Sunday, July 6

खाक से लाख बनने को 'धीरज" होना जरूरी


तदबीर को तकदीर समझने वाले धीरज लाल हीराचंद अंबानी उर्फ धीरू भाई अंबानी जिन्हें सारी दुनिया रिलायंस ग्रुप ऑफ कंपनीज के संस्थापक के रूप में जानती है। उन्होंने अपनी मेहनत, काबिलियत आैर सजग आत्मविश्वास की बदौलत कंपनी को उस ऊंचाई तक जा पहुंचाया जहां लोग पहंुचने की कल्पना भी नहीं कर पाते हैं। आज देश का हर दूसरा व्यक्ति किसी न किसी रूप से रिलायंस से जुड़ाव महसूस करता है। चाहे वह मोबाइल, कपड़ा, ज्वेलरी, पेट्रो पदार्थ या फिर मनोरंजन के लिए चैनल या खेल का क्षेत्र क्यों न हो।

धीरू भाई अंबानी ने दुनिया के सामने खुद को एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने युवाओं को संदेश दिया कि बड़े सपने देखो आैर उसे पूरा करने के लिए जुट जाओ, मंजिल की राह में जो भी बाधाएं हैं वह आत्मविश्वास के सामने क्षणिक हैं। उन्होंने दिखा दिया कि आत्मविश्वास आैर काबिलियत की बदौलत न केवल खुद की बल्कि दूसरे हजारों की तकदीर बदली जा सकती है।

हालांकि धीरू भाई ने एक दिन में या चहलकदमी करते हुए यह सफलता नहीं पाई। इसे पाने के लिए उन्हें लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी। यही उनके जीवन व सफलता की सबसे बड़ी प्रेरणा है। धीरू भाई का जीवन हमेें आंख खोलकर सपने देखने का साहस देती है।

डॉयमंड बुक्स ने धीरू भाई अंबानी के जीवन पर 'अवरोधों के आर-पार" नामक पुस्तक प्रकाशित की है। इसके लेखक ए जी कृष्णमूर्ति हैं जो प्रारंभ से ही धीरू भाई के साथ जुड़े रहे हैं। धीरू भाई अंबानी पर आधारित लेखक की यह दूसरी पुस्तक है। इससे पहले वह 'धीरुभाईज्म" लिख चुके हैं। रिलायंस ने जब विमल ब्राांड की शुरुआत की तब श्री कृष्णमूर्ति विज्ञापन का काम देखते थे। लेखक स्वयं मुद्रा कम्युनिकेशंस के संस्थापक चेयरमैन हैं। मात्र 35 हजार से विज्ञापन का व्यवसाय शुरू करने वाले कृष्णमूर्ति की कंपनी भी देश की तीसरी सबसे बड़ी विज्ञापन एजेंसी बन गई है। इस पुस्तक की प्रस्तावना धीरू भाई के बड़े बेटे मुकेश अंबानी ने लिखी है जो इस वक्त रिलायंस ग्रुप के चेयरमैन हैं।

एक आैर पुस्तक है 'अंबानी एंड अंबानी"। इसके लेखक हैं तरुण इंजीनियर आैर इसे प्रकाशित किया है अमृत बुक्स ने। तरुण इंजीनियर पेशे से व्यवसायी हैं आैर धीरू भाई को अपना आदर्श मानते हैं। तरूण जो भी लिखते हैं, शौक के लिए लिखते हैं। शौक के लिए लिखने के चलते ही पुस्तक में धीरू भाई के जीवन के प्रेरक प्रसंगों से ज्यादा रिलायंस कंपनी के बारे में बताया गया है। इस कारण पाठक को कहीं-कहीं बोरियत भी महसूस होती है। इसके बाद भी पाठक इस पुस्तक को पढ़ेंगे आैर कुछ हद तक प्रेरित भी होंगे।

छोटी सी उम्र में नौकरी करने के लिए थका देने वाली समुद्री यात्रा करना, विदेश में रहना, फिर वापस मुम्बई आकर एक कमरे के फ्लैट में रहना आैर आकाश की ऊंचाई का ख्वाब लेकर चलना, मसालों का कारोबार करना, नौसिखिया होने के बाद भी सूत के व्यापार में अपना रूतबा बना लेना, लाइसेंस आैर कोटे के युग में खुद को स्थापित करने के अलावा मध्यमवर्गीय लोगों को  शेयर बाजार में विश्वास पैदा करने में सक्षम हुए आैर शेयर के रूप में उनसे पूंजी लेकर रिलायंस का विस्तार करना सिर्फ आैर सिर्फ धीरू भाई ही कर सकते थे आैर उन्होंने किया। उनके जीवन पर आधारित दोनों पुस्तकें पढ़ने योग्य हैं।

व्यक्ति बड़े सपने देखता है आैर उसे पूरा भी करना चाहता है लेकिन सामने आए चुनौतियों का डटकर मुकाबला करते-करते टूटने लगता है। घुटनाटेक देने की स्थिति में आ जाता है। ऐसे युवाओं के लिए धीरू भाई का जीवन प्रेरणा का काम कर सकता है। 

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