शेरो शायरी में कहना हो मन की बात, दिल में जब भी उतरेगी प्यार और मोहब्बत के जज्बात, वफादारी की कसमें हो या नामुरादों-सी हालात, हर तरह के मन के लिए गजल रूपी पैयमाना जरूरी हो जाता है। ऐसे में, दिलकश, कशिश भरी आवाज कानों में बरवश ही गूंजने लगती है। आवाज उस शख्सियत की जिसके चेहरे पर सदैव संजीदगी झलकती है। उसका नाम है गायक जगजीत सिंह, गजल गायकी का बेताज बादशाह।
हाल ही में जगजीत सिंह ने गुरूवाणी को स्वर दिया है। हालांकि भक्ति संगीत में उनका यह पहला ए लबम नहीं है। ‘मां’, ‘हे राम ...हे राम’, ‘हरे कृष्ण’, जैसे भजन को अपना स्वर देकर सफलता का हीरा जड़ा है। वहीं उन्होंने कई फिल्मों में स्वर भी दिया है और संगीत भी। जगजीत सिंह पहले शख्स हैं जिन्होंने खास वर्ग में सुनी जा रही गजल को आम लोगों के बीच लोकप्रिय किया। इतना ही नहीं उर्दू भाषा में गाई जाने वाले गजल को बंगाली, पंजाबी, भोजपुरी, गुजराती व अन्य भाषाओं में गाकर जन-जन तक पहुंचाने का काम किया है।
राजस्थान के श्रीगंगानगर में आठ फरवरी 1941 को जन्मे जगजीत सिंह 70वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। इनके पिता सरकार अमर सिंह धीमान सरकारी कर्मचारी थे, जो मूलत: पंजाब के रोपड़ जिले के दल्ला गांव के निवासी थे। मां बच्चन कौर समराला के नजदीक ऑटाल्लान की थीं। चार बहनें और दो भाइयों में जगजीत सिंह का पुकारू नाम ‘जीत’ है। जगजीत सिंह की स्कूली शिक्षा खालसा उच्च विघालय श्रीगंगानगर में हुई जबकि इंटरमीडिएट की डिग्री गर्वनमेंट कॉलेज श्रीगंगानगर में पूरी की। जालंधर के डीएवी कॉलेज में स्नातक करने के बाद इतिहास विषय से स्नातकोत्तर की उपाधि कुरूक्षेत्र विश्वविघालय से प्राप्त किया। सरकारी मुलाजिम होने के नाते उनके पिता चाहते थे कि जगजीत प्रशासनिक अधिकारी बने लेकिन उन्होंने जगजीत के गायिकी की आ॓र रूझान को कभी दबाने का प्रयास नहीं किया।
बचपन से संगीत में रूची को देखते हुए उनके पिता धीमान ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा के लिए श्रीगंगानगर में ही पंडित चमनलाल शर्मा के पास भेज दिया। दो वर्षों तक पंडित चमनलाल शर्मा से उन्होंने संगीत की विधिवत शिक्षा ली। हमेशा खुले विचार और किसी से सीखने की प्रवृत्ति रखने वाले जगजीत सिंह को जल्द ही ए चए मवी में रिकॉडिंग का मौका मिला। सन् 1965 में वह करियर के संघर्ष के लिए मुम्बई पहुंच गए। ये वो दौर था जब गजल का युग शुरू ही हुआ था विशेषकर हिन्दी में। हिन्दी में गजल लेखनी का आगाज दुष्यंत कुमार के कलम से इसी दौर में हुआ। करियर के शुरूआती दौर में पेईंग गेस्ट के रूप में रहते हुए गायिकी के हर तरह के प्रस्ताव को स्वीकार करने को तैयार रहते। चाहे विज्ञापन फिल्म हो, पार्टी हो या विवाह का समारोह। इसी दौर में कलकत्ता की बंगाली बाला चित्रा से वर्ष 1967 में जगजीत सिंह की पहली मुलाकात हुई। यह मुलाकात चित्रा को 1969 में चित्रा सिंह बना दिया। मुलाकात और फिर शादी के बाद दोनों ने एक से बढ़कर एक गजलों का एलबम श्रोताओं को दिया। पश्चिम और भारतीय वाघ यंत्रों के साथ फ्यूजन, मिक्स अप कर गजल और नज्म में एक मिसाल पेश करते हुए पत्नी के साथ-साथ पहला एलबम ‘द अनफोरगेटेबल’ श्रोताओं के सामने प्रस्तुत किया। इसके बाद एक सिलसिला सा शुरू हो गया, साथ-साथ गाने का। यह दौर 1990 तक चलता रहा।
बात 28 जुलाई 1990 की है, जो न केवल जगजीत-चित्रा के लिए ही नहीं बल्कि गजल के हर रसिकों के लिए काला दिन साबित हुआ। उस दिन उनका इकलौता बेटा विवेक सिंह की मुम्बई के ब्रीच केंडी में ए क सड़क हादसें में मौत हो गई। अचानक आई विपदा ने चित्रा सिंह को तोड़ कर रख दिया। उन्होंने गायिकी की दुनिया को सदा के लिए अलविदा कह दीं। चित्रा और जगजीत सिंह की जोड़ी का आखिरी ए लबम ‘समवन समवेयर’ है। बकौल चित्रा कहती हैं कि वह जब भी गाने के लिए माइक पकड़ती हैं, उन्हें विवेक का चेहरा दिखता है और उनके मुख से स्वर नहीं निकलता।
‘वो कौन है दुनियां में जिसे गम नहीं होता’ को ध्यान में रखते हुए इस त्रासदी से उबरने की कोशिश में जगजीत ने फिर ए क से ए क ए लबम प्रस्तुत किए । ‘होप’, ‘इनसर्च’, ‘चिराग’, ‘विजन’, ‘कहकसां’, ‘लव इज ब्लाइंड’, ‘मिराज’ आदि। जगजीत सिंह न केवल गायिकी में सक्रिय हैं बल्कि कई नए उभरते कलाकारों का मार्गदर्शन भी करते हैं। अभिजीत, तलत अजीज, विक्रम सिंह, घनश्याम वासवानी विनोद सहगल, कुमार सानू इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। क्राय, एलमा, बाम्बे हॉस्पीटल जैसे कई सामाजिक संगठनों से इनका गहरा नाता है।
संगीत, कला और सामाजिक कार्यों में रूझान व योगदान को देखते हुए जगजीत सिंह कई पुरस्कारों से सम्मानित हुए। मध्यप्रदेश सरकार ने लता मंगेशकर पुरस्कार (1998), साहित्य अकादमी ने मिर्जा गालिब सम्मान (1998) से नवाजा है तो भारत सरकार ने भी उन्हें पद्मश्री फिर पद्म भूषण (2003) देकर उनके काबिलियत का सम्मान किया है। जगजीत सिंह को 70वीं वसंत की ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ उनसे अभी आ॓र उम्मीद हैं। गजल रसिकों को कुछ और नए अंदाज में उनके पुरकशिश आवाज को सुनने को।
हाल ही में जगजीत सिंह ने गुरूवाणी को स्वर दिया है। हालांकि भक्ति संगीत में उनका यह पहला ए लबम नहीं है। ‘मां’, ‘हे राम ...हे राम’, ‘हरे कृष्ण’, जैसे भजन को अपना स्वर देकर सफलता का हीरा जड़ा है। वहीं उन्होंने कई फिल्मों में स्वर भी दिया है और संगीत भी। जगजीत सिंह पहले शख्स हैं जिन्होंने खास वर्ग में सुनी जा रही गजल को आम लोगों के बीच लोकप्रिय किया। इतना ही नहीं उर्दू भाषा में गाई जाने वाले गजल को बंगाली, पंजाबी, भोजपुरी, गुजराती व अन्य भाषाओं में गाकर जन-जन तक पहुंचाने का काम किया है।
राजस्थान के श्रीगंगानगर में आठ फरवरी 1941 को जन्मे जगजीत सिंह 70वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। इनके पिता सरकार अमर सिंह धीमान सरकारी कर्मचारी थे, जो मूलत: पंजाब के रोपड़ जिले के दल्ला गांव के निवासी थे। मां बच्चन कौर समराला के नजदीक ऑटाल्लान की थीं। चार बहनें और दो भाइयों में जगजीत सिंह का पुकारू नाम ‘जीत’ है। जगजीत सिंह की स्कूली शिक्षा खालसा उच्च विघालय श्रीगंगानगर में हुई जबकि इंटरमीडिएट की डिग्री गर्वनमेंट कॉलेज श्रीगंगानगर में पूरी की। जालंधर के डीएवी कॉलेज में स्नातक करने के बाद इतिहास विषय से स्नातकोत्तर की उपाधि कुरूक्षेत्र विश्वविघालय से प्राप्त किया। सरकारी मुलाजिम होने के नाते उनके पिता चाहते थे कि जगजीत प्रशासनिक अधिकारी बने लेकिन उन्होंने जगजीत के गायिकी की आ॓र रूझान को कभी दबाने का प्रयास नहीं किया।
बचपन से संगीत में रूची को देखते हुए उनके पिता धीमान ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा के लिए श्रीगंगानगर में ही पंडित चमनलाल शर्मा के पास भेज दिया। दो वर्षों तक पंडित चमनलाल शर्मा से उन्होंने संगीत की विधिवत शिक्षा ली। हमेशा खुले विचार और किसी से सीखने की प्रवृत्ति रखने वाले जगजीत सिंह को जल्द ही ए चए मवी में रिकॉडिंग का मौका मिला। सन् 1965 में वह करियर के संघर्ष के लिए मुम्बई पहुंच गए। ये वो दौर था जब गजल का युग शुरू ही हुआ था विशेषकर हिन्दी में। हिन्दी में गजल लेखनी का आगाज दुष्यंत कुमार के कलम से इसी दौर में हुआ। करियर के शुरूआती दौर में पेईंग गेस्ट के रूप में रहते हुए गायिकी के हर तरह के प्रस्ताव को स्वीकार करने को तैयार रहते। चाहे विज्ञापन फिल्म हो, पार्टी हो या विवाह का समारोह। इसी दौर में कलकत्ता की बंगाली बाला चित्रा से वर्ष 1967 में जगजीत सिंह की पहली मुलाकात हुई। यह मुलाकात चित्रा को 1969 में चित्रा सिंह बना दिया। मुलाकात और फिर शादी के बाद दोनों ने एक से बढ़कर एक गजलों का एलबम श्रोताओं को दिया। पश्चिम और भारतीय वाघ यंत्रों के साथ फ्यूजन, मिक्स अप कर गजल और नज्म में एक मिसाल पेश करते हुए पत्नी के साथ-साथ पहला एलबम ‘द अनफोरगेटेबल’ श्रोताओं के सामने प्रस्तुत किया। इसके बाद एक सिलसिला सा शुरू हो गया, साथ-साथ गाने का। यह दौर 1990 तक चलता रहा।
बात 28 जुलाई 1990 की है, जो न केवल जगजीत-चित्रा के लिए ही नहीं बल्कि गजल के हर रसिकों के लिए काला दिन साबित हुआ। उस दिन उनका इकलौता बेटा विवेक सिंह की मुम्बई के ब्रीच केंडी में ए क सड़क हादसें में मौत हो गई। अचानक आई विपदा ने चित्रा सिंह को तोड़ कर रख दिया। उन्होंने गायिकी की दुनिया को सदा के लिए अलविदा कह दीं। चित्रा और जगजीत सिंह की जोड़ी का आखिरी ए लबम ‘समवन समवेयर’ है। बकौल चित्रा कहती हैं कि वह जब भी गाने के लिए माइक पकड़ती हैं, उन्हें विवेक का चेहरा दिखता है और उनके मुख से स्वर नहीं निकलता।
‘वो कौन है दुनियां में जिसे गम नहीं होता’ को ध्यान में रखते हुए इस त्रासदी से उबरने की कोशिश में जगजीत ने फिर ए क से ए क ए लबम प्रस्तुत किए । ‘होप’, ‘इनसर्च’, ‘चिराग’, ‘विजन’, ‘कहकसां’, ‘लव इज ब्लाइंड’, ‘मिराज’ आदि। जगजीत सिंह न केवल गायिकी में सक्रिय हैं बल्कि कई नए उभरते कलाकारों का मार्गदर्शन भी करते हैं। अभिजीत, तलत अजीज, विक्रम सिंह, घनश्याम वासवानी विनोद सहगल, कुमार सानू इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। क्राय, एलमा, बाम्बे हॉस्पीटल जैसे कई सामाजिक संगठनों से इनका गहरा नाता है।
संगीत, कला और सामाजिक कार्यों में रूझान व योगदान को देखते हुए जगजीत सिंह कई पुरस्कारों से सम्मानित हुए। मध्यप्रदेश सरकार ने लता मंगेशकर पुरस्कार (1998), साहित्य अकादमी ने मिर्जा गालिब सम्मान (1998) से नवाजा है तो भारत सरकार ने भी उन्हें पद्मश्री फिर पद्म भूषण (2003) देकर उनके काबिलियत का सम्मान किया है। जगजीत सिंह को 70वीं वसंत की ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ उनसे अभी आ॓र उम्मीद हैं। गजल रसिकों को कुछ और नए अंदाज में उनके पुरकशिश आवाज को सुनने को।
1 comment:
जगजीत जी को इस ब्लॉग के माध्यम से भी बधाई
एक अतिरिक्त जानकारी यह है कि
अपने पहले पति देबो प्रसाद दत्ता से तलाक के बाद चित्रा जी का यह दूसरा विवाह है। उनके पहले विवाह की संतान, 47 वर्षीया पुत्री मोनिका चौधरी ने पिछले वर्ष आत्महत्या कर ली थी।
बी एस पाबला
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