Friday, October 31

पूर्वांचली एक मिशाल है...

देश का कोई भी कोना किसी एक का नही है, भारतीय होने के नाते कोई भी कही भी आ जा सकता है, रोजी रोटी खा कमा सकता है... लेकिन किंतु परन्तु करने के लिए कुछ तथाकथित नेता टाइप लोगों ने देश को क्षेत्र में बाँट रहे हैं... कहाँ तक सही है यह हम और आप को सोचना है...

बोलने को तो नेता बोल लेते हैं लेकिन सच में ये नेता कहलाने लायक हैं क्या? राज ठाकरे जैसे लोग नेता नही... कबीले के सरदार हुआ करते हैं...

इन सरे राजनीती के बीच हम सारे एक बात भूल रहें है की राजनीतिक पार्टियों का रूख क्या है... अभी मुंबई में पूर्वांचली (बिहार और यूपी) को निबटाया जा रहा है, इससे पहले असम में कुछ ऐसा ही हुआ था... दोनों स्थानों पर कांग्रेस की सरकार है... सताए जाने वाले क्षेत्रों मने कांग्रेस मृतप्रायः पहले से ही है... इस घटना के बाद पुरी तरह से सुपदा साफ होना चाहिए...

शरद पवार की पार्टी का वैसे तो कोई विशेष पकर नही है इस क्षेत्र में लेकिन जो भी थोड़ा बहुत है ख़तम होना जरुरी है...
देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है बीजेपी जो महाराष्ट्र में शिव सेना के साथ गठबंधन करके सत्ता में आने का ख्वाब संजोये है... तभी इस मुद्दे पर चुप्प है... बीजेपी को नही भूलना चाहिए की बिहार और यूपी ऐसा प्रान्त है की इसके समर्थन के बगैर आज तक कोई सत्ता पर काबिज नही हो सका है। जो होने की कोशिश किया वह नही टिक पाया... बीजेपी को चुप्पी का परिणाम भुगतना पड़ेगा...

भाषाई आधार पर आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु, गुजरात और महाराष्ट्र जल रहा था, तब उसे बचाने के लिए उत्तर भारत के बजाये सरे कारखाने दक्षिण में लगाया गया इसका मतलब ये थोड़े है की मुम्बैकर के अलावा कोई मुंबई में न रहे...

देश और देश के राज्यों को नही भूलना चाहिए की... बिहार और पूर्वी यूपी ऐसा क्षेत्र है जहाँ संघर्ष के बाद नेतृत्व करने वाले नेता निकलते है... बुढ्ढे होने के बाद भी जेपी १९७४ का आन्दोलन का नेतृत्व करते है तो नीतीश, सुशिल और लालू जैसे नेता सामने आते है, बी एच यु का आन्दोलन होता है तो चंद्रशेखर पैदा होता है... कोई दादागिरी करके चांदी के चम्मच के साथ पैदा नही होता है राजनीती करने के लिए...

एक बेरोजगार और फ्रस्टेट युवक जब छोटी घटना को अंजाम देकर देश की राजनीती में हलचल ला सकता है... शेर के मांद में पहुँच कर... पढ़े लिखे और अधिकारी टाइप तो मुंबई में पहले से मौजूद है... सबने मन बना लिया तो क्या होगा मुंबई का... सोचकर देखना धुरंधरो राजनीती के... १९४२ का आन्दोलन किसी नेता का नही जनता का था, १८५७ का विद्रोह किसी राजनेता ने नही किया था, १९७४ का छात्र आन्दोलन किसी पार्टी ने नही किया था... मुट्ठीभर छात्र काफी है... मामले को सुलझाने के लिए... मिटा दो शिवसेना और मनसे को जड़ से... संकीर्ण मानसिकता वाले नेताओ के पुतले मत फूकों... जिन्दा जला दो... कुछ समय के लिए देश सह लेगा...

आख़िर थोड़े थोड़े तड़प तड़प कर मरने से अच्छा है की मिटा दे एक बार में....

2 comments:

Saurabh said...

आपने बिल्कुल सही कहा मित्र.

Saurabh said...

आपने बिल्कुल सही कहा मित्र.
ऐसी ही कुछ बातें नीचे लिखे ब्लॉग पर हो रही हैं
http://bharash.blogspot.com