अरुणिमा सिन्हा को लोग भूल चुके होंगे. याद दिला दें की वही अरुणिमा जिसे चलती ट्रेन से बदमाशों ने फ़ेंक दिया था. इस कारन वो विकलांग हो गयी थी. उसे जल्द ही एम्स से छुट्टी मिल जायेगी. केंद्रीय खेल मंत्री अजय माकन ने कहा है स्ट्रेचर से अरुणिमा को दिल्ली लेट समय यूपी से वादा किया था कि उसे खेल के मैदान में उतरेंगे. वह जल्द खेल के मैदान में खेलती हुई दिखेंगीं.
कवि पाश ने लिखा है 'सबसे खतरनाक होता है/ हमारे सपनों का मर जाना/ सबसे खतरनाक वो घड़ी होती है/ आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो/ आपकी नजरों में रूकी होती है।" हालांकि हादसे में पैर कटने के बाद भी, वॉलीबाल में अपना भविष्य देख रही अरुणिमा सिन्हा उर्फ सोनू का सपना तो नहीं मरा लेकिन सिस्टम उसके अरमानों को रौंदने की बहुत कोशिश की है. दिल दहला देने वाली हादसे के बावजूद तवरित करवाई के बजाये हादसे को खुदकुशी का रूप देने की कुचेष्टा कर अरुणिमा को परेशान करने की कोशिश हुई थी.
हां, मीडिया ने जब सिस्टम पर चौतरफा हमला बोला तब सरकारें सक्रिय हुई थीं और मदद के नाम पर सतही दावे होने लगा था. केन्द्रीय खेल मंत्री अजय माकन ने महज 25 हजार की आर्थिक मदद की पेशकश की. मीडिया में सरकार की किरकिरी हुई, तब जाकर उन्हें घटना की भयावहता का अंदाजा लगा और उन्होंने रकम बढ़ाई। अब एम्स के ट्रामा सेंटर का खर्च केंद्र सरकार उठा रही है।
क्रिकेट को धर्म समझने वाले देश में अरुणिमा ने वालीबॉल में सपना देखा था। लखनऊ से करीब 250 किमी दूर अम्बेडकरनगर जिले के शहजादपुर कस्बे के खतराना मोहल्ले की लड़की ने जो ख्बाव देखा, यह उसकी जीवटता थी। सात साल की उम्र में फौजी पिता का साया सर से उठ जाने के बाद पनपी जीवटता ही अरुणिमा की ताकत है। इसी ताकत के बल पर समाज शास्त्र में एमए और फिर एलएलबी की पढ़ाई कर रही अरुणिमा ने मौत को मात दी. धीरे धीरे अब अपने आपको फीर से खेल के लिए तैयार कर रही है.
आत्मनिर्भर होने के लिए अरुणिमा ने सीआईएसएफ में नौकरी के लिए आवेदन किया। उसका फिजीकल टेस्ट आठ मई को नोएडा में होना था। इसी सिलसिले में अरुणिमा 11 अप्रैल को दिल्ली के लिए लखनऊ से पदमावत एक्सप्रेस में सवार हुई। ट्रेन बरेली से खुली और ढाई बजे रात चेनहटी के पास लूट की वारदात को विरोध करने पर चार बदमाशों ने उसे ट्रेन से बाहर फेंक दिया। दुर्भाग्यवश, दूसरी पटरी पर अन्य ट्रेन आ रही थी। उससे अरुणिमा का बायां पैर कट गया। सुबह होने तक ट्रेनें पटरी पर दौड़ती रहीं और वह लाचार बेबस तड़पती रही। आसपास के गांववालों ने उसे पटरी पर पड़ा देखा। आनन-फानन में उसे टेम्पो से बरेली के जिला अस्पताल पहुंचाया। यहां उसकी तीन दिन इलाज चला, यहीं बाएं पैर का ऑपरेशन हुआ। संक्रमण होने पर लखनऊ के मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया।
राष्ट्रीय एथलीट के साथ हादसा की खबर सुर्खियां बनने पर रेल मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय ने यूपी सरकार और जीआरपी से रिपोर्ट तलब की। रेलवे सुरक्षा के सवाल पर रेलवे प्रवक्ता ने दो टूक शब्दों में कहा कि रोजाना देश में ग्यारह हजार ट्रेनें चलती है। उसमें से 3500 ट्रेनों को चिन्हित करके पुलिस एस्कॉर्ट करती है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रत्येक ट्रेन में पुलिस की तैनाती संभव नहीं है। गैर जिम्मेदाराना रवैया अपनाने वाली रेलवे अपनी खाल बचाने की कोशिश में अरुणिमा के हादसे को खुदकुशी करने की कोशिश करार देने में जुटी. यह निर्लज्जता की हद है।
गंभीर हादसे के बाद अरुणिमा को महाराणा प्रताप सिह जिला अस्पताल बरेली से एम्बुलेंस द्वारा छत्रपति साहू महाराज मेडिकल यूनिवर्सिटी (किंग जॉर्ज उर्फ लखनऊ मेडिकल कॉलेज) लाया गया। यहां घोर लापरवाही देखने को मिली। घायल एथलीट को भर्ती कराने की सूचना पहले देने के बावजूद, मौके पर कोई भी सीनियर डॉक्टर मौजूद नहीं था। इमरजेंसी मेडिकल अफसर डा. शोभनाथ सोनकर ने आनन-फानन में अरुणिमा को ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया। आधा घंटे के बाद उसे आर्थोपेडिक विभाग के महिला वार्ड के बेड नं. नौ में शिफ्ट किया गया। संक्रमण से कराह रही अरुणिमा को भर्ती कराने से पहले यहां झाड़ू-पोछा किया गया और बिस्तर ठीक किए गए। संक्रमण बढ़ने पर अरुणिमा के पैर को थोड़ा आगे करके दोबारा काटा गया।
राजनीतिक रोटी सेंकने के चक्कर में उत्तर प्रदेश की कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा के हस्तक्षेप के बाद केंद्रीय खेल मंत्री अजय माकन एयर एम्बुलेंस से अरुणिमा को दिल्ली एम्स के ट्रामा सेंटर ले आए। अगर रीता बहुगुणा हस्तक्षेप नहीं होता, अरुणिमा रात के बजाए सुबह ही एम्स के ट्रामा सेंटर में भर्ती हो जाती, क्योंकि तब तक उत्तर प्रदेश सरकार ने अरुणिमा को एम्स लाने की पूरी तैयारी कर चुकी थी। दो महीने ट्रामा सेंटर भर्ती होने के बाद से अरुणिमा में अब काफी सुधार है। एम्स ट्रामा सेंटर के हेड डा. एमसी मिश्रा ने कहा, 'अरुणिमा काफी हिम्मत और पक्के इरादे वाली लड़की है, उसे इस घटना से उबरने में थोडा और वक्त लगेगा'।
अपनी आग को जिंदा रखना, कितना मुश्किल है, पत्थर बीच में आइना रखना कितना मुश्किल है। इस बात को अरुणिमा अच्छी तरह समझती है। हादसे के बाद उन्होंने कहा, 'पैर चला गया तो क्या हुआ, सब कुछ पैर से ही तो नहीं होता। अगर एक क्षेत्र में नहीं कर पाई तो दूसरे क्षेत्र में देश के लिए काम करूंगी"। उन्होंने कहा कि हिम्मत हो तो आसमान को छुआ जा सकता है।
वालीबॉल खिलाड़ी अरुणिमा सिंहा उर्फ सोनू फिर से खेलेंगी, यह तो तय है. कितना खेल पाएंगी, यह प्रश्न भविष्य के गर्त में है। करियर दांव पर है। वह इस हालत में पहुंची, उसका दोषी है हमारा तंत्र और इसे चलाने वाले लोग, एक हद तक हमारा कायर समाज भी। अप्रैल 11 की मनहूस रात ने अरुणिमा के साथ गंदा खेल खेला ही। दिन के उजाले में तंत्र और तंत्र चलाने वाले लोग अरुणिमा के साथ जो व्यवहार किया वो कम दुखदाई नहीं है।
अरुणिमा को जानने का हक है कि क्यों उसके इलाज में देरी हुई, क्यों उसकी भावनाओं से खेला गया? क्यों गंभीर मसले पर सियासी नौटंकी हुई? इन सवालों का जवाब मिले बगैर न जाने कितनी अरुणिमा के भविष्य के साथ खिलवाड़ होता रहेगा और हम चुपचाप बने रहेंगे तमाशबीन ...।
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