Friday, August 29
Wednesday, August 27
चमन आजाद कराने में...
बलिदान हुए हैं कितने, चमन आजाद कराने में।
अब तक ये बेकाम रहा, हम सबको समझाने में।।
आजाद चमन में, हम इतने आजाद हुए।
कष्ट बहुत ही होता है, अनुशासन अपनाने में।।
कथनी करनी में अन्तर, होता था पहले कभी।
अब तो, कथनी कथनी है, करनी नही जमाने में।।
रोये शायर का दिल, अक्षर अक्षर बने ग़ज़ल।
इसको समझ पायेगा कौन, इसके ही पैय्माने में।।
अब तक ये बेकाम रहा, हम सबको समझाने में।।
आजाद चमन में, हम इतने आजाद हुए।
कष्ट बहुत ही होता है, अनुशासन अपनाने में।।
कथनी करनी में अन्तर, होता था पहले कभी।
अब तो, कथनी कथनी है, करनी नही जमाने में।।
रोये शायर का दिल, अक्षर अक्षर बने ग़ज़ल।
इसको समझ पायेगा कौन, इसके ही पैय्माने में।।
Tuesday, August 12
कुछ "अभिनव" सिखा गया बिंद्रा
आंखों में मासूमियत लिए आत्मविश्वास के साथ विक्टरी स्टैंड पर अकेला खड़ा अभिनव बिंद्रा को ख़ुद यकीं नही हो रहा था की उसने वो इतिहास रच दिया जिसका एक शतक से देश को इंतज़ार था। बिंद्रा के पिता अवजीत सिंह बिंद्रा ने खुश होकर कहा " अविनव एज सिंह, सिंह एज किंग'। माता बबली बिंद्रा भी बहुत खुश थी क्यूंकि पुरा देश उनके बेटे पर नाज कर रहा है। गोल्ड मैडल जितने के बाद इनामों की झडी लगा दिया खेल से जुड़े संस्थाओं ने और राज्यों की सरकारों ने।
आम भारतीय भले बहुत खुश हो लें, सरकार और सरकारी संस्था खुश हो ले बिंद्रा की इस कामयाबी पर। परन्तु मैडल जितने के लिए जो साजो-सामान और ट्रेनिंग की जरुरत होती है वह न तो सरकर और न ही सुत्तिंग संघ ने मुह्हाया कराया है। वो तो अभिनव के पिता अपने बेटे के लिए कुछ भी करने को तैयार थे इसलिए पिचले दो साल से जर्मनी में ट्रेनिंग दिला रहे थे अपने बल बूते पर। क्यूंकि उन्होंने पलने में ही पूत के मंजील को पहचान गए थे। देहरादून में २८ सितम्बर १९८२ को को पैदा हुए और शैशवावस्था देहरादून में बिताने के बाद चडीगढ़ में जा बसे अभिनव बिंद्रा ऍमबीऐ धारी कोम्पुटर गेम वितरण कंपनी "अभिनव फुतुरिस्ट" के सीईओ भी है।
जसपाल राणा बहुत ही सटीक कहा है की "खेल संघ का अभिनव की सफलता में कोई योगदान नही रहा"। यागदान अगर है तो बस इतना की इन खिलाड़ियों के कारण वो भी अपना सीना चौरा कर लेते है। हमारे देश में पहले होकी अब क्रिकेट पर हर कोई ज्यादा तर्हिज देते है। एसियद में कब्बडी में हर बार गोल्ड मैडल लाने बाले भारतीय टीम पर तो ध्यान जाता नहीं है खेल संस्थाओ को सुत्तिंग, तैराकी आदि अन्य खेल पर कितना ध्यान जाएगा ये कहने की जरुरत नहीं है।
अभिनव बिंद्रा जित गए। कोई भी पीछे रहना नही चाहता, सबने इनामों की घोषणा कर दी। बिंद्रा पर क्या फर्क पड़ेगा दस बीस लाख रूपयों से जबकि इनाम देने वाले को भी पता है, उन्होंने जो काम किया, वह इनाम से कहीं ज्यादा है। इनाम की घोषणा करके हर कोई अपना नाम बिंद्रा से जोड़ते हुए पिंड छुडा लिया। हमें नही लगता है इस से देश के नानिहालों को कोई फायदा मिलेगा।
होना तो यह चाहिए था की देश में और भी 'अभिनव' बने इसके लिए कोई khel प्रतियोगिता के आयोजन की सुरूआत अभिनव के नाम घोषणा होती। प्रतियोगिता के बहने कोई नया हीरो देश और समाज के सामने उभर कर आए। ... बिंद्रा भी अच्छी तरह से जानते है की रोपर जिला में शुत्तिंग प्रतियोगिता नही होती तो वो जीता चैम्पियन नही बन पाते। तब कोई लेफ्टीलेंट कर्नल जे.एस.ढिल्लों कोच के रूप में नही मिलता और आज जहाँ खड़े है वो मंजील होता या नही पता नहीं।
रोपर जिला चम्पियाँशिप जितना उनके लिए तुर्निंग पॉइंट साबित हुआ। वीर भोग्या बसुन्धरा कभी भी हीरों से खली नही रहा है और न रहेगा जरूरत है उसे परखने की। हर "abhinav" ऐ एस बिंद्रा का बेटा नहीं है...
आम भारतीय भले बहुत खुश हो लें, सरकार और सरकारी संस्था खुश हो ले बिंद्रा की इस कामयाबी पर। परन्तु मैडल जितने के लिए जो साजो-सामान और ट्रेनिंग की जरुरत होती है वह न तो सरकर और न ही सुत्तिंग संघ ने मुह्हाया कराया है। वो तो अभिनव के पिता अपने बेटे के लिए कुछ भी करने को तैयार थे इसलिए पिचले दो साल से जर्मनी में ट्रेनिंग दिला रहे थे अपने बल बूते पर। क्यूंकि उन्होंने पलने में ही पूत के मंजील को पहचान गए थे। देहरादून में २८ सितम्बर १९८२ को को पैदा हुए और शैशवावस्था देहरादून में बिताने के बाद चडीगढ़ में जा बसे अभिनव बिंद्रा ऍमबीऐ धारी कोम्पुटर गेम वितरण कंपनी "अभिनव फुतुरिस्ट" के सीईओ भी है।
जसपाल राणा बहुत ही सटीक कहा है की "खेल संघ का अभिनव की सफलता में कोई योगदान नही रहा"। यागदान अगर है तो बस इतना की इन खिलाड़ियों के कारण वो भी अपना सीना चौरा कर लेते है। हमारे देश में पहले होकी अब क्रिकेट पर हर कोई ज्यादा तर्हिज देते है। एसियद में कब्बडी में हर बार गोल्ड मैडल लाने बाले भारतीय टीम पर तो ध्यान जाता नहीं है खेल संस्थाओ को सुत्तिंग, तैराकी आदि अन्य खेल पर कितना ध्यान जाएगा ये कहने की जरुरत नहीं है।
अभिनव बिंद्रा जित गए। कोई भी पीछे रहना नही चाहता, सबने इनामों की घोषणा कर दी। बिंद्रा पर क्या फर्क पड़ेगा दस बीस लाख रूपयों से जबकि इनाम देने वाले को भी पता है, उन्होंने जो काम किया, वह इनाम से कहीं ज्यादा है। इनाम की घोषणा करके हर कोई अपना नाम बिंद्रा से जोड़ते हुए पिंड छुडा लिया। हमें नही लगता है इस से देश के नानिहालों को कोई फायदा मिलेगा।
होना तो यह चाहिए था की देश में और भी 'अभिनव' बने इसके लिए कोई khel प्रतियोगिता के आयोजन की सुरूआत अभिनव के नाम घोषणा होती। प्रतियोगिता के बहने कोई नया हीरो देश और समाज के सामने उभर कर आए। ... बिंद्रा भी अच्छी तरह से जानते है की रोपर जिला में शुत्तिंग प्रतियोगिता नही होती तो वो जीता चैम्पियन नही बन पाते। तब कोई लेफ्टीलेंट कर्नल जे.एस.ढिल्लों कोच के रूप में नही मिलता और आज जहाँ खड़े है वो मंजील होता या नही पता नहीं।
रोपर जिला चम्पियाँशिप जितना उनके लिए तुर्निंग पॉइंट साबित हुआ। वीर भोग्या बसुन्धरा कभी भी हीरों से खली नही रहा है और न रहेगा जरूरत है उसे परखने की। हर "abhinav" ऐ एस बिंद्रा का बेटा नहीं है...
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Sunday, August 10
रैली का मतलब...
कल ' अंग्रेजों भारत छोडो आन्दोलन' की ६९ वीं वर्षगांठ थी। इस स्वर्णिम अवसर को याद करने के लिए या यों कहे तो कांग्रेस कार्यकर्ताओं को में नया जोश भरने के लिए युवा रैली का आयोजन दिल्ली में हुआ। कांग्रेस के युवा कार्यकर्ता काफी जोश में दिख भी रहे थे। काग्रेस के युवा बिग्रेड के अध्यक्छ अशोक तंवर कुछ जायदा ही उत्साहित नजर आ रहे थे, शायद युवराज राहुल गांधी को खुश करने का उनका अपना तरीका हो. आजकल क्या कांग्रेस की परम्परा रही है नेहरू परिवार की चरणधूली लेने की। कोई भूल सकता है भला राजीव गाँधी और नारायण दत्त तिवारी के प्रकरण को।
एतिहासिक दिन ९ अगस्त को यादगार बनाने के लिए कांग्रेस के मुख्यालय से राजघाट तक की इक रैली निकाली गयी. कांग्रेस के यूथ सेना एस रैली में इतने उत्साहित थे की उन्हें यातायात नियमों का ध्यान नही रहा. उन्हें लगने लगा की दिल्ली में जो बैठी सरकार हैं वह अंग्रेज जमाने का ही है, इसलिए जितना हो सके भीड़ में सरकारी नियमों को तोडा जाए. अकेले अपने बूते तो नियम तोड़ नहीं सकते क्यूंकि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता है. भाड़ फोड़ने के कोशिश हुई तो पुलिसिया तंत्र कोशिश करने वालों को तोड़ देगी। रैली के दिन यातायात नियमों की धज्जियाँ ऐसे उडी, मानों रैली इसी के लिए किया गया।
यूथ कांग्रेस के कार्यकार्ता दिल्ली और आस पास में हो रहे बाइकर्स गैंग के बड़े ग्रुप में दिख रहे थे। बिना हेलमेट, दो से ज्यादा सवारी और भी कई नियमों को तोड़ने के कारन शालीन दिखने वाली शीला दीक्छित को पत्रकारों से माफी मांगनी पड़ी।
पुलिस भी आम दिनों से अलग दिख रही थी, अपने आपको सड़क का सम्राट समझने वाले यातायात पुलिस लाचार बेवस नजर आ रही थी। हो भी क्यूँ न इन बाइकर्स के पास नेशनल पास जो था हांथों में, सोनिया, मनमोहन, राहुल गांधी के पोस्टर के रूप में...
राहुल गाँधी को सोचना पड़ेगा ऐसे युवा कर्य्कर्तों के बारे में जो नियमों को तोड़ने में आगे तो थे मगर रैली के महत्व को समझना मुनासिब नहीं समझा... उन्हें भारत को एक नयी दिशा देने की ललक है।
एतिहासिक दिन ९ अगस्त को यादगार बनाने के लिए कांग्रेस के मुख्यालय से राजघाट तक की इक रैली निकाली गयी. कांग्रेस के यूथ सेना एस रैली में इतने उत्साहित थे की उन्हें यातायात नियमों का ध्यान नही रहा. उन्हें लगने लगा की दिल्ली में जो बैठी सरकार हैं वह अंग्रेज जमाने का ही है, इसलिए जितना हो सके भीड़ में सरकारी नियमों को तोडा जाए. अकेले अपने बूते तो नियम तोड़ नहीं सकते क्यूंकि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता है. भाड़ फोड़ने के कोशिश हुई तो पुलिसिया तंत्र कोशिश करने वालों को तोड़ देगी। रैली के दिन यातायात नियमों की धज्जियाँ ऐसे उडी, मानों रैली इसी के लिए किया गया।
यूथ कांग्रेस के कार्यकार्ता दिल्ली और आस पास में हो रहे बाइकर्स गैंग के बड़े ग्रुप में दिख रहे थे। बिना हेलमेट, दो से ज्यादा सवारी और भी कई नियमों को तोड़ने के कारन शालीन दिखने वाली शीला दीक्छित को पत्रकारों से माफी मांगनी पड़ी।
पुलिस भी आम दिनों से अलग दिख रही थी, अपने आपको सड़क का सम्राट समझने वाले यातायात पुलिस लाचार बेवस नजर आ रही थी। हो भी क्यूँ न इन बाइकर्स के पास नेशनल पास जो था हांथों में, सोनिया, मनमोहन, राहुल गांधी के पोस्टर के रूप में...
राहुल गाँधी को सोचना पड़ेगा ऐसे युवा कर्य्कर्तों के बारे में जो नियमों को तोड़ने में आगे तो थे मगर रैली के महत्व को समझना मुनासिब नहीं समझा... उन्हें भारत को एक नयी दिशा देने की ललक है।
Wednesday, August 6
या कोई दीवाना हँसे....
बारह मिनट छत्तीस सेकेण्ड तक लगातार ठहाके लगाकर हंसने का रिकॉर्ड बना, रिकार्ड एक विलायती महिला के नाम रहा। ठहाके प्रतियोगिता का मकसद था "जिन्दगी में का नाम है" का संदेश देना। जिंदगी में हँसते रहना भी चाहिए। बड़े बुजुर्गों ने कहा है 'हँसते रहो'। हंसने से मन हलका रहता है। चिकित्सा विज्ञानं का भी मानना है की हँसते मुस्कुराते रहने से स्वास्थय अच्छा रहता है।
जिधर देखो वही हंसने हंसाने के लिए नई नई तरकीब निकाल रहा है। आजकल तो हर चैनल पर हंसने हंसाने को प्रोग्राम होने लगा है, कोकटेल की तरह। कहीं का ईंट, कहीं का रोड़ा भानुमती का कुनबा जोड़ने के लिए। हर कोई हँसते मुस्कुराते रहने के लिए इतना दवाब बना दिया की कई बार दिखावे में सामने वाले को देख कर हँसना पड़ता है। प्रधान मंत्री की तरह, जो सरकार बनाने से लेकर सरकार बचाने तक हंस रहे हैं। भले वो अन्दर से परमाणु के झटके खा रहे हैं। खतरे में भी हँसते रहना ही तो जिन्दादिली है। लगता हैं फिल्म आनन्द में बाबु मोशे कहने वाले राजेश खन्ना के संदेश ने प्रधान मंत्री का मन मोह लिया है।
सुबह शाम हंसने की बात कर रहे हैं तो सुबह शाम पार्कों में घुमाने के लिए जायें तो आपको एक झुंड पार्क के किसी कोने में मिल जाएगा। हँसते हुए। ये लोग जोरदार ठहाके लगते हैं चुप हो होकर या यों कहें की चुप हो होकर जोरदार ठहाके लगाते हैं। ठहाके लगाने वालों में ज्यादातर अपने हिस्से की जिन्दगी काट रहे हैं। आजकल तो हर छोटे बड़े शहर में इस तरह हंसने का संक्रमण फैलने लगा है।
गौण देहात अभी भी इस संक्रमण से अछूत बना हुआ है। गांवो में कोई बेवजह ठहाके लगाकर हँसता हुआ दिख जाए तो लोग यही कहेंगे। लगता है यह पागल हो गया है... कांके घुमा लाओ जरा। कांके (झारखण्ड) रांची के पास का शहर है। यहाँ प्रसिध मनोचिकित्सल्या है, ग्रामीणों की बोली में तो पागलखाना। यहाँ वक्त बेवक्त ठहाके सुनाने को मिल जाता हैं। यह अलग बात है की ये ठहाका पागलों का होता है।
आजकल जहाँ देखे योगाचार्यों का बोलबाला हैं। हर चैनल पर कोई न कोई हंसने का योगभ्याश करवाकर अपनी दुकान चला रहा है।
ऐसा नहीं है की हम नहीं हँसते हैं। अब तो हमलोग बेवजह ही ज्यादा हँसते हैं। हंसने में बनावटीपन साफ झलकता है। यह सामने वाला भी समझता है फिर भी अनजान बनकर चुप रहता है, क्यूंकि हंसने के इस तौर तरीके को वह भी अपनाता है।
अब महंगाई को ही लीजिये। गरीब की बेटी की तरह महंगाई जल्दी जवान हो गई। ऐसे में जिसे देखो वही इसे छेड़ रहा है। कभी इसको छेड़ता है तो कभी दक्छिन्पंथी इसको लेकर रार करते हैं। हद हो गई, जब घर का मुखिया बाहर था तो करार का बहाना लेकर तकरार पर आ गए। लोग फिर भी हंस रहे हैं। अब देखो तो यही लोग फुटकर में खरीददारी करते हुए कह रहे हैं की यार बहुत महँगा सौदा है। इन पर दुनिया हंस रही है। भी हंसने का मजा ही अलग है।
वैसे तो हंसने से कोई भी समस्या आज तक हल तो हुई नहीं। रोने से फायदा भी नहीं। लगातार रोकर रुदाली की डिम्पल बनकर क्या मिलेगा। इसलिए हंसिये क्या पता आप भी बेवजह १२ मिनट के बजाये २० मिनट हंस कर विश्व रिकोर्ड बना लें। हम उन्हें नहीं कह रहे जो रावन को बुरा मानते हों। रामायण कल में यह रिकोर्ड बनाने की बात होती तो तय था की रावन ही विजयी होता अनादिकाल के लिए....
जिधर देखो वही हंसने हंसाने के लिए नई नई तरकीब निकाल रहा है। आजकल तो हर चैनल पर हंसने हंसाने को प्रोग्राम होने लगा है, कोकटेल की तरह। कहीं का ईंट, कहीं का रोड़ा भानुमती का कुनबा जोड़ने के लिए। हर कोई हँसते मुस्कुराते रहने के लिए इतना दवाब बना दिया की कई बार दिखावे में सामने वाले को देख कर हँसना पड़ता है। प्रधान मंत्री की तरह, जो सरकार बनाने से लेकर सरकार बचाने तक हंस रहे हैं। भले वो अन्दर से परमाणु के झटके खा रहे हैं। खतरे में भी हँसते रहना ही तो जिन्दादिली है। लगता हैं फिल्म आनन्द में बाबु मोशे कहने वाले राजेश खन्ना के संदेश ने प्रधान मंत्री का मन मोह लिया है।
सुबह शाम हंसने की बात कर रहे हैं तो सुबह शाम पार्कों में घुमाने के लिए जायें तो आपको एक झुंड पार्क के किसी कोने में मिल जाएगा। हँसते हुए। ये लोग जोरदार ठहाके लगते हैं चुप हो होकर या यों कहें की चुप हो होकर जोरदार ठहाके लगाते हैं। ठहाके लगाने वालों में ज्यादातर अपने हिस्से की जिन्दगी काट रहे हैं। आजकल तो हर छोटे बड़े शहर में इस तरह हंसने का संक्रमण फैलने लगा है।
गौण देहात अभी भी इस संक्रमण से अछूत बना हुआ है। गांवो में कोई बेवजह ठहाके लगाकर हँसता हुआ दिख जाए तो लोग यही कहेंगे। लगता है यह पागल हो गया है... कांके घुमा लाओ जरा। कांके (झारखण्ड) रांची के पास का शहर है। यहाँ प्रसिध मनोचिकित्सल्या है, ग्रामीणों की बोली में तो पागलखाना। यहाँ वक्त बेवक्त ठहाके सुनाने को मिल जाता हैं। यह अलग बात है की ये ठहाका पागलों का होता है।
आजकल जहाँ देखे योगाचार्यों का बोलबाला हैं। हर चैनल पर कोई न कोई हंसने का योगभ्याश करवाकर अपनी दुकान चला रहा है।
ऐसा नहीं है की हम नहीं हँसते हैं। अब तो हमलोग बेवजह ही ज्यादा हँसते हैं। हंसने में बनावटीपन साफ झलकता है। यह सामने वाला भी समझता है फिर भी अनजान बनकर चुप रहता है, क्यूंकि हंसने के इस तौर तरीके को वह भी अपनाता है।
अब महंगाई को ही लीजिये। गरीब की बेटी की तरह महंगाई जल्दी जवान हो गई। ऐसे में जिसे देखो वही इसे छेड़ रहा है। कभी इसको छेड़ता है तो कभी दक्छिन्पंथी इसको लेकर रार करते हैं। हद हो गई, जब घर का मुखिया बाहर था तो करार का बहाना लेकर तकरार पर आ गए। लोग फिर भी हंस रहे हैं। अब देखो तो यही लोग फुटकर में खरीददारी करते हुए कह रहे हैं की यार बहुत महँगा सौदा है। इन पर दुनिया हंस रही है। भी हंसने का मजा ही अलग है।
वैसे तो हंसने से कोई भी समस्या आज तक हल तो हुई नहीं। रोने से फायदा भी नहीं। लगातार रोकर रुदाली की डिम्पल बनकर क्या मिलेगा। इसलिए हंसिये क्या पता आप भी बेवजह १२ मिनट के बजाये २० मिनट हंस कर विश्व रिकोर्ड बना लें। हम उन्हें नहीं कह रहे जो रावन को बुरा मानते हों। रामायण कल में यह रिकोर्ड बनाने की बात होती तो तय था की रावन ही विजयी होता अनादिकाल के लिए....
Tuesday, August 5
सुरकचा के लिए जजिया कर ले sarkar
देश में हालात कितने ख़राब हो चले हैं जो लोग कुछ अच्छा करने की कोशिश भी करते हैं उसे भी ग़लत निगाह से देखते हैं। अहमदाबाद धमाके के बाद सूरत में एक एक करके जिन्दा बम मिल रहें हैं। ...और एक संयोग है की अब तक ग्यारह बमों के बारे में एक वीएचपी के करकरता ने पुलिस को सुचना दी। कुछ लोगों को इसमें भी राजनीती दीखता है। इसे छुद्रता पूर्ण व्यव्हार मन लेना अच्छा है।
हम ये तो नहीं कहते की आंतंकवाद कोई विशेष धर्म से जुड़ा हुआ है लेकिन जिस तरह से ज्यादातर भारत में हिंदू के आस्था पर लगातार चोट किया जा रहा है, संदेह विश्वास में बदलता जा रहा है। मुझे तो लगता है की नैना देवी मन्दिर में जो रविवार को घटना हुई। उसमें भी आतंकियों का हाथ है। रोज रोज नए तरीके इजाद करते हैं भय पैदा करने के लिए। यह भी उसी की एक कोशिश है। इसका ये मतलब नही है की हिमाचल सरकार अपनी ज़िम्मेदारी से बच जायेगी। सरकार को जबाब देना होगा क्यों व्यवस्था नही थी पहले से ऐसी घटना के लिए। लगभग बीस साल पहले भी यहाँ ऐसी घटना हो चुकी है।
सरकारी खजाने से दिक्कत हो रही थी हिन्दुओ के लिए खर्च करने में तो मन्दिर के आमदनी से ही करती। एक अनुमान से मन्दिर के आमदनी का चालीस प्रतिसत यहाँ वेतन देने खर्च होता है।
सरकार को जबाव देना चाहिए शेष खान खर्च होता है, नही है तो हम भक्तो से जाजिया कर ले ताकि कम से कम सुरक्छित तो लोतेगे अपने परिवार के लिए...
हम ये तो नहीं कहते की आंतंकवाद कोई विशेष धर्म से जुड़ा हुआ है लेकिन जिस तरह से ज्यादातर भारत में हिंदू के आस्था पर लगातार चोट किया जा रहा है, संदेह विश्वास में बदलता जा रहा है। मुझे तो लगता है की नैना देवी मन्दिर में जो रविवार को घटना हुई। उसमें भी आतंकियों का हाथ है। रोज रोज नए तरीके इजाद करते हैं भय पैदा करने के लिए। यह भी उसी की एक कोशिश है। इसका ये मतलब नही है की हिमाचल सरकार अपनी ज़िम्मेदारी से बच जायेगी। सरकार को जबाब देना होगा क्यों व्यवस्था नही थी पहले से ऐसी घटना के लिए। लगभग बीस साल पहले भी यहाँ ऐसी घटना हो चुकी है।
सरकारी खजाने से दिक्कत हो रही थी हिन्दुओ के लिए खर्च करने में तो मन्दिर के आमदनी से ही करती। एक अनुमान से मन्दिर के आमदनी का चालीस प्रतिसत यहाँ वेतन देने खर्च होता है।
सरकार को जबाव देना चाहिए शेष खान खर्च होता है, नही है तो हम भक्तो से जाजिया कर ले ताकि कम से कम सुरक्छित तो लोतेगे अपने परिवार के लिए...
Monday, August 4
अनुज के लिए
मेरे छोटे भाई अरविन्द को जन्मदिन की ढेर साडी बधाई
उन्ही की याद में...
मुझसे दूर हैं मगर दिल के करीब हैं
जहाँ भी रहें मस्त रहे, खुश रहे यही aashirvad
मेहनत को अनुज कभी कम नहीं करना
कोई रूठे या कुछ छूटे गम न करना।
चदते जाना है सफलता की सीढियाँ
पहली को ही ना आख़िरी समझना
मुबारक को तुम्हे जिंदगी का नया साल
हर पल हो तेरा कुशी का झरना।
झरनों के बीच मुस्कुराते रहो हरपल
जन्मदिन की तुम्हे दे रहा सुभकामना।
मुश्किल है राजा ख्वाब सजाना
मुश्किल है ख्यालात को अपना बनाना।
उन्ही की याद में...
मुझसे दूर हैं मगर दिल के करीब हैं
जहाँ भी रहें मस्त रहे, खुश रहे यही aashirvad
मेहनत को अनुज कभी कम नहीं करना
कोई रूठे या कुछ छूटे गम न करना।
चदते जाना है सफलता की सीढियाँ
पहली को ही ना आख़िरी समझना
मुबारक को तुम्हे जिंदगी का नया साल
हर पल हो तेरा कुशी का झरना।
झरनों के बीच मुस्कुराते रहो हरपल
जन्मदिन की तुम्हे दे रहा सुभकामना।
मुश्किल है राजा ख्वाब सजाना
मुश्किल है ख्यालात को अपना बनाना।
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