Monday, August 22

अदद एक नेत्र विशेषज्ञ की, वीरभद्र सिंह के लिए

उम्र बढ़ने के साथ-साथ ऐसा होता है, आदमी ऊंचा सुनने लगता है। दिखाई कम देने लगता है। वीरभद्र सिंह के साथ भी कोई नई बात नहीं हो रही है। इस बात को जो समझ लेते हैं, वह नेत्र विशेषज्ञ से सलाह लेते हैं। उनकी सलाह पर फिर चश्मा या कांटेक्ट लैंस लगाते हैं।

हालांकि उम्रदराज लोग इस बात के लिए तब तक राजी नहीं होते कि उनकी नजरें कमजोर हो गई, या सुनने की क्षमता क्षीण हो रही है, जब तक कि नुकसान न हो जाए। केंद्रीय लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्री वीरभद्र सिंह भी कुछ ऐसे ही हैं। जन्माष्टमी के मौके पर बांके बिहारीजी का दर्शन करने गए मथुरा। वहां उन्होंने अन्ना के आंदोलन और उनके समर्थकों की टोली को भीड़ की संज्ञा दे दी। उन्होंने यहां तक कह दिया कि भीड़ तो मदारी भी जुटा लेता है।

अन्ना के समर्थकों का समूह और मदारी के भीड़ में अंतर नहीं कर पाने में केंद्रीय मंत्री का दोष नहीं है। एक तो उम्र का तकाजा है। दूसरा उनका फैमिली डॉक्टर लापरवाह हो गया है। मंत्री महोदय की नजरें कमजोर हो गई और उसने ध्यान नहीं दिया। नजरें कमजोर होगी तो अंतर आदमी कहां कर पाता है। दुर्योधन की मौत के बाद धृतराष्ट्र भीम और के पुतले में अंतर कहां कर पाये थे। एक तो मंत्री महोदय उमरदराज हैं और उनकी पार्टी और अधिक उम्रदराज।
पार्टी तो इतनी उम्रदराज है कि पार्टी लगभग अंधी हो गई। उसे दिखाई भी नहीं दे रहा है कि रास्ता आखिर है तो है किधर। चारों और दिख रहा है अन्ना अन्ना ...

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