Sunday, August 10

रैली का मतलब...

कल ' अंग्रेजों भारत छोडो आन्दोलन' की ६९ वीं वर्षगांठ थी। इस स्वर्णिम अवसर को याद करने के लिए या यों कहे तो कांग्रेस कार्यकर्ताओं को में नया जोश भरने के लिए युवा रैली का आयोजन दिल्ली में हुआ। कांग्रेस के युवा कार्यकर्ता काफी जोश में दिख भी रहे थे। काग्रेस के युवा बिग्रेड के अध्यक्छ अशोक तंवर कुछ जायदा ही उत्साहित नजर आ रहे थे, शायद युवराज राहुल गांधी को खुश करने का उनका अपना तरीका हो. आजकल क्या कांग्रेस की परम्परा रही है नेहरू परिवार की चरणधूली लेने की। कोई भूल सकता है भला राजीव गाँधी और नारायण दत्त तिवारी के प्रकरण को।

एतिहासिक दिन ९ अगस्त को यादगार बनाने के लिए कांग्रेस के मुख्यालय से राजघाट तक की इक रैली निकाली गयी. कांग्रेस के यूथ सेना एस रैली में इतने उत्साहित थे की उन्हें यातायात नियमों का ध्यान नही रहा. उन्हें लगने लगा की दिल्ली में जो बैठी सरकार हैं वह अंग्रेज जमाने का ही है, इसलिए जितना हो सके भीड़ में सरकारी नियमों को तोडा जाए. अकेले अपने बूते तो नियम तोड़ नहीं सकते क्यूंकि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता है. भाड़ फोड़ने के कोशिश हुई तो पुलिसिया तंत्र कोशिश करने वालों को तोड़ देगी। रैली के दिन यातायात नियमों की धज्जियाँ ऐसे उडी, मानों रैली इसी के लिए किया गया।


यूथ कांग्रेस के कार्यकार्ता दिल्ली और आस पास में हो रहे बाइकर्स गैंग के बड़े ग्रुप में दिख रहे थे। बिना हेलमेट, दो से ज्यादा सवारी और भी कई नियमों को तोड़ने के कारन शालीन दिखने वाली शीला दीक्छित को पत्रकारों से माफी मांगनी पड़ी।

पुलिस भी आम दिनों से अलग दिख रही थी, अपने आपको सड़क का सम्राट समझने वाले यातायात पुलिस लाचार बेवस नजर आ रही थी। हो भी क्यूँ न इन बाइकर्स के पास नेशनल पास जो था हांथों में, सोनिया, मनमोहन, राहुल गांधी के पोस्टर के रूप में...

राहुल गाँधी को सोचना पड़ेगा ऐसे युवा कर्य्कर्तों के बारे में जो नियमों को तोड़ने में आगे तो थे मगर रैली के महत्व को समझना मुनासिब नहीं समझा... उन्हें भारत को एक नयी दिशा देने की ललक है।

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