भारतीय संसदीय इतिहास में पहली बार हुआ कि शीतकालीन सत्र बिल्कुल भी नहीं चला। एक पर एक घोटाले के पर्दाफाश के बाद संयुक्त संसदीय समिति के गठन की मांग पर सत्तारूढ़ पार्टियां और विपक्ष आमने-सामने रहे। संसद नहीं चलने देने का आरोप भी एक-दूसरे पर मढ़ते रहे। इसी कड़ी में कांग्रेस के वुजुर्ग नेता प्रणव मुखर्जी ने संसद नहीं चलने देने का आरोप विपक्ष पर लगाते हुए देश से माफी मांगने को कहा।
प्रणव दा वित्त मंत्री हैं और लोकसभा के नेता भी। सो संसद सत्र नहीं चलने पर उनकी चिंता बेजा नहीं है। दादा आपने बात बिल्कुल सही कहा है कि विपक्ष को संसद नहीं चलने देने की माफी मांगनी चाहिए । देश की सबसे बड़ी पंचायत ही नहीं लोकतंत्र का आधार स्तंभ भी है संसद। करोड़ों रूपए खर्च कर देश में आम चुनाव कराया जाता है, इसलिए नहीं कि किसी ए क मुद्दे पर संसद की कार्यवाही को पूरी तरह से ठप कर दी जाए ।
संसद का शीतकालीन सत्र घोटालों के नाम रही। चाहे वो 1़7६ लाख करोड़ का 2जी स्पेट्रक्म घोटाले, 3़18 करोड़ रूपए का कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला या ए क हजार करोड़ रूपए का आदर्श सोसायटी घोटाले। इसकी सच्चाई क्या है, आपसे बेहतर कौन जानता होगा! घोटाले किसके शासन में नहीं हुए ? शासन चाहे किसी भी पार्टी की रही हो, सबके शासनकाल में घोटाले हुए हैं। ए ेसी कोई पार्टी नहीं है जो कह सके कि उसके शासन में घोटाले नहीं हुए । इसके बावजूद जब राजनीतिक पार्टियां विपक्ष में होती हैं तो हाय तौबा मचाती ही है। विपक्ष में होने का मतलब ही हाय तौबा मचाना नहीं है। दादा आपने सही कहा है कि विपक्ष को घोटाले के नाम पर शीतकालीन सत्र चलने नहीं दी, इसके लिए उन्हें देश से माफी मांगनी चाहिए ।
आपके इस वक्तव्य से मुझे दशकों पहले अल्पायु में ही काल के गाल में समा जाने वाले कवि धूमिल की ए क कविता याद आती है। उन्होंने कहा- हे भाई/ अगर चाहते हो कि/ हवा का रूख बदले/ तो ए क काम करो/ संसद जाम करने से बेहतर है/ कि सड़क जाम करो। काश विपक्ष को धूमिल की कविता याद आ गई होती तो संसद सत्र में बाधा नहीं आती और प्रणव दा को माफी मांगने को कहने की जरूरत नहीं पड़ती। विपक्ष में बैठे राजनीतिक पार्टियों का काम संसद में केवल हंगामा करना ही काम नहीं है। घोटालों को लेकर जेपीसी सरकार गठित करने में पीछे हट रही है, इसको लेकर संसद चलने नहीं देने से क्या जेपीसी गठित हो गई। सरकार जेपीसी गठित कर भी दे तो इससे कितना र्फ पड़ेगा। घोटालों के इतिहास से तो यही लगता है कि कागजों का ए क बंडल और सरकारी रिकॉर्ड में बढ़ जाए गा। क्योंकि जेपीसी की रिपोर्ट जब तक आती लोग काफी हद तक भूल चुके होते। देश की आधी आबादी को तो पता भी नहीं होगा कि आखिर 2जी स्पेक्ट्रम किस बला का नाम है।
विपक्षी पार्टियों के लिए कितना अच्छा मौका था देश की जनता के पास जाने का। विपक्ष की राजनीतिक पार्टी के पास केवल 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला ही नहीं, आदर्श घोटाला, कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला, स्विस बैंक में पड़े देश के अरबों काला धन से लेकर महंगाई का मुद्दा भी है जिसे लेकर आम जन के पास जाया जा सकता है। महंगाई को वो मुद्दा है जो देश के प्रत्येक नागरिक के आर्थिक पक्ष को नुकसान पहुंचाया है। पार्टियां प्रखंड स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक आंदोलन चलाती, देश के प्रत्येक नागरिक को इससे जोड़ने का प्रयास करती। इतना तय है कि सत्ता के मद में चूर लोगों को भी जनता के नाराज होने का भय सताता है। सत्ता सुख भोग रहे लोगों को पता है कि उन्हें जो सत्ता मिली है वह जनता के प्यार के कारण मिला है न की नाराजगी के कारण। वह अच्छी तरह जानते हैं कि जनता नाराज हो गई तो उन्हें सिंहासन से उतर कर पैदल होना पड़ेगा। ए ेसे में विपक्ष की मांग को मजबूरन माननी पड़ेगी।
हालांकि यह काम करने के लिए घर से बाहर निकल कर सड़क की धूल फांकनी पड़ेगी, राजधानी का सुख का परित्याग करना पड़ेगा। यहीं ए क यक्ष प्रश्न सामने आ जाता है। उस यक्ष प्रश्न को कविता के माध्यम से धूमिल ने व्यक्त किया है ‘मसला यह नहीं कि/ इसे हल कौन करेगा/ मसला यह है कि/ इसमें पहल कौन करेगा’।
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