एक लंबे अन्तराल के बाद फिर से ब्लॉग पर कुछ लिखने का मन किया है। आख़िर ईश्वरीय इच्छा को कब तक नाकारा जाए... देर सबेर स्वीकार करना ही कि १३ दिसम्बर की सुबह पापा मुझसे रूठ कर सदा के लिए एक अंतहीन यात्रा पर चले गए... जहाँ से कोई अब तक लौट कर न आया है और न आएगा... मेरे पापा कैसे लौट सकते हैं...
ईश्वरीय इच्छा के कड़वी सच्चाई को स्वीकार करना पड़ ही रहा है... सदमे के इस दौर में मेरे ऑफिस के मित्रों ने और ऑफिस के मेनेजमेंट जो सहयोग दिया उसके लिए सदैव आभारी रहेंगे यह कहने की जरूरत नही है।
हर किसी ने मेरे भावनाओ का ख्याल रखा है...
हर किसी का मैं धन्यवाद करना चाहता हूँ जिसने थोड़ा सा भी मेरे भावनाओ को समझा है...
मेरा स्वभाव सहयोग करने की बना रहे... यह प्रभू से पार्थना करता हूँ...
4 comments:
deepak ji pehli baar aapke blog par aayee hoon shayad dukh ki is ghadi me aapko kuchh dilasa de sakoon bhagvaan apke pita ki aatma ko shanti de aur aapko ye dukh sahne ki shakti
अपनों का साया जब हमारे सिर से उठता है तो असहनीय पीड़ा होती है। लेकिन इस से कोई भी नही बच सका।यह सब जान कर बहुत दुख हुआ।प्रभु आपको यह दुख सहनें की शक्ति दें।
बहुत तकलीफ हुई ...... सही कहा....भगवान के दिए मार को झेलने के अलावा कोई चारा नहीं होता....भगवान ही आपको कष्ट सहने की शक्ति भी देंगे....जानकर अच्छा लगा कि अब आप ब्लाग जगत में नियमित रहेगे।
इस दुखद घड़ी में हम आपके साथ है. ईश्वर से प्रार्थना है आपको इस असीम दुख को सहन करने की शक्ति दे एवं पिता जी की आत्मा को शांति प्रदान करे.
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