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Friday, December 2

नोटबंदी आपातकाल है तो 1975-77 में क्या था माननीयों

नोटबंदी की आपातकाल से तुलना ठीक नहीं

प्रधानमंत्री ने 8 नवंबर, 2016 को विमुद्रीकरण की घोषणा करके काला धन, भ्रष्टाचार पर कड़ा प्रहार किया है। इससे देश की जनता को नकदी की किल्लत से रोजाना दो-चार होना पड़ रहा है। गांव, गरीब, किसान, दिहाड़ी मजदूर और छोटे-छोटे कारोबारियों के नाम पर विमुद्रीकरण को पूरा विपक्ष गलत बता रहा है। इसके लिए रोज नए-नए कुतर्क लाए जा रहे हैं।
कालाधन और भ्रष्टाचार ही नहीं नशीला पदार्थ, अवैध हथियार और जाली नोटों के कालाबाजार में डूबे लोगों पर विमुद्रीकरण कड़ा प्रहार है। इसे देश की जनता समझ रही है। किल्लत को झेल रहे लोग प्रधानमंत्री के फैसले के साथ हैं। किसी को शक सुबहा है तो राजनीतिक पार्टियों और उसके नेताओं को। वे नोट बंदी के फैसले पर तत्काल रोक लगाने के लिए तरह-तरह के कुतर्क दे रहे हैं। धुरविरोधी पार्टियां और उसके नेता नोट बंदी के बाद उत्पन्न स्थिति की तुलना आपातकाल से कर रहे हैं।
हद हो गई… इस बात को कांग्रेस और वामपंथी भी दोहरा रहे हैं। कांग्रेस ने देश को आपातकाल से परिचय कराया तो वामपंथी ने आपातकाल के इन 21 महीने को इंज्वाय किया।
कांग्रेस के वर्तमान नेतृत्व में ‘पप्पू’ का बोलवाला है। उन्हें याद दिलाना पड़ेगा कि आपातकाल का दंश एक व्यक्ति के स्वार्थ की वजह से देशवासियों को 21 महीने तक झेलना पड़ा है। आज से 41 साल पहले देश में आपातकाल लगी थी 25 जून, 1975 को। क्यों लगी, क्योंकि इंदिरा गांधी के रायबरेली संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीतने को इलाहाबाद हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट ने न केवल अवैध करार दिया बल्कि छह साल के लिए चुनाव लड़ने पर रोक भी लगा दिया। इंदिरा गांधी ने पद से इस्तीफा देने के बजाय देश में अध्यादेश के जरिए आपातकाल लगा दिया।
इंदिरा ने चुन-चुनकर विरोध करने वाले नेताओं को मीसा एक्ट 1971 के तहत जेल में भेजा। इस एक्ट के तहत गिरफ्तार लोगों को न अपील का अधिकार था, न किसी तरह की दलील को कोई सुनने को तैयार था। गिरफ्तार लोगों को वकील करने का अधिकार नहीं था। और पुलिस प्रशासन चाहे तो अनिश्चितकालीन समय तक जेल में रखे। जेल का भय दिखा-दिखाकर देशभर में भ्रष्टाचार की गंगा बहाई गई। जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा द्वारा घोषित आपातकाल को भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि कहा था। वर्तमान में देश में ना तो इस तरह का कोई कानून लागू है और न ही विमुद्रीकरण के पीछे नरेंद्र मोदी का कोई व्यक्तिगत स्वार्थ दिखता है।
आपातकाल की आड़ में गांव-गांव, शहर-शहर शिविर लगाकर जबरन नसबंदी अभियान चलाया। जबकि नरेंद्र मोदी ने गांव-गांव, शहर-शहर शिविर लगाकर बैंक परिचालन से हर व्यक्ति को जोड़ने का काम किया है। उसी गांव, गरीब, किसान, दिहाड़ी मजदूर और छोटे कारोबारियों को बैंक कर्मचारी घर-घर जाकर बैंकों से लेन-देन सीखा रहे हैं।
आपातकाल वह दौर था जब गिरफ्तारी से बचने के लिए आज के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी तक को सिख वेश धारण करना पड़ा था। वर्तमान में तो किसी नेता को सरकार के डर से हुलिया बदलते नहीं देखा। विरोधी नेता तो न जाने क्या-क्या लानत-मनालत प्रधानमंत्री को भेज रहे हैं। इसे आपातकाल नहीं कहा जा सकता है।
आपातकाल में पुलिस एक तरह से खलनायक की भूमिका निभा रही थी। जो जहां, जिस हालत में मिला उसे जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया गया। चप्पे-चप्पे पर पुलिस के सीआईडी विभाग वालों की नजर थी। देश के नामीगिरामी राजनेताओं को रातोंरात गिरफ्तार कर लिया गया, आम व्यक्ति की तो हैसियत ही क्या थी। पुलिस की दबिश के डर से घर के घर खाली हो गए और लगभग प्रत्येक परिवार के पुरुष सदस्यों को भूमिगत होना पड़ा। वे लोग हर दिन अपना ठिकाना बदलने को विवश थे। मीडिया पर पाबंदी लगाकर सरकार ने खूब मनमानी की। शरद यादव, लालू यादव, मुलायम सिंह यादव कैसे भूल गए।
आज के समय में राजनीतिक दलों के ज्यादातर बुजुर्ग और वरिष्ठ नेता आपातकाल के दौर के हैं। वे कैसे भूल गए आपातकाल की भयावहता को।

Thursday, December 1

आनंद शर्मा जी आपके राज में अच्छा क्या था!

कालाधन, भ्रष्टाचार, अपराध और जाली नोट पर प्रहार करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नोटबंदी का फैसला लिया। इससे देशभर में उत्साह का माहौल है। हालांकि देश की जनता को थोड़ी दिक्कत हो रही है। फिर भी कठिनाइयों के बीच लोग एक-दूसरे की सहायता से सामंजस्य बना रहे हैं। इसके बीच राजनीतिक पार्टियां इस मुद्दे को लेकर संसद की शीतकालीन सत्र को चलने नहीं दे रहे हैं। 
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने राज्यसभा में बयान दिया कि विमुद्रीकरण से पूरे विश्व में भारत के प्रति एक गलत संदेश गया कि हिन्दुस्तान की इकोनॉमी कालेधन पर टिकी हुई है। कालाबाजारी और अपराध करने वाले लोग हिन्दुस्तान की इकोनॉमी चलाते हैं। अब आनंद शर्मा को कैसे समझाया जाए कि दुनिया राजनेताओं के बयान से नहीं विश्व की विभिन्न एजेंसियों की रैकिंग और अपने अनुभव के आधार पर देश की अर्थव्यवस्था को आंकती है। 
आनंद शर्मा शायद भूल गए कि अभी हाल में ही वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने एक रिपोर्ट जारी की है। उसके मुताबिक वैश्विक प्रतिस्पर्धा सूचकांक में भारत की रैंकिंग में जबरदस्त इजाफा हुआ है। ग्रेजी अखबार इकोनॉमिक टाइम्स ने इस रिपोर्ट को छापा है। पूरी रिपोर्ट में कुल 139 देश हैं जिसमें भारत 16 पायदान चढ़कर 39वें स्थान पर पहुंच गया है।
वैश्विक लैंगिक असमानता सूचकांक में भारत की रैंकिंग में 21 पायदान सुधार होकर 87वें स्थान पर पहुंच गया है। इसके साथ ही महिला और पुरूष के बीच असमानता में दो फीसदी की कमी कमी आई है। बिजली कनेक्शन मुहैया कराने वाले देशों की रैंकिंग में 70वें से बढ़कर 26वें स्थान पर है।
आनंद शर्मा जी आप तो विदेश राज्यमंत्री रह चुके हैं। इसके बाद भी संसद में इस तरह का बयान देना आपको शोभा नहीं देता है। कभी-कभी लगता है इसमें अकेले दोष आपका नहीं है। दरअसल कुछ लोहा का दोष होता है तो कुछ लोहार का भी होता है। आप तो उस नेतृत्व में काम कर रहे हैं जो यूपी में आलू की फैक्टरी लगाने की बात करते हैं। 

Wednesday, November 9

काले धन पर मोदी का मास्टर स्ट्रोक

काले धन पर मोदी का मास्टर स्ट्रोक 
500 और 1000 के सभी पुराने नोट को चलन से बाहर करने का प्रधानमंत्री ने ऐतिहासिक फैसला लिय़ा। पीएम का मास्टर स्ट्रोक वाले इस फैसले ने एक साथ काले धन रखने वालोंभ्रष्ट्र आचरण करने वालोंरिश्वत लेने और देने वालोंजाली नोट का संचालन करने वालों को पंगु बना दिया। इसके अलावा कैश में कारोबार करने वाले बड़े व्यापारी वर्ग जिनके अघोषित आय हैं, उन्हें अफसोस करने को छोड़ दिया है। चुनाव में जिस तरह से पैसे का काला खेल चलता रहा है। अब उसमें सुधार आएगा और लोकतंत्र मजबूत होगा।

अकेले दिल्ली के छोटे से क्षेत्र चांदनी चौक में अलग-अलग चीजों को लेकर अलग बाजार है जहां अरबों का कारोबार नकदी में होता है। इसका शायद ही कहीं कोई रिकार्ड नहीं होता है। चाहे सोने-चांदी का बाजार कूचा महाजनी हो या बिजली और दवा का बाजार भागीरथ पैलेससूखे मेवे और मसाले का बाजार खारी वाबली हो या घड़ी और साईकिल का बाजार लाजपत राय मार्केटकार्डों और कागजों का बाजार चावड़ी बाजार या नई सड़ककिताबों का बाजार दरियागंज हो या सदर बाजार। इसके अलावा भी करोलबागसरोजनी नगरतिलक नगरनेहरू प्लेसलक्ष्मी नगरशहादरा का तैलीवाड़ागांधी नगर आदि। तमाम बाजारों में नकदी में ही कारोबार होता है। जिसका कोई रिकार्ड नहीं होता है।

दिल्ली के अलावा लुधियाना, सूरत हो, गया हो, पटना, बैंगलुरू जैसे तमाम शहरों में भी नकदी का कारोबार होता है। सब्जी मंडियों से लेकर अनाज मंडियों तक में कारोबार ज्यादातर नकदी में होता है। गली मोहल्ले में दुकानों से लेकर फेरी लगाने वाले तमाम छोटे-मंझोले दुकानदारों का कारोबार भी नकदी होता रहा है। जो अब रिकार्डेड माध्यमों से कारोबार करेंगे। सभी लोग आनलाइन कारोबार करेंगे। लेन-देन बैंकों के माध्यम से होगा। इसका सीधा लाभ सरकार को कर वृद्धि के रूप में होगी जो लौटकर जनता के पास ही आना है। आमदनी बढ़ने पर सरकार और एकाउंटेबल होकर देश की जनता के लिए विभिन्न योजनाओं के माध्यम से कल्याणकारी काम कर सकेगी। किसानों को उपज का वाजिब रकम मिलेगा। किचन तक सब्जी, फल, दूध और अनाज सही दाम में पहुंचेगा।

कुछ लोगों को लगता है कि अचानक लिए इस फैसले से आम लोगों को दिक्क्त होगी। निश्चित रूप से आम लोगों को एक-दो दिन की दिक्क्त होगी। उन्हें बैंक खुलने और एटीएम के संचालन होने तक का इंतजार करना पड़ सकता है। लेकिन हाय तौबा जैसी स्थिति नहीं होने वाली है। प्रधानमंत्री मोदी के इस फैसले पर जो लोग हाय तौबा मचा रहे हैं। ऐसे लोगों में ज्यादातर के पास अघोषित रकम होगी। वो जनसामान्य के बहाने ऐसे लोग अपने लिए सरकार से मोहलत मांगने की कोशिश में हैं ताकि अपने काले धन को ठिकाने लगा सकें।

अंत में, एक बात जो लोग घर में, अपने जीवन में, आर्थिक फैसले में महिलाओं को शामिल करते रहे हैं। उन्हें आय की रकम नियमित रूप से अपने महिला परिजन बोले तो पत्नी, बहन और मां को देते रहे हैं। 500 और 1000 के नोट के चलन में बाहर करने के दौर में उनका सहयोग बहुत ही सार्थक रहने वाला है। एक तो अप्रत्याशित रूप से, आपको पता लगता है कि अरे घर में इतना पैसा मुझसे छिपा कर, बचाकर रखा गया, आड़े वक्त के लिए। हो सकता है उन महिलाओं के पास ज्यादातर रकम छोटे नोटों का हो। 

Thursday, June 26

व्यक्तित्व नहीं समग्र विकास को समझने की जरूरत है मोदी मंत्र


पुस्तक कोई भी हो, उससे अगर बड़े स्तर पर लोगों को जानकारी मिले, वैसी जानकारी जिससे कि लोगों की सोच में साकारात्मक बदलाव आए। फिर लेखक का काम सार्थक हो जाता है। एसबी क्रिएटिव मीडिया द्वारा प्रकाशित आैर वरिष्ठ टीवी पत्रकार हरीश चंद्र बरनवाल द्वारा लिखित पुस्तक मोदी मंत्र इसी श्रेणी की पुस्तक है। यह पुस्तक नरेंद्र मोदी के उन पक्षों को उजागर करता है जो नरेंद्र मोदी को नमो बनाता है।

16वें लोकसभा के सिरमौर नरेंद्र मोदी हैं। इससे असहमत शायद ही कोई हो। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की ओर से तीन बार से लगातार गुजरात सरकार का नेतृत्व करने वाले भाजपा नेता नरेंद्र मोदी अब देश के प्रधानमंत्री हैं। वह एक ऐसा व्यक्ति जिसे सुप्रीम कोर्ट तक में घसीटा गया लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें गोधरा कांड के लिए दोषी घोषित नहीं किया गया। यह आैर बात है कि उनकेे विरोधी आज भी उसी गोधराकांड पर अटके हुए हैं जबकि वह मीलों आगे बढ़ चुके हैं। ऐसे व्यक्ति आैर उसके व्यक्ति, उसकी सोच आैर उसके कार्यशैली को समझने की बड़ी जरूरत है। इस जरूरत को पूरा करने के लिए 'मोदी मंत्र" पुस्तक काफी हद तक सहायक हो सकता है। अपने भाषणों आैर कार्यशैली से मोदी ने जो विकास का मॉडल प्रस्तुत किया। उसे एक पत्रकार ने अपने लेखन के माध्यम से न केवल विश्लेषण किया बल्कि उसे दुनिया के सामने रखने का प्रयास किया।

आलोच्य पुस्तक के माध्यम से पाठकों को एक ऐसे नेता का परिचय मिलेगा जो न केवल तकनीक की बात करता है बल्कि मिट्टी से जुड़कर आसमान की खाक छानने की बात भी करता है। अगर गुजरात वाइब्रौंट के नाम पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन होता है तो किसानों की जिंदगी बेहतर करने के लिए सब्सिडी के बजाए बेहतर सुविधा की बात होती है। मिट्टी के लिए भी मेडिकल रिपोर्ट कार्ड बनता है। शिक्षा की बात हो, तो रोजगारपरक विशेष संस्थान की बात होती है चाहे सैनिक व  सिपाही के लिए रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय हो या साइबर क्राइम पर नियंत्रण करने के लिए कौशल तैयार करने के लिए फारेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी की स्थापना। लोग भले मोदी को हिदुत्व नेता के रूप में देखता हो लेकिन मोदी किसी एक समुदाय की नहीं राष्ट्रीय एकता की बात करते हैं। उनके राजनीतिक आैर सामाजिक जीवन का एक ही मंत्र है, बड़े कारखाने हो लेकिन कुटीर आैर लघु उद्योग भी फले फूले। वकायदा इसके लिए भी वह सुविधा मुहैया कराते हैं आैर अवसर निकालते हैं। तभी वह 'कुछ दिन तो गुजारो गुजरात में" का नारा देकर कभी गिर अभ्यारण्य की बात करते हैं तो कभी कच्छ के रण की बात करते हैं तो कभी सोमनाथ आैर लोथल की बात करते हैं।

आलोच्य पुस्तक के माध्यम से लेखक ने मोदी को देश की जनता के सामने उन अनजाने पहलूओं को सामने लाने का प्रयास किया है जिसे वर्तमान मीडिया काटछांट कर या यूं कहें कि उसे प्रकाशित आैर प्रसारित करने से बचती रही है। देश का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही क्यों? इसके पीछे भी लेखक ने एक सौ एक तर्क दिए। कुछ तर्कों पर पाठक असहमत भी हो सकते हैं लेकिन तर्कों में अंतरविरोध नहीं है। लेखनी का विषय तत्कालिक होने पर भी दूरगामी परिणाम होगा।

अंत में दीपक राजा की एक कविता

हां मैं हूं वही

मैैं पागल हूं
लोगों ने घोषित किया मुझे

जब हंसता हूं, ठहाके लगा
खिल उठता है बगिया
रोता हूं अंधियारे भी में भी
तो धरती हो जाती है नम

शंखनाद हो जाता है जब
चिल्लाता हूं वेग से
फड़क उठती है भुजाएं
दिखता है जहां भी गम

हर वाजी पाने को
रेस लगाता हूं जीवन की
कुछ देर ठहरकर
छांव तले पलकों को दिया विराम

गर सपना देखना-दिखाना
पाने की आस जगाना
गलत को गलत, सही को सही बताने में
कन्नी काट रहे के कानों में
भोंपू बजाना गर पागलपन...
तो फिर इनकार कैसा
हां, मैं हूं वही
जो लोगों ने पहले से कर दिया है घोषित।

दीपक राजा

† आप पागल के स्थान पर सांप्रदायिक शब्द रखकर पढ़ सकते हैं।