वैसे अब तक देश की संविधान समिति २२ भाषाओँ को राजभाषा घोषित कर चुकी है लेकिन एक विडबना है की २२ भाषाओँ में केवल हिन्दी के लिए की pअखावाडा और दिवस मनाया जाता रहा है वर्षों से परम्परा के रूप में।
यह हिन्दी के लिए इठलाने की बात नही है। व्यवहारिक तौर पर देखिये जिसे आप पूरा सम्मान देते हों, जिसका नाम इज्जत से लेते हों, उसे कभी भी परखने के मूड में नहीं होंगे, हिन्दी दिवस और हिन्दी पखवाडा भी कुछ ऐसा ही है हिन्दी के साथ।
झार-पोछ कर एक पखवाडे के लिए हिन्दी को किसी कोने से ढूंढ कर लाते है। उसकी पूजा करते है १४ सितम्बर की रात गुजरते के साथ ही हिन्दी को विसर्जित कर दिया जाता है ठीक वैसे ही जैसे हम लोग आम जीवन में करते है।
स्वतंत्रता दिवस के दिन तिरंगा हाथों में बड़े ही शान से लेकर चलते हैं लेकिन शाम होते होते शान से हाथों में लहराते तिरंगे को सड़क पर पड़े हुए मिटटी में लिपटा हुआ हर जगह बिखरे हुए दिख जाएगा। खादी में तिरंगा उपयोग किया जाना चाहिए लेकिन पोलीथिन का उपयोग करते है।
गाँधी जयंती पर राज घाट पर जाकर रघुपति राघव राजा राम सुन लेने से कोई अहिंसा को पुजारी हुआ है क्या।
हिन्दी दिवस पर हिन्दी के कशीदे पढ़ने वाले हिन्दी के वफादार होंगे कैसे भरोसा करें....
हिन्दी पखवाडे के नतीजे देखकर तो ऐसा लगता है की हिन्दी का श्राद्ध मनाया जा रहा हो...
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