आज सुबह अंग्रेजी संस्करण के अखवार पन्ना दो पर एक समाचार पढ़ने को मजबूर कर दिया। सीपीअई के विधायक के बारे में दिया था। लिखा था की जब वो केवल १५ साल की थी तभी परिवार में पैसे की दिक्कत होने लगी। पिता रेलवे में क्लर्क थे। आमदनी इतना नही था की उसके पालन पोषण के साथ पढाई का भी खर्च उठा सके। जिस स्कूल में पढ़ती थी उसी स्कूल के एक शिक्छिका ने कहा यहाँ चपरासी की आवशयकता है। तुम चाहो तो कम करते हुए पढाई चालू रख सकती हो। समय बदला मैट्रिक पास होते होते स्कूल में ही क्लर्क की जरुरत हुए। फिर चपरासी से क्लर्क बनी तब वेतन था मात्र ११० रुपये।
आज कोलकाता के वूमेन कॉलेज में प्राध्यापिका हैं। सीपीआई की नजर आई तो उन्होंने चुनाव में उम्मीदवार बनाया। १७ हजार मतों के विजयी रही। कभी बेंच का धुल साफ करने वाली १५ साल की लड़की बंगाल के विकास की योजनाओ के बहस में भाग लेती है, संजीदा होकर। किसी ने सच कहा है कौन कहता है आसमान में सुराख़ नही होता, थोड़ा तबियत से पत्थर तो उछालो यारों
यहाँ यह बात पुरी तरह फिट बैठता है।
धन्यवाद
1 comment:
Sach mein.. acha laga sunkar
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