धर्म की जो परिकल्पना है
वो परिकल्पना साकार हो
है ग्राम शोर्य की गाथाएं,
फिर गाथाएं तैयार हो।
मुख में है वाणी हमारी
हाथों में हमारे काम हो
युगों से शोषित मानवों का
बस इतना अधिकार हो
एकता में जो अनेकता है
अनेक से सब एक हो
मिलते जुलते रहें हम सब
जोड़ें सबसे तार हो
स्वराज्य कब का ले चुके हम
लें दायित्व का भार हो
हर एक वतन का सैनिक है
हर दम रहें तैयार हो
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