Sunday, June 15

आत्मतुष्टि

तारीख बदलने के साथ
बदलता जा रहा है दिशा और दशा
चाहे कोई भी एजेन्सी हो
पैसे पर बिक रहे हैं
और दिख भी रहे हैं बिकते हुए।

बात कोलकाता की देबीवानो हो
रोहतक की सरिता या फ़िर
संसार को समझाने की उम्र मे
कदम रखते-रखते सदा के लिए सुला दी
जाने वाली नॉएडा की कहानी हो।

हम निरीह हो केवल
चर्चा कर निकल लेते हैं
अपनी भड़ास
ब्लागिंग, किसी को मेल
और भेज कर संदेश।

फर्क कुछ पड़ेगा
यह सोचने का वक्त
न हमारे पास है और न आपके
बस आत्मतुष्टी के लिए
केवल व्यक्त करते हैं प्रतिक्रिया।

किसी से शिकायत क्योकर
हम उससे अलग कुछ नहीं
करते हैं केवल दंभ भरने का
गांधी मैदान मे लाठी लहराकर
इराक के खिलाफ अमेरिका को धमकाने का।

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