इतवार को बंगलुरु और सोमवार को अहमदाबाद के धमाके के बाद सूरत में मीले १८ जिंदा बम के बाद हो रहे राज नेताओ के आरोप-प्रत्यारोप को सुन यही कहा जा सकता है की ये क्या हो रहा है...
एनडीऐ के शासन में संसद के हमले से लेकर आज तक के सभी मामलो में गृह मंत्री का एक ही घिसा-पीटा बयाँ आता है- आतंकवाद को देश की भूमी पर टिकने नही देंगे लेकिन होता इसके ठीक उल्टा है। पोता कानून के ख़त्म करने के बाद थोड़ा जो डर पैदा हुआ था वो भी नही रहा यूंपीऐ के मुस्लमान प्रेम में।
देश को अभी और कुर्बानी देना होगा मुस्लिम तुस्ती के लिए। आप कुर्बानी देना न भी चाहे तो भी भारत सरकार के रूप में बैठे लोग ले लेंगे। कैसे लेंगे ये उनपर छोड़ दीजिए...
कितने दुःख की बात है जो पार्टी कभी साम्राज्यवाद के खिलाफ आजादी के आन्दोलन चलाये गाँधी के नेत्रितत्व में, वही पार्टी साम्राज्यवादी देश से करार करने के लिए सब कुछ दाँव पर लगा दिया। लोकतंत्र को भीड़तंत्र बनाने और विश्वास मत के लिए क्रिमिनल सांसदों के मत लेकर, होर्स ट्रेडिंग कर सरकार बचाई।
भाजपा नेता के एक बयाँ के तुंरत बाद गृह राज्य मंत्री प्रकाश जायसवाल का कहना की धमाका गुजरात के दंगे का बदले के भावना का नतीजा है। ऐसे सरकार से कैसे आशा की जाए की जाए की आंतक को जड़ से मिटा सकेगी।
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