होली के एक दिन पहले होलिका दहन होता है। यह दिन सामाजिक ही नहीं धार्मिक दृष्टि से भी बहुत खास है। यह दिन बुराई को अग्नि में तिरोहित करने का दिन है।
अधर्म पर धर्म के विजय का दिन है, क्यूंकि इस दिन हिरनकश्यप ने भक्त प्रहलाद को मारने के लिए बहन होलिका को भेजा था। होलिका को वरदान में एक चादर मिला था, जिसे ओढ़कर आग के दरिया में बैठेगी तो भी सुरक्षित रहेगी। इसका गलत फायदा उठाते हुए होलिका ने प्रह्लाद को मारने की साजिश रची। अंततः खुद की साजिश में होलिका जल मरी और भक्त प्रह्लाद आग से जिन्दा बाहर निकल आये।
हमारा देश कृषि प्रधान है। पर्व और त्यौहार खेती-बारी के अनुसार ही मनाया जाता है। होली के समय तक किसान चना, गेंहू, जई आदि रबी फसल की कटाई कर चुके होते हैं। उसके बाद खेत की निगरानी करने की जरूरत नहीं रह जाती है, किसानों को मुक्ति मिल जाती है ठण्ड भरी रात में जगरना करने से। ठण्ड की आखिरी रात के नाम फसल से बची तुडी को किसान जलाते हैं और होलिका दहन मनाते हैं।
विक्रम संवत और शक संवत के मुताबिक होली साल का अंतिम दिन भी होता है। पूरा साल ठीक से गुजर गया, इसके लिए ख़ुशी का इज़हार करने का मौका भी है होली और आने वाले नए साल का उत्साह से स्वागत करने का अवसर भी. होली के मौके पर कुछ नया करने का संकल्प भी लेते हैं.
इन सारे खूबियों के बीच होली में एक नयी परम्परा विकसित हो गयी, जो आर्थिक दृष्टि से ही नहीं सामाजिक दृष्टि से भी सही नहीं है. होली के नाम पर पीने और पिलाने का दौर का चलना, उसके बाद छोटी छोटी बात पर एक दूसरे के लिए जान का दुश्मन हो जाना। शराब पी लेने के बाद आदमी हैवानियत पर उतर आता है।
ख़ुशी का त्यौहार कई लोगों को तबाह कर देता है। रंगों में सराबोर होने वाली होली, छोटी सी भूल के कारण जिंदगीभर के लिए काली होली में तब्दील कर देता है।
एक अनुभव
होलिका दहन के दिन शाम के वक़्त न्यू अशोक नगर मेट्रो स्टेशन से नॉएडा गोल चक्कर से होते हुए मोटरसाइकिल से जाना हुआ। मेरा भाई मेरे पास होली के लिए मेट्रो से आ रहा था। छोटे भाई के पीठ पर बैग लटका हुआ था। जैसे ही न्यू अशोक नगर नाके से आगे बढ़ा, यूपी पुलिस की जिप्सी खड़ी मिली। एक सिपाही ने रूकने का इशारा किया, मैं रूक गया। सिपाही ने भाई का बैग चेक किया और फिर जाने को कह दिया। सिपाही हर किसी के बैग से सिर्फ तलाश रहा था दारू की बोतल। इसके अलावा कुछ नहीं। ड्राइविंग लाईसेंस, गाड़ी का पेपर आदि है या नहीं उससे पुलिस को कोई मतलब नहीं था।
पता नहीं ये चेक पोस्ट होली की व्यवस्था के लिए थी या दारू के तस्करों पर शिकंजा कसने के लिए, ये तो पुलिस ही जाने। बहरहाल मैं रोजाना न्यू अशोक नगर के नाके के पास से गुज़रता हूँ, वहां दारू का ठेका भी है। शाम के समय वहां सैकड़ों की तादात में लोग दारू पीते हैं। पीने वालों की भीड़ ऐसी कि उस गली से गुजरना जैसे शाम के वक़्त जनपथ मार्केट होकर निकलने के बराबर है. पीने वाले दारू दिल्ली में खरीदते हैं और पीते यूपी में हैं, ये पुलिस को दिखाई देता है?
शायद नहीं... क्यूंकि पुलिस विभाग को रोज टारगेट नहीं मिलता होगा!
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