Saturday, December 13
गुनाह नही किया चन्द्रमोहन ने
मैं मानता हूँ की चंद्र मोहन हीरो है। बहुत कम लोग ऐसे हुए है जिन्होंने शादी के बाद के सम्बंदों को स्वीकार है... इन्होने तो रिश्ते को नाम दिया है। हरियाणा जैसे राज्यों में जहाँ पंचायतों की इतनी चलती है की पूछो मत, पति पत्नी को पलक झपकते ही भाई-बहन बना देते है।
मैं किसी एक राजनितिक पार्टी की बात न भी करू तो भी आज हर कोई जानता है की नारायण दत्ता तिवारी को कोर्ट में घसीटा जा रहा है केवल इसलिए ताकि वो जवानी के दिनों में की गयी गलतियों को नाम दें... कोर्ट का फैसला क्या आएगा वो तो भविष्य के गर्त में है... जो सामने दिख रहा है वो यही है की एक औरत हक़ मांग रही है अपने बेटे के लिए... अपने लिए नही...
चंद्र मोहन ने भी अपने भाई कुलदीप बिश्नोई पर आरोप लगाये है की वो पब में किसी औरत के साथ होते है... चूँकि यह आरोप एक भाई ने भाई पर लगाया है तो यह तय है की कुलदीप के साथ पब में जाने वाला कुलदीप की पत्नी तो नही ही होगी और आरोप में कुछ न कुछ सच्चाई जरूर होगी...
चादर मोहन वैसे वी पहले नही है देश में जिन्होंने दूसरी शादी की है... धर्मेन्द्र, किशोर कुमार, रामविलाश पासवान, सलीम खान, पौतोदी के नबाब, बोनी कपूर, अजहरुद्दीन, फेरहिस्त काफी लम्बी है... उनका गुनाह बश इतना है की वो हरियाणा में पैदा हुए...
Thursday, December 11
हिन्दी अकादमी के नए सचिव
जेएनयू से जैनेन्द्र कुमार के उपन्यासों पर पीएचडी करने वाले डा. जोशी का जन्म ६ अप्रैल १९६५ में गोपालगंज के धर्मगता गाँव में हुआ। समकालीन आलोचना के क्चेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए २००७ में देवी अवस्थी सम्मान से सम्मानिंत हो चुके है। उन्हें यह पुरस्कार पुस्तक उपन्यास की समकालीनता के लिए दिया गया। इस पुरस्कार के निर्णायक मंडल में नामवर सिंह, उदय प्रकाश विष्णु खरे जैसे हिन्दी के महान हस्ताक्चार मौजूद थे। डा. जोशी को हिन्दी अकादमी के साहित्यिक कृति से भी सम्मानिंत किया जा चुका है।
अब तक इन्होंने १६ किताबें लिख चुके हैं। उन किताबों में कुछ के नाम इस प्रकार है- जैनेन्द्र संचयिता, सम्यक तथा विधा की उपलब्धि, कृति-आकृति, भारतीय कला के हस्ताक्चर तथा रूपांकर, सोनबरसा, आदि।
Thursday, November 20
अवतार दिवस
देश में भी स्वार्थ से वशीभूत राजनीति के कारन जनता पार्टी की सरकार अल्पमत में आई और देश को क्षुद्रता के कारण मध्यवर्ती चुनाव का दंश झेलना पड़ा। इंदिरा गाँधी सशक्त और परिपक्व प्रधान मंत्री के रूप में उभरी। धर्मान्धों ने उन्हें जीने नही दिया।
आज भी परिवर्तन और विकास की सख्त जरुरत है, मुझे लोगों का प्यार, दुलार और मार्गदर्शन की आवश्यकता है। मेरे सारे सहयोगी मित्र, कुटुंब और समाज सभी धन्यबाद के पात्र है जिन्होंने मुझे इस मुकाम तक पहुँचने में मदद की है। आगे भी मदद करते रहेंगे यही सुधीजनों से आशा है।
अनजानवश भी किसी का दिल मेरे कारण दुखी हुआ है तो मैं प्रार्थी हूँ...
Friday, October 31
पूर्वांचली एक मिशाल है...
बोलने को तो नेता बोल लेते हैं लेकिन सच में ये नेता कहलाने लायक हैं क्या? राज ठाकरे जैसे लोग नेता नही... कबीले के सरदार हुआ करते हैं...
इन सरे राजनीती के बीच हम सारे एक बात भूल रहें है की राजनीतिक पार्टियों का रूख क्या है... अभी मुंबई में पूर्वांचली (बिहार और यूपी) को निबटाया जा रहा है, इससे पहले असम में कुछ ऐसा ही हुआ था... दोनों स्थानों पर कांग्रेस की सरकार है... सताए जाने वाले क्षेत्रों मने कांग्रेस मृतप्रायः पहले से ही है... इस घटना के बाद पुरी तरह से सुपदा साफ होना चाहिए...
शरद पवार की पार्टी का वैसे तो कोई विशेष पकर नही है इस क्षेत्र में लेकिन जो भी थोड़ा बहुत है ख़तम होना जरुरी है...
देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है बीजेपी जो महाराष्ट्र में शिव सेना के साथ गठबंधन करके सत्ता में आने का ख्वाब संजोये है... तभी इस मुद्दे पर चुप्प है... बीजेपी को नही भूलना चाहिए की बिहार और यूपी ऐसा प्रान्त है की इसके समर्थन के बगैर आज तक कोई सत्ता पर काबिज नही हो सका है। जो होने की कोशिश किया वह नही टिक पाया... बीजेपी को चुप्पी का परिणाम भुगतना पड़ेगा...
भाषाई आधार पर आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु, गुजरात और महाराष्ट्र जल रहा था, तब उसे बचाने के लिए उत्तर भारत के बजाये सरे कारखाने दक्षिण में लगाया गया इसका मतलब ये थोड़े है की मुम्बैकर के अलावा कोई मुंबई में न रहे...
देश और देश के राज्यों को नही भूलना चाहिए की... बिहार और पूर्वी यूपी ऐसा क्षेत्र है जहाँ संघर्ष के बाद नेतृत्व करने वाले नेता निकलते है... बुढ्ढे होने के बाद भी जेपी १९७४ का आन्दोलन का नेतृत्व करते है तो नीतीश, सुशिल और लालू जैसे नेता सामने आते है, बी एच यु का आन्दोलन होता है तो चंद्रशेखर पैदा होता है... कोई दादागिरी करके चांदी के चम्मच के साथ पैदा नही होता है राजनीती करने के लिए...
एक बेरोजगार और फ्रस्टेट युवक जब छोटी घटना को अंजाम देकर देश की राजनीती में हलचल ला सकता है... शेर के मांद में पहुँच कर... पढ़े लिखे और अधिकारी टाइप तो मुंबई में पहले से मौजूद है... सबने मन बना लिया तो क्या होगा मुंबई का... सोचकर देखना धुरंधरो राजनीती के... १९४२ का आन्दोलन किसी नेता का नही जनता का था, १८५७ का विद्रोह किसी राजनेता ने नही किया था, १९७४ का छात्र आन्दोलन किसी पार्टी ने नही किया था... मुट्ठीभर छात्र काफी है... मामले को सुलझाने के लिए... मिटा दो शिवसेना और मनसे को जड़ से... संकीर्ण मानसिकता वाले नेताओ के पुतले मत फूकों... जिन्दा जला दो... कुछ समय के लिए देश सह लेगा...
आख़िर थोड़े थोड़े तड़प तड़प कर मरने से अच्छा है की मिटा दे एक बार में....
Tuesday, October 28
होश में आओ राज
आज मन नही कर रहा है की दीपावली में दीप और पटाखा जलाएं... मन खिन्न हो गया... ब्लैक आउट करेंगे आज के दिन बिना कोई दीप जलाये...
राज ठाकरे और महारास्ट्र के लोगों को... सभी राजनितिक पार्टियों को भी समझना होगा... उसकी राजनीती बीना पूर्वांचली के सपोर्ट के जींदा नही रह सकता है...
एक नही हजारों है राह में तैयार मिटने को... क्षुद्र राज के लिए नही अपनी आन, बाण, शान के लिए...
Tuesday, October 21
एक चेहरा
चुभ जाए
मेरी आंखों में
और मैं
सूरदास बन जाऊँ
तलाश जिंदगी की
जो बदहवाश हो
राधा की तरह
और मैं
कृष्ण न बन पाऊं।
Friday, October 17
एकता परिसद में अनेकता
दो दिन चले इस बैठक में कई बार मतभेद साफ दिखाई दिया। बैठक के शामिल लोग "अपनी डफली अपना राग" अलाप रहे थे। उरिसा और कर्णाटक में उपजी हिंसा (कथित तौर पर सांप्रदायिक) को लेकर बीजद और भाजपा को कशुर्वर ठहराने में स्वयम गृह मंत्री आँखे तरेर रहे थे। उस समय सांकेतिक तौर पर मनमोहन सिंह को कायर करार देने वाले लालू यादव पाटिल की पीठ थपथपा रहे थे।
दूसरी और पोटा जैसे कड़े क़ानून का समर्थन और धर्मपरिवर्तन सम्बन्धी क़ानून बनाने की बात जोरदार ढंग से रखने वाले भाजपा बिग्रेड नेता नरेन्द्र मोदी ने यहाँ तक कह डाला की सरकार उग्रवाद और आतंकवाद के बीच फर्क नही समझती। मानवाधिकार के नाम पर आतंकवादी तत्वों को समर्थन करने वाले बुद्धिजीवियों को अलग-थलग करने की जरुरत पर बल दिया।
बिहार के मुख्यमंत्री बुद्ध की भांति मध्यम मार्ग अपनाते हुए सांप्रदायिक सद्भाव के बारे में कहा गठबंधन के इस युग में सरकारों को सभी समुदायों का ध्यान रखना जरूरी है। नीतीश कुमार जिसकी बात कर रहे थे, एकता परिषद् की बिसात ही इसी पर आधारित है। परिषद् का गठन १९६१ में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपनी अध्यक्षता में की।
परिषद् के गठन के बाद पहली बैठक ओक्टूबर १९६१ में हुई। बैठक में फैसला लिया गया की साम्प्रदायिकता, जातिवाद, क्षेत्राबाद, भाषावाद, और अन्य मुद्दे जिससे राष्ट्रीय एकता परिषद् की बैठक में उस मुद्दे पर चर्चा करते हुए समाधान ढूंढा जाएगा।
परिषद् के गठन के बाद से अब तक 1४ बैठके हो चुकी है। राष्ट्रीय एकता और अखंडता जैसे संवेदनशील मुद्दे पर भारतीय राजनीती कितने जागरूक है इसका अंदाजा अन्तिम तीन बैठक से लगाया जा सकता है। 1२ वीं बैठक नवम्बर १९९२ में हुई कश्मीर और पंजाब के मुद्दे को लेकर लेकिन बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि को लेकर खिंचतान के साथ बैठक ख़त्म हुई। तेरहवीं बैठक तेरह साल बाद अक्टूबर २००५ में हुआ। १४ वीं बैठा वोट की राजनीती के शूली पर चढ़ा...
Tuesday, October 7
समय कहाँ...
इतना समय कहाँ
जो सोचे
पथ से भटके हैं
या भटकाए गए हम।
जो भी हो
रोटी के टुकडे के लिए
जीवन-म्रत्यु के
झूले पर
लतगाये गए हम।
Sunday, October 5
तस्बीर कहता है क्या... मन
जिन्दगी का नाम है ऊर्जा, शक्ति, उत्साह और खुशी... मुस्कान तो देखो इसका... ।
रईसजादों की तरह मंहगी और आयातीत शराब तो पी नहीं सकता क्यों बीडी पर पर गए हो स्वास्थय मंत्री जी, क्या कोंग्रेस का हाथ, गरीबों के साथ यही है की गरीबों के खुशी, दुःख बाँटने के हथियार ही छीन लो, चलो माना थोडा नुकसान भी देता है तो क्या आपको नही पता है। बीडी रोजगार से कितने लोगों का पेट भरता है। मंत्री जी जैसे जी रहे हैं जीने दो... यही कह रहा है ये बंद... ।
Monday, September 29
बातों बात में...
भाग दौड़ भरी जिन्दगी में लोग कितने भुलाने लागे है अपने को यह अनुभव मुझे आज हो रहा है। अच्छे दोस्तों में एक दोस्त है दीपक रामकृष्ण। कल २८ को जन्मदिन था, मैं उसे विस नही कर पाया, कड़े शब्दों कहें तो भूल गया। याद आया अभी, एक दिन बाद... अब जन्मदिन की बधाई देने में डर लग रहा है।
वह दोस्त जिसके साथ मैंने कॉलेज की जिन्दगी बिताई है, उसे भूल गया। वो भी तब जब कॉलेज के जिन्दगी मैंने ही कभी जिन्दगी के दौड़ का क़दम ताल कहता था। मैंने कभी भगत सिंह को देखा नही और न ही भगत सिंह के बारे में लोगो के मुख से सुना... कुछ सुना भी तो ये... टूटी फूटी शब्दों में याद है... मत धारण करना काया फिर से भारतवासी, देशभक्ती में मिलता है फांसी...
एक बात और याद है... शहीदों की मजार पर, कोई फूल चढाये क्यों, ईंटे उठा कर ले गए, कार में रखने के लिए...
ऐसे में भगत सिंह को पुरी तरह भूल गया नयी पीढी तो क्या करें... नयी पीढी को चाहिए लेटेस्ट मोबाइल, लैपटॉप, मुल्तिप्लेक्स में लड़की का साथ... इसके लिए भगत सिंह आदर्श नही हो सकते हैं।
...वो तो भला हो टीवी वाले का की नौजवानों को लता दीदी की याद दिला दी जैसे ११ अक्टूबर को अमिताभ की याद दिलाएंगे जेपी को भूल कर। जेपी का मतलब जय प्रकाश से लेना भाई जिन्होंने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया था। जेपी का मतलब यूपी के कंपनी से बिलकुल मत लेना।
जेपी को याद भी लोग क्यों रखे देखिये जेपी के भक्तों को कल तक कांग्रेस का विरोध करते थे, आज सत्ता की मलाई खा रहे है, लोहिया के लोग भी इसमे पीछे नहीं हैं। ऐसे दौर में नयी पीढी नए व्यक्तित्व की और देख रहा है जो जीवित हैं, अच्छी बात ये है की नए पीढी में अरविन्द केजरीवाल जैसे लोग भी हैं.
Sunday, September 28
धमाके के बाद
शनिवार दिल्ली के लिए सबसे काला दिन बनता जा रहा है। धमाका पर धमाका हो रहा है। लोग कितने डरे है, इसके बचने का उपाय सोचकर रेलिंग पर बैठ गए की मौका मिलते ही कूद जायेंगे, लोगो को बचने के लिए, माँ खड़ी है शायद हौसला बढ़ाने के
एक ये तस्बीर है प्यारे दूरदर्शन का लोगो ने इधर से ध्यान क्या हटाया, इसने मेक अप करना ही छोड़ दिया...
Saturday, September 27
गलती, भूल या और कुछ...
आजकल हर बड़े छोटे सभ्य कहे जाने वाले कॉलोनियों में इस तरह की घटना होने लगी है, दस लोग दस बातें होती है। सभ्य कहे जाने वाले लोग, उसमें भी पढ़े लिखे लोग इतना आगे सोच लेते है की उसे सुनकर तो कई बार लगता है गाँव के अनपढ़ अंगूठा छाप लोग ज्यादा समझदार और व्यावहारिक है।
यह सब जो कुछ भी देखने और सुनने को मिलता है, दुनिया और दुनिया के बदलते परिवेश को हम किस रूप में देखते है उस पर निर्भर करता है. किसी के कहने और व्यंग करने से यह मनोवृति बदलेगी नही, बदलने के लिए ख़ुद बदलना होगा.
एक उदहारण है मेरे पास, पढ़े लिखे अपढ़ का. मेरे साथ काम करने वाले एक साथी मित्र है, उमर की बात करे तो शायद उनका बेटा मेरे छोटे भाई के उम्र का होगा। ऑफिस में एक दस साल का लड़का गलियारा में टहल रहा था, जो किसी सहयोगी कर्मचारी का है। उसे देख कर मित्र ने कहा यह किसकी गलती है।
आदत है त्वरित टिप्पणी कर देने की, उसके छूटते ही कह गया भाई, देश में लोग इतने समझदार और पढ़े लिखे लोग नही हैं और न ही सेक्स के मामले में इतने खुले है की बच्चा पैदा करने के लिए सेक्स करे। अक्सर बच्चा गलती का ही नतीजा होता है। मुझसे बेहतर आप बता सकते है क्यूंकि आप शादी सुदा हैं। उसके बाद दोस्त के चेहरे को देख सामने से हट जाना बेहतर समझा...
Sunday, September 14
इंडियन ज्यूडिसरी
however, in the Indian scenario, it appears that money is capable of buying much more than mere commodities. here, money can buy absolute freedom - not guaranteed by the constitution, complete fearlessness - of the law, and ofcourse, to the least, money can buy people.
the 'facts' as mentioned above have been proven, yet again, by the turn of events that took place before and till the 'recent' judgement pronounced in the 'not so recent' BMW hit and run case। however, what the indian legal system may in this case be applauded for is that it took a mere decade, infact, to be precise even lesser, that is, just about 9 years, for the lower court to pronounce the 5 years imprisonment orders. now, how long will it take the high court to appriciate the various technicalities, several evidences, plathora of depositions............
आलेख -सुनील गुप्ता,
एल एल बी, डीयू
Saturday, September 13
ये हादसों का शहर...
हादसें होते रहेंगे
हम गिरेंगे, मरेंगे,
रक्तबीज बन संभलते रहेंगे
रेड सिग्नल होते ही
सड़क के बीचोबीच
रोटी के लिए
करतब करते मरते रहेंगे
हमारी संवेदना बन एसएमएस
टीवी पर चीखते चिथड़े देख
खाते पनीर के टिक्के
भूखे तो मरते रहेंगे
घर का कुत्ता
है नौकर से प्यारा
घर के सर्कस में
जोकर बनते रहेंगे
ये हादसों का शहर है
होते रहेंगे
मर मर के जीते की आदत है हमको
आर या पार की धमकी देते रहेंगे
Thursday, September 11
पुस्तक मेला भाग दो
कंटर के बिक्री को लेकर केंद्रीय हिन्दी संसथान ( aagra ) से puchha तो उसने कहा भाई sahab sat सौ बेच चुका हूँ अब तक, मैंने कहा achchha sat सौ किताबे बेच चुके हो...
कहा नही sat सौ रुपये की किताबे बेच चुका हूँ।
केवल आज के दिन बिक्री है
नहीं भाई ३० agasta से अब तक का है।
सच कह रहे हो या majak है
सच कह रहा हूँ
संसथान का कितना kharch हो rha है couter लगाने का
ये मत पूछो sahab, जोड़ने lagoge तो ghaataa सुनकर achchha नही लगेगा... बुरा लगेगा। मत jano vahi achchha है।
sachchaii यह bhee है की लोग अब हिन्दी की kitabon पर पैसा kharch करना नही चाहते है। हिन्दी bhashee को गर्व होता है की हमे तो हिन्दी आती ही है, हिन्दी sik कर करना क्या है।
लोग भूल ja रहे है की हिन्दी जानने के लिए अब vishv pareshan है, आने वाले दिनों में हिन्दी rojgar का सशक्त sadhan banne ja रहा है, देर saber इसकी ghoshana bhee होगी लेकिन kaphee समय bit jane के बाद...
intazaar kariye जिस तरह shahron में हिन्दी bolee ja रही है और अब akhabaron की भाषा bhee जिस तरह badal रही है वो दिन dur नही kee की हिन्दी padhane के लिए landon से कोई अंग्रेज आएगा, जैसे अब आलू के chips khilane, ठंडा pilane के लिए am am see companee yaha आ रही hai
Sunday, September 7
पुस्तक मेले में काउंटर पर... डिसटर्ब मत करो
दिल्ली का १४ पुस्तक मेला का आज अन्तिम दिन है। पुस्तकों की भीड़ में कुछ किताब खरीदने की इच्छा से मैं भी दोस्त के साथ चला गया। अंग्रेजी में हाथ तंग होने कह लें या पैसे में, हिन्दी प्रकाशनों की और मुड गया।
जहाँ भी गया इस बार ज्यादातर पुस्तकें हार्ड बैंडिंग में था। इस कारन किताबों की कीमतें मेरे पहुँच से बाहर लगने लगा। भारतीय वैज्ञानिक शोध की किताबों की दुकान पर गया। पर्यावरण मंत्रालय द्वारा प्रकाशित पुस्तक देखा, अंदमान निकोबार द्वीप समूह के आदिवासियों के जीवन पर आधारित है। किताब बहुत होगा तो १०० पेज का। कीमत देखा तो हैरान। पाँच सो रुपये
काउंटर पर बैठने वाले से बात करने पर कहा, भाई लेना है तो बात करो, वरना हमें तंग मत करो। तंग करने का मतलब था तीन लोग आपस में अपने अपने बीबी को लेकर वर्तालाप कर रहे थे, डिसटर्ब जो हो गए। कीमत देखने के बाद हिम्मत नही हुअ।
हर तरफ़ से घूमते घामते केंद्रीय हिन्दी संसथान के काउंटर पर पहुंचे। दो किताबे लिया, मिडीया पत्रिका के दो अंक। दोनों अंक विशेषांक है। बिक्री और कीमत को लेकर बातचीत हुआ उसके बारे में अगले पोस्ट में लिखेंगे, अभी लिखने की इच्छा नही है
Tuesday, September 2
हिन्दी दिवस के मायने
वैसे अब तक देश की संविधान समिति २२ भाषाओँ को राजभाषा घोषित कर चुकी है लेकिन एक विडबना है की २२ भाषाओँ में केवल हिन्दी के लिए की pअखावाडा और दिवस मनाया जाता रहा है वर्षों से परम्परा के रूप में।
यह हिन्दी के लिए इठलाने की बात नही है। व्यवहारिक तौर पर देखिये जिसे आप पूरा सम्मान देते हों, जिसका नाम इज्जत से लेते हों, उसे कभी भी परखने के मूड में नहीं होंगे, हिन्दी दिवस और हिन्दी पखवाडा भी कुछ ऐसा ही है हिन्दी के साथ।
झार-पोछ कर एक पखवाडे के लिए हिन्दी को किसी कोने से ढूंढ कर लाते है। उसकी पूजा करते है १४ सितम्बर की रात गुजरते के साथ ही हिन्दी को विसर्जित कर दिया जाता है ठीक वैसे ही जैसे हम लोग आम जीवन में करते है।
स्वतंत्रता दिवस के दिन तिरंगा हाथों में बड़े ही शान से लेकर चलते हैं लेकिन शाम होते होते शान से हाथों में लहराते तिरंगे को सड़क पर पड़े हुए मिटटी में लिपटा हुआ हर जगह बिखरे हुए दिख जाएगा। खादी में तिरंगा उपयोग किया जाना चाहिए लेकिन पोलीथिन का उपयोग करते है।
गाँधी जयंती पर राज घाट पर जाकर रघुपति राघव राजा राम सुन लेने से कोई अहिंसा को पुजारी हुआ है क्या।
हिन्दी दिवस पर हिन्दी के कशीदे पढ़ने वाले हिन्दी के वफादार होंगे कैसे भरोसा करें....
हिन्दी पखवाडे के नतीजे देखकर तो ऐसा लगता है की हिन्दी का श्राद्ध मनाया जा रहा हो...
Friday, August 29
Wednesday, August 27
चमन आजाद कराने में...
अब तक ये बेकाम रहा, हम सबको समझाने में।।
आजाद चमन में, हम इतने आजाद हुए।
कष्ट बहुत ही होता है, अनुशासन अपनाने में।।
कथनी करनी में अन्तर, होता था पहले कभी।
अब तो, कथनी कथनी है, करनी नही जमाने में।।
रोये शायर का दिल, अक्षर अक्षर बने ग़ज़ल।
इसको समझ पायेगा कौन, इसके ही पैय्माने में।।
Tuesday, August 12
कुछ "अभिनव" सिखा गया बिंद्रा
आम भारतीय भले बहुत खुश हो लें, सरकार और सरकारी संस्था खुश हो ले बिंद्रा की इस कामयाबी पर। परन्तु मैडल जितने के लिए जो साजो-सामान और ट्रेनिंग की जरुरत होती है वह न तो सरकर और न ही सुत्तिंग संघ ने मुह्हाया कराया है। वो तो अभिनव के पिता अपने बेटे के लिए कुछ भी करने को तैयार थे इसलिए पिचले दो साल से जर्मनी में ट्रेनिंग दिला रहे थे अपने बल बूते पर। क्यूंकि उन्होंने पलने में ही पूत के मंजील को पहचान गए थे। देहरादून में २८ सितम्बर १९८२ को को पैदा हुए और शैशवावस्था देहरादून में बिताने के बाद चडीगढ़ में जा बसे अभिनव बिंद्रा ऍमबीऐ धारी कोम्पुटर गेम वितरण कंपनी "अभिनव फुतुरिस्ट" के सीईओ भी है।
जसपाल राणा बहुत ही सटीक कहा है की "खेल संघ का अभिनव की सफलता में कोई योगदान नही रहा"। यागदान अगर है तो बस इतना की इन खिलाड़ियों के कारण वो भी अपना सीना चौरा कर लेते है। हमारे देश में पहले होकी अब क्रिकेट पर हर कोई ज्यादा तर्हिज देते है। एसियद में कब्बडी में हर बार गोल्ड मैडल लाने बाले भारतीय टीम पर तो ध्यान जाता नहीं है खेल संस्थाओ को सुत्तिंग, तैराकी आदि अन्य खेल पर कितना ध्यान जाएगा ये कहने की जरुरत नहीं है।
अभिनव बिंद्रा जित गए। कोई भी पीछे रहना नही चाहता, सबने इनामों की घोषणा कर दी। बिंद्रा पर क्या फर्क पड़ेगा दस बीस लाख रूपयों से जबकि इनाम देने वाले को भी पता है, उन्होंने जो काम किया, वह इनाम से कहीं ज्यादा है। इनाम की घोषणा करके हर कोई अपना नाम बिंद्रा से जोड़ते हुए पिंड छुडा लिया। हमें नही लगता है इस से देश के नानिहालों को कोई फायदा मिलेगा।
होना तो यह चाहिए था की देश में और भी 'अभिनव' बने इसके लिए कोई khel प्रतियोगिता के आयोजन की सुरूआत अभिनव के नाम घोषणा होती। प्रतियोगिता के बहने कोई नया हीरो देश और समाज के सामने उभर कर आए। ... बिंद्रा भी अच्छी तरह से जानते है की रोपर जिला में शुत्तिंग प्रतियोगिता नही होती तो वो जीता चैम्पियन नही बन पाते। तब कोई लेफ्टीलेंट कर्नल जे.एस.ढिल्लों कोच के रूप में नही मिलता और आज जहाँ खड़े है वो मंजील होता या नही पता नहीं।
रोपर जिला चम्पियाँशिप जितना उनके लिए तुर्निंग पॉइंट साबित हुआ। वीर भोग्या बसुन्धरा कभी भी हीरों से खली नही रहा है और न रहेगा जरूरत है उसे परखने की। हर "abhinav" ऐ एस बिंद्रा का बेटा नहीं है...
Sunday, August 10
रैली का मतलब...
एतिहासिक दिन ९ अगस्त को यादगार बनाने के लिए कांग्रेस के मुख्यालय से राजघाट तक की इक रैली निकाली गयी. कांग्रेस के यूथ सेना एस रैली में इतने उत्साहित थे की उन्हें यातायात नियमों का ध्यान नही रहा. उन्हें लगने लगा की दिल्ली में जो बैठी सरकार हैं वह अंग्रेज जमाने का ही है, इसलिए जितना हो सके भीड़ में सरकारी नियमों को तोडा जाए. अकेले अपने बूते तो नियम तोड़ नहीं सकते क्यूंकि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता है. भाड़ फोड़ने के कोशिश हुई तो पुलिसिया तंत्र कोशिश करने वालों को तोड़ देगी। रैली के दिन यातायात नियमों की धज्जियाँ ऐसे उडी, मानों रैली इसी के लिए किया गया।
यूथ कांग्रेस के कार्यकार्ता दिल्ली और आस पास में हो रहे बाइकर्स गैंग के बड़े ग्रुप में दिख रहे थे। बिना हेलमेट, दो से ज्यादा सवारी और भी कई नियमों को तोड़ने के कारन शालीन दिखने वाली शीला दीक्छित को पत्रकारों से माफी मांगनी पड़ी।
पुलिस भी आम दिनों से अलग दिख रही थी, अपने आपको सड़क का सम्राट समझने वाले यातायात पुलिस लाचार बेवस नजर आ रही थी। हो भी क्यूँ न इन बाइकर्स के पास नेशनल पास जो था हांथों में, सोनिया, मनमोहन, राहुल गांधी के पोस्टर के रूप में...
राहुल गाँधी को सोचना पड़ेगा ऐसे युवा कर्य्कर्तों के बारे में जो नियमों को तोड़ने में आगे तो थे मगर रैली के महत्व को समझना मुनासिब नहीं समझा... उन्हें भारत को एक नयी दिशा देने की ललक है।
Wednesday, August 6
या कोई दीवाना हँसे....
जिधर देखो वही हंसने हंसाने के लिए नई नई तरकीब निकाल रहा है। आजकल तो हर चैनल पर हंसने हंसाने को प्रोग्राम होने लगा है, कोकटेल की तरह। कहीं का ईंट, कहीं का रोड़ा भानुमती का कुनबा जोड़ने के लिए। हर कोई हँसते मुस्कुराते रहने के लिए इतना दवाब बना दिया की कई बार दिखावे में सामने वाले को देख कर हँसना पड़ता है। प्रधान मंत्री की तरह, जो सरकार बनाने से लेकर सरकार बचाने तक हंस रहे हैं। भले वो अन्दर से परमाणु के झटके खा रहे हैं। खतरे में भी हँसते रहना ही तो जिन्दादिली है। लगता हैं फिल्म आनन्द में बाबु मोशे कहने वाले राजेश खन्ना के संदेश ने प्रधान मंत्री का मन मोह लिया है।
सुबह शाम हंसने की बात कर रहे हैं तो सुबह शाम पार्कों में घुमाने के लिए जायें तो आपको एक झुंड पार्क के किसी कोने में मिल जाएगा। हँसते हुए। ये लोग जोरदार ठहाके लगते हैं चुप हो होकर या यों कहें की चुप हो होकर जोरदार ठहाके लगाते हैं। ठहाके लगाने वालों में ज्यादातर अपने हिस्से की जिन्दगी काट रहे हैं। आजकल तो हर छोटे बड़े शहर में इस तरह हंसने का संक्रमण फैलने लगा है।
गौण देहात अभी भी इस संक्रमण से अछूत बना हुआ है। गांवो में कोई बेवजह ठहाके लगाकर हँसता हुआ दिख जाए तो लोग यही कहेंगे। लगता है यह पागल हो गया है... कांके घुमा लाओ जरा। कांके (झारखण्ड) रांची के पास का शहर है। यहाँ प्रसिध मनोचिकित्सल्या है, ग्रामीणों की बोली में तो पागलखाना। यहाँ वक्त बेवक्त ठहाके सुनाने को मिल जाता हैं। यह अलग बात है की ये ठहाका पागलों का होता है।
आजकल जहाँ देखे योगाचार्यों का बोलबाला हैं। हर चैनल पर कोई न कोई हंसने का योगभ्याश करवाकर अपनी दुकान चला रहा है।
ऐसा नहीं है की हम नहीं हँसते हैं। अब तो हमलोग बेवजह ही ज्यादा हँसते हैं। हंसने में बनावटीपन साफ झलकता है। यह सामने वाला भी समझता है फिर भी अनजान बनकर चुप रहता है, क्यूंकि हंसने के इस तौर तरीके को वह भी अपनाता है।
अब महंगाई को ही लीजिये। गरीब की बेटी की तरह महंगाई जल्दी जवान हो गई। ऐसे में जिसे देखो वही इसे छेड़ रहा है। कभी इसको छेड़ता है तो कभी दक्छिन्पंथी इसको लेकर रार करते हैं। हद हो गई, जब घर का मुखिया बाहर था तो करार का बहाना लेकर तकरार पर आ गए। लोग फिर भी हंस रहे हैं। अब देखो तो यही लोग फुटकर में खरीददारी करते हुए कह रहे हैं की यार बहुत महँगा सौदा है। इन पर दुनिया हंस रही है। भी हंसने का मजा ही अलग है।
वैसे तो हंसने से कोई भी समस्या आज तक हल तो हुई नहीं। रोने से फायदा भी नहीं। लगातार रोकर रुदाली की डिम्पल बनकर क्या मिलेगा। इसलिए हंसिये क्या पता आप भी बेवजह १२ मिनट के बजाये २० मिनट हंस कर विश्व रिकोर्ड बना लें। हम उन्हें नहीं कह रहे जो रावन को बुरा मानते हों। रामायण कल में यह रिकोर्ड बनाने की बात होती तो तय था की रावन ही विजयी होता अनादिकाल के लिए....
Tuesday, August 5
सुरकचा के लिए जजिया कर ले sarkar
हम ये तो नहीं कहते की आंतंकवाद कोई विशेष धर्म से जुड़ा हुआ है लेकिन जिस तरह से ज्यादातर भारत में हिंदू के आस्था पर लगातार चोट किया जा रहा है, संदेह विश्वास में बदलता जा रहा है। मुझे तो लगता है की नैना देवी मन्दिर में जो रविवार को घटना हुई। उसमें भी आतंकियों का हाथ है। रोज रोज नए तरीके इजाद करते हैं भय पैदा करने के लिए। यह भी उसी की एक कोशिश है। इसका ये मतलब नही है की हिमाचल सरकार अपनी ज़िम्मेदारी से बच जायेगी। सरकार को जबाब देना होगा क्यों व्यवस्था नही थी पहले से ऐसी घटना के लिए। लगभग बीस साल पहले भी यहाँ ऐसी घटना हो चुकी है।
सरकारी खजाने से दिक्कत हो रही थी हिन्दुओ के लिए खर्च करने में तो मन्दिर के आमदनी से ही करती। एक अनुमान से मन्दिर के आमदनी का चालीस प्रतिसत यहाँ वेतन देने खर्च होता है।
सरकार को जबाव देना चाहिए शेष खान खर्च होता है, नही है तो हम भक्तो से जाजिया कर ले ताकि कम से कम सुरक्छित तो लोतेगे अपने परिवार के लिए...
Monday, August 4
अनुज के लिए
उन्ही की याद में...
मुझसे दूर हैं मगर दिल के करीब हैं
जहाँ भी रहें मस्त रहे, खुश रहे यही aashirvad
मेहनत को अनुज कभी कम नहीं करना
कोई रूठे या कुछ छूटे गम न करना।
चदते जाना है सफलता की सीढियाँ
पहली को ही ना आख़िरी समझना
मुबारक को तुम्हे जिंदगी का नया साल
हर पल हो तेरा कुशी का झरना।
झरनों के बीच मुस्कुराते रहो हरपल
जन्मदिन की तुम्हे दे रहा सुभकामना।
मुश्किल है राजा ख्वाब सजाना
मुश्किल है ख्यालात को अपना बनाना।
Wednesday, July 30
ये क्या हो रहा है ....
इतवार को बंगलुरु और सोमवार को अहमदाबाद के धमाके के बाद सूरत में मीले १८ जिंदा बम के बाद हो रहे राज नेताओ के आरोप-प्रत्यारोप को सुन यही कहा जा सकता है की ये क्या हो रहा है...
एनडीऐ के शासन में संसद के हमले से लेकर आज तक के सभी मामलो में गृह मंत्री का एक ही घिसा-पीटा बयाँ आता है- आतंकवाद को देश की भूमी पर टिकने नही देंगे लेकिन होता इसके ठीक उल्टा है। पोता कानून के ख़त्म करने के बाद थोड़ा जो डर पैदा हुआ था वो भी नही रहा यूंपीऐ के मुस्लमान प्रेम में।
देश को अभी और कुर्बानी देना होगा मुस्लिम तुस्ती के लिए। आप कुर्बानी देना न भी चाहे तो भी भारत सरकार के रूप में बैठे लोग ले लेंगे। कैसे लेंगे ये उनपर छोड़ दीजिए...
कितने दुःख की बात है जो पार्टी कभी साम्राज्यवाद के खिलाफ आजादी के आन्दोलन चलाये गाँधी के नेत्रितत्व में, वही पार्टी साम्राज्यवादी देश से करार करने के लिए सब कुछ दाँव पर लगा दिया। लोकतंत्र को भीड़तंत्र बनाने और विश्वास मत के लिए क्रिमिनल सांसदों के मत लेकर, होर्स ट्रेडिंग कर सरकार बचाई।
भाजपा नेता के एक बयाँ के तुंरत बाद गृह राज्य मंत्री प्रकाश जायसवाल का कहना की धमाका गुजरात के दंगे का बदले के भावना का नतीजा है। ऐसे सरकार से कैसे आशा की जाए की जाए की आंतक को जड़ से मिटा सकेगी।
Friday, July 25
हिम्मत हो तो कुछ भी सम्भव
आज कोलकाता के वूमेन कॉलेज में प्राध्यापिका हैं। सीपीआई की नजर आई तो उन्होंने चुनाव में उम्मीदवार बनाया। १७ हजार मतों के विजयी रही। कभी बेंच का धुल साफ करने वाली १५ साल की लड़की बंगाल के विकास की योजनाओ के बहस में भाग लेती है, संजीदा होकर। किसी ने सच कहा है कौन कहता है आसमान में सुराख़ नही होता, थोड़ा तबियत से पत्थर तो उछालो यारों
यहाँ यह बात पुरी तरह फिट बैठता है।
धन्यवाद
Tuesday, July 15
आजाद होना बांकी है
अभी आजाद होना बांकी है॥
रूठने को तैयार पूर्वांचल
कटने को तैयार कश्मीर
हर तरफ है मुह फैलाया
सांपो का जंजाल यहाँ
कितने है अभी भूखे नंगे
उसे पुरा करना बांकी है।
कैसे...
लूटती है हर रोज
यहाँ सेक्रों पायल
कितने ही दुल्हन की चुरियाँ
होती है रोज घायल
गिरते पड़ते लोगो को
सुरक्छा देना बांकी है।
कैसे...
फैल गया है समाज में
धर्म और मजहब की बात
राजनीती में भी आ गया
जाती और वंशवाद
इन सभी को अभी
उखाड़ फेकना बांकी है।
कैसे...
दोस्ताने व्यव्हार ने दी
कारगिल की चढ़ईया
झेली है हमने
एक दसक में तीन लाधाईयाँ
कितनी लाधाईयाँ अभी
और झेलना बांकी है।
कैसे...
कारवां गुजर गया
साथ हो के विदेशी
साथ लेकर अब चलें
हर चीज स्वदेशी
काम करना है अभी
जो पुरा करना बांकी है।
फीर मनाएंगे पूर्ण आजादी
अभी आजाद होना बांकी है
अभी आजाद होना बांकी है...
Friday, July 4
लीक से हटती पत्रकारिता
संवाद पहुंचाने का सुंदर वर्णन कालिदास के मेघदूत में भी है। हम सभी जानते है भारतीय स्वंत्रता संग्राम में पत्रकारिता की कितनी अहम् भूमिका रही। अंग्रेजी शासक ने जब अख़बार को बंद करने के लिए काला कानून लाया तो ईश्वर चंद्र विद्या सागर से लेकर लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने अंग्रेजों के खिलाफ आन्दोलन करने और भारतियों को अपने पत्र व लेख से जागरूक करने के लिए किस तरह की मेहनत की, यह सबके सामने है। बाल गंगाधर तिलक पहले भारतीय पत्रकार थे जिन्हें पत्रकारिता को लेकर जेल की हवा कहानी पड़ी।
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने भी पत्रकारिता के महत्व को समझ कर ही हरिजन, जैसी पत्रिका को अंगरेजी शासक के खिलाफ लड़ने के लिए अपना हथियार बनाया। और न जाने मैथिलि शरण गुप्ता, अज्ञेय, प्रेमचंद जैसे कितने लेखक हुए जिन्होंने अपना जीवन इसी माध्यम से राष्ट्र की सेवा को समर्पित किया। ऐसे ही महान लेखकों, पत्रकारों की याद में १६ नवम्वर को प्रेस दिवस का आयोजन किया जाता है। सामाजिक उत्थान को अपना धर्म मानने वाले आज भी ऐसे लेखकों, पत्रकारों, साहित्यकारों की कमी नहीं है। क्यूंकि भारत माता वीरों की जननी है।
हम ये कभी नहीं भुला सकते की यात्री और बाबा नागार्जुन के नाम से विख्यात कवि साहित्यकार को उत्तरप्रदेश सरकार ने आपातकाल के पहले तीन लाख रुपये का इनाम देने की घोषणा की थी, लेकिन आपातकाल लगाने के बाद उन्होंने जैसे ही एक रचना की 'शासन की बन्दूक' जो ऐसी तनी की इस इनाम को पाने के लिए तीन सल् का इन्तजार करना पड़ा। इनाम तब मिला जब केन्द्र और राज्य में सत्ता बदल गयी।
इतिहास गवाह है, लोकतंत्र का चौथा स्तंभ पत्रकारिता पेशा के रूप में कभी नहीं रहा और आगे भी ऐसी सम्भावना नहीं दिखाती है। यह एक उद्यम है। एक ऐसा उद्यम जहाँ लोगों की समस्याओ के तह तक जाने, समस्यायों को सुलझाने, जनता और शासन के बीच कड़ी बनने की जिम्मेदारी का निर्वहन करना पड़ता है। इसके बदले में उन्हें मिलता कुछ नहीं बस केवल आत्मसंतुष्टि। तभी तो स्वंत्रता आन्दोलन के दौरान एक अख़बार में संपादक की भरती के लिए विज्ञापन में लिखा था की वेतन के रूप में एक ग्लास पानी, एक सुखी रोटी और इनाम में जेल की हवा। लेकिन आज पत्रकारिता का स्वरुप बदल रहा है।
इलेक्ट्रोनिक मीडिया में रेटिंग बढ़ाने के चक्कर में उमा खुराना जैसे प्रकरण भी सामने आ जाता है। हालाँकि यह बात भी सही है है की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया नहीं होता तो कुरुक्षेत्र के हल्देरी गॉव में पाँच साल का बच्चा प्रिंस का बचना मुस्किल था। आपरेशन तहलका, दुर्योधन हर किसी को याद है। परन्तु दौर ऐसा चला है की इन पत्रकारों को पुरस्कार में क्या मिला, हम सबको पता है। पत्रकारिता के बदलते दौर और बढ़ते रोजमर्रा को जरूरत को देखते हुए इतना अवश्य कहा जा सकता है की इस क्षेत्र में आने वाले इच्छुक पत्रकार, साहित्यकार कभी भी इसे रोजगार और पेशा के रूप में न अपनाएँ, क्यूंकि यह क्छेत्र हमेशा चुनौतियों का सामना करने को तैयार रहने को मजबूर करता है।
प्रकाशित रिपोर्ट ः नव आकाश, गुड़गान्व
Wednesday, July 2
कौन रखेगा याद उसे
जो काजल से भी अंधेरी रातों में
सूर्य की चिलचिलाती धूप में
बर्फीली और हिमवृष्टी में भी
सुदृढ़ आँख जमाये रहता है।
कौन रखेगा याद उसे
जो रिश्ते और नातों से उठकर
साधारण सी दिखने वाली
तिरंगे के लिए हमेशा
मिटते को तैयार रहता है।
कौन रखेगा याद उसे
दुनियादारी को भुलाकर
अपना शोक को मिटाकर
सुनकर विगुल की आवाज़
घर छोड़ दौड़ा आता है।
कौन रखेगा याद उसे
जो गलबाहें को छोड़कर
रिश्ते नाते तोड़कर
खाने को सीने में गोली
आगे हरदम रहता है।
कौन रखेगा याद उसे
जो रूखा सुखा खाकर या भूखे
पती जूते को पहने
दुश्मनों को खदेड़ने
तैयार हमेशा रहता है।
कौन रखेगा याद उसे
जो अपने देश के लिए
स्वयं का सारा गम भुलाकर को
मुसीबतों का सामना कराने को
दुश्मनों के रू ब रू
प्राण न्योछावर करता है।
सुमित के लिए
कई बार सोचता हूँ की कुछ लिखा जाए मगर लिखू क्या यह समझ में कई बार समझ में आता है कई बार समझ में नही आता है। सुभाह उठते ही कंप्युटर खोल लिया, इसके बाद भी क्या लिखे पता नही। पिछले साल एक सुमित नाम से हमउम्र लड़के से परिचय हुआ। एमसीडी के चुनाव में इकुइनोक्स के तरफ़ से सर्वे टीम में मेरे साथ था। अपने आपको लोकप्रिय कॉलोमिस्ट का भांजा कहता था। मेरे लिए वे आदर्श की तरह हैं लिखाड़ और छपने के मामले में।
कुछ दिन पहले मालूम हुआ की वो दो तीन महीनो से गायब है कहाँ गया किसी को पता नही है। जिसने मुझे बताया की वो गायब है उसी ने बताया की सुमित जिगालो था। मुझे नही पता वह क्या करता था अभी कहा है और क्या कर रहा है। इतना जरुर है मेरे साथ चार दिन रहा, उन चार दिनों में अच्छा लड़का लगा। अगर वो जिगालो था भी तो इसके पीछ मिलनेवाले माहौल पर काफी निर्भर किया होगा। उसने कभी भी ये जाहीर होने नही दिया। यहाँ तक की मैंने उससे कुछ बाते शेयर किया तो बड़े ही सलीके से समझाते हुए उन चीजो से दूर रहने को कहा था, उसकी बात मान लेने का परिणाम है की मैं यहाँ हूँ नही तो आज भी छोटे किसी बैनर में धक्के खा रहा होता। धक्का तो अब भी खा रहा हूँ मगर इस धक्के को कोई परिणाम है।
आज बस इतना ही, जिन्दगी में दोबारा सुमित मिले यही आकांक्षा....
Tuesday, July 1
प्यार
वो जीवन नहीं जीने के लिए
प्यार का वो हसीं लम्हा
रह जाता है जिंदगीभर याद
प्यार होता ही है वस
मिलकर बिछुड़ने के लिए
घुम रहा है राजा लेकर
वो क्षणिक सुख की याद
सहेजकर उसे है रखा
अपने प्रियतम के लिए
Sunday, June 15
आत्मतुष्टि
बदलता जा रहा है दिशा और दशा
चाहे कोई भी एजेन्सी हो
पैसे पर बिक रहे हैं
और दिख भी रहे हैं बिकते हुए।
बात कोलकाता की देबीवानो हो
रोहतक की सरिता या फ़िर
संसार को समझाने की उम्र मे
कदम रखते-रखते सदा के लिए सुला दी
जाने वाली नॉएडा की कहानी हो।
हम निरीह हो केवल
चर्चा कर निकल लेते हैं
अपनी भड़ास
ब्लागिंग, किसी को मेल
और भेज कर संदेश।
फर्क कुछ पड़ेगा
यह सोचने का वक्त
न हमारे पास है और न आपके
बस आत्मतुष्टी के लिए
केवल व्यक्त करते हैं प्रतिक्रिया।
किसी से शिकायत क्योकर
हम उससे अलग कुछ नहीं
करते हैं केवल दंभ भरने का
गांधी मैदान मे लाठी लहराकर
इराक के खिलाफ अमेरिका को धमकाने का।
Friday, June 13
नन्हा हाथ
चाँद देख मुसकाता है
कुछ कहने को मुझसे
वह अभी हकलाता है ।
संप्रेषण
छोटी आँखों से कर जाता है
दिल्ली आते रूखसत को
उसने नन्हें हाथो से
मेरा सर सहलाया है
औलाद होकर भी
वालिद सा प्यार जताया है।
Tuesday, June 10
Sunday, June 8
बिल्ली के गले में घन्टी कौन बान्धे
दुसरी ओर राजस्थान की वसुन्धरा राजे सरकार भी आरक्षण का सही तरीके से मसौदे तैयार करके केन्द्र सरकार को सौप नही रही है और न ही अब तक कोई भाव दिखाई है. जबकि सत्ता में आने से पहले राजस्थान की मुख्यमन्त्री राजे ने वादा किया था कि गुज्जरो को एसटी का दर्जा दिया जाएगा. आरक्षण की आग तो स्वयं भाजपा नेत्री ने लगाई है, उस आग की गर्मी अब मह्सूस कर रही है. क्योकि आज से चार साल पहले राजस्थान विधानसभा चुनाव के दौरान चुनावी सभाअओ में गुज्जरो को एसटी का दर्जा देने की बात वसुन्धरा राजे और भाजपा ने ही की थी. सत्ता में आने के तीन साल बाद तक जब गुज्जर को एसटी का दर्जा दिए जाने के लिए कुछ नही किया गया, तब गुज्जर समाज के लिय एक नए नेता कर्नल बैसला के रूप में उभरे जो कि गुज्जरो की बरसो से दुखती रग को न केवल पहचानते है बल्कि अच्छी तरह जानते भी है कि आरक्षण जैसे लोक लुभावन मुद्दे की वजह से ही गुज्जर समाज को अपने नेत्रत्व में एकजुट रख सकते है. वो आसानी से एसा कर भी रहे है। पिछले साल आरक्षण को लेकर हिन्सक आन्दोलन शुरू होने के बाद चोपडा समिति का गठन किया गया. समिति ने जो और इससे न ही गुज्जर समाज सन्तुष्ट थे. क्योन्कि गुज्जर समाज को एसटी दर्जा से कम कुछ भी मन्जूर नही। सच भी है सपना जिसने दिखाया है, सपना पूरा करवाने का फ़र्ज भी वसुन्धरा राजे और बीजेपी सरकार का है। केवल गेन्द के पाले बदलने से कुछ नही हासिल होगा। बान्की पार्टीया का क्या है वो तो आरक्षण की आग पर अपनी राजनीतिक रोटिया सेकेन्गे ही। कान्ग्रेस उसमें सबसे आगे है, केन्द्र मै जिसके नेत्रित्व मै सरकार है। और आक्षरण ले सन्दर्भ कोई भी निर्णय अन्तिम रूप से केन्द्र को ही लेना है. मगर भाजपा धुर विरोधी कान्ग्रेस सरकार ऐसा कोई भी काम या निर्णय नही करेगी जिससे कि भाजपा शासित राज्य को फ़ायदा हो.
आजादी से लेकर आज तक आरक्षण एक मुद्दा बन गया है । मुद्दा एइसा की जहाँ से सस्ती लोकप्रियता लेकर जातिगत नेता उभरकर आ रहे हैं, जिनका मकसद केवल सत्ता है। आरक्षण का मुद्दा उछालकर किसी विशेष जाती के वोट बैंक पर अपनी धाक जमाना, यह नेताओ का विशेष शगल रहा है। उन्हें न देश के विकास से मतलब है और न ही समाज मै एकजुटता बनाए रखने की जिम्मेवारी।
आरक्षण प्राप्त कराने वाली देश की अधिकांश जातियों के लोग आरक्षण कोटे के कारन अपना शत प्रतिशत प्रतिभा का उपयोग नहीं कर पाते है। उन्हें ये आरक्षण की सुभिधा स्वावलंबन के बजाए परावलंबन की ओर धकेल रहा है। आजादी के पहले मंत्रीमंडल मैं शामिल भारतीय संविधान के रचयिता व कानून मंत्री डॉ अम्बेडकर ने भी आरक्षण की नीति को सही नहीं माना था और आरक्षण को मात्र दस साल के लिए स्वीकार किया था।
सर्वे हिंदू सहोदरा कहने वाले राष्ट्रीय स्वयमसेवक संघ के दूसरे सरसंघचालक एमएस गोलावारकर ने भी आरक्षण को कभी सही नहीं कहा। उनहोंने गांधी के हरिजन शब्द के प्रयोग पर भी आपत्ति जताया था। गांधी से उनहोंने एक बार खा भी था की हरिजन शब्द भले ही बहुत खूबसूरत हो और मतलब बहुत अच्छा निकले लेकिन नवांकुर नेता इस बात का कोई और मतलब निकालेंगे। गुरुजी की बातें आज सच साबित हुई है। लोग अब कह भी रहे है की वे हरिजन हैं तो क्या हम दुर्जन हैं।
एक तरफ जातिगत आरक्षण की मांग हो रही है तो दूसरी तरफ़ जातिगत आरक्षण के बजाए आर्थिक रूप से कमजोरों को आरक्षण मिले जाती विशेष को नहीं, एक ऐसा तबका भी है। दिल्ली मै यूथ फॉर इक्वलिटी के बैनर तले नव युवक संगठित होकर इसकी तबियत बिगार गई है। अब तक सरकार की तरफ़ से कोई मिलाने नहीं आया। इस संगठन की मांग कहीं से अतार्किक नहीं लगता। एइसा हो जाए तो देश व समाज के लिए बढ़ते क्षेत्रवाद व जातिवाद की खाई को काफी हद तक पाटने मै सहूलियत होगी। मगर जातीय आधार के वोट बैंक को बनाए रखनेवाले नेतागन एइसा करेंगे! यह सवाल बिल्ली के गले मै घंटी बाँधने के समान है।
एक ओर देश व समाज मै समानता और समाजवाद की बात होती है और दूसरी तरफ़ आरक्षण के नाम पर वोट बैंक व जातिगत पहचान बनाए रखने की कवायद। आख़िर... ये क्या हो रहा है?
Friday, May 30
गीत गाया मच्छरों ने
नीन्द नहीं आंखों में, जब गीत गाया मच्छरों ने॥
ज़ाड़ा, गर्मी या हो बरसात, हरदम रहता इसका साथ।
बारहां जगाये रातों में, जब गीत गाया मच्छरों ने॥
परेशां रहे दिनों में, जब गीत गाया मच्छरों ने॥
फट फट की आवाज़ कराये बेकारों को काम दिलाये।
घिरे मौत के साए में जब गीत गाया मच्छरों ने॥