आज सुबह समाचार देखने सुनने को मिला की महज एक दिन की बच्ची को किसी बेदर्द माँ ने पार्क में छोड़ दिया, कुत्ता सड़क पर मुह से घसीटते हुए ले जा रहा था। भले मानस ने देखा और हॉस्पिटल पहुँचा दिया।
आजकल हर बड़े छोटे सभ्य कहे जाने वाले कॉलोनियों में इस तरह की घटना होने लगी है, दस लोग दस बातें होती है। सभ्य कहे जाने वाले लोग, उसमें भी पढ़े लिखे लोग इतना आगे सोच लेते है की उसे सुनकर तो कई बार लगता है गाँव के अनपढ़ अंगूठा छाप लोग ज्यादा समझदार और व्यावहारिक है।
यह सब जो कुछ भी देखने और सुनने को मिलता है, दुनिया और दुनिया के बदलते परिवेश को हम किस रूप में देखते है उस पर निर्भर करता है. किसी के कहने और व्यंग करने से यह मनोवृति बदलेगी नही, बदलने के लिए ख़ुद बदलना होगा.
एक उदहारण है मेरे पास, पढ़े लिखे अपढ़ का. मेरे साथ काम करने वाले एक साथी मित्र है, उमर की बात करे तो शायद उनका बेटा मेरे छोटे भाई के उम्र का होगा। ऑफिस में एक दस साल का लड़का गलियारा में टहल रहा था, जो किसी सहयोगी कर्मचारी का है। उसे देख कर मित्र ने कहा यह किसकी गलती है।
आदत है त्वरित टिप्पणी कर देने की, उसके छूटते ही कह गया भाई, देश में लोग इतने समझदार और पढ़े लिखे लोग नही हैं और न ही सेक्स के मामले में इतने खुले है की बच्चा पैदा करने के लिए सेक्स करे। अक्सर बच्चा गलती का ही नतीजा होता है। मुझसे बेहतर आप बता सकते है क्यूंकि आप शादी सुदा हैं। उसके बाद दोस्त के चेहरे को देख सामने से हट जाना बेहतर समझा...
2 comments:
Deepakji yah soch ka sawal hai. aapne sahi kaha hamare desh men anpadh aur grameen log unse kahin jyada achhe hain jo shaharon men rah kar naitikta ko roz thenga dikhate hain.
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