Sunday, September 19


एक कण
नदी के सहारे
लुढ़कते हुए
कर सकता है
संसार गमन।



एक कण
हवा के सहारे
उड़ते हुए
कर सकता है
विश्व भ्रमण।



एक कण
देत्यों के आगे
आँखों में जा
करा सकता है
क्रूर क्रंदन।

एक कण
जिसका वजूद
राह के बड़े
पत्थर ही नहीं
विश्वात्मा बना
हिमालय से
जूडा है।

Friday, September 10

प्रोब्लम भास्ट

आन पड़ी है प्रोब्लम भास्ट
अपनी लवली कंट्री में
खाकी खोज रहा है हड्डी
लीडर मगन इलेक्शन में

शुरू हुआ इलेक्शन का खेल
सकसेस होगा तो कोई फेल
मिल रहा है सुनने को भाषण
दे रहा है अनेक आश्वासन

झूठे वादों से भर गया है कान
ऊब गया है मन
देती नहीं पब्लिक इसीलिए
लीडरों के स्टेटमेंट पर ध्यान

निकला था लालू का जिन्न
फर्जी मतपेटी व मतपत्र के रूप में
कह रहा है चुनाव आयोग
झूठा है ये सब आरोप

रिपोर्टरों के बीच किया
कृष्णामूर्ति ने किया खंडन
मत लगाया करो
चुनाव प्रक्रिया पर आरोप

सिद्ध करे इलेक्शन आयोग
पुर्नावालोकन अपनी प्रक्रिया से
बचा है क्या ये
घोटाले के चपेट से?

- इस कविता को मैंने तब लिखा जब लालू प्रसाद यादव बिहार की मुख्यमंत्री थे।
दीपक राजा

Thursday, September 9

ग्राम शोर्य की गाथाएं,

धर्म की जो परिकल्पना है
वो परिकल्पना साकार हो
है ग्राम शोर्य की गाथाएं,
फिर गाथाएं तैयार हो।

मुख में है वाणी हमारी
हाथों में हमारे काम हो
युगों से शोषित मानवों का
बस इतना अधिकार हो

एकता में जो अनेकता है
अनेक से सब एक हो
मिलते जुलते रहें हम सब
जोड़ें सबसे तार हो

स्वराज्य कब का ले चुके हम
लें दायित्व का भार हो
हर एक वतन का सैनिक है
हर दम रहें तैयार हो