पुस्तक मेला शिक्षक दिवस पर गया था। एक काउंटर के बारे में बता ही चुका हूँ। एक और सरकारी संसथान पहुंचा। अन्य काउंटर के मुकाबले यहाँ बिल्कुल शांती छाई थी। लग रहा था इसका होना न होना एक जैसा है। काउंटर पर एक आदमी किताब पढ़ रहा था, मेरे टोकने पर उसने सर उठाया, मुझे देखते हुए कहा काउंटर के अन्दर आयें और किताब देखिये, पसंद आए तो ठीक है। कुछ किताबे देखने के बाद मैंने पाया अन्य के मुकाबले किताब यहाँ सस्ता है मगर जरुरत पुरा नही हो रहा। मीडिया नाम से दो त्रेमासिक इस्युए ख़रीदा, दस % छुट के साथ।
कंटर के बिक्री को लेकर केंद्रीय हिन्दी संसथान ( aagra ) से puchha तो उसने कहा भाई sahab sat सौ बेच चुका हूँ अब तक, मैंने कहा achchha sat सौ किताबे बेच चुके हो...
कहा नही sat सौ रुपये की किताबे बेच चुका हूँ।
केवल आज के दिन बिक्री है
नहीं भाई ३० agasta से अब तक का है।
सच कह रहे हो या majak है
सच कह रहा हूँ
संसथान का कितना kharch हो rha है couter लगाने का
ये मत पूछो sahab, जोड़ने lagoge तो ghaataa सुनकर achchha नही लगेगा... बुरा लगेगा। मत jano vahi achchha है।
sachchaii यह bhee है की लोग अब हिन्दी की kitabon पर पैसा kharch करना नही चाहते है। हिन्दी bhashee को गर्व होता है की हमे तो हिन्दी आती ही है, हिन्दी sik कर करना क्या है।
लोग भूल ja रहे है की हिन्दी जानने के लिए अब vishv pareshan है, आने वाले दिनों में हिन्दी rojgar का सशक्त sadhan banne ja रहा है, देर saber इसकी ghoshana bhee होगी लेकिन kaphee समय bit jane के बाद...
intazaar kariye जिस तरह shahron में हिन्दी bolee ja रही है और अब akhabaron की भाषा bhee जिस तरह badal रही है वो दिन dur नही kee की हिन्दी padhane के लिए landon से कोई अंग्रेज आएगा, जैसे अब आलू के chips khilane, ठंडा pilane के लिए am am see companee yaha आ रही hai
2 comments:
सच्चाई यह भी है की लोग अब हिन्दी की किताबों पर पैसा खर्च करना नही चाहते है।
बिल्कुल सही कहना है आपका हमारे उपेक्षित व्यवहार से ही हिन्दी की यह दशा हो रही है।
बिल्कुल सही.
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