दिल्ली सदियों से देश की राजधानी रही है। इसे बार-बार बाह्य आक्रमणकारियों ने तबाह किया। उसके बाद भी फिर देशवासियों ने इसे आबाद किया और संवारा। इसमें वैश्य समुदाय का बहुत ही अहम भूमिका रही है। वैश्य समुदाय के लोग सदैव रचनात्मक कार्यों और व्यवस्था को सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते रहे हैं- अनादि काल से लेकर आज तक। कालांतर में हम विपरित धाराओं में रहकर अपनी रचनात्मक कार्यों को करना भूलने लगे। अदम्य साहस और संकट को चुनौती के रूप में स्वीकार करने और हर हाल में काम को पूरा करने की क्षमता क्षीण होने लगी। हमें एक बार फिर से अपने पौराणिक इतिहास और ऐतिहासिक भूमिकाओं से सीख लेने की जरूरत है।
हम सबका सौभाग्य है कि हम सब राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रह रहे हैं। चाहे शिक्षा हो, स्वास्थ्य हो, सामाजिक हो, राजनीनिक हो या फिर आर्थिक, हर मामले में पूरा देश दिल्ली की ओर देखता है। देश को नेतृत्व करने का काम दिल्ली करता है। वर्तमान में अपने समाज की परिस्थिति भी ऐसी बनी है कि हम चाहें तो देशभर में रहने वाले सम्पूर्ण बरनवाल वैश्य समाज का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं। हम सब भलीभांति जानते हैं कि अखिल भारतीय बरनवाल वैश्य सभा का क्रियाकलाप विगत कुछ वर्षों से कानूनी पचड़ों में फंसा है। इस कारण अखिल भारतीय स्तर पर एक खालीपन आ गया है। इस खालीपन को हम सब मिलकर चाहें तो भर सकते हैं। लेकिन इस हालत में ...।
बरनवाल वैश्य सभा, दिल्ली अब तक दिल्ली/एनसीआर क्षेत्र में रहने वाले समाज का प्रतिनिधित्व कर रहा है। यहां देश के कोने-कोने से आए बरनवाल बंधु रहते हैं। सभा के सदस्य चाहें तो देश की राजधानी से पूरे देश में रहने वाले समाज का प्रतिनिधित्व कर लेंगे। बस, हमें अपनी कार्यशैली में थोड़ा सुधार करना होगा। हमें संगठन के रूप में सशक्त होना होगा। आर्थिक रूप से सबल होना पड़ेगा। एक-दूसरे को मजबूत करना होगा और सबसे बड़ी बात सबको सहयोगी की भूमिका अदा करनी होगी। हम आपस में प्रतियोगिता तो करें लेकिन समाज के विकास के लिए संस्था को अधिक समय देने के लिए, अधिक दान देने में, बेहतर संगठक बनन में न कि एक-दूसरे की कमी निकालने में ऊर्जा व्यय करें।
बरनवाल वैश्य सभा का गठन 1986 में हुआ। इसका पंजीकरण सातवें वर्ष में हुआ। सभा के दसवें स्थापना वर्ष में एक अहिबरण नगर बसाने की योजना बनी। उसके लिए भूखंड भी खरीदा गया लेकिन देखरेख के अभाव और संगठन में कुछ स्वार्थी तत्वों के कारण योजना फलीभूत नहीं हो पाई। बरनवाल वैश्य सभा के स्थापना का यह तीसवां वर्ष आने वाला है। क्या हम एक बार फिर इस बारे में विचार कर सकते हैं क्या? स्थापना के तीन दशक बीतने के बाद हमारी संस्था को अब अपना कार्यालय मिलने वाला है। कार्यालय के संचालन पर होने वाले खर्च की व्यवस्था के लिए एक दुकान ली गई जिसे किराये पर देकर वहां से आय अर्जित किया जाएगा। यह एक उपलब्धि तो है लेकिन संतोषजनक नहीं है।
समाज के बेरोजगार व आर्थिक रूप से कमजोर युवाओं को मदद देने के लिए, हम सबको मिलकर एक सामूहिक फंड तैयार करना चाहिए। उसके लिए 'बरनवाल विकास को-ओपरेटिव सोसायटी" की स्थापना की जा सकती है। बरनवाल समाज का कोई भी व्यक्ति जो वयस्क हैं, एक सौ रुपए देकर अपना पंजीयन करा सकते हैं। इसके साथ ही सोसायटी के प्रत्येक सदस्य को सौ-सौ रुपए के 25 शेयर खरीदना अनिवार्य किया जाए। इसके माध्यम से जो भी फंड जमा होगा। उसका उपयोग शेयरधारक से लेकर समाज के लिए किया जा सके। यह एक विचार है। इस पर आप सब सुधी जन अपनी-अपनी राय संगठन के सामने रखें। अहिबरन जयंती व्यवस्थित बनाने के लिए भी अलग से समिति बना सकते हैं।
अंत में आप सबसे से आग्रह कि दिल्ली/एनसीआर में रहने वाले सभी बरनवाल बंधु बरनवाल वैश्य सभा के सदस्य बनिए। सदस्य बनने के लिए पहली बार ग्यारह सौ रुपए और प्रत्येक वर्ष मात्र एक सौ रुपए देना है। सभा के सदस्यों को यह पत्रिका भविष्य में भी मुफ्त में मिलेगी। दिल्ली/एनसीआर से बाहर रहने वाले बरनवाल बंधु ग्यारह सौ रुपए देकर बरन पुंज के आजीवन पाठक बन सकते हैं। उन्हें भविष्य में डाक के माध्यम से पत्रिका भेजी जाएगी। इसी के साथ महाराजा अहिबरण जयंती की शुभकामनाएं।
संपादक
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