बारह मिनट छत्तीस सेकेण्ड तक लगातार ठहाके लगाकर हंसने का रिकॉर्ड बना, रिकार्ड एक विलायती महिला के नाम रहा। ठहाके प्रतियोगिता का मकसद था "जिन्दगी में का नाम है" का संदेश देना। जिंदगी में हँसते रहना भी चाहिए। बड़े बुजुर्गों ने कहा है 'हँसते रहो'। हंसने से मन हलका रहता है। चिकित्सा विज्ञानं का भी मानना है की हँसते मुस्कुराते रहने से स्वास्थय अच्छा रहता है।
जिधर देखो वही हंसने हंसाने के लिए नई नई तरकीब निकाल रहा है। आजकल तो हर चैनल पर हंसने हंसाने को प्रोग्राम होने लगा है, कोकटेल की तरह। कहीं का ईंट, कहीं का रोड़ा भानुमती का कुनबा जोड़ने के लिए। हर कोई हँसते मुस्कुराते रहने के लिए इतना दवाब बना दिया की कई बार दिखावे में सामने वाले को देख कर हँसना पड़ता है। प्रधान मंत्री की तरह, जो सरकार बनाने से लेकर सरकार बचाने तक हंस रहे हैं। भले वो अन्दर से परमाणु के झटके खा रहे हैं। खतरे में भी हँसते रहना ही तो जिन्दादिली है। लगता हैं फिल्म आनन्द में बाबु मोशे कहने वाले राजेश खन्ना के संदेश ने प्रधान मंत्री का मन मोह लिया है।
सुबह शाम हंसने की बात कर रहे हैं तो सुबह शाम पार्कों में घुमाने के लिए जायें तो आपको एक झुंड पार्क के किसी कोने में मिल जाएगा। हँसते हुए। ये लोग जोरदार ठहाके लगते हैं चुप हो होकर या यों कहें की चुप हो होकर जोरदार ठहाके लगाते हैं। ठहाके लगाने वालों में ज्यादातर अपने हिस्से की जिन्दगी काट रहे हैं। आजकल तो हर छोटे बड़े शहर में इस तरह हंसने का संक्रमण फैलने लगा है।
गौण देहात अभी भी इस संक्रमण से अछूत बना हुआ है। गांवो में कोई बेवजह ठहाके लगाकर हँसता हुआ दिख जाए तो लोग यही कहेंगे। लगता है यह पागल हो गया है... कांके घुमा लाओ जरा। कांके (झारखण्ड) रांची के पास का शहर है। यहाँ प्रसिध मनोचिकित्सल्या है, ग्रामीणों की बोली में तो पागलखाना। यहाँ वक्त बेवक्त ठहाके सुनाने को मिल जाता हैं। यह अलग बात है की ये ठहाका पागलों का होता है।
आजकल जहाँ देखे योगाचार्यों का बोलबाला हैं। हर चैनल पर कोई न कोई हंसने का योगभ्याश करवाकर अपनी दुकान चला रहा है।
ऐसा नहीं है की हम नहीं हँसते हैं। अब तो हमलोग बेवजह ही ज्यादा हँसते हैं। हंसने में बनावटीपन साफ झलकता है। यह सामने वाला भी समझता है फिर भी अनजान बनकर चुप रहता है, क्यूंकि हंसने के इस तौर तरीके को वह भी अपनाता है।
अब महंगाई को ही लीजिये। गरीब की बेटी की तरह महंगाई जल्दी जवान हो गई। ऐसे में जिसे देखो वही इसे छेड़ रहा है। कभी इसको छेड़ता है तो कभी दक्छिन्पंथी इसको लेकर रार करते हैं। हद हो गई, जब घर का मुखिया बाहर था तो करार का बहाना लेकर तकरार पर आ गए। लोग फिर भी हंस रहे हैं। अब देखो तो यही लोग फुटकर में खरीददारी करते हुए कह रहे हैं की यार बहुत महँगा सौदा है। इन पर दुनिया हंस रही है। भी हंसने का मजा ही अलग है।
वैसे तो हंसने से कोई भी समस्या आज तक हल तो हुई नहीं। रोने से फायदा भी नहीं। लगातार रोकर रुदाली की डिम्पल बनकर क्या मिलेगा। इसलिए हंसिये क्या पता आप भी बेवजह १२ मिनट के बजाये २० मिनट हंस कर विश्व रिकोर्ड बना लें। हम उन्हें नहीं कह रहे जो रावन को बुरा मानते हों। रामायण कल में यह रिकोर्ड बनाने की बात होती तो तय था की रावन ही विजयी होता अनादिकाल के लिए....
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