Thursday, September 10
Thursday, August 27
Tuesday, August 25
Sunday, August 23
Monday, August 17
Thursday, August 13
सच के हक
अगर
तुम सही हो तो
मनवाने के लिए,
जरूरत नहीं डंडे की।
कुछ तो मुझ पर भी
छोड़ दो खुद-ब-खुद,
समझने की
गलत को गलत
सच को सच।
सच थोपना,
सच के हक में
अच्छी बात नहीं,
सुन भी लो कभी
जो कहते हो सच-सा।
तुम सही हो तो
मनवाने के लिए,
जरूरत नहीं डंडे की।
कुछ तो मुझ पर भी
छोड़ दो खुद-ब-खुद,
समझने की
गलत को गलत
सच को सच।
सच थोपना,
सच के हक में
अच्छी बात नहीं,
सुन भी लो कभी
जो कहते हो सच-सा।
Sunday, June 21
स्वातंत्र्य चेतना का दस्तावेज
स्वातंत्र्य चेतना का दस्तावेज ‘अरावली के मुक्त शिखर’
मुगल बादशाह जलालुउद्दीन अकबर के काल में महाराणा प्रताप के स्वातंत्र्य संघर्ष की गाथा ‘‘अरावली के मुक्त शिखर’ उपन्यास के रूप में पाठकों के बीच प्रस्तुत की है कलमकार डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद ने और प्रकाशक है शिवांक। महाराणा प्रताप जब तक जीवित रहे, अकबर की विस्तारवादी नीतियों का विरोध करते रहे। मुगल बादशाह को महाराणा प्रताप ने चैन से नहीं बैठने दिया। महाराणा प्रताप ने ताउम्र उनकी हुकूमत का न केवल विरोध किया बल्कि अन्य राजाओं से तालमेल कर डटकर मुकाबला भी किया। उनकी इस संघर्ष गाथा को आलोच्य पुस्तक में बखूबी शब्दों से पिरोया गया है।
इसमें महाराणा प्रताप के अलावा भामाशाह जैसे व्यापारी, भील सरदार राणा पूंजा के त्याग का वर्णन है तो दूसरी ओर चित्ताैड़ के आर्थिक और सामरिक परिवेश का भी चितण्रहै। अकबर की बड़ी बेगम जोधाबाई के जीवन के यथार्थ और अंतद्र्वद्व का अहसास पाठकों को इस ऐतिहासिक उपन्यास से होता है। मुगल तुर्क अकबर ने अपने साम्राज्य को विस्तार देने के लिए सैन्य बल के सहारे कई राजपूत राज्यों को अपने अधीन कर लिया। अपनी शक्ति के विस्तार के लिए उन्होंने अवसरानुकूल राजपूत कन्याओं से विवाह भी किया। इनमें आमेर की राजकुमारी जोधा को बड़ी बेगम का दर्जा मिला। यह दर्जा मिलने के बाद भी मीराबाई से तुलना कर जोधा कुंठाग्रस्त हो जातीं। उन्होंने खुद का स्थान मीराबाई से कमतर पाया क्योंकि मीरा के पदों के का संसार कायल रहा।..और वह राजपूत कन्या होने के बाद भी अपने बच्चे को शिक्षा देने में अक्षम क्योंकि उनका बेटा मुगल परंपरा आत्मसात कर रहा था। जोधा के इस अंतद्र्वद्व को लेखक ने अपने तरीके से प्रस्तुत किया है। यह लेखक क्षमता का ही कमाल है कि पाठक इस कृति को पढ़ते वक्त पन्ने पर अंकित संख्या की ओर ध्यान दिये बगैर पढ़ता चला जाता है।
ऐतिहासिक उपन्यास लिखना आसान नहीं होता। उसे प्रमाणिकता की कसौटी पर भी कसना होता है। इसके लिए लेखक ने इतिहास के सैकड़ों नहीं हजारों पन्नों को खंगाला। उन्होंने मेवाड़, हल्दीघाटी और चित्ताैड़ की यात्राएं भी कीं। रोजमर्रा के जीवन से लेकर लड़ाई के मैदान में भी राणा प्रताप ने नैतिकता का साथ नहीं छोड़ा। युद्ध में अकबर के सेनापति अब्दुल रहीम खानखाना की बेगम को बंदी बनाने पर महाराणा ने कुंवर अमर को दुश्मन सेनापति से माफी मांगने भेजा। प्रताप की इस नैतिकता और देशभक्ति से प्रभावित रहीम खानखाना उन पर कविता लिखने को विवश होते हैं। यही महाराणा की जीत है।
महाराणा प्रताप इस बात को बखूबी समझ गए थे कि स्वतंत्रता बनाये रखने के लिए समाज की सभी जातियों के साथ सद्भाव और तालमेल जरूरी है। यह आज भी प्रासंगिक है। भ्रष्ट आचरण और विचार को समाप्त करने के लिए नैतिकता का होना नितांत आवश्यक है। इस उपन्यास में प्रताप की नैतिकता, जातीय तालमेल और सौहार्द के पक्ष, उस समय की लोककथाओं और आर्थिक परिवेश, जोधाबाई की उलझन का चितण्रकहीं कहीं लेखक को आचार्य चतुरसेन और अमृत लाल नागर की श्रेणी में भी खड़ा करता दिखता है।
- दीपक राजा
Published in Rashtriya Sahara 14th June 2015 Page 11
मुगल बादशाह जलालुउद्दीन अकबर के काल में महाराणा प्रताप के स्वातंत्र्य संघर्ष की गाथा ‘‘अरावली के मुक्त शिखर’ उपन्यास के रूप में पाठकों के बीच प्रस्तुत की है कलमकार डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद ने और प्रकाशक है शिवांक। महाराणा प्रताप जब तक जीवित रहे, अकबर की विस्तारवादी नीतियों का विरोध करते रहे। मुगल बादशाह को महाराणा प्रताप ने चैन से नहीं बैठने दिया। महाराणा प्रताप ने ताउम्र उनकी हुकूमत का न केवल विरोध किया बल्कि अन्य राजाओं से तालमेल कर डटकर मुकाबला भी किया। उनकी इस संघर्ष गाथा को आलोच्य पुस्तक में बखूबी शब्दों से पिरोया गया है।
इसमें महाराणा प्रताप के अलावा भामाशाह जैसे व्यापारी, भील सरदार राणा पूंजा के त्याग का वर्णन है तो दूसरी ओर चित्ताैड़ के आर्थिक और सामरिक परिवेश का भी चितण्रहै। अकबर की बड़ी बेगम जोधाबाई के जीवन के यथार्थ और अंतद्र्वद्व का अहसास पाठकों को इस ऐतिहासिक उपन्यास से होता है। मुगल तुर्क अकबर ने अपने साम्राज्य को विस्तार देने के लिए सैन्य बल के सहारे कई राजपूत राज्यों को अपने अधीन कर लिया। अपनी शक्ति के विस्तार के लिए उन्होंने अवसरानुकूल राजपूत कन्याओं से विवाह भी किया। इनमें आमेर की राजकुमारी जोधा को बड़ी बेगम का दर्जा मिला। यह दर्जा मिलने के बाद भी मीराबाई से तुलना कर जोधा कुंठाग्रस्त हो जातीं। उन्होंने खुद का स्थान मीराबाई से कमतर पाया क्योंकि मीरा के पदों के का संसार कायल रहा।..और वह राजपूत कन्या होने के बाद भी अपने बच्चे को शिक्षा देने में अक्षम क्योंकि उनका बेटा मुगल परंपरा आत्मसात कर रहा था। जोधा के इस अंतद्र्वद्व को लेखक ने अपने तरीके से प्रस्तुत किया है। यह लेखक क्षमता का ही कमाल है कि पाठक इस कृति को पढ़ते वक्त पन्ने पर अंकित संख्या की ओर ध्यान दिये बगैर पढ़ता चला जाता है।
ऐतिहासिक उपन्यास लिखना आसान नहीं होता। उसे प्रमाणिकता की कसौटी पर भी कसना होता है। इसके लिए लेखक ने इतिहास के सैकड़ों नहीं हजारों पन्नों को खंगाला। उन्होंने मेवाड़, हल्दीघाटी और चित्ताैड़ की यात्राएं भी कीं। रोजमर्रा के जीवन से लेकर लड़ाई के मैदान में भी राणा प्रताप ने नैतिकता का साथ नहीं छोड़ा। युद्ध में अकबर के सेनापति अब्दुल रहीम खानखाना की बेगम को बंदी बनाने पर महाराणा ने कुंवर अमर को दुश्मन सेनापति से माफी मांगने भेजा। प्रताप की इस नैतिकता और देशभक्ति से प्रभावित रहीम खानखाना उन पर कविता लिखने को विवश होते हैं। यही महाराणा की जीत है।
महाराणा प्रताप इस बात को बखूबी समझ गए थे कि स्वतंत्रता बनाये रखने के लिए समाज की सभी जातियों के साथ सद्भाव और तालमेल जरूरी है। यह आज भी प्रासंगिक है। भ्रष्ट आचरण और विचार को समाप्त करने के लिए नैतिकता का होना नितांत आवश्यक है। इस उपन्यास में प्रताप की नैतिकता, जातीय तालमेल और सौहार्द के पक्ष, उस समय की लोककथाओं और आर्थिक परिवेश, जोधाबाई की उलझन का चितण्रकहीं कहीं लेखक को आचार्य चतुरसेन और अमृत लाल नागर की श्रेणी में भी खड़ा करता दिखता है।
- दीपक राजा
Published in Rashtriya Sahara 14th June 2015 Page 11
Saturday, April 4
नव वर्ष का नूतन अभिनन्दन
आओ करें जग वंदन
आओ करें जग वंदन
हर्ष हो, विषाद हो
हास हो, परिहास हो
पर जीवन में उल्लास हो
ऐसा हमारा संवाद दर्शन
नव जीवन को संसार मिले
जीवन को आधार
हंसने-हंसाने का दौर चले
जिनके जीवन में हो क्रंदन
सूर्य किरण की चादर ओढे
नदिया करती कलकल कलकल
खग के करलव करतल पर
न्यौछावर अपना जग जीवन
तुर्क फिरंगी आये कोय
चाहे जितना जुगत भिड़ाय
हम राणा, भामा हैं रज के
यही हमारा जीवन दर्शन
-दीपक राजा
हास हो, परिहास हो
पर जीवन में उल्लास हो
ऐसा हमारा संवाद दर्शन
नव जीवन को संसार मिले
जीवन को आधार
हंसने-हंसाने का दौर चले
जिनके जीवन में हो क्रंदन
सूर्य किरण की चादर ओढे
नदिया करती कलकल कलकल
खग के करलव करतल पर
न्यौछावर अपना जग जीवन
तुर्क फिरंगी आये कोय
चाहे जितना जुगत भिड़ाय
हम राणा, भामा हैं रज के
यही हमारा जीवन दर्शन
-दीपक राजा
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