अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला नहीं है टीवी चैनल पर एक दिन का बैन
NDTV पर सरकार ने एक दिन का बैन
लगाया, उसको लेकर हो-हल्ला मचाया जा रहा है। तथाकथित बुद्धजीवियों को लग रहा है कि
यह आपातकाल के दौर की आहट है। उन्हें या तो स्टंट करने में मजा आता है या किसी
पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं। या फिर जिस बौद्धिकता को लेकर अपने आन पर गुस्ताखी मान
रहे हैं, वह उसके लायक हैं ही नहीं। पूरे देश को पता है कि आपातकाल में पूरी
मीडिया ही नहीं देश के एक-एक लोगों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को निलंबित
कर दिया गया था। NDTV पर एक दिन के ऑफ एयर करना, वह भी उनकी
गलत रिपोर्टिंग के कारण, आपातकाल की आहट कैसे हो सकता है।
केंद्र सरकार ने NDTV पर सिर्फ एक
दिन के लिए ऑफ एयर होने का नोटिस दिया। इतने में ही तथाकथित बुद्धजीवी बिलविला
उठे। विशेषकर जो वामपंथी विचारधारा से हैं या उससे प्रभावित हैं। वामपंथी विचार को
मानने वालों या उनकी ओर झुकाव रखने वालों को देश हित से कभी कोई मतलब नहीं रहा। उन्हें
स्वहित सबसे प्रिय है। चाहे इसके लिए देश की सुरक्षा, अस्मिता, सामाजिक ताना-बाना
जाए चूल्हे में।
एक अंतर-मंत्रालय समिति ने सरकार को NDTV पर
30 दिन के ऑफ एयर करने की सिफारिश की थी। केंद्र सरकार सिर्फ मीडिया चैनल और उससे
जुड़े पत्रकारों को अहसास कराना चाहती थी। इसलिए चैनल के आर्थिक पक्ष को ध्यान
रखते हुए सिर्फ एक दिन का बैन लगाया। सरकार चाहती तो हूबहू शब्दश NDTV पर 30 दिनों के लिए बैन कर सकती थी लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया। यह
केंद्र सरकार की भलमानसी है।
इस तरह का चैनल पर बैन पहली बार नहीं लगी। पहले भी सरकारें
मीडिया चैनल के प्रसारण पर रोक लगाती रही है। उसके कुछ उदाहरण -
- 2005 में सिने वर्ल्ड में रात में एडल्ट मूवी दिखाने के कारण पूरे एक महीने के लिए बैन किया गया था।
- 2007 में एक महीने के लिए जनमत चैनल पर एक महीने का बैन लगाया गया। उसे गलत स्टिंग चलाने का दोषी पाया था।
- 2007 में एफटीवी और एएक्सएन को दो माह के लिए प्रतिबंधित किया गया।
- 2015 में भारत का नक्शा गलत दिखाने पर अलजजीरा पर 5 दिन का बैन लगाया गया था।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान द्वारा प्रदत्त
मौलिक अधिकार है जिसकी व्याख्या अनुच्छेद 19 में विस्तार से की गई है। इसी के तहत
पत्रकारिता यानि मीडिया से जुड़े संस्थानों और पत्रकारों को भी अधिकार प्राप्त है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर किसी को भी, कुछ भी बोलने, प्रदर्शन करने या
फिर प्रसारण करने का अधिकार नहीं है। संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का
अधिकार है स्वच्छंदता का नहीं। अनुच्छेद 19 के अनुसार, राज्य के पास संविधान और
कानूनों के तहत इस स्वतंत्रता को नियंत्रित करने का अधिकार है। कुछ विशेष
परिस्थितियों में, जैसे- बाह्य या आंतरिक आपातकाल, राष्ट्रीय सुरक्षा आदि।
एनडीटीवी पर एक दिन के लिए बैन को लेकर जिस तरह से हायतौबा
मचा है, विधवा विलाप हो रहा है। इसको राजनीतिक रंग देने में जुटा एक खास गुट है,
जो कभी जेएनयू में “भारत तेरे टुकड़े होंगे”
के नारे को भी अभिव्यक्ति की आजादी मान रहे थे। स्वतंत्रता के नाम पर कभी
देवी-देवताओं की नग्न पेटिंग्स बनाई जाती है। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर,
लोकतंत्र के नाम पर भौड़े प्रदर्शन को जनता समझ रही है।
-© दीपक कुमार
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