बलिदान हुए हैं कितने, चमन आजाद कराने में।
अब तक ये बेकाम रहा, हम सबको समझाने में।।
आजाद चमन में, हम इतने आजाद हुए।
कष्ट बहुत ही होता है, अनुशासन अपनाने में।।
कथनी करनी में अन्तर, होता था पहले कभी।
अब तो, कथनी कथनी है, करनी नही जमाने में।।
रोये शायर का दिल, अक्षर अक्षर बने ग़ज़ल।
इसको समझ पायेगा कौन, इसके ही पैय्माने में।।
अब तक ये बेकाम रहा, हम सबको समझाने में।।
आजाद चमन में, हम इतने आजाद हुए।
कष्ट बहुत ही होता है, अनुशासन अपनाने में।।
कथनी करनी में अन्तर, होता था पहले कभी।
अब तो, कथनी कथनी है, करनी नही जमाने में।।
रोये शायर का दिल, अक्षर अक्षर बने ग़ज़ल।
इसको समझ पायेगा कौन, इसके ही पैय्माने में।।
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