लगभग पचास सालों में१४ वीं बैठक १३ अक्टूबर को शुरू दो दिन के हुई। साढे तीन साल के बाद राष्ट्रीय एकता परिषद् की बैठक दिल्ली में शुरू हुई। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हर तरह की हिंसा की निंदा की गई। सांप्रदायिक हिंसा और आतंकवाद से कडाई से निबटने का फैसला भी इस बैठक में लिया गया।
दो दिन चले इस बैठक में कई बार मतभेद साफ दिखाई दिया। बैठक के शामिल लोग "अपनी डफली अपना राग" अलाप रहे थे। उरिसा और कर्णाटक में उपजी हिंसा (कथित तौर पर सांप्रदायिक) को लेकर बीजद और भाजपा को कशुर्वर ठहराने में स्वयम गृह मंत्री आँखे तरेर रहे थे। उस समय सांकेतिक तौर पर मनमोहन सिंह को कायर करार देने वाले लालू यादव पाटिल की पीठ थपथपा रहे थे।
दूसरी और पोटा जैसे कड़े क़ानून का समर्थन और धर्मपरिवर्तन सम्बन्धी क़ानून बनाने की बात जोरदार ढंग से रखने वाले भाजपा बिग्रेड नेता नरेन्द्र मोदी ने यहाँ तक कह डाला की सरकार उग्रवाद और आतंकवाद के बीच फर्क नही समझती। मानवाधिकार के नाम पर आतंकवादी तत्वों को समर्थन करने वाले बुद्धिजीवियों को अलग-थलग करने की जरुरत पर बल दिया।
बिहार के मुख्यमंत्री बुद्ध की भांति मध्यम मार्ग अपनाते हुए सांप्रदायिक सद्भाव के बारे में कहा गठबंधन के इस युग में सरकारों को सभी समुदायों का ध्यान रखना जरूरी है। नीतीश कुमार जिसकी बात कर रहे थे, एकता परिषद् की बिसात ही इसी पर आधारित है। परिषद् का गठन १९६१ में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपनी अध्यक्षता में की।
परिषद् के गठन के बाद पहली बैठक ओक्टूबर १९६१ में हुई। बैठक में फैसला लिया गया की साम्प्रदायिकता, जातिवाद, क्षेत्राबाद, भाषावाद, और अन्य मुद्दे जिससे राष्ट्रीय एकता परिषद् की बैठक में उस मुद्दे पर चर्चा करते हुए समाधान ढूंढा जाएगा।
परिषद् के गठन के बाद से अब तक 1४ बैठके हो चुकी है। राष्ट्रीय एकता और अखंडता जैसे संवेदनशील मुद्दे पर भारतीय राजनीती कितने जागरूक है इसका अंदाजा अन्तिम तीन बैठक से लगाया जा सकता है। 1२ वीं बैठक नवम्बर १९९२ में हुई कश्मीर और पंजाब के मुद्दे को लेकर लेकिन बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि को लेकर खिंचतान के साथ बैठक ख़त्म हुई। तेरहवीं बैठक तेरह साल बाद अक्टूबर २००५ में हुआ। १४ वीं बैठा वोट की राजनीती के शूली पर चढ़ा...
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