपको इस स्तर तक मांझना होता है कि वह स्वतंत्र रूप से कोई भी प्रोजेक्ट या प्लानिंग कर सके। ऐसे हर व्यक्ति को अपना स्टाइल बनाना जरूरी हो श्ा ै िक्ष क योग्यता जेईई मेन के लिए विद्यार्थी को
जाता है। फैसला अपने स्टाइल में लेना होता है। घबराहट और एग्जाम के प्रेशर में निर्णय लेने की क्षमता भी प्रभावित होती है। जाहिर है कि इससे गलतियां भी होती है। ऐसे में अपनी मानसिक शक्ति को बनाए रखने की खासी जरूरत है। स्टडीज में निरंतरता बनाए रखने में ही यहां सफलता मिलती है। कोई भी टॉपिक यूजलेस है, ऐसा पूर्वाग्रह नुकसानदेह होता है। ज्यादा लिमिटेशन और ज्यादा एक्सपोजर दोनों ही सिचुएशन खतरनाक हैं। यहां बैलेंस बनाकर चलना जरूरी है। खुले दिल से पढ़ने की जरूरत है। हमेशा रियलिस्टिक लक्ष्य निर्धारित करें और उस पर खरा उतरने की कोशिश करें। विषय संबंधी कॉन्सेप्ट क्लीयर रखें। बेसिक नॉलेज को पुख्ता करें और उन्हें रिवाइज करें। इसके लिए ब्रॉड लेवल पर डीप और फोकस्ड स्टडी जरूरी है। ऐसे में, सिर्फ कोचिंग के नोट्स पर डिपेंड रहना खतरनाक है। फिजिक्स, मैथ्स, कैमेस्ट्री के फार्मूले बनाकर उन्हें अपने कमरे की दीवार पर लगाएं ताकि चलते-फिरते उस पर नजर पड़े और आप उसे दोहरा सकें। अकसर परीक्षा के पास आते-आते घबराहट में कम छात्र सोते हैं और सही तरीके से पढ़ाई पर फोकस नहीं कर पाते हैं। इस लेबल पर ज्यादा फिनिशिंग की जरूरत होती है। हर हाल में डर और घबराहट पर कंट्रोल करना चाहिए। पेशंस और साउंड स्लीप पर फोकस करें। सभी प्रश्न बहुवैकल्पिक है और परीक्षा में नकारात्मक अंक भी है। प्रत्येक एक गलत उत्तर पर एक-चौथाई अंक प्राप्तांक में से काट लिया जाएगा। ऐसे में प्रश्नों को हल करते समय एहतियात बरतने की जरूरत है।

Monday, October 1

बेबाक बयानी


पुस्तक 'सच कहता हूं’ हरीश चंन्द्र बर्णवाल की छह कहानी और 14 लघु कथाओं का संग्रह है। पेशे से पत्रकार हरीश को इन कहानियों को लिखने में सोलह साल लगे। शब्दों से खेलते हुए उन्होंने समसामयिक विषयों को भावनात्मक रूप से अभिव्यक्त किया है।

वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित आलोच्य पुस्तक की पहली कहानी ‘यही मुंबई है’ अंधे बच्चों पर आधारित है। एक अंधे बच्चे को अपने ही घर में, मां- बाप और भाई से दोयम दज्रे का व्यवहार मिलता है इसके बाद भी उसकी यह सोच कि वह मुम्बई से अपनी मां के लिए दाई ढूंढकर ले आएगा, एक आदर्श समाज की स्थापना का द्योतक है। बाल सुलभ बचकाना तर्क कि गुफाओं और सुरंगों से होकर ट्रेन गुजरते समय आंख वालों को भी कुछ भी दिखाई नहीं देता और यहां अगर उसका भाई होता तो वह उसे भी कुछ समय के लिए अंधा कहकर चिढ़ा सकता था जहां एक ओर उसकी शारीरिक विवशता बयां करती है वहीं दूसरी ओर उसके साथ किए जाने वाले क्रूर बर्ताव की ओर भी इशारा करती है। कहानी रोचकता के साथ मार्मिक कथ्य प्रस्तुत करती है। तभी तो वरिष्ठ लेखक राजेंद्र यादव लिखते हैं कि कहानी की खूबसूरती यह है कि यह अपनी सीमा के पार चली जाती है.. जो कथ्य है, जो कहा गया है, जो कहानी है, उसके पार ले जाती है और इसलिए यह ‘मेटाफर’ है। इस कहानी के लिए लेखक को अखिल भारतीय अमृतलाल नागर पुरस्कार से नवाजा जा चुका है।

‘चौथा कंधा’ कहानी कादम्बिनी पुरस्कार से सम्मानित है। इसमें गांवदे हातों में रहने वाले समाज में चल रही हलचलों को तात्कालिकता में प्रस्तुत किया गया है। कहानी में दिखाया गया है कि कैसे किसी इंसान के मरने पर कोई हलचल पैदा नहीं होती जबकि ट्रेन से गाय कटने पर कोहराम मच जाता है। लेखक ने परम्परावादी कथ्यों और प्रतिबिम्बों को कहानी में बैसाखी नहीं बनाया है फिर भी देहाती समाज में नए के प्रति कौतुहल को जिस शब्दजाल में पिरोया गया है, वह गुलजार का जुलाहा ही कर सकता है।

 ‘तैंतीस करोड़ लुटेरे देवता’ कहानी जम्मू के रघुनाथ मंदिर में घूमने के दौरान के अनुभवों को आधार बनाकर लिखी गयी है। कहानी के माध्यम से मंदिर को सब्जी बाजार बना चुके पंडितों पर कड़ा प्रहार किया गया है। एक व्यक्ति कितनी शिद्दत और श्रद्धा से धार्मिक स्थल पर जाने की योजनाएं बनाता है लेकिन जब वहां पहुंचता है तो इष्टदेव से मिलाने के लिए बिचौलिये बने पंडितों के व्यवहार से उसकी सारी श्रद्धा सिरे से काफूर हो जाती है। जब भी कोई सुधी पाठक इसे पढ़ेंगे, उन्हें अपने आस-पास की घटनाएं जरूर याद आएंगी। कहानी ‘अंग्रेज, ब्राह्मण और दलित’ के जरिये हिंदू समाज में व्याप्त जातिवाद के दंश को दिखाने की कोशिश की गई है।

जैसे चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी ‘उसने कहा था’ में पहली प्रेम कहानी होने के बावजूद रोमांस का, फैंटेसी का बाहरी आवरण नहीं दिखता, वैसे ही बलात्कार जैसे संवेदनशील मुद्दे पर हरीश ने ‘काश मेरे साथ भी बलात्कार होता’ लिखी हैिबना किसी तरह के अश्लील या भड़काऊ शब्द इस्तेमाल किए। आलोच्य संग्रह की यह सबसे संवेदनशील कहानी कही जा सकती है। बलात्कार जैसे संवेदनशील मुद्दे को जिस साफगोई से लेखक ने बाल चरित्रों के माध्यम से उठाया है, संभवत: इससे पहले किसी ने इसे इस तरह नहीं उठाया होगा।

 पुस्तक की आखिरी कहानी ‘अंतर्विरोध’ में भले ही मुंबई के परिवेश और आधुनिक समाज की दिक्कतों को उकेरा गया है, लेकिन सभी मेट्रो कल्चर के शहरों में यह परिवेश मिल जाएगा। इसमें दो पीढ़ी के बीच सोच का अंतर ही नहीं, प्लास्टिक मनी के दौर में भी वस्तु विनियम पण्राली की महत्ता को बरकरार दिखाया गया है। कहानी थोड़ी लम्बी है लेकिन जिन मुद्दों को केंद्र में रखकर लिखी गई है, उसे देखकर छोटी ही महसूस होती है।

लघु कथाओं में ‘बेड नं. छह’, ‘मेडिकल इंश्योरेंस’ के माध्यम से अस्पताल की दिक्कत और ‘प्ले स्कूल’ और ‘बहाना’ में शिक्षकों की संवेदनहीनता को दर्शाया गया है। ‘दो बड़ा या दो लाख’, ‘आखिरी चेहरा’, ‘गरीब तो बच जाएंगे ..’, ‘मायूसी’, ‘सिर्फ 40 मरे’, ‘बड़ी खबर’, ‘तीन गलती’, ‘कब मरेंगे पोप’ लघु कथाओं में मीडिया में व्याप्त परेशानी और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की त्रासदी दिखाई देती है।

आलोच्य कहानियां जहां एक ओर मौजूदा समाज की सच्चाई का बखान हैं वहीं दूसरी ओर पाठक को जीवन संघर्ष के प्रति प्रेरित भी करती हैं। कहानी में दर्शाये गए पात्र पूर्वाचल के होने के बाद भी भाषाई स्तर पर सुगठित दिखते हैं। कहानीकार अपनी कहानियों में ज्यादा से ज्यादा चीजों को समेटना चाहता है और एक हद तक इसमें सफल भी दिखता है। संग्रह का शीर्षक ‘सच कहता हूं’ लेखक के मनोभाव को दर्शाता है जो संजय ग्रोवर की कविता या मैं सच कहता हूं/ या फिर चुप रहता हूं/ ..बहुत नहीं तेरा लेकिन/ खुश हूं, कम बहता हूं से प्रेरित लगता है। 

Friday, September 28

भू-विज्ञान में रोजगार

वर्तमान समय में भूवैज्ञानिकों की काफी मांग है। पृथ्वी के भीतर की संरचनाओं में उथल-पुथल, इसकी जलवायु में हो रहे परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिग के साथ पिघल रहे ग्लेशियर और समुद्र के जीवन की बेहतर समझ वाले लोग महत्वपूर्ण हो गए हैं क्योंकि उनके अनुमान और रिजल्ट के आधार पर ही आगे की प्लानिंग की जाती है। अब तो उनकी भूमिका सौरमंडल के अन्य ग्रहों पर भी दिखने लगी है। यही कारण है कि इस फील्ड में करियर की असीम संभावनाएं सामने आ रही हैं


खनिज बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन हैं। भारतीय भूिवज्ञान सव्रेक्षण विभाग का काम है राष्ट्र के हित में खनिजों का सावधानीपूर्वक प्रबंधन करना। राष्ट्रहित को सवरेपरि रखते हुए खनिज अनुसंधान, राष्ट्रीय आपदा अनुमान, अंतरराष्ट्रीय आपदा अनुमान, क्षमता और विकास आदि के क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय सहयोग करना इसका काम है। भूवैज्ञानिक पृथ्वी की जलवायु में हो रहे परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिग के कारण पिघल रहे ग्लेशियर से लेकर समुद्री जीवन की समझ रखते हैं। केंद्रीय खनन मंत्रालय के अधीनस्थ भारतीय भू-विज्ञान सव्रेक्षण विभाग दुनिया के सबसे पुराने संगठनों में से एक है। इस विभाग में भू-विज्ञानी के ग्रुप ‘ए‘ और ग्रुप ‘बी’ के पदों की भर्ती की जा रही है। यो ग्यता जो भी अभ्यर्थी इस फील्ड में करियर बनाना चाहते हैं, उनके पास भू-वैज्ञानिक विज्ञान, भू-विज्ञान, भू अन्वेषण, इंजीनियरी भू-विज्ञान, समुद्री भू-विज्ञान, पेट्रोलियम भू-विज्ञान, भू-रसायन, पृथ्वी विज्ञान और संसाधन प्रबंधन या सागर विज्ञान और तटीय क्षेत्र अध्ययन विषयों में से किसी एक विषय में मास्टर डिग्री होनी चाहिए। मास्टर डिग्री का तात्पर्य, तीन वर्षीय स्नातक के बाद स्नातकोत्तर डिग्री या डिप्लोमा से है, जो दो वर्षो की अवधि का हो।

चयन 
चयन प्रक्रिया दो चरणों में होगी, लिखित परीक्षा और साक्षात्कार। लिखित परीक्षा के तहत चार प्रश्न पत्र होंगे। सभी प्रश्न पत्रों को हल करने के लिए तीन-तीने घं टे निर्धारित किये गए हैं। पहला प्रश्न पत्र सामान्य अंग्रेजी का है जो सौ अंकों का रहेगा। अन्य तीनों प्रश्न पत्र भू-विज्ञान से होंगे और तीनों प्रश्न पत्रों के अंक दो-दो सौ होंगे। पहले प्रश्न पत्र में अंग्रेजी में एक लघु निबंध लिखना होगा। इसमें पूछे गए अन्य प्रश्नों का उद्देश्य उम्मीदवार के अंग्रेजी समझने की क्षमता तथा सटीक शब्दों के इस्तेमाल का आकलन करना है। दूसरे प्रश्नपत्र में भू आकृति विज्ञान,
सुदूर संवेदन, संरचना, स्ट्रेटोग्राफी, जीवाश्म विज्ञान से संबंधित, तीसरे प्रश्नपत्र में इंडियन मिनरल डिपॉजिट और मिनरल इकोनॉमी, अयस्क मिनरल, एक्सप्लोरेशन जिओलॉजी ऑफ फ्यूल, इंजीनियरी भू-विज्ञान आदि पाठों से
संबंधित प्रश्न पूछे जाएंगे। सभी विषयों की परीक्षा पूर्णत: निबंधात्मक होगी। सभी प्रश्नपत्र अंग्रेजी में होंगे। व्यक्तित्व परीक्षण के लिए दो सौ अंकों का साक्षात्कार है जो सक्षम और निष्पक्ष प्रेक्षकों के बोर्ड द्वारा लिया जाएगा। साक्षात्कार बोर्ड के पास पहले से ही उम्मीदवार का पूरा डाटा होगा। साक्षात्कार के दौरान नेतृत्व, बौद्धिक जिज्ञासा, मानसिक और शारीरिक शक्ति, अन्य सामाजिक गुण, व्यावहारिक क्षमताओं का आकलन किया जाता है। अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें : www.upsconline.nic.in

आवेदन इस विभाग में भू-विज्ञानी ग्रुप-क के 300 पद और सहायक भूिवज्ञानी ग्रुप-ख के 67 पदों के लिए आवेदन मांगे गए हैं। इसके लिए इच्छुक आवेदक संघ लोक सेवा आयोग की वेबसाइट पर जाकर ऑनलाइन मोड से आवेदन कर सकते हैं।

Tuesday, September 18

अहम है अनुवादक




आवेदन की अंतिम तिथि : 5 अक्टूबर 2012


अगर आपकी हिन्दी और अंग्रेजी, दोनों भाषाओं पर अच्छी पकड़ है और अनुवाद में करियर बनाना चाहते हैं तो कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) आपकी इच्छा को पूरी कर सकता है। केंद्र सरकार के अधीनस्थ कार्यालयों में कनिष्ठ अनुवादक के पद के लिए एसएससी ने आवेदन मांगे हैं। इच्छुक आवेदकों को अपने पसंदीदा परीक्षा केंद्र के मुताबिक आयोग के क्षेत्रीय कार्या लय के पते पर आवेदन भेजना अनिवार्य है। इसके लिए ऑनलाइन आवेदन की सुविधा नहीं है।

शैक्षिक योग्यता
आवेदक के पास मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय अथवा संस्थान से हिन्दी या अंग्रेजी में मास्टर डिग्री या समतुल्य डिग्री होनी चाहिए। इसके साथ स्नातक में अनिवार्य या वैकल्पिक विषय के रूप में हिन्दी या अंग्रेजी रही हो। इसके अलावा, मान्यता प्राप्त संस्थानों से अनुवाद में डिप्लोमा या सर्टिफिकेट कोर्स या सरकार के अधीनस्थ कार्यालयों में दो साल का अनुवाद का काम करने का अनुभव होना चाहिए।

उम्र 
अभ्यर्थी का जन्म दो अगस्त 1982 या उसके बाद हुआ हो यानी एक अगस्त 2012 की तारीख तक उसकी उम्र तीस वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए। उम्र सीमा में केंद्र सरकार के नियमानुसार छूट का प्रावधान है।

चयन प्रक्रिया 
चयन प्रक्रिया दो चरणों में है- लिखित परीक्षा और साक्षात्कार।
लिखित परीक्षा के तहत दो प्रश्नपत्र होंगे। दोनों को हल करने के लिए दो-दो घंटे निर्धारित किये गए हैं। प्रश्नपत्रों का स्तर स्नातक है।
पहले प्रश्नपत्र में सौ अंकों के सौ प्रश्न सामान्य हिन्दी के और सौ अंकों के इतने ही प्रश्न सामान्य अंग्रेजी के होंगे। इन प्रश्नों के माध्यम से भाषा, साहित्य, सही शब्द, मुहावरे और लोकोक्तियों पर अभ्यर्थी की जबरदस्त पकड़ का आकलन किया जाता है।
दूसरा प्रश्नपत्र भी दो सौ अंकों का है। इसमें हिन्दी से अंग्रेजी में एक और अंग्रेजी से हिन्दी में एक अनुवाद करना है। इसके अलावा, एक निबंध अंग्रेजी में और एक हिन्दी में लिखने के लिए कुछ टॉपिक दिये जाएंगे। इस प्रश्नपत्र के माध्यम से दोनों भाषाओं पर पकड़, अनुवाद करने की कुशलता और कौशल क्षमता को परखा जाएगा।

साक्षात्कार
लिखित परीक्षा में मिले अंकों के आधार पर साक्षात्कार के लिए शॉर्ट लिस्टेड किया जाएगा। साक्षात्कार सौ अंकों का है। इसमें आवेदक के व्यक्तित्व और उसके निजी प्रमाणपत्रों की जांच की जाएगी। केवल एससी/एसटी के छात्रों को साक्षात्कार में आने-जाने के लिए यात्रा भत्ता दिया जाएगा। अभ्यर्थियों द्वारा लिखित और साक्षात्कार में प्राप्त कुल अंकों के आधार पर नियुक्ति की संस्तुति की जाएगी।

महत्वपूर्ण
महज डिग्री या डिप्लोमा से ही अनुवाद के स्किल्स प्राप्त नहीं किये जा सकते। भाषा और साहित्य का अध्ययन पठन- पाठन की प्रक्रिया है। पढ़ने-लिखने, विचार करने और किसी भी सिद्धांत और उसके व्यावहारिक पक्ष को समझने का भरपूर मौका मिलता है। अनुवाद दो भाषाओं के बीच पुल का काम करता है। एक अनुवादक को इस कड़ी में स्रेत भाषा से लक्ष्य भाषा में जाने के लिए दूसरे के इतिहास और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का भी ज्ञान हासिल करना होता है। ऐसे में अनुवाद के लिए निरंतर अभ्यास और व्यापक ज्ञान की जरूरत होती है। अनुवाद साधना की तरह है। लेखक की अपनी शैली होती है। अनुवादक का कर्तव्य है कि वह अनुवाद में लेखक की शैली बरकरार रखे। अनुवाद लिखित विधा है, जिसे करने के लिए कई साधनों की जरूरत पड़ती है। मसलन शब्दकोश, संदर्भ ग्रंथ, विषय विशेषज्ञ या मार्गदर्शक की मदद से अनुवाद कार्य पूरा किया जाता है। अनुवाद में शब्दद र-शब्द, शाब्दिक अनुवाद, भावानु वाद, विस्तारानुवाद और सारानुवाद जैसी कई चीजें प्रचलित हैं। यह क्षेत्र के हिसाब से तय होता है कि किसको-क्या चाहिए।

सरकारी दफ्तरों में आमतौर पर शब्द-दर-शब्द अनुवाद करने की ही परंपरा है। अध्ययन सामग्री तैयार करने में विस्तार से अनुवाद करने की जरूरत पड़ती है। एक प्रोफेशनल अनुवादक बनने के लिए विश्वविद्यालयों में डिप्लोमा और डिग्री के कई कोर्सेज हैं। डिप्लोमा एक साल का होता है। इसमें दाखिला लेने के लिए किसी भाषा में स्नातक होना जरूरी है। साथ ही, दूसरी भाषा के ज्ञान और पढ़ाई की भी मांग की जाती है। मसलन, हिंदी-अंग्रेजी अनुवाद के डिप्लोमा कोर्स के लिए दोनों भाषाओं का ज्ञान जरूरी है। इनमें से छात्र ने किसी एक में स्नातक किया हो। साथ ही, दूसरी भाषा भी पढ़ी हो।

ऐसे करें पीओ की तैयारी


निजी बैंकों के आने और राष्ट्रीयकृत बैंकों की शाखाओं की जबरदस्त बढ़ोत्तरी के कारण बैंकों में प्रोबेशनरी ऑफीसर (पीओ) पद की मांग में इजाफा हुआ है.

बैंकिंग सेक्टर शुरू से ही युवाओं को लुभाता रहा है। बेहतर सैलरी, अच्छा इनवायरमेंट, साथ ही लोगों से हर दिन रू-ब-रू होने का मौका काफी कम नौ करियों में मिलता है। बैंकों में भी नौकरी के अलग-अलग स्टेज हैं लेकिन प्रोबेशनरी ऑफीसर की नौकरी का अलग ही क्रेज है। कभी वह भी दौर था जब लोगों का चयन सिविल सेवा में न हो पाने पर वे बैंकों में पीओ बनने को तवज्जो देते थे क्योंकि बैंक में अधिकारी बनने की प्रक्रिया पीओ से ही शुरू होती है। किसी भी बैंक के संचालन से लेकर मैनेजमेंट को-ऑर्डिनेशन का पूरा काम पीओ ही देखते हैं। यहां तक कि बैंक को किस प्रोजेक्ट या प्रोफाइल पर काम करना है, यह तय करने की जिम्मेदारी भी इन्हीं पर ही रहती है।

पिछले कुछ दशकों से भारत में निजी बैंकों के आने और राष्ट्रीयकृत बैंकों की शाखाओं की जबरदस्त बढ़ोतरी के कारण बैंक पीओ की मांग में इजाफा हुआ है। साथ ही, आने वाले समय में इन बैंकों का और भी विस्तार होना है। इसके अलावा, अनुमान है कि वर्ष 2013 में डेढ़ लाख से भी ज्यादा बैंक कर्मचारी सेवानिवृत्त हो रहे हैं। ऐसे में, इन दिनों बैंकिंग सेक्टर में नौकरी की बहार आई हुई है।

परीक्षा एवं चयन प्रक्रिया बैंक प्रोबेशनरी ऑफीसर परीक्षा एवं चयन प्रक्रिया दो चरणों में लिखित परीक्षा, साक्षात्कार और ग्रुप डिस्कशन के जरिए होती है। लिखित परीक्षा के तहत पहले चरण में ऑब्जेक्टिव टाइप के प्रश्न पूछे जाते हैं। इसमें रीजनिंग, क्वांटिटेटिव एप्टीट्यूड, जनरल अवेयरनेस और इंग्लिश से संबंधित प्रश्न होते हैं। उसके बाद डिस्क्रिप्टिव परीक्षा होती है। सामान्यत: यह परीक्षा इंस्टीटय़ूट ऑफ बैंकिंग पर्सनल सलेक्शन (आईबीपीएस) लेती है। इसमें उत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थियों को एक स्कोर दिया जाता है। विभिन्न बैंकों में स्कोर के मुताबिक इंटरव्यू या ग्रुप डिस्कशन के लिए बुलाया जाता है। इसमें सफल होने के बाद अभ्यर्थी का चयन पीओ पद के लिए किया जाता है।

पीओ के लिए तैयारी
  • किसी भी परीक्षा की तैयारी के लिए सिलेबस के साथ मार्गदर्शन की भी जरूरत होती है। मुकम्मल तैयारी के लिए पूरे सिलेबस पर एक नजर दौड़ानी चाहिए। 
  • मार्गदशर्न के लिए किसी अच्छी कोचिंग की सहायता ली जा सकती है। चाहें तो प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे सीनियर्स से भी मदद ले सकते हैं। 
  • डाटा एनालिसिस एंड इंटरप्रिटेशन, रीजनिंग, जनरल अवेयरनेस और इंग्लिश लैंग्वेज- सभी विषयों की तैयारी के लिए निरंतर अभ्यास की जरूरत होती है। इसके लिए सभी विषयों के लिए एक नियत समय निर्धारित करना होगा। उसके अनुरूप तैयारी करनी होगी। 
  • गणित की तैयारी के लिए कुछ बढ़िया पुस्तकें मिलती हैं। उनका गहन अध्ययन कर सकते हैं। मैथ्स के सवाल हल करते समय इस बात का ध्यान रखने की जरूरत है कि कम से कम समय में कैसे अधिक से अधिक प्रश्नों को हल निकाला जा सकता है। यह तभी संभव है जब मैथ्स के महत्वपूर्ण सूत्रों को याद रखेंगे। गणित के सवाल हल करते समय इस बात का ध्यान रखें कि यदि आपने सही कर लिया तो पूरे के पूरे अंक मिलेंगे। 
  • रीजनिंग और न्यूमेरिकल के लिए बाजार में कई किताबें उपलब्ध है। प्रतियोगी पत्रिकाओं में भी प्रैक्टिस सेट होते हैं। उसे निर्धारित समय में हल करने की कोशिश करते रहिये। 
  • इंग्लिश ग्रामर के लिए रेन एंड मार्टिन जैसी पुस्तकों का सहारा लिया जा सकता है। इसके साथ ही कोई राष्ट्रीय अंग्रेजी समाचारपत्र नियमित पढ़ने से शब्द-भंडार को बढ़ाया जा सकता है। 
  • करेंट अफेयर्स के लिए भी समाचारपत्र का पढ़ना जरूरी है। 
  • ऑब्जेक्टिव परीक्षा में एक या आधे अंक का भी खास महत्व होता है। हो सकता है कि आधा अंक कम होने की वजह से आप लिखित परीक्षा में सफल न हो सकें। इस तरह की समस्या से बचने का सरल उपाय यही है कि आप जो जानते हैं, उन्हें ही हल करें। इस रणनीति से लक्ष्य तक पहुंचना आसान रहेगा। 
  • कम समय में अधिक से अधिक प्रश्नों को सही-सही हल करने के लिए ज्यादा से ज्यादा प्रैक्टिस सेट बनाने की जरूरत है। इसके लिए निरंतर अभ्यास के अलावा कोई विकल्प नहीं है। 
  • पीओ की परीक्षा को बिल्कुल टफ न मानें। सिलेबस के अनुसार, आप तैयारी आप कर रहे हैं। अपने आपसे हमेशा कहें कि जो कुछ भी पूछा जाएगा, वह सिलेबस से ही तो पूछा जाएगा। 
  • चूंकि बैंक की सभी परीक्षाओं में निगेटिव मार्किग का प्रावधान है, इसलिए उत्तर पुस्तिका में गोल खाना भरते समय सावधानी बरतें। जब तक आप पूरी तरह संतुष्ट न हो जाएं (कि आपका उत्तर सही है), तब तक उन खानों को न भरें। जिस उत्तर के प्रति आप पूरी तरह आस्त हों (कि यही सही उत्तर है), उसी को भरें क्योंकि यदि आप गलत उत्तर भरेंगे तो आपको सही के लिए मिला अंक भी काट लेंगे। 
  • अकसर विद्यार्थियों को लगता है कि कम खाएंगे तो नींद कम आएगी। नींद कम आएगी तो ज्यादा पढ़ पाएंगे। ऐसा सोचना गलत है। विद्यार्थी को अपनी डाइट कम नहीं करनी चाहिए। हां, बाजार का खाना बंद कर घर का बना खाना खायें। नींद पूरी लें जिससे जब भी जागें, आप तरोताजा महसूस करें। इससे पढ़ाई अच्छी होगी।
  • पढ़ने के साथ-साथ लिखने का भी निरंतर अभ्यास करते रहें। 
  • घर में खुद के लिए परीक्षा जैसा माहौल बनाकर अपने को अभ्यस्त कर सकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि स्टडी के दौरान न तो बार-बार सीट से उठें और न ही उस दौरान किसी से फोन पर बात करें। 
 

Tuesday, September 4

अनाज भंडारण से जुड़ने के मौके

अनाज भंडारण से जुड़ने के मौके

भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की स्थापना अनाज भंडारण के लिए की गई है। सार्वजनिक वितरण पण्राली के लिए खाद्यान्नों तथा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भंडारण और किसानों के लिए प्रभावी समर्थन मूल्य की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी इसी पर है। इसके सामान्य, लेखा, तकनीकी और डिपो डिपार्टमेंट के लिए जुड़ना मायने रखता है। सहायक ग्रेड-थ्री के लिए 6,545 पदों की बहाली के लिए खाद्य निगम संयुक्त परीक्षा आयोजित कर रहा है

शैक्षिक योग्यता 
सामान्य सहायक और डिपो सहायक के लिए स्नातक होना जरूरी है। लेखा सहायक के लिए आवेदन करने वाले अभ्यर्थी के पास बी.कॉम की डिग्री होनी चाहिए, जबकि तकनीकी सहायक पद के लिए आवे दन करने वाले अभ्यर्थी को एग्रीकल्चर, बॉटनी, जूलोजी, बॉयोटेक्नोलॉजी, बॉयोकेमेस्ट्री, माइक्रो-बॉयोलॉजी, फूड साइंस विषयों से बीएससी उत्तीर्ण होना चाहिए। फूड साइंस, फूड साइंस एंड टेक्नोलॉजी, एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग, बॉयोटेक्नोलॉजी विषय से बीटेक या बीई करने वाले विद्यार्थी भी तकनीकी सहायक पद के लिए आवेदन कर सकते हैं।

चयन प्रक्रिया
सहायक ग्रेड-थ्री की भर्ती प्रक्रिया तीन चरणों में होगी। पहले चरण में पेपर एक की लिखित परीक्षा है। पेपर एक के तहत ऑब्जेक्टिव टाइप के 200 सवाल पूछे जाएंगे। दूसरे चरण में शॉर्ट लिस्टेड अभ्यर्थी ही परीक्षा देंगे। इसमें भी प्रश्न ऑब्जेक्टिव टाइप के ही होंगे। इसमें क्वांटिटेटिव (गणित) और इंग्लिश लैग्वेज और कॉम्प्रेहेन्शन से सवाल पूछे जाएंगे। तकनीकी सहायक के अभ्यर्थी को पेपर दो की जगह पेपर तीन की परीक्षा देनी होगी। इसमें भी ऑब्जेक्टिव प्रश्न होंगे। एक-एक अंक के दो सौ प्रश्न बॉयोलॉजिकल साइंस से जुड़े प्रश्न होंगे। तीसरे चरण के तहत सहायक ग्रेड-थ्री के सभी पदों के लिए आवेदन करने वाले अभ्यर्थियों को कम्प्यूटर प्रोफिशिएंसी टेस्ट (सीपीटी) की परीक्षा देनी होगी। यह क्वालिफाइंग नेचर की परीक्षा है। फाइनल सलेक्शन फाइनल सलेक्शन पेपर एक और पेपर दो के प्राप्तांकों को जोड़कर होगा। केवल तकनीकी सहायक के लिए पेपर एक और पेपर तीन के प्राप्तांकों को जोड़कर अंतिम चयन किया जाएगा। सिलेबस पेपर वन और पेपर दो का सिलेबस हायर सेकेंडरी लेबल का है जबकि पेपर थ्री का लेवल ग्रेजुएट स्तर का होगा।

पहले पेपर में अधिक अंक लाने के लिए जनरल इंटेलिजेंस के अंतर्गत रिलेशनशिप कॉन्सेप्ट, समानता और अंतर, समस्या का समाधान, मूल्यांकन, निर्णय क्षमता, चित्रों का वर्गीकरण जैसे वर्बल, कोडिंग और डिकोडिंग, वाक्यनि ष्कर्ष इत्यादि पर अपनी पकड़ मजबूत करनी होगी। अंग्रेजी मजबूत करने के लिए इंग्लिश वोकेबलरी, ग्रामर, सेंटेंस स्ट्रक्चर, सिनोनिम्स, एंटोनिम्स और अंग्रेजी में राइटिंग स्किल पर ध्यान देना होगा। क्वांटिटेटिव एप्टीटय़ूड से संबंधित प्रश्नों का उत्तर आप तभी दे पाएंगे जब अर्थमैटिक,
अल्जेब्रा, ज्योमैट्री, मेनसुरेशन, ट्रिग्नोमेट्री, स्टेटिस्टिकल चार्ट्स आदि पर आपकी पकड़ मजबूत रहेगी। जनरल अवेयरनेस की तैयारी के लिए आपको करेंट इंवेट के साथ भारत तथा इसके पड़ोसी देशों के खेल, इतिहास, संस्कृति, भूगोल, राजनीति, साइंटिफिक रिसर्च, भारतीय संविधान इत्यादि से संबंधित ज्ञान होना चाहिए। दूसरे पेपर के लिए आपको दसवीं और बारहवीं स्तर के गणितीय सवालों और अंग्रेजी पर पकड़ मजबूत करना होगा।

कैसे करें तैयारी
  • ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्नों के लिए टाइम मैनेजमेंट जरूरी है। इसलिए इसको तैयार करते वक्त शुरू से समय का ध्यान रखें। जितनी ज्यादा आप प्रैक्टिस करेंगे, परीक्षा के दौरान आपको उतना ही फायदा होगा। 
  • परीक्षा में सबसे पहले उन्हीं प्रश्नों को हल करें, जिनका उत्तर आप अच्छी तरह से जानते हैं। यदि आप किसी प्रश्न में उलझे तो काफी समय बर्बाद होगा। जिनके जवाब जानते होंगे, उनके भी जवाब नहीं दे पाएंगे। 
  • जनरल इंटेलिजेंस एवं न्यूमेरिकल एप्टीट्यूड, अंग्रेजी और जनरल अवेयरनेस की अपेक्षा अधिक समय लेते हैं। इस कारण परीक्षा के दौरान कोशिश होनी चाहिए कि अंग्रेजी और जनरल अवेयरनेस को कम समय दें।
  • करेंट अफेयर्स की तैयारी हमेशा करें। यदि सिर्फ एक घंटे इसको देंगे तो रोज नई घटनाओं या खेलों से अवगत होते रहेंगे और परीक्षा तक तैयारी हो जाएगी। 
  • स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं की मदद से राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, आर्थिक, खेल गतिविधियों एवं पुरस्कार, चर्चित व्यक्ति, आदि का नियमित अध्ययन करें। 
  • एनसीईआरटी की पुस्तकों से भारतीय इतिहास, संस्कृति, राज्य व्यवस्था, भूगोल, अर्थव्यवस्था आदि को पढ़ें और अपना बेसिक मजबूत करें। 
  • तर्कशक्ति पर आधारित अभ्यास प्रश्नपत्रों को ज्यादा से ज्यादा हल करने की प्रैक्टिस करें। प्रश्नों को तेज गति से हल करने की क्षमता में वृद्धि होगी। 
  • मैथ्स की तैयारी के लिए हायर सेकेंडरी स्तर की किताबों की सहायता से विभिन्न टाइप के सवालों को समझें। उन्हें तेजी से और सही-सही हल करने की तकनीक विकसित करें।