Thursday, January 28
क्यों यमदूत बनते जा रहे हैं डाक्टर
Sunday, January 24
संघर्ष का काला हीरो आ॓बामा
पुस्तक ‘बराक आ॓बामा : ब्लैक हीरो इन व्हाइट हाउस’ एक जीवनी है। आ॓बामा एक संघर्ष का नाम है, एक जिजीविषा का नाम है। उनकी फौलादी सोच व दृढ़ संकल्प का ही परिणाम है कि आज व्हाइट हाउस के ब्लैक हीरो हैं। ये वही आ॓बामा हैं जिन्हें वर्ष 2000 में कांग्रेस अधिवेशन में प्रवेश तक की अनुमति नहीं मिली। आ॓बामा पहले अमेरीकी अश्वेत राष्ट्रपति हैं। अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी व नस्लीय संघर्ष में आंदोलन करने वाले मार्टिन लूथर को आदर्श मानने वाले अश्वेत बराक आ॓बामा का अमेरिकी राष्ट्रपति बनना, केवल आ॓बामा की जीत नहीं बल्कि अमेरीका में ए क नए युग की शुरूआत है। इस पुस्तक में अमेरीकी राष्ट्रपति आ॓बामा के बचपन से लेकर अब तक के कई अनछुए पहलुओं को उजागर किया है। कहां पैदा हुए और किस जगह पर खड़े हैं? यह अपने हाथ में नहीं होता लेकिन भविष्य क्या है और दुनियां उन्हें किस रूप में याद रखे, यह अपने हाथ में है।
‘यस वी केन’ कहने वाले आ॓बामा ने दुनिया के सामने ए क मिसाल पेश की है। इस पुस्तक को तैयार करने के लिए समाचार पत्रों व पत्रिकाओं के प्रकाशित लेखों से सहायता ली गई है। अखबारों की कतरनें पुस्तक की शक्ल भी ले सकती है, इस बात को लेखक धामा ने बखूबी दर्शाया है। पुस्तक पठनीय है।
-दीपक राजा
पुस्तक - बराक आ॓बामा : ब्लैक हीरो इन व्हाइट हाउस लेखक - तेजपाल सिंह धामा प्रकाशक - हिन्द पाकेट बुक्स, नई दिल्ली मूल्य - ए क सौ पचास रूपए मात्र
Saturday, January 23
हंगामा क्यू है... थोड़ी सी जो ‘कही’
नई दिल्ली के विज्ञान भवन में सम्पन्न डी कानूनविदों के दो दिवसीय सम्मेलन (21-२२ दिसम्बर) में पूर्व कानून मंत्री राम जेठमलानी का भाषण काफी विवादास्पद रहा। ‘आतंकवाद का खात्मा’ विषयक इस सम्मेलन के पहले ही दिन राम जेठमलानी के ‘वहाबी आतंकवाद’ पर चर्चा करना भारत में सऊदी अरब के राजदूत को इतना अखर गया कि वह सम्मेलन से ही उठकर चले गए । स्थिति यह हो गई कि बिगड़े माहौल को संभालने के लिए कानून मंत्री वीरप्पा मोइली को सामने आना पड़ा। सम्मेलन पूर्व कानून मंत्री के वक्तव्य के खंडन और निजी राय बताने में बीत गया। इस सम्मेलन में राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश केजी बालकृष्णन, अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के जज के अलावा कई देशों के राजनयिक व कानूनविद मौजूद थे। अखिल भारतीय वरिष्ठ अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष की हैसियत से सम्मेलन में शामिल हुए पूर्व कानून मंत्री राम जेठमलानी ने आतंकवाद फैलाने के लिए सीधे-सीधे वहाबी समुदाय पर अंगुली क्या उठाई हंगामा मच गया। उन्होंने कहा कि ‘‘सउदी अरब के वहाबी लोग पूरी दुनिया में आतंकवाद फैला रहे हैं। ‘वहाब’ युवाओं के दिमाग में जहर घोल रहा है। जो देश वहाब आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं, भारत उसके साथ दोस्ती निभा रहा है।’’ जेठमलानी यहीं नहीं रूके, उन्होंने सभी देशों से आग्रह किया कि वे इसके साथ सभी सम्बन्ध तोड़ लें। जेठमलानी के बयान से आहत भारत में सऊदी अरब के राजदूत फैसल-अल-त्राद ने न केवल मंच पर बैठीं राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के पास जाकर शिकायत की वरन कार्यक्रम का ही बहिष्कार कर दिया और विज्ञान भवन से बाहर चले गए । विज्ञान भवन से बाहर राजदूत ने जो बयान दिया उसे भी किसी सूरत में उचित नहीं माना जा सकता। राजदूत ने कहा कि ‘भारत में 20 करोड़ मुसलमान रहते हैं और जेठमलानी को इसका ध्यान नहीं है।’ कार्यक्रम का बहिष्कार करने वाले राजदूत को यह समझना चाहिए था कि किसी भी विषय पर जब सम्मेलन होता है, तो उसके हर दृष्टिकोणों पर चर्चा होती है। जरूरी नहीं है कि सारी चीजें आपके पक्ष में हों। वहाबी पर अगर जेठमलानी के वक्तव्य पर इतना बखेड़ा किया गया है, तो जेठमलानी के उस वक्तव्य पर कोई उन्हें शाबाशी क्यों नहीं दे रहा है, जिसमें उन्होंने कहा ‘...दुर्भाग्य है कि आतंकवाद के लिए इस्लाम को बदनाम किया जा रहा है जबकि यहां हिन्दू और बौद्ध आतंकवादी भी हैं।’ आज तक किसी ने इतने बड़े मंच से और सार्वजनिक तौर पर दृढ़ता के साथ यह बात कहने की हिम्मत नहीं की। पेट्रो डालर के आकंठ में डूबे देश के नाराज राजदूत को मनाने के लिए कानून मंत्री वीरप्पा मोइली ने उसी मंच से तुरंत ही पूर्व कानून मंत्री के वक्तव्य को खारिज करते हुए उसे निजी बयान बताया और कहा कि इस बयान से सरकार का कोई लेना-देना नहीं है। कानून मंत्री इसकी घोषणा नहीं भी करते तो भी राम जेठमलानी का यह बयान सरकार का नहीं होता, क्योंकि सम्मेलन में कोई व्यक्ति अपना विचार व्यक्त करने भर से सरकार का नहीं हो जाता। ‘वहाबी आतंकवाद’ की बात करते हुए जेठमलानी ने कहा कि 17वीं (मंच पर बैठे अंतरराष्ट्रीय कोर्ट के जज अवान ए स. अल-खासनेवह ने इसे दुरूस्त करते हुए कहा 18वीं) शताब्दी में इस मत के लोगों ने कर्बला में कत्लेआम किया और हर उदार व्यक्ति को मार दिया। यह उन सभी लोगों के खिलाफ है जो उदार हैं चाहे वह हिन्दु, ईसाई, यहूदी हो या फिर शिया मुस्लिम ही क्यों न हों। वहाबी मत की शुरूआत 18वीं सदी में सउदी अरब में ए क मुस्लिम विद्वान मोहम्मद इब्न अब्द अल वहाब ने की। उनके अनुसार छठी सदी में इस्लाम के उदय के समय की चार पीढ़ियां ही सही थीं। उसके बाद इसमें कई विकार आए , इसलिए उस समय के इस्लाम को ही इस्लाम माना जाए । मुस्लिम जगत को इस मत के लोग उसी दिशा में पीछे ले जाना चाहते हैं। भारत में वहाबी इतिहास को खंगालने पर पता चलता है कि पतन की आ॓र अग्रसर सिख राज्य के खिलाफ वहाबियों ने जेहाद छेड़ा था। अंग्रेजों के साथ हुई दो लड़ाइयों में जीर्ण-शीर्ण सिख राज्य खत्म हो गया और उसे ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया। उसके बाद वहाबियों ने अंग्रेजों के खिलाफ जेहाद छेड़ा। अंग्रेजों से खदेड़े जाने पर इन लोगों ने मस्जिद में पनाह ली। जेठमलानी ने वहाबी आतंकवाद की बात करते हुए कहा कि हमने कुरान पढ़ी है। इस्लाम ‘शांति’ का धर्म है। इस्लाम शब्द का उद्भव ‘सलाम’ शब्द से हुआ जिसका अर्थ है ‘शांति’। हर मुसलमान का हक है कि वह इस्लाम के बुनियादी ढांचे को जाने, माने, उस पर अमल करे और पूरी दुनिया को इसके महत्व के बारे में बताए । इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं निकलता कि मार-काट और हथियार के बल पर अपने मत का प्रचार-प्रसार करें, क्योंकि ए ेसा करना आतंकवाद ही है। आतंकवादी वह हर व्यक्ति है जो आतंक और भय का कारण हो, जिसके आतंक व भय से दूसरा डरे। विरासत का दम्भ भर रहे सउदियों को आईना दिखाना बुरा लगता है, जो शायद जेठमलानी के ए क वक्तव्य में ए ेसा ही करने की कोशिश की थी। पेट्रो डालर की मदहोशी में डूबे सउदी अरब के शेख-सुल्तान इस्लाम जगत की तरक्की के लिए क्या कर रहे हैं? पाम आइलैंड टावर व माइल-हाईपावर बनाना, मैच फिक्सिंग का रैकेट चलाना और घुड़दौड़ में पैसा लगाना आदि आदि। भारत-नेपाल सीमाओं में मदरसे खुलवाने में सिमी, हुजी, इंडियन मुजाहिद्दीन जैसे संगठनों को खुले हाथों से मदद की जा रही है। इन मदरसों में ‘क्या’ सिखाया पढ़ाया जाता है, यह किसी से छिपा नहीं है। ‘मुस्लिम हैं हम वतन है सारा जहां हमारा’ का नारा देने वाले इन अमीर शेखों का हाथ नाइजीरियाल अंगोला, सोमालिया जैसे देशों की मदद के लिए आगे क्यों नहीं आता, जहां लाखों मुसलमान भूखे मर रहे हैं। कानूनविदों का दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान जेठमलानी के बयान के तुरंत बाद मोइली साहब को स्पष्टीकरण देने में इतनी हड़बड़ी क्यों दिखानी पड़ी? वहाबी की शिक्षा के लिए उनके शार्गिद जो ‘कत्ताल’, ‘कुफ्र’ और ‘जिहाद’ का खेल रहे हैं, वह किसी से छुपा नहीं है। अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी आ॓सामा बिन लादेन का संगठन अलकायदा की प्रेरणा वहाबी विचार ही है। वहाब के प्रभाव में आज पाकिस्तान, अफगानिस्तान व अरब के कई मुल्क हैं। अक्टूबर 2003 में तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री रम्सफेल्ड ने प्रश्न उठाया था कि क्या हम उतने आतंकियों को पकड़ या मार रहे हैं जितने आतंकी हमारे खिलाफ कट्टरपंथी धर्मगुरूओं द्वारा तैयार किए जा रहे हैं? स्वाभाविक है इस सवाल का जवाब सकारात्मक नहीं हो सकता। यह प्रश्न उठाने को मजबूर किया है ऐसे आंदोलन ने जो विश्व पर फिर से इस्लामिक साम्राज्य स्थापित करने की आकांक्षा लिए शरीयत का शासन स्थापित करना चाहता है। इसके लिए कुरान और हदीस का उपयोग कर रहा है। जब तक कट्टरपंथी विचारधारा का प्रभाव बना रहेगा और मुस्लिम समाज के ए क बड़े वर्ग की मानसिकता इस विचारधारा की बंधक बनी रहेगी, तब तक आतंकी गतिविधियां किसी न किसी रूप में सामने आती रहेंगी। दीपक राजा