देश का कोई भी कोना किसी एक का नही है, भारतीय होने के नाते कोई भी कही भी आ जा सकता है, रोजी रोटी खा कमा सकता है... लेकिन किंतु परन्तु करने के लिए कुछ तथाकथित नेता टाइप लोगों ने देश को क्षेत्र में बाँट रहे हैं... कहाँ तक सही है यह हम और आप को सोचना है...
बोलने को तो नेता बोल लेते हैं लेकिन सच में ये नेता कहलाने लायक हैं क्या? राज ठाकरे जैसे लोग नेता नही... कबीले के सरदार हुआ करते हैं...
इन सरे राजनीती के बीच हम सारे एक बात भूल रहें है की राजनीतिक पार्टियों का रूख क्या है... अभी मुंबई में पूर्वांचली (बिहार और यूपी) को निबटाया जा रहा है, इससे पहले असम में कुछ ऐसा ही हुआ था... दोनों स्थानों पर कांग्रेस की सरकार है... सताए जाने वाले क्षेत्रों मने कांग्रेस मृतप्रायः पहले से ही है... इस घटना के बाद पुरी तरह से सुपदा साफ होना चाहिए...
शरद पवार की पार्टी का वैसे तो कोई विशेष पकर नही है इस क्षेत्र में लेकिन जो भी थोड़ा बहुत है ख़तम होना जरुरी है...
देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है बीजेपी जो महाराष्ट्र में शिव सेना के साथ गठबंधन करके सत्ता में आने का ख्वाब संजोये है... तभी इस मुद्दे पर चुप्प है... बीजेपी को नही भूलना चाहिए की बिहार और यूपी ऐसा प्रान्त है की इसके समर्थन के बगैर आज तक कोई सत्ता पर काबिज नही हो सका है। जो होने की कोशिश किया वह नही टिक पाया... बीजेपी को चुप्पी का परिणाम भुगतना पड़ेगा...
भाषाई आधार पर आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु, गुजरात और महाराष्ट्र जल रहा था, तब उसे बचाने के लिए उत्तर भारत के बजाये सरे कारखाने दक्षिण में लगाया गया इसका मतलब ये थोड़े है की मुम्बैकर के अलावा कोई मुंबई में न रहे...
देश और देश के राज्यों को नही भूलना चाहिए की... बिहार और पूर्वी यूपी ऐसा क्षेत्र है जहाँ संघर्ष के बाद नेतृत्व करने वाले नेता निकलते है... बुढ्ढे होने के बाद भी जेपी १९७४ का आन्दोलन का नेतृत्व करते है तो नीतीश, सुशिल और लालू जैसे नेता सामने आते है, बी एच यु का आन्दोलन होता है तो चंद्रशेखर पैदा होता है... कोई दादागिरी करके चांदी के चम्मच के साथ पैदा नही होता है राजनीती करने के लिए...
एक बेरोजगार और फ्रस्टेट युवक जब छोटी घटना को अंजाम देकर देश की राजनीती में हलचल ला सकता है... शेर के मांद में पहुँच कर... पढ़े लिखे और अधिकारी टाइप तो मुंबई में पहले से मौजूद है... सबने मन बना लिया तो क्या होगा मुंबई का... सोचकर देखना धुरंधरो राजनीती के... १९४२ का आन्दोलन किसी नेता का नही जनता का था, १८५७ का विद्रोह किसी राजनेता ने नही किया था, १९७४ का छात्र आन्दोलन किसी पार्टी ने नही किया था... मुट्ठीभर छात्र काफी है... मामले को सुलझाने के लिए... मिटा दो शिवसेना और मनसे को जड़ से... संकीर्ण मानसिकता वाले नेताओ के पुतले मत फूकों... जिन्दा जला दो... कुछ समय के लिए देश सह लेगा...
आख़िर थोड़े थोड़े तड़प तड़प कर मरने से अच्छा है की मिटा दे एक बार में....
Friday, October 31
Tuesday, October 28
होश में आओ राज
राज ठाकरे की राजनीती ने पटना के राहुल राज जैसे सीधे सरल आदमी को हथियार उठाने पर मजबूर कर दिया। राज की चमचागिरी कर रही कांग्रेस एनसीपी सरकार ने पुलिस को हत्या करने का आदेश दे रखा है शायद... बिहारी और पूर्वांचली की तभी तो सारी हदों को तोड़ कर समर्पण करने के बदले हत्या करती है राहुल राज का... पेट और माथे पर गोली मरकर...
आज मन नही कर रहा है की दीपावली में दीप और पटाखा जलाएं... मन खिन्न हो गया... ब्लैक आउट करेंगे आज के दिन बिना कोई दीप जलाये...
राज ठाकरे और महारास्ट्र के लोगों को... सभी राजनितिक पार्टियों को भी समझना होगा... उसकी राजनीती बीना पूर्वांचली के सपोर्ट के जींदा नही रह सकता है...
एक नही हजारों है राह में तैयार मिटने को... क्षुद्र राज के लिए नही अपनी आन, बाण, शान के लिए...
आज मन नही कर रहा है की दीपावली में दीप और पटाखा जलाएं... मन खिन्न हो गया... ब्लैक आउट करेंगे आज के दिन बिना कोई दीप जलाये...
राज ठाकरे और महारास्ट्र के लोगों को... सभी राजनितिक पार्टियों को भी समझना होगा... उसकी राजनीती बीना पूर्वांचली के सपोर्ट के जींदा नही रह सकता है...
एक नही हजारों है राह में तैयार मिटने को... क्षुद्र राज के लिए नही अपनी आन, बाण, शान के लिए...
Tuesday, October 21
एक चेहरा
एक चेहरा
चुभ जाए
मेरी आंखों में
और मैं
सूरदास बन जाऊँ
तलाश जिंदगी की
जो बदहवाश हो
राधा की तरह
और मैं
कृष्ण न बन पाऊं।
चुभ जाए
मेरी आंखों में
और मैं
सूरदास बन जाऊँ
तलाश जिंदगी की
जो बदहवाश हो
राधा की तरह
और मैं
कृष्ण न बन पाऊं।
Friday, October 17
एकता परिसद में अनेकता
लगभग पचास सालों में१४ वीं बैठक १३ अक्टूबर को शुरू दो दिन के हुई। साढे तीन साल के बाद राष्ट्रीय एकता परिषद् की बैठक दिल्ली में शुरू हुई। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हर तरह की हिंसा की निंदा की गई। सांप्रदायिक हिंसा और आतंकवाद से कडाई से निबटने का फैसला भी इस बैठक में लिया गया।
दो दिन चले इस बैठक में कई बार मतभेद साफ दिखाई दिया। बैठक के शामिल लोग "अपनी डफली अपना राग" अलाप रहे थे। उरिसा और कर्णाटक में उपजी हिंसा (कथित तौर पर सांप्रदायिक) को लेकर बीजद और भाजपा को कशुर्वर ठहराने में स्वयम गृह मंत्री आँखे तरेर रहे थे। उस समय सांकेतिक तौर पर मनमोहन सिंह को कायर करार देने वाले लालू यादव पाटिल की पीठ थपथपा रहे थे।
दूसरी और पोटा जैसे कड़े क़ानून का समर्थन और धर्मपरिवर्तन सम्बन्धी क़ानून बनाने की बात जोरदार ढंग से रखने वाले भाजपा बिग्रेड नेता नरेन्द्र मोदी ने यहाँ तक कह डाला की सरकार उग्रवाद और आतंकवाद के बीच फर्क नही समझती। मानवाधिकार के नाम पर आतंकवादी तत्वों को समर्थन करने वाले बुद्धिजीवियों को अलग-थलग करने की जरुरत पर बल दिया।
बिहार के मुख्यमंत्री बुद्ध की भांति मध्यम मार्ग अपनाते हुए सांप्रदायिक सद्भाव के बारे में कहा गठबंधन के इस युग में सरकारों को सभी समुदायों का ध्यान रखना जरूरी है। नीतीश कुमार जिसकी बात कर रहे थे, एकता परिषद् की बिसात ही इसी पर आधारित है। परिषद् का गठन १९६१ में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपनी अध्यक्षता में की।
परिषद् के गठन के बाद पहली बैठक ओक्टूबर १९६१ में हुई। बैठक में फैसला लिया गया की साम्प्रदायिकता, जातिवाद, क्षेत्राबाद, भाषावाद, और अन्य मुद्दे जिससे राष्ट्रीय एकता परिषद् की बैठक में उस मुद्दे पर चर्चा करते हुए समाधान ढूंढा जाएगा।
परिषद् के गठन के बाद से अब तक 1४ बैठके हो चुकी है। राष्ट्रीय एकता और अखंडता जैसे संवेदनशील मुद्दे पर भारतीय राजनीती कितने जागरूक है इसका अंदाजा अन्तिम तीन बैठक से लगाया जा सकता है। 1२ वीं बैठक नवम्बर १९९२ में हुई कश्मीर और पंजाब के मुद्दे को लेकर लेकिन बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि को लेकर खिंचतान के साथ बैठक ख़त्म हुई। तेरहवीं बैठक तेरह साल बाद अक्टूबर २००५ में हुआ। १४ वीं बैठा वोट की राजनीती के शूली पर चढ़ा...
दो दिन चले इस बैठक में कई बार मतभेद साफ दिखाई दिया। बैठक के शामिल लोग "अपनी डफली अपना राग" अलाप रहे थे। उरिसा और कर्णाटक में उपजी हिंसा (कथित तौर पर सांप्रदायिक) को लेकर बीजद और भाजपा को कशुर्वर ठहराने में स्वयम गृह मंत्री आँखे तरेर रहे थे। उस समय सांकेतिक तौर पर मनमोहन सिंह को कायर करार देने वाले लालू यादव पाटिल की पीठ थपथपा रहे थे।
दूसरी और पोटा जैसे कड़े क़ानून का समर्थन और धर्मपरिवर्तन सम्बन्धी क़ानून बनाने की बात जोरदार ढंग से रखने वाले भाजपा बिग्रेड नेता नरेन्द्र मोदी ने यहाँ तक कह डाला की सरकार उग्रवाद और आतंकवाद के बीच फर्क नही समझती। मानवाधिकार के नाम पर आतंकवादी तत्वों को समर्थन करने वाले बुद्धिजीवियों को अलग-थलग करने की जरुरत पर बल दिया।
बिहार के मुख्यमंत्री बुद्ध की भांति मध्यम मार्ग अपनाते हुए सांप्रदायिक सद्भाव के बारे में कहा गठबंधन के इस युग में सरकारों को सभी समुदायों का ध्यान रखना जरूरी है। नीतीश कुमार जिसकी बात कर रहे थे, एकता परिषद् की बिसात ही इसी पर आधारित है। परिषद् का गठन १९६१ में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपनी अध्यक्षता में की।
परिषद् के गठन के बाद पहली बैठक ओक्टूबर १९६१ में हुई। बैठक में फैसला लिया गया की साम्प्रदायिकता, जातिवाद, क्षेत्राबाद, भाषावाद, और अन्य मुद्दे जिससे राष्ट्रीय एकता परिषद् की बैठक में उस मुद्दे पर चर्चा करते हुए समाधान ढूंढा जाएगा।
परिषद् के गठन के बाद से अब तक 1४ बैठके हो चुकी है। राष्ट्रीय एकता और अखंडता जैसे संवेदनशील मुद्दे पर भारतीय राजनीती कितने जागरूक है इसका अंदाजा अन्तिम तीन बैठक से लगाया जा सकता है। 1२ वीं बैठक नवम्बर १९९२ में हुई कश्मीर और पंजाब के मुद्दे को लेकर लेकिन बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि को लेकर खिंचतान के साथ बैठक ख़त्म हुई। तेरहवीं बैठक तेरह साल बाद अक्टूबर २००५ में हुआ। १४ वीं बैठा वोट की राजनीती के शूली पर चढ़ा...
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राजनीती
Tuesday, October 7
समय कहाँ...
हम युवाओं को
इतना समय कहाँ
जो सोचे
पथ से भटके हैं
या भटकाए गए हम।
जो भी हो
रोटी के टुकडे के लिए
जीवन-म्रत्यु के
झूले पर
लतगाये गए हम।
इतना समय कहाँ
जो सोचे
पथ से भटके हैं
या भटकाए गए हम।
जो भी हो
रोटी के टुकडे के लिए
जीवन-म्रत्यु के
झूले पर
लतगाये गए हम।
Sunday, October 5
तस्बीर कहता है क्या... मन
धर्म के ठेकेदारों इसको किस बात की सजा दे दी। ये नन्हीं जान ने क्या बिगडा था तेरा जो जिन्दगी की जलालत दे दी जीने के लिए... अब कौन बनेगा इसका सहारा है जवाब... मिल जाए तो बताना... ।
जिन्दगी का नाम है ऊर्जा, शक्ति, उत्साह और खुशी... मुस्कान तो देखो इसका... ।
रईसजादों की तरह मंहगी और आयातीत शराब तो पी नहीं सकता क्यों बीडी पर पर गए हो स्वास्थय मंत्री जी, क्या कोंग्रेस का हाथ, गरीबों के साथ यही है की गरीबों के खुशी, दुःख बाँटने के हथियार ही छीन लो, चलो माना थोडा नुकसान भी देता है तो क्या आपको नही पता है। बीडी रोजगार से कितने लोगों का पेट भरता है। मंत्री जी जैसे जी रहे हैं जीने दो... यही कह रहा है ये बंद... ।
जिन्दगी का नाम है ऊर्जा, शक्ति, उत्साह और खुशी... मुस्कान तो देखो इसका... ।
रईसजादों की तरह मंहगी और आयातीत शराब तो पी नहीं सकता क्यों बीडी पर पर गए हो स्वास्थय मंत्री जी, क्या कोंग्रेस का हाथ, गरीबों के साथ यही है की गरीबों के खुशी, दुःख बाँटने के हथियार ही छीन लो, चलो माना थोडा नुकसान भी देता है तो क्या आपको नही पता है। बीडी रोजगार से कितने लोगों का पेट भरता है। मंत्री जी जैसे जी रहे हैं जीने दो... यही कह रहा है ये बंद... ।
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