Monday, September 29
बातों बात में...
भाग दौड़ भरी जिन्दगी में लोग कितने भुलाने लागे है अपने को यह अनुभव मुझे आज हो रहा है। अच्छे दोस्तों में एक दोस्त है दीपक रामकृष्ण। कल २८ को जन्मदिन था, मैं उसे विस नही कर पाया, कड़े शब्दों कहें तो भूल गया। याद आया अभी, एक दिन बाद... अब जन्मदिन की बधाई देने में डर लग रहा है।
वह दोस्त जिसके साथ मैंने कॉलेज की जिन्दगी बिताई है, उसे भूल गया। वो भी तब जब कॉलेज के जिन्दगी मैंने ही कभी जिन्दगी के दौड़ का क़दम ताल कहता था। मैंने कभी भगत सिंह को देखा नही और न ही भगत सिंह के बारे में लोगो के मुख से सुना... कुछ सुना भी तो ये... टूटी फूटी शब्दों में याद है... मत धारण करना काया फिर से भारतवासी, देशभक्ती में मिलता है फांसी...
एक बात और याद है... शहीदों की मजार पर, कोई फूल चढाये क्यों, ईंटे उठा कर ले गए, कार में रखने के लिए...
ऐसे में भगत सिंह को पुरी तरह भूल गया नयी पीढी तो क्या करें... नयी पीढी को चाहिए लेटेस्ट मोबाइल, लैपटॉप, मुल्तिप्लेक्स में लड़की का साथ... इसके लिए भगत सिंह आदर्श नही हो सकते हैं।
...वो तो भला हो टीवी वाले का की नौजवानों को लता दीदी की याद दिला दी जैसे ११ अक्टूबर को अमिताभ की याद दिलाएंगे जेपी को भूल कर। जेपी का मतलब जय प्रकाश से लेना भाई जिन्होंने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया था। जेपी का मतलब यूपी के कंपनी से बिलकुल मत लेना।
जेपी को याद भी लोग क्यों रखे देखिये जेपी के भक्तों को कल तक कांग्रेस का विरोध करते थे, आज सत्ता की मलाई खा रहे है, लोहिया के लोग भी इसमे पीछे नहीं हैं। ऐसे दौर में नयी पीढी नए व्यक्तित्व की और देख रहा है जो जीवित हैं, अच्छी बात ये है की नए पीढी में अरविन्द केजरीवाल जैसे लोग भी हैं.
Sunday, September 28
धमाके के बाद
शनिवार दिल्ली के लिए सबसे काला दिन बनता जा रहा है। धमाका पर धमाका हो रहा है। लोग कितने डरे है, इसके बचने का उपाय सोचकर रेलिंग पर बैठ गए की मौका मिलते ही कूद जायेंगे, लोगो को बचने के लिए, माँ खड़ी है शायद हौसला बढ़ाने के
एक ये तस्बीर है प्यारे दूरदर्शन का लोगो ने इधर से ध्यान क्या हटाया, इसने मेक अप करना ही छोड़ दिया...
Saturday, September 27
गलती, भूल या और कुछ...
आजकल हर बड़े छोटे सभ्य कहे जाने वाले कॉलोनियों में इस तरह की घटना होने लगी है, दस लोग दस बातें होती है। सभ्य कहे जाने वाले लोग, उसमें भी पढ़े लिखे लोग इतना आगे सोच लेते है की उसे सुनकर तो कई बार लगता है गाँव के अनपढ़ अंगूठा छाप लोग ज्यादा समझदार और व्यावहारिक है।
यह सब जो कुछ भी देखने और सुनने को मिलता है, दुनिया और दुनिया के बदलते परिवेश को हम किस रूप में देखते है उस पर निर्भर करता है. किसी के कहने और व्यंग करने से यह मनोवृति बदलेगी नही, बदलने के लिए ख़ुद बदलना होगा.
एक उदहारण है मेरे पास, पढ़े लिखे अपढ़ का. मेरे साथ काम करने वाले एक साथी मित्र है, उमर की बात करे तो शायद उनका बेटा मेरे छोटे भाई के उम्र का होगा। ऑफिस में एक दस साल का लड़का गलियारा में टहल रहा था, जो किसी सहयोगी कर्मचारी का है। उसे देख कर मित्र ने कहा यह किसकी गलती है।
आदत है त्वरित टिप्पणी कर देने की, उसके छूटते ही कह गया भाई, देश में लोग इतने समझदार और पढ़े लिखे लोग नही हैं और न ही सेक्स के मामले में इतने खुले है की बच्चा पैदा करने के लिए सेक्स करे। अक्सर बच्चा गलती का ही नतीजा होता है। मुझसे बेहतर आप बता सकते है क्यूंकि आप शादी सुदा हैं। उसके बाद दोस्त के चेहरे को देख सामने से हट जाना बेहतर समझा...
Sunday, September 14
इंडियन ज्यूडिसरी
however, in the Indian scenario, it appears that money is capable of buying much more than mere commodities. here, money can buy absolute freedom - not guaranteed by the constitution, complete fearlessness - of the law, and ofcourse, to the least, money can buy people.
the 'facts' as mentioned above have been proven, yet again, by the turn of events that took place before and till the 'recent' judgement pronounced in the 'not so recent' BMW hit and run case। however, what the indian legal system may in this case be applauded for is that it took a mere decade, infact, to be precise even lesser, that is, just about 9 years, for the lower court to pronounce the 5 years imprisonment orders. now, how long will it take the high court to appriciate the various technicalities, several evidences, plathora of depositions............
आलेख -सुनील गुप्ता,
एल एल बी, डीयू
Saturday, September 13
ये हादसों का शहर...
हादसें होते रहेंगे
हम गिरेंगे, मरेंगे,
रक्तबीज बन संभलते रहेंगे
रेड सिग्नल होते ही
सड़क के बीचोबीच
रोटी के लिए
करतब करते मरते रहेंगे
हमारी संवेदना बन एसएमएस
टीवी पर चीखते चिथड़े देख
खाते पनीर के टिक्के
भूखे तो मरते रहेंगे
घर का कुत्ता
है नौकर से प्यारा
घर के सर्कस में
जोकर बनते रहेंगे
ये हादसों का शहर है
होते रहेंगे
मर मर के जीते की आदत है हमको
आर या पार की धमकी देते रहेंगे
Thursday, September 11
पुस्तक मेला भाग दो
कंटर के बिक्री को लेकर केंद्रीय हिन्दी संसथान ( aagra ) से puchha तो उसने कहा भाई sahab sat सौ बेच चुका हूँ अब तक, मैंने कहा achchha sat सौ किताबे बेच चुके हो...
कहा नही sat सौ रुपये की किताबे बेच चुका हूँ।
केवल आज के दिन बिक्री है
नहीं भाई ३० agasta से अब तक का है।
सच कह रहे हो या majak है
सच कह रहा हूँ
संसथान का कितना kharch हो rha है couter लगाने का
ये मत पूछो sahab, जोड़ने lagoge तो ghaataa सुनकर achchha नही लगेगा... बुरा लगेगा। मत jano vahi achchha है।
sachchaii यह bhee है की लोग अब हिन्दी की kitabon पर पैसा kharch करना नही चाहते है। हिन्दी bhashee को गर्व होता है की हमे तो हिन्दी आती ही है, हिन्दी sik कर करना क्या है।
लोग भूल ja रहे है की हिन्दी जानने के लिए अब vishv pareshan है, आने वाले दिनों में हिन्दी rojgar का सशक्त sadhan banne ja रहा है, देर saber इसकी ghoshana bhee होगी लेकिन kaphee समय bit jane के बाद...
intazaar kariye जिस तरह shahron में हिन्दी bolee ja रही है और अब akhabaron की भाषा bhee जिस तरह badal रही है वो दिन dur नही kee की हिन्दी padhane के लिए landon से कोई अंग्रेज आएगा, जैसे अब आलू के chips khilane, ठंडा pilane के लिए am am see companee yaha आ रही hai
Sunday, September 7
पुस्तक मेले में काउंटर पर... डिसटर्ब मत करो
दिल्ली का १४ पुस्तक मेला का आज अन्तिम दिन है। पुस्तकों की भीड़ में कुछ किताब खरीदने की इच्छा से मैं भी दोस्त के साथ चला गया। अंग्रेजी में हाथ तंग होने कह लें या पैसे में, हिन्दी प्रकाशनों की और मुड गया।
जहाँ भी गया इस बार ज्यादातर पुस्तकें हार्ड बैंडिंग में था। इस कारन किताबों की कीमतें मेरे पहुँच से बाहर लगने लगा। भारतीय वैज्ञानिक शोध की किताबों की दुकान पर गया। पर्यावरण मंत्रालय द्वारा प्रकाशित पुस्तक देखा, अंदमान निकोबार द्वीप समूह के आदिवासियों के जीवन पर आधारित है। किताब बहुत होगा तो १०० पेज का। कीमत देखा तो हैरान। पाँच सो रुपये
काउंटर पर बैठने वाले से बात करने पर कहा, भाई लेना है तो बात करो, वरना हमें तंग मत करो। तंग करने का मतलब था तीन लोग आपस में अपने अपने बीबी को लेकर वर्तालाप कर रहे थे, डिसटर्ब जो हो गए। कीमत देखने के बाद हिम्मत नही हुअ।
हर तरफ़ से घूमते घामते केंद्रीय हिन्दी संसथान के काउंटर पर पहुंचे। दो किताबे लिया, मिडीया पत्रिका के दो अंक। दोनों अंक विशेषांक है। बिक्री और कीमत को लेकर बातचीत हुआ उसके बारे में अगले पोस्ट में लिखेंगे, अभी लिखने की इच्छा नही है
Tuesday, September 2
हिन्दी दिवस के मायने
वैसे अब तक देश की संविधान समिति २२ भाषाओँ को राजभाषा घोषित कर चुकी है लेकिन एक विडबना है की २२ भाषाओँ में केवल हिन्दी के लिए की pअखावाडा और दिवस मनाया जाता रहा है वर्षों से परम्परा के रूप में।
यह हिन्दी के लिए इठलाने की बात नही है। व्यवहारिक तौर पर देखिये जिसे आप पूरा सम्मान देते हों, जिसका नाम इज्जत से लेते हों, उसे कभी भी परखने के मूड में नहीं होंगे, हिन्दी दिवस और हिन्दी पखवाडा भी कुछ ऐसा ही है हिन्दी के साथ।
झार-पोछ कर एक पखवाडे के लिए हिन्दी को किसी कोने से ढूंढ कर लाते है। उसकी पूजा करते है १४ सितम्बर की रात गुजरते के साथ ही हिन्दी को विसर्जित कर दिया जाता है ठीक वैसे ही जैसे हम लोग आम जीवन में करते है।
स्वतंत्रता दिवस के दिन तिरंगा हाथों में बड़े ही शान से लेकर चलते हैं लेकिन शाम होते होते शान से हाथों में लहराते तिरंगे को सड़क पर पड़े हुए मिटटी में लिपटा हुआ हर जगह बिखरे हुए दिख जाएगा। खादी में तिरंगा उपयोग किया जाना चाहिए लेकिन पोलीथिन का उपयोग करते है।
गाँधी जयंती पर राज घाट पर जाकर रघुपति राघव राजा राम सुन लेने से कोई अहिंसा को पुजारी हुआ है क्या।
हिन्दी दिवस पर हिन्दी के कशीदे पढ़ने वाले हिन्दी के वफादार होंगे कैसे भरोसा करें....
हिन्दी पखवाडे के नतीजे देखकर तो ऐसा लगता है की हिन्दी का श्राद्ध मनाया जा रहा हो...