जब से जीवन शुरू हुआ है तब
से संचार के माध्यमों में निरंतर बदलाव हो रहा है। आज जो मीडिया का स्वरूप
है, उसमें भी बदलाव हो रहे हैं। मीडिया के तमाम बदलाव के बाद भी जो नहीं
बदला, वह है उसका प्रभाव। मीडिया किसी मुद्दे पर सोचने के तरीके पर निर्णायक असर न डाल पाए, लेकिन किन मुद्दों पर सोचना है, यह मीडिया काफी हद तक तय कर देता है। ऐसे में जब जनसंचार के कई रूप हमारे सामने हों तो यह
एजेंडा सेटिंग थ्योरी कितनी कारगर है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
पिछले कुछ दशकों में संचार के कई रूप सामने आए हैं। इंटरनेट और सोशल मीडिया ने तो इसे प्रारूप को ही पूरी तरह बदल कर रख दिया है। आज के समय में खबर और विज्ञापन में अंतर करना आसान नहीं है। यही कारण है कि पेड न्यूज किसी न किसी रूप में मौजूद है। 'जो दिखता है, वहीं बिकता है' के बाजारवादी ट्रेंड के बीच पत्रकार विनीत उत्पल द्वारा संपादित पुस्तक 'नए समय में मीडिया' में संकलित तमाम सारगर्भित लेख मीडिया की दिशा और दशा को समझने में काफी मददगार हैं।
आलोच्य पुस्तक में वरिष्ठ साहित्यकार उदय प्रकाश ने अपने लेख में वैकल्पिक पत्रकारिता की ताकत की बात ठसक के साथ कही है। उनका मानना है कि फेसबुक, ट्विटर जैसी सोशल साइट्स की विश्वसनीयता बढ़ी है। वेब जर्नलिज्म ने मुख्य जर्नलिज्म को काफी हद तक रिप्लेस कर दिया है। अफरोज आलम साहिल ने अपने लेख में सूचना का अधिकार और पत्रकारिता को लेकर बारीक मामलों को चिह्नित किया है। संजय स्वदेश के आलेख में ग्रामीण पत्रकारिता और वहां की समस्याओं को उजागर किया गया है।
वर्तमान समय में हिंदी भाषा को लेकर तमाम विचार-विमर्श चल रहे हैं। ऐसे में संजय द्विवेदी का लेख 'बाजार और मीडिया के बीच हिंदी' आंखें खोलने वाला है कि किस तरह सक्रिय पत्रकारिता से लेकर विज्ञापन का कारोबार हिदी पट्टी को दृष्टि में रखकर किया जाता है, लेकिन कामकाज देवनागरी के बजाय रोमन में होता है। स्वतंत्र मिश्र ने मीडिया में लोकतंत्र और उसके बिजनेस मॉडल को सामने रखा है। आर. अनुराधा ने मीडिया की महिलाकर्मियों के काम को छोड़ने पर प्रकाश डाला है और पूरी दुनिया के तमाम अध्ययनों को सामने रखा है।
डॉ. वर्तिका नंदा ने महिला और विमर्श की जमीन के बीच की बात को सामने रखा है। उनके लेख में महिला से जुड़े अपराध को लेकर किस तरह की रिपोर्टिंग की जाती है, किस तरह के कानून बनाए गए हैं और किस तरह की सिफारिशें की गई हैं, इन मामलों पर व्यापक प्रकाश डाला है। वह लिखती हैं कि मीडिया के विमर्शकारी धरातल में स्त्री बतौर मुद्दे तो खड़ी होती है लेकिन वास्तविक धरातल पर उसकी नियति को देखने वाला शायद ही कोई है। अनीता भारती ने अपने लेख में मीडिया द्वारा दलित स्त्री को लेकर गढ़ी छवि को सामने रखा है। रश्मि गौतम ने दूरदर्शन में आधी आबादी को लेकर बनाए गए धारावाहिकों की समीक्षा को ध्यान में रखकर अपना लेख लिखा है। सरकार, सेंसरशिप और सोशल मीडिया को लेकर विनीत उत्पल ने सेंसरशिप को लेकर दुनिया के तमाम देशों में चली रही गतिविधियों और सरकारी कार्यकलापों को सामने रखा है।
आलोच्य पुस्तक में ब्लॉगिंग को लेकर आकांक्षा यादव, संचार और मीडिया अध्ययन को लेकर निर्मलमणि अधिकारी, रेडियो पत्रकारिता को लेकर संजय कुमार, इंटरटेनमेंट चैनलों के धारावाहिकों को लेकर स्पर्धा, फिल्म और फिल्मी पत्रकारिता को लेकर अजय ब्राह्मात्मज, मोबाइल शिष्टाचार को लेकर डॉ. देवव्रत सिंह, विज्ञापनों में सेक्स अपील को लेकर संजयसिंह बघेल, ऑनलाइन समाचार पत्र, बच्चे और सेक्स ज्ञान को लेकर कीर्ति सिंह के अलावा उमानाथ सिंह, सुमन कुमार सिंह, जयप्रकाश मानस, अविनाश वाचस्पति आदि के मीडिया के विभिन्न आयामों पर बेहतरीन लेख हैं। इस पुस्तक में देवेंद्र राज अंकुर और एनके सिंह के साक्षात्कार भी हैं, जिसके जरिए संचार के माध्यम थियेटर और ब्रॉडकास्टिंग चैनलों के संगठन बीईए के कामकाजों, टैम मशीन जैसे मुद्दों पर गहन बातचीत की गई है।
बहरहाल, संपादित पुस्तक 'नए समय में मीडिया' में संचार माध्यमों के साथ-साथ पत्रकारिता के विभिन्न आयामों पर महत्वपूर्ण लेखों को शामिल किया गया है। सभी लेखक अपने-अपने क्षेत्र में काफी अनुभव रखते हैं और उनकी सोच, उनका लेख गहरे तौर पर मीडिया की बारीकियों को सामने रखने में सक्षम है। मीडिया से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े लोगों के लिए इन आयामों को समझने के लिए यह पुस्तक प्लेटफार्म जैसा है, चाहे वे मीडिया छात्र हों, मीडियाकर्मी हों या मीडिया अध्यापक।
विनीत उत्पल : राष्ट्रीय सहारा से संबद्ध पत्रकार विनीत उत्पल मीडिया पर काफी अरसे से लिखते रहे हैं। इनके लिखे लेख तमाम पत्र-पत्रिकाओं के अलावा अंतरराष्ट्रीय जर्नल 'जर्नल ऑफ मीडिया एंड कम्युनिकेशन स्टडीज' सहित 'मीडिया विमर्श', 'जन मीडिया', 'मास मीडिया' में प्रकाशित हुए हैं। गणित विषय से बीएससी ऑनर्स की डिग्री हासिल करने वाले विनीत ने जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली और भारतीय विद्या भवन, नई दिल्ली से पत्रकारिता की शुरुआती तालीम हासिल करने के बाद गुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालय, हिसार से मॉस कम्युनिकेशन में मास्टर डिग्री हासिल की है।
पुस्तक : नए समय में मीडिया
संपादक : विनीत उत्पल
प्रकाशक : यस पब्लिकेशंस, नई दिल्ली
मूल्य : 495/- रुपए
पिछले कुछ दशकों में संचार के कई रूप सामने आए हैं। इंटरनेट और सोशल मीडिया ने तो इसे प्रारूप को ही पूरी तरह बदल कर रख दिया है। आज के समय में खबर और विज्ञापन में अंतर करना आसान नहीं है। यही कारण है कि पेड न्यूज किसी न किसी रूप में मौजूद है। 'जो दिखता है, वहीं बिकता है' के बाजारवादी ट्रेंड के बीच पत्रकार विनीत उत्पल द्वारा संपादित पुस्तक 'नए समय में मीडिया' में संकलित तमाम सारगर्भित लेख मीडिया की दिशा और दशा को समझने में काफी मददगार हैं।
आलोच्य पुस्तक में वरिष्ठ साहित्यकार उदय प्रकाश ने अपने लेख में वैकल्पिक पत्रकारिता की ताकत की बात ठसक के साथ कही है। उनका मानना है कि फेसबुक, ट्विटर जैसी सोशल साइट्स की विश्वसनीयता बढ़ी है। वेब जर्नलिज्म ने मुख्य जर्नलिज्म को काफी हद तक रिप्लेस कर दिया है। अफरोज आलम साहिल ने अपने लेख में सूचना का अधिकार और पत्रकारिता को लेकर बारीक मामलों को चिह्नित किया है। संजय स्वदेश के आलेख में ग्रामीण पत्रकारिता और वहां की समस्याओं को उजागर किया गया है।
वर्तमान समय में हिंदी भाषा को लेकर तमाम विचार-विमर्श चल रहे हैं। ऐसे में संजय द्विवेदी का लेख 'बाजार और मीडिया के बीच हिंदी' आंखें खोलने वाला है कि किस तरह सक्रिय पत्रकारिता से लेकर विज्ञापन का कारोबार हिदी पट्टी को दृष्टि में रखकर किया जाता है, लेकिन कामकाज देवनागरी के बजाय रोमन में होता है। स्वतंत्र मिश्र ने मीडिया में लोकतंत्र और उसके बिजनेस मॉडल को सामने रखा है। आर. अनुराधा ने मीडिया की महिलाकर्मियों के काम को छोड़ने पर प्रकाश डाला है और पूरी दुनिया के तमाम अध्ययनों को सामने रखा है।
डॉ. वर्तिका नंदा ने महिला और विमर्श की जमीन के बीच की बात को सामने रखा है। उनके लेख में महिला से जुड़े अपराध को लेकर किस तरह की रिपोर्टिंग की जाती है, किस तरह के कानून बनाए गए हैं और किस तरह की सिफारिशें की गई हैं, इन मामलों पर व्यापक प्रकाश डाला है। वह लिखती हैं कि मीडिया के विमर्शकारी धरातल में स्त्री बतौर मुद्दे तो खड़ी होती है लेकिन वास्तविक धरातल पर उसकी नियति को देखने वाला शायद ही कोई है। अनीता भारती ने अपने लेख में मीडिया द्वारा दलित स्त्री को लेकर गढ़ी छवि को सामने रखा है। रश्मि गौतम ने दूरदर्शन में आधी आबादी को लेकर बनाए गए धारावाहिकों की समीक्षा को ध्यान में रखकर अपना लेख लिखा है। सरकार, सेंसरशिप और सोशल मीडिया को लेकर विनीत उत्पल ने सेंसरशिप को लेकर दुनिया के तमाम देशों में चली रही गतिविधियों और सरकारी कार्यकलापों को सामने रखा है।
आलोच्य पुस्तक में ब्लॉगिंग को लेकर आकांक्षा यादव, संचार और मीडिया अध्ययन को लेकर निर्मलमणि अधिकारी, रेडियो पत्रकारिता को लेकर संजय कुमार, इंटरटेनमेंट चैनलों के धारावाहिकों को लेकर स्पर्धा, फिल्म और फिल्मी पत्रकारिता को लेकर अजय ब्राह्मात्मज, मोबाइल शिष्टाचार को लेकर डॉ. देवव्रत सिंह, विज्ञापनों में सेक्स अपील को लेकर संजयसिंह बघेल, ऑनलाइन समाचार पत्र, बच्चे और सेक्स ज्ञान को लेकर कीर्ति सिंह के अलावा उमानाथ सिंह, सुमन कुमार सिंह, जयप्रकाश मानस, अविनाश वाचस्पति आदि के मीडिया के विभिन्न आयामों पर बेहतरीन लेख हैं। इस पुस्तक में देवेंद्र राज अंकुर और एनके सिंह के साक्षात्कार भी हैं, जिसके जरिए संचार के माध्यम थियेटर और ब्रॉडकास्टिंग चैनलों के संगठन बीईए के कामकाजों, टैम मशीन जैसे मुद्दों पर गहन बातचीत की गई है।
बहरहाल, संपादित पुस्तक 'नए समय में मीडिया' में संचार माध्यमों के साथ-साथ पत्रकारिता के विभिन्न आयामों पर महत्वपूर्ण लेखों को शामिल किया गया है। सभी लेखक अपने-अपने क्षेत्र में काफी अनुभव रखते हैं और उनकी सोच, उनका लेख गहरे तौर पर मीडिया की बारीकियों को सामने रखने में सक्षम है। मीडिया से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े लोगों के लिए इन आयामों को समझने के लिए यह पुस्तक प्लेटफार्म जैसा है, चाहे वे मीडिया छात्र हों, मीडियाकर्मी हों या मीडिया अध्यापक।
विनीत उत्पल : राष्ट्रीय सहारा से संबद्ध पत्रकार विनीत उत्पल मीडिया पर काफी अरसे से लिखते रहे हैं। इनके लिखे लेख तमाम पत्र-पत्रिकाओं के अलावा अंतरराष्ट्रीय जर्नल 'जर्नल ऑफ मीडिया एंड कम्युनिकेशन स्टडीज' सहित 'मीडिया विमर्श', 'जन मीडिया', 'मास मीडिया' में प्रकाशित हुए हैं। गणित विषय से बीएससी ऑनर्स की डिग्री हासिल करने वाले विनीत ने जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली और भारतीय विद्या भवन, नई दिल्ली से पत्रकारिता की शुरुआती तालीम हासिल करने के बाद गुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालय, हिसार से मॉस कम्युनिकेशन में मास्टर डिग्री हासिल की है।
पुस्तक : नए समय में मीडिया
संपादक : विनीत उत्पल
प्रकाशक : यस पब्लिकेशंस, नई दिल्ली
मूल्य : 495/- रुपए