करीब दो माह पहले जब नेल्सन मंडेला अस्पताल में मौत से जूझ रहे थे। तब इस लेख को मैंने लिखा। आज जबकि विश्व के दूसरे महात्मा गांधी इस दुनिया में नहीं हैं। तब इस लेख को प्रकाशित करने से मन को रोक नहीं पाया।
नेल्सन मंडेला को स्कूली जीवन से ही रंगभेद की विषबेलि का पता चल गया था। अश्वेतों के लिए विशेष रूप से बनाए गए कॉलेज हेल्डटाउन में भी स्नातक करते समय उन्हें इसका खमियाजा भुगतना पड़ा। उनके आैर उनके जैसे लोगों के साथ भेद किया जा रहा था क्योंकि प्रकृति ने उनको दूसरों से अलग रंग दिया था। वह सम्मान चाहते थे और उन्हें लगातार अपमानित किया जा रहा था। देश में अश्वेत होना अपराध की तरह था। वाल्टर सिसुलू और वाल्टर एल्बरटाइन से जोहांसवर्ग में मुलाकात के बाद नेल्सन मंडेला के विचारों को धार मिली। यहीं से उनके जीवन में बदलाव आया आैर विश्व को एक सशक्त अश्वेत नेता मिला। उन्हें 1950 के दशक आैर 1960 के शुरुआत में अक्सर पुलिस थाने की कोठरी, न्यायालय के कठघरे में पाया जाने लगा आैर अंतत: उन्हें जेल में कैद कर दिया गया।
नेल्सन के राजनीतिक क्रियाकलाप ने उन्हें रंगभेदी शासन का निशाना बना दिया। उनकी बढ़ती लोकप्रियता से परेशान सरकार ने उन पर तमाम प्रतिबंध लगाए आैर उन्हें जोहान्सबर्ग के बाहर भेज दिया। पाबंदी के बाद भी नेल्सन क्लिप टाउन पहुंचे आैर लोगों की भीड़ की आड़ में उन तमाम संगठनों के साथ काम किया, जो अ·ोतों की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे थे। अश्वेतों के अधिकारों के लिए चलाए जा रहे आंदोलन में उनकी सक्रियता बढ़ती ही चली गई। नेल्सन रंगबेद खात्मा के सर्वनाम बन गए। सरकार ने आनन-फानन में नेल्सन समेत एक सौ छप्पन लोगों को 1956 में गिरफ्तार किया आैर उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया। 1961 में उन्हें 29 साथियों को बरी कर दिया गया।
रंगभेदी सरकार की दमनकारी नीतियों के विरोध में शार्पविले शहर में प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने प्रदशर््ानकारियों पर गोलियों की बौछार कर दी। 180 लोग मारे गए और 69 लोग घायल हुए। यह दक्षिण अफ्रीका के स्वतंत्रता आंदोलन में 'जालियांवाला बाग" सरीखा था। उसके बाद नेल्सन मंडेला ने धारदार आंदोलन की ओर रुख किया। नेल्सन ने अपने नेतृत्व में 'स्पीयर आफ दी नेशन" के नाम से एक जुझारू दल बनाया।
रंगभेद की वकालत पर अड़ी सरकार से बचने के लिए नेल्सन मंडेला चोरीछिपे देश से बाहर चले गए। उन्होंने उस समय के तमाम तमाम मंचों से अपनी बात रखी। स्वदेश लौटते ही सरकार ने पांच अगस्त, 1962 को उन्हें गिफ्तार कर लिया। अवैध तरीके से देश से बाहर जाने आैर हड़ताल को भड़काने का दोषी मानते हुए उन्हें सात नवम्बर 1962 को पांच साल की सजा सुनाई गई। उधर, रिवोनिया में 1963 में हिंसात्मक आंदोलन का दोषी मानते हुए नेल्सन सहित पांच लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। जनता से दूर रखने के लिए उन्हें 13 जून, 1964 को रोबन द्वीप पर भेज दिया गया। यहां वह 31 मार्च, 1982 तक कैद रहे। यह दक्षिण अफ्रीका का कालापानी माना जाता है। यहां से उन्हें केपटाउन के नजदीक पाल्समूर जेल ले जाया गया जहां वह 12 अगस्त, 1988 तक कैद रहे। इसी बीच उनकी तबीयत खराब हुई। नेल्सन को तत्काल अस्पताल ले जाया गया। प्रोस्टेट ग्लैंड का आपरेशन हुआ। 1988 में एक बार फिर नेल्सन टीबीग्रस्त हुए। उन्हें विक्टर जेल ले जाया गया जहां रिहा होने तक वह कैद रहे।
जेल के शुरुआती दिनों में उन्हें हाथ घड़ी या दीवार घड़ी रखने की अनुमति नहीं थी। कालकोठरी की दीवार पर ही उन्होंने हाथ से एक कैलेंडर बनाया। बाद में उन्हें डेस्क कैलेंडर लेने की अनुमति पर्यटन विभाग ने दी। इन्हीं डेस्क कैलेंडरों पर वह अपने निजी अनुभव, रोज के घटनाक्रम आैर विचारों को दर्ज करते। जेल में चाय के लिए दूध विलासिता की चीज मानी जाती थी। पत्र व्यवहार भी विलासिता की वस्तु के रूप में गिना जाता। इस पर भारी नियंत्रण होता, ताकि कोई आपत्तिजनक सूचना लीक न होने पाए। इसके बाद भी जेल की अव्यवस्था को लेकर लंबा पत्र डरबन के एक कानूनी फर्म को उन्होंने लिखा। उस फर्म से जुड़े वकील थुंबा पिल्लै ने हाईकोर्ट के न्यायाधीश बनने के बाद मंडेला स्मृति केंद्र को इस पत्र से जुड़े दस्तावेज दान में दिया।
वर्ष 1968-69 के दौरान नेल्सन को अपनी मां का वियोग झेलना पड़ा। उनके बड़े बेटे की भी सड़क हादसे में मौत हो गई। उन्हें दोनों के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होने दिया गया। उन्होंने कहा जेल हमारी भावनाओं को तोड़ नहीं पाई, बल्कि उसने हमारे इरादे आैर मजबूत बना दिए कि जब तक विजय नहीं मिलती ,लड़ाई जारी रहेगी। यह था नेल्सन मंडेला का जज्बा। उन्होंने कहा कि जेल वार्डन कैदियों के साथ पहले दिन से ही जानवरों जैसा बर्ताव करते क्योंकि उन्हें नियंत्रण में रखना था।
जेल जाने से पहले अदालत को दिये बयान में नेल्सन ने कहा, 'अपने पूरे जीवन के दौरान मैंने अपना सब कुछ अफ्रीकी लोगों के संघर्ष में झोंक दिया। मैंने हमेशा एक मुक्त और लोकतांत्रिक समाज का सपना देखा है जहां सभी लोग एक साथ पूरे सम्मान, प्रेम और समान अवसर के साथ अपना जीवन यापन कर पाएंगे। यही वह आदशर््ा है, जो मेरे लिए जीवन की आशा बना और मैं इसी को पाने के लिए जि़न्दा हूं। अगर कहीं ज़रूरत है कि मुझे इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मरना है तो मैं इसके लिए भी पूरी तरह से तैयार हूं।"
विक्टर कारागार ले जाने से पहले तक, वैश्विक स्तर पर बढ़ते दवाब के चलते सरकार ने उन पर रियायत बरतने लगी। उन्हें परिवार से मिलने की छूट दी गई। एक जेल वार्डन के साथ वह केपटाउन में घूम सकते थे। अरसा बाद नेल्सन ने बाहरी दुनिया की खुली हवा में सांस लेना शुरू किया था। एक प्रेमिल व्यक्ति सूरज को देखने, बेहतरीन संगीत सुनने को तरस गया था। एक साक्षात्कार के दौरान नेल्सन ने स्वीकार किया कि उन्होंने अपनी जिंदगी में इन चीजों की कमी महसूस की, लेकिन लक्ष्य ज्यादा बड़ा था। आखिर में रंगभेद के दिन लदते हुए दिखाई देने लगे। वर्ष 1988 में लंदन के वेम्बली स्टेडियम में एक म्यूजिक कंसर्ट का आयोजन हुआ। इसमें 72 हजार लोग उपस्थित थे। लाखों लोगों ने इसका टीवी पर जीवंत प्रसारण देखा। म्यूजिक कंसर्ट में 'फ्री नेल्सन मंडेला" का गीत गाया गया।
1989 में दक्षिण अफ्रीका में सत्ता परिवर्तन हुआ और उदार नेता एफ डब्ल्यू क्लार्क देश के मुखिया बने। सत्ता संभालते ही उन्होंने सभी अ·ोत दलों पर लगा हुआ प्रतिबंध हटा लिया। जिंदगी की शाम में आजादी का सूरज नेल्सन के जीवन को रोशन करने लगा। 11 फरवरी, 1990 को नेल्सन आखिर में पूरी तरह से आजाद कर दिए गए।
नेल्सन ने आजादी की लड़ाई में अपना सौ प्रतिशत दिया। लोग समझते हैं कि नेल्सन अब रिटायर हो गए हैं, लेकिन वे खुद ऐसा नहीं मानते। उन्होंने कहा है 'मैंने एक सपना देखा है, सबके लिए शान्ति हो, काम हो, रोटी हो, पानी और नमक हो। जहाँ हम सबकी आत्मा, शरीर और मस्तिष्क को समझ सके और एक-दूसरे की ज़रूरतों को पूरा कर सकें। ऐसी दुनिया बनाने के लिए अभी मीलों चलना बाक़ी है। हमें अभी चलना है, चलते रहना है।"
नेल्सन मंडेला को स्कूली जीवन से ही रंगभेद की विषबेलि का पता चल गया था। अश्वेतों के लिए विशेष रूप से बनाए गए कॉलेज हेल्डटाउन में भी स्नातक करते समय उन्हें इसका खमियाजा भुगतना पड़ा। उनके आैर उनके जैसे लोगों के साथ भेद किया जा रहा था क्योंकि प्रकृति ने उनको दूसरों से अलग रंग दिया था। वह सम्मान चाहते थे और उन्हें लगातार अपमानित किया जा रहा था। देश में अश्वेत होना अपराध की तरह था। वाल्टर सिसुलू और वाल्टर एल्बरटाइन से जोहांसवर्ग में मुलाकात के बाद नेल्सन मंडेला के विचारों को धार मिली। यहीं से उनके जीवन में बदलाव आया आैर विश्व को एक सशक्त अश्वेत नेता मिला। उन्हें 1950 के दशक आैर 1960 के शुरुआत में अक्सर पुलिस थाने की कोठरी, न्यायालय के कठघरे में पाया जाने लगा आैर अंतत: उन्हें जेल में कैद कर दिया गया।
नेल्सन के राजनीतिक क्रियाकलाप ने उन्हें रंगभेदी शासन का निशाना बना दिया। उनकी बढ़ती लोकप्रियता से परेशान सरकार ने उन पर तमाम प्रतिबंध लगाए आैर उन्हें जोहान्सबर्ग के बाहर भेज दिया। पाबंदी के बाद भी नेल्सन क्लिप टाउन पहुंचे आैर लोगों की भीड़ की आड़ में उन तमाम संगठनों के साथ काम किया, जो अ·ोतों की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे थे। अश्वेतों के अधिकारों के लिए चलाए जा रहे आंदोलन में उनकी सक्रियता बढ़ती ही चली गई। नेल्सन रंगबेद खात्मा के सर्वनाम बन गए। सरकार ने आनन-फानन में नेल्सन समेत एक सौ छप्पन लोगों को 1956 में गिरफ्तार किया आैर उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया। 1961 में उन्हें 29 साथियों को बरी कर दिया गया।
रंगभेदी सरकार की दमनकारी नीतियों के विरोध में शार्पविले शहर में प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने प्रदशर््ानकारियों पर गोलियों की बौछार कर दी। 180 लोग मारे गए और 69 लोग घायल हुए। यह दक्षिण अफ्रीका के स्वतंत्रता आंदोलन में 'जालियांवाला बाग" सरीखा था। उसके बाद नेल्सन मंडेला ने धारदार आंदोलन की ओर रुख किया। नेल्सन ने अपने नेतृत्व में 'स्पीयर आफ दी नेशन" के नाम से एक जुझारू दल बनाया।
रंगभेद की वकालत पर अड़ी सरकार से बचने के लिए नेल्सन मंडेला चोरीछिपे देश से बाहर चले गए। उन्होंने उस समय के तमाम तमाम मंचों से अपनी बात रखी। स्वदेश लौटते ही सरकार ने पांच अगस्त, 1962 को उन्हें गिफ्तार कर लिया। अवैध तरीके से देश से बाहर जाने आैर हड़ताल को भड़काने का दोषी मानते हुए उन्हें सात नवम्बर 1962 को पांच साल की सजा सुनाई गई। उधर, रिवोनिया में 1963 में हिंसात्मक आंदोलन का दोषी मानते हुए नेल्सन सहित पांच लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। जनता से दूर रखने के लिए उन्हें 13 जून, 1964 को रोबन द्वीप पर भेज दिया गया। यहां वह 31 मार्च, 1982 तक कैद रहे। यह दक्षिण अफ्रीका का कालापानी माना जाता है। यहां से उन्हें केपटाउन के नजदीक पाल्समूर जेल ले जाया गया जहां वह 12 अगस्त, 1988 तक कैद रहे। इसी बीच उनकी तबीयत खराब हुई। नेल्सन को तत्काल अस्पताल ले जाया गया। प्रोस्टेट ग्लैंड का आपरेशन हुआ। 1988 में एक बार फिर नेल्सन टीबीग्रस्त हुए। उन्हें विक्टर जेल ले जाया गया जहां रिहा होने तक वह कैद रहे।
जेल के शुरुआती दिनों में उन्हें हाथ घड़ी या दीवार घड़ी रखने की अनुमति नहीं थी। कालकोठरी की दीवार पर ही उन्होंने हाथ से एक कैलेंडर बनाया। बाद में उन्हें डेस्क कैलेंडर लेने की अनुमति पर्यटन विभाग ने दी। इन्हीं डेस्क कैलेंडरों पर वह अपने निजी अनुभव, रोज के घटनाक्रम आैर विचारों को दर्ज करते। जेल में चाय के लिए दूध विलासिता की चीज मानी जाती थी। पत्र व्यवहार भी विलासिता की वस्तु के रूप में गिना जाता। इस पर भारी नियंत्रण होता, ताकि कोई आपत्तिजनक सूचना लीक न होने पाए। इसके बाद भी जेल की अव्यवस्था को लेकर लंबा पत्र डरबन के एक कानूनी फर्म को उन्होंने लिखा। उस फर्म से जुड़े वकील थुंबा पिल्लै ने हाईकोर्ट के न्यायाधीश बनने के बाद मंडेला स्मृति केंद्र को इस पत्र से जुड़े दस्तावेज दान में दिया।
वर्ष 1968-69 के दौरान नेल्सन को अपनी मां का वियोग झेलना पड़ा। उनके बड़े बेटे की भी सड़क हादसे में मौत हो गई। उन्हें दोनों के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होने दिया गया। उन्होंने कहा जेल हमारी भावनाओं को तोड़ नहीं पाई, बल्कि उसने हमारे इरादे आैर मजबूत बना दिए कि जब तक विजय नहीं मिलती ,लड़ाई जारी रहेगी। यह था नेल्सन मंडेला का जज्बा। उन्होंने कहा कि जेल वार्डन कैदियों के साथ पहले दिन से ही जानवरों जैसा बर्ताव करते क्योंकि उन्हें नियंत्रण में रखना था।
जेल जाने से पहले अदालत को दिये बयान में नेल्सन ने कहा, 'अपने पूरे जीवन के दौरान मैंने अपना सब कुछ अफ्रीकी लोगों के संघर्ष में झोंक दिया। मैंने हमेशा एक मुक्त और लोकतांत्रिक समाज का सपना देखा है जहां सभी लोग एक साथ पूरे सम्मान, प्रेम और समान अवसर के साथ अपना जीवन यापन कर पाएंगे। यही वह आदशर््ा है, जो मेरे लिए जीवन की आशा बना और मैं इसी को पाने के लिए जि़न्दा हूं। अगर कहीं ज़रूरत है कि मुझे इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मरना है तो मैं इसके लिए भी पूरी तरह से तैयार हूं।"
विक्टर कारागार ले जाने से पहले तक, वैश्विक स्तर पर बढ़ते दवाब के चलते सरकार ने उन पर रियायत बरतने लगी। उन्हें परिवार से मिलने की छूट दी गई। एक जेल वार्डन के साथ वह केपटाउन में घूम सकते थे। अरसा बाद नेल्सन ने बाहरी दुनिया की खुली हवा में सांस लेना शुरू किया था। एक प्रेमिल व्यक्ति सूरज को देखने, बेहतरीन संगीत सुनने को तरस गया था। एक साक्षात्कार के दौरान नेल्सन ने स्वीकार किया कि उन्होंने अपनी जिंदगी में इन चीजों की कमी महसूस की, लेकिन लक्ष्य ज्यादा बड़ा था। आखिर में रंगभेद के दिन लदते हुए दिखाई देने लगे। वर्ष 1988 में लंदन के वेम्बली स्टेडियम में एक म्यूजिक कंसर्ट का आयोजन हुआ। इसमें 72 हजार लोग उपस्थित थे। लाखों लोगों ने इसका टीवी पर जीवंत प्रसारण देखा। म्यूजिक कंसर्ट में 'फ्री नेल्सन मंडेला" का गीत गाया गया।
1989 में दक्षिण अफ्रीका में सत्ता परिवर्तन हुआ और उदार नेता एफ डब्ल्यू क्लार्क देश के मुखिया बने। सत्ता संभालते ही उन्होंने सभी अ·ोत दलों पर लगा हुआ प्रतिबंध हटा लिया। जिंदगी की शाम में आजादी का सूरज नेल्सन के जीवन को रोशन करने लगा। 11 फरवरी, 1990 को नेल्सन आखिर में पूरी तरह से आजाद कर दिए गए।
नेल्सन ने आजादी की लड़ाई में अपना सौ प्रतिशत दिया। लोग समझते हैं कि नेल्सन अब रिटायर हो गए हैं, लेकिन वे खुद ऐसा नहीं मानते। उन्होंने कहा है 'मैंने एक सपना देखा है, सबके लिए शान्ति हो, काम हो, रोटी हो, पानी और नमक हो। जहाँ हम सबकी आत्मा, शरीर और मस्तिष्क को समझ सके और एक-दूसरे की ज़रूरतों को पूरा कर सकें। ऐसी दुनिया बनाने के लिए अभी मीलों चलना बाक़ी है। हमें अभी चलना है, चलते रहना है।"
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