Tuesday, March 22
वेलेंटाइन डे मनाने की क्या जरूरत?
पाश्चात्य देशों में क्रिसमस डे के बाद सबसे ज्यादा उत्साह वेलेंटाइन डे के दिन यानी 14 फरवरी को देखने को मिलता है। वेलेंटाइन डे से हमाराकोई लेना-देना नहीं है। न ही यह हमारी संस्कृति है। फिर भी पाश्चात्य देशों में मनाया जाने वाला वेलेंटाइन डे भारतीय उपमहाद्वीप में लोकप्रिय हो रहा है। जैसे जैसे इसका प्रचार हुआ है, इसके मुखालफत में स्वर भी मुखर हुए ।
वेलेंटाइन डे के विरोध में जो स्वर मुखर हुए । वह वास्तव में वेलेंटाइन डे को लेकर नहीं बल्कि उसे मनाने के तरीके को लेकर है। इसके नाम पर जो अश्लीलता और भौड़ा प्रर्शन होता है। वह हमारी संस्कृति नहीं है। इस तरह की प्रवृत्ति हमारी सभ्यता के खिलाफ है। हिन्दुस्तानी होने की पहचान ही हमारी संस्कृति है। विरोध यहीं है।
हिन्दुस्तानी संस्कृति में वसुधैव कुटुंबकम सर्वोपरि है। ‘प्यार बांटते चलो’ की राह हमने दुनिया को सिखाया है। ऐसे में दुनिया के किसी कोने में भी प्रेम का कोई दिवस मनाया जाता है, उसे मनाने में हमें कोई एतराज नहीं है। प्यार के नाम पर जिस अश्लीलता का प्रर्शन होता है, हमें एतराज वहां है। मौलवी हो या संत, फकीर हो या फादर हम हिन्दुस्तानी हर किसी का आर करना जानते हैं। हमारी संस्कृति हमें ‘स्वयं को तिल-तिल जलाकर सलभ और सुलभ बनना सीखाती है।‘ समर्पण की शिक्षा देती है। प्यार में भी समर्पण है और हमारा जीवन इसी प्यार पर टीका है।
हालांकि जिस प्यार पर जीवन आधारित है, वह वेलेंटाइन डे का एक दिवसीय प्यार नहीं हो सकता है। प्यार, इश्क और मोहब्बत किसी के लिए खुशी है तो किसी के लिए दिल का सुकून, किसी के लिए ज़िंदगी है तो किसी के लिए जीन का सहारा। तभी तो कहा गया ‘दिल की लगी क्या जाने, ऊंच-नीच और रीति-रिवाज, घर बिरारी और लोक लाज।’ वेलेंटाइन डे के नाम पर जो प्यार युवाओं में उमड़-उमड़कर पार्कों, सड़कों, सिनेमा हॉलों और मॉल में दिखाई देता है, उसका विरोध लाजमी है। हमारी संस्कृति इसकी इजाजत नहीं देती।
वेलेंटाइन डे में प्यार नहीं वासना ज्यादा होती है, उसमें दिखावा होता है और जहां दिखावा है वहां स्वभाविक प्यार हो ही नहीं सकता। ऐसे प्यार में स्वार्थ की बू आती है क्योंकि वेलेंटाइन डे को मनाने वालों में ज्यादातर उसे सुनाते वक्त लड़की की नजर लड़के की जेब पर और लड़के की निगाह लड़की के फिगर पर अटक जाती है। दरअसल यह सोच उपभोक्तावादी संस्कृति का है, जो पांच ‘म’ पर आधारित है। ये पांच ‘म’ हैं-मघ, मांस, मीन, मुद्रा और मैथुन।
अभी हाल में सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक ने एक सर्वे कराया। सर्वे के आधार पर ब्रिटिश पत्रकार डेविड मैक कांडेलेस ने एक रिपोर्ट तैयार किया। उसमें यह बात उभर कर सामने आई कि वेलेंटाइन डे के बा सबसे ज्यादा रिश्तों में विखराब आया, ब्रेकअप हुए । वेलेंटाइन के पाश्चात्य संस्कृति का हिस्सा है और यह सर्वे भी। यह ऐसा प्रेमोत्सव है जो रिश्तों में विखराव लाता है। इसे हम क्यूं मनाएं। वैसे भी हमारी संस्कृति में प्यार के त्योहारों की कमी नहीं है।
संत वेलेंटाइन ने तो परिवार के सस्यों के आपसी रिश्ते की मजबूती और विवाह जैसी संस्था के लिए सन्देश दिया था। आजकल इसके नाम पर भौड़ा प्रदर्शन हो रहा है। इससे हमारी भारतीय छवि प्रभावित हो रही है। इससे समाज में विकृति भी फैलने लगी है। जिस त्योहार से समाज को कोई सीख न मिले, उलटा उससे समाज पर प्रतिकूल असर पड़े उसका तो न मनाना ही हितकर है। हो सकता है कि नई पीढ़ी के तथाकथित आधुनिक युवाओं को इस बात में बुजुर्आ खयालात नजर आएं, मगर यह एक सच्चाई है जिसे देर सवेर वह भी मानेंगे लेकिन तब तक देर हो चुकी होगी।
युवाओं में 14 फरवरी को वेलेंटाइन डे के दिन प्यार उमड़-उमड़ कर आ रहा होता है। जिसे देखो वही अपने विपरित लिंग की आ॓र बेमतलब आकर्षित हो रहा होता है। यह बाजारवा का प्रभाव है। इसमें समर्पण का वह भाव दिखाई नहीं देता जो रिश्तों को स्थायीत्व प्रदान करे। यह इसलिए भी क्योंकि हमारी परम्परा प्यार को केवल एक दिन में समेट देना भर नहीं है।
हमारी परम्परा में प्यार 24 घंटे, सातो दिन और जीवनभर ही नहीं जीवन र्पयंत भी है। वेलेंटाइन डे की संस्कृति को बलपूर्वक बढ़ावा बाजार दे रहा है। बाजार को मालूम है कि भारतीय उपमहाद्वीप में युवाओं की संख्या ज्यादा है और यह अगले पांच शक तक यह संख्या बनी रहेगी। हम लोगों के रग-रग में बसा है कि एक बार जिसके हो लिए तो जीवनभर उसी के साथ रहते हैं। इस कारण बाजार युवाओं को टारगेट बनाकर फुसलाने के लिए तमाम तरह के हथकंडे अपना रहा है। हमारे जीवन का आधार हमारा प्यार है जिसे हम अनमोल मानते हैं। बाजार उसे वेलेंटाइन डे माध्यम से बिकाऊ बना रहा है।
बाजार हर चीज को भुनाता है। वेलेंटाइन डे के नाम पर हमारे प्यार को भुनाने की कोशिश जारी है। यूएस ग्रीटिंग कार्ड के आंकलन के मुताबिक पूरे विश्व में एक बिलियन कार्डों की बिक्री अकेले वेलेंटाइन डे के समय होती है। उपहार, फूलों का बाजार इतना बढ़ा है कि उसका आंकलन कर पाना मुश्किल है। केवल भारत में व उपहारों का व्यापार 15 करोड़ से ज्यादा का है।
किसी ने कहा है ‘कोई लाख दूर रहे कितना भी, पर अपना ही रहे क्या कम है। प्यार करे ना करे गम नहीं, बस या करता रहे क्या कम है।’ दिल को छू जाने वाली ये चार पंक्तियां प्यार के बारे में बहुत कुछ कहता है। इस प्यार में समर्पण खिता है। आप भले ही प्यार करने की कला नहीं जानते हों और भले ही आप शब्दजाल का प्रयोग करना नहीं जानते हों, आप आकर्षक न भी हों। फिर भी, समर्पण वह कला है जो इन तमाम झंझावतों से इतर होकर सब पर भारी पड़ती है। अगर आप किसी के प्रति समर्पित हैं तो एक न एक दिन उसका प्यार आपको मिलेगा। साल के 36५ दिन और रात हमारे लिए प्यार के दिन हैं। फिर वेलेंटाइन डे मनाने की क्या जरूरत?
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